झारखंड में रामनवमी पर धार्मिक उन्माद ने बिगाड़ा सांप्रदायिक सौहार्द

Estimated read time 1 min read

झारखंड। झारखंड समेत पूरे देश में फिर से रामनवमी के अवसर पर धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश की गई। वर्ष 2022 की तरह ही रामनवमी के मौके पर झारखंड समेत पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, जम्मू, तेलंगाना में मुसलमानों के खिलाफ धार्मिक उन्माद, भड़काऊ भाषण और हिंसा के मामले सामने आए।

रामनवमी के दौरान झारखंड में दो जगहों पर हिंसा हुई। धनबाद के निरसा में एक मुस्लिम युवक को घर में गाय काटने के आरोप में पेड़ से बांध कर रखा गया। जब पुलिस आयी तब उग्र भीड़ ने पुलिस की 3 गाड़ियों को भी नुकसान पहुंचाया और गाड़ियां पलट दीं। इस घटना में मुस्लिम युवक के खिलाफ केस कर उसे गिरफ्तार किया गया है।

लेकिन भीड़ द्वारा पुलिस की गाड़ी को नुकसान पहुंचाये जाने की घटना को धनबाद उपायुक्त ने मामूली नोक-झोंक करार दिया और उपद्रवियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। दूसरी घटना बालीडीह, हज़ारीबाग की है जहां एक मुस्लिम युवक को गाय की चोरी के आरोप में भीड़ ने बुरी तरह पीटा। दोनों घटनाओं में ये देखा गया कि पुलिस एक पक्ष के खिलाफ कार्रवाई करने से बच रही है जो सीधे-सीधे सुप्रीम कोर्ट के तहसीन पूनावाला केस का उल्लंघन है।

बता दें कि पूर्वी सिंहभूम के कोवाली थाना क्षेत्र के हल्दीपोखर में रामनवमी झंडा विसर्जन जुलूस के दौरान जमकर हंगामा हुआ। हंगामे के दौरान पथराव हुआ जिसमें सीओ समेत आधे दर्जन लोग घायल हो गये। पथराव में हल्दीपोखर पूर्वी पंचायत की मुखिया देवी कुमारी भूमिज, पोटका सीओ इम्तियाज अहमद, पूर्व मुखिया सैय्यद जबीउल्लाह समेत कई लोग शामिल घायल हो गए।

देश के कई राज्यों में हिन्दू पर्व के नाम पर जुलूस निकाले गए और भीड़ में मुसलमानों के खिलाफ भड़काऊ नारे लगाए गये और मस्जिद के सामने गाने बजाए गये। इतना नहीं कई जगह तो मस्जिद में भगवा झंडा लगाया गया। इस दौरान हुई पत्थरबाज़ी ने आग में घी डाला और मुसलमानों पर व्यापक हिंसा हुई। घर और दुकान जलाए गये।

ये मामले अपने आप में अलग नहीं है, बल्कि आरएसएस और बीजेपी समेत कई हिंदुत्ववादी संगठनों की तरफ से देश को हिन्दू राष्ट्र में बदलने की सामाजिक-आर्थिक-धार्मिक राजनैतिक परियोजना का हिस्सा है। इस परियोजना के तहत अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ नफरत और हिंसा का जहर समाज में कई तरीकों से घोला जा रहा है।

खान-पान के नाम पर, पहनावे के आधार पर (दाढी, हिजाब), गौ-वंश रक्षा के नाम पर, एक देश एक भाषा के नाम पर, मुसलमानों की दुकानों से न खरीदने के अभियान शुरू करना, नमाज़ पढ़ने की प्रक्रिया का अपराधीकरण करने की कोशिश करना आदि। हिन्दू राष्ट्र की संकीर्ण अवधारणा के तहत अल्पसंख्यकों, आदिवासी और दलितों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाया जा रहा है।

रोज संविधान और देश के लोकतान्त्रिक ढांचे पर बीजेपी और आरएसएस परिवार के हमले बढ़ते जा रहे हैं। दुख की बात है ये कि गैर बीजेपी शासित राज्यों में भी इस बढ़ते उन्माद को रोका नहीं जा रहा है। इसका ताजा उदहारण झारखंड और पश्चिम बंगाल है। अधिकांश गैर-भाजपा राजनैतिक दल हिंदुत्व के विरुद्ध मुंह तक नहीं खोल रहे हैं। प्रशासन और पुलिस की कार्रवाई में भी समुदाय और धर्म आधारित भेदभाव नज़र आ रहा है।

इन तमाम घटनाओं पर झारखंड जनाधिकार महासभा ने राज्य सरकार से मांग की है कि अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हाल के धार्मिक उन्माद और हिंसा के लिए ज़िम्मेवार दोषियों पर कार्रवाई हो। इन्हें न रोकने के लिए दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ भी कार्रवाई हो और हिंसा में घायलों के परिवारों को मुआवजा मिले।

साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाए कि पुलिस संवैधानिक मूल्यों और कानून का पूरी तरह से पालन करते हुए किसी भी प्रकार के धार्मिक उन्माद और हिंसा के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करेगी। हेमंत सोरेन सरकार राज्य को बीजेपी शासित राज्यों की तरह अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की प्रयोगशाला न बनने दें।

देश सभी धर्मों और समुदायों के लिए एक समान है, इस मूल्य को कायम रखने के लिए सभी लोग आरएसएस और बीजेपी के हिन्दू राष्ट्र के एजेंडा और समाज में फैलती हिंसा और नफरत के खिलाफ एकजुट हों। धार्मिक उन्माद और नफरत की राजनीति के खिलाफ संविधान और लोकतंत्र को फिर से बहाल करने के लिए संघर्ष को तेज़ करने की तुरंत ज़रूरत है।

(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author