मोदी सरकार जहां ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता को भुनाने के लिए देश के कोने-कोने में पीएम नरेंद्र मोदी की रैली, रोड शो में व्यस्त है, और साथ ही सांसदों से सजे 7 प्रतिनिधिमंडलों को भारत का पक्ष बताने के लिए दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भेजा गया है, वहीं खबर आ रही है कि पाकिस्तान की मदद के लिए तीनों बड़ी महाशक्तियां अपने-अपने तरीके से कदम बढ़ा चुकी हैं।
भारतीय हुक्मरान जहां भारत-पाक सैन्य झड़प में सेना की सफलता को चुनावी दृष्टि से भुनाने की कोशिशों में लगे हैं, तो वहीं पाकिस्तान न सिर्फ आइएमएफ से कर्ज की किश्त पाने में कामयाब रहा, बल्कि इस संकट को उसने अपनी खस्ताहाल अर्थव्यस्था को दुरुस्त करने के मौके के रूप में लिया है।
इसकी पुष्टि भारतीय न्यूज़ एजेंसी ज़ी न्यूज़ के ज़ी मीडिया ब्यूरो ने 28 मई की अपनी खबर में इस शीर्षक के साथ दी है, “भारत का सहयोगी रूस क्यों पाकिस्तान की मदद कर रहा है? पुतिन के इस चौंकाने वाले फैसले से तनाव व्याप्त।” जापानी न्यूज़ एजेंसी की 4 दिन पहले की खबर भी इस तथ्य की पुष्टि करती है कि रूस ने पाकिस्तान के एक बंद पड़े इस्पात संयंत्र के स्थान पर एक आधुनिक इस्पात संयंत्र के निर्माण में मदद करने पर सहमति व्यक्त की है, जिसे सोवियत संघ ने 1990 के दशक के आरंभ तक लगभग दो दशकों तक संचालित किया था।
ज़ी न्यूज़ ने अपने विश्लेषण में रूस-पाकिस्तान के बीच आर्थिक समझौते पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि रूस के इस कदम ने नई दिल्ली की चिंता बढ़ा दी है। देश की आजादी के बाद से ही सोवियत रूस और अब रूस भारत का दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदार रहा है। इसमें आगे कहा गया है कि यह सहयोग क्षेत्र में आर्थिक संबंधों को नया आकार दे सकता है और भारत और रूस के बीच नए कूटनीतिक तनाव को जन्म दे सकता है।
भारत में यह खबर भले ही सुर्ख़ियों में न हो, लेकिन विश्व इस कदम पर चर्चा कर रहा है। 70 के दशक में सोवियत रूस के सहयोग से निर्मित इस स्टील प्लांट ने 2015 में पूरी तरह से अपना काम बंद कर दिया था। इस एक कदम से पाकिस्तान के स्टील आयात में 2.6 बिलियन डॉलर की कटौती होने जा रही है। भारत के एनआईए चीफ अजित डोवाल 27-29 मई तक रूस की यात्रा पर थे, इसके अलावा हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस की यात्रा के साथ-साथ कई मौकों पर रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से गर्मजोशी के साथ मुलाक़ात करते ही रहते हैं।
फिर आखिर यह चूक कैसे हो रही है? क्या रूस ने मान लिया है कि भारत अब खुद इतना मजबूत और शक्तिशाली बन चुका है कि उसे पुराने मित्र की जरूरत नहीं रही, इसलिए उसने पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करना शुरू कर दिया है?
हाल ही में रूस ने द्वितीय विश्व युद्द में हिटलर की सेना पर निर्णायक जीत और विश्व युद्ध के खात्मे की 80वीं जयंती पर पीएम नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया था। ऑपरेशन सिंदूर के चलते पीएम मोदी तो नहीं गये, लेकिन बाद में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी नहीं जा सके। व्लादिमीर पुतिन ने इस आयोजन के बहाने दुनिया के कई राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित कर अमेरिकी और नाटो प्रतिबंधों को काफी हद तक धूमिल करने में सफलता प्राप्त की।
चीन तो पहले से ही पाकिस्तान के साथ रणनीतिक संबंध बना चुका था, जिसे 2020 में कश्मीर में धारा 370 के निरसन और कश्मीर एवं लद्दाख को केंद्र शासित राज्य बनाने के बाद तेज गति प्राप्त हुई। चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत पाक अधिकृत कश्मीर के जरिये पाकिस्तान को जोड़ लिया, और मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक इस क्षेत्र में चीन का करीब 60 बिलियन डॉलर निवेश है।
बुधवार को मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने पाकिस्तान को जून के अंत से पहले चीनी मुद्रा में 3.7 बिलियन अमरीकी डॉलर का वाणिज्यिक ऋण देने का आश्वासन दिया है, जिससे पाकिस्तान को विदेशी मुद्रा भंडार को दोहरे अंकों में रखने में मदद मिलेगी। चीन के इस कदम को डॉलर मुक्त वैश्विक व्यापार के एक अगले कदम के रूप में देखा जा रहा है। पाकिस्तान पहले ही इस साल मार्च और अप्रैल के बीच तीन किस्तों में इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना (ICBC) का 1.3 बिलियन अमरीकी डॉलर का ऋण चुकता कर चुका है।
ये तो रही उन दो महाशक्तियों की बात, जिनमें से एक हमारा पड़ोसी देश है और जिसपर हमारी निर्भरता भी मोदी राज में कई गुना बढ़ चुकी है, जबकि रूस ने तो भारत को सामरिक ही नहीं बल्कि बड़ी आधारभूत औद्योगिक ढांचों और तकनीक हस्तांतरण में मदद कर सबसे बड़ी मदद की है। क्या मोदी राज में भारत पूरी तरह से अमेरिकी निर्देशों के तहत अपनी वैश्विक नीति पर चला गया, जिसके चलते आज पाकिस्तान जैसी छोटी अर्थव्यस्था को रूस इतना महत्व दे रहा है?
लेकिन इससे भी ज्यादा अचंभे की बात तो यह है कि डोनाल्ड ट्रंप की भी निजी रूचि पाकिस्तान में है। खबर है कि पाकिस्तान क्रिप्टो काउंसिल के सीईओ बिलाल बिन साकिब ने लास वेगास में बिटकॉइन वेगास 2025 सम्मेलन में अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बेटे एरिक और डोनाल्ड ट्रम्प जूनियर की उपस्थिति में पाकिस्तान सरकार समर्थित रणनीतिक बिटकॉइन रिजर्व बनाये जाने की घोषणा की थी।
लेकिन अब खुलासा हो रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर होने से पहले ही पाकिस्तान ने ब्लॉकचेन टूल विकसित करने, राष्ट्रीय संपत्तियों को टोकन देने और अपने उभरते क्रिप्टो इकोसिस्टम पर रणनीतिक मार्गदर्शन प्राप्त करने हेतु अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के परिवार से जुड़ी एक यूएस-आधारित फर्म ‘वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल’ (WLF) के साथ साझेदारी कर ली थी।
यह घोषणा अप्रैल के अंत में की गई थी, जिसने वैश्विक ध्यान को आकर्षित किया, लेकिन भारत-पाक सीमा तनाव की वजह से भारत में यह चर्चा में नहीं आ पाई। ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान में क्रिप्टो अपनाने की प्रक्रिया पहले से ही उफान पर है, और इसके लगभग 2 करोड़ उपयोगकर्ता हैं, जो पाकिस्तान के 4,20,000 पंजीकृत पूंजी बाजार निवेशकों की तुलना में कई गुना है। पाकिस्तान दुनिया के शीर्ष 10 वैश्विक क्रिप्टो-ट्रेडिंग देशों में गिना जाता है। अब पाकिस्तान डिजिटल एसेट अथॉरिटी (PDAA) का गठन कर पाकिस्तानी सरकार इसे विनियमित, कर वैध बनाना चाहती है, और डोनाल्ड ट्रंप परिवार की छत्रछाया मिले, इससे बेहतर पाकिस्तानी हुक्मरानों और क्रिप्टो निवेशकों के लिए भला क्या हो सकता है?
ये तो रही पाकिस्तान की कूटनीति और महाशक्तियों के साथ अपने रिश्तों को प्रगाढ़ करने की कहानी, पर हमारे देश में क्या हो रहा है? रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया की मानें तो हमारे देश में FDI वर्ष 2023 की तुलना में पिछले वर्ष 96% घट गई, जबकि हमारे अपने देश के बड़े कारोबियों ने 29 बिलियन डॉलर का पूंजी निवेश विदेशों में कर डाला, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में 75% अधिक था।
भाजपा सरकार देश के सामने अभी तक पहलगाम आतंकी घटना की वजह, उन चार आतंकियों की खोज-खबर, पर्यटकों की सुरक्षा में चूक और इंटेलिजेंस इनपुट की विफलता को लेकर कुछ भी बताने की इच्छुक नहीं है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश और अब तेलंगाना के कांग्रेस मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के राफेल विमानों के बारे में सूचना मांगने पर उन्हें भाजपा प्रवक्ता पाकिस्तान का हमदर्द बताकर सवालों से भाग रहे हैं।
कल कॉर्पोरेट समूह के एक आयोजन में रक्षा मंत्री की उपस्थिति में जब भारत के एयर चीफ मार्शल ने रक्षा सामग्रियों की आपूर्ति में लंबे विलंब के प्रति निराशा और क्षोभ व्यक्त किया, तो उनके जवाब से ही देश काफी कुछ समझ चुका है। बाकी रही-सही कसर अब भाजपा के ही वरिष्ठ सुब्रमनियम स्वामी मीडिया इंटरव्यू में यह घोषणा कर बता रहे हैं कि भारत के कुल 5 वायुसेना विमान इस मुठभेड़ में नष्ट हो चुके हैं, तो हालात की विकटता का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है।
पाकिस्तान दुनिया में खुद को भारत की दादागिरी का भुक्तभोगी बताकर अपनी अर्थव्यस्था को चाक-चौबंद करने पर लगा है, वहीं हमारे हुक्मरान भू-राजनैतिक हालात को कुछ सांसदों के भरोसे छोड़ अगले चुनाव के लिए इस मोमेंट को आम लोगों के दिलोदिमाग पर गहरी छाप छोड़ने पर जुटे हुए हैं। इसे एक त्रासदी न समझा जाये तो क्या समझा जाये?
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)