पत्रकारों पर छापे सामाजिक न्याय पर हो रही बहस से ध्यान भटकाने की साजिश तो नहीं?

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सुबह सुबह खबर मिली कि पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा, औनिंद्यो चक्रवर्ती और इतिहासकार सोहेल हाशमी के घर पुलिस पहुंची है। यह छापा और पूछताछ आतंकवाद के समर्थन के आरोप में यूएपीए की धाराओं के अंतर्गत दर्ज एक एफआईआर के सन्दर्भ में डाला गया है। किसी भी पत्रकार की गिरफ्तारी की कोई आधिकारिक खबर तो अभी नहीं मिल रही है पर, सोशल मीडिया पर यह जरूर कहा जा रहा है कि उनमें से कुछ को, गिरफ्तारी के लिए पुलिस थाने ले जाया गया है। लेकिन पुलिस की तरफ से ऐसी कोई पुष्टि नहीं की गई है। अचानक बड़े और प्रतिष्ठित पत्रकारों पर छापे की यह खबर हैरान करने वाली है।

उपरोक्त पत्रकारों के अतिरिक्त न्यूजक्लिक से जुड़े भाषा सिंह, आर्थिक मामलों के प्रसिद्ध पत्रकार परंजोय गुहा ठाकुरता, प्रबीर पुरकायस्थ और एक अन्य संजय राजौरा के घर भी पुलिस के पहुंचने की खबर सोशल मीडिया पर वायरल है। परंजोय गुहा ठाकुरता ने राफेल घोटाले पर एक किताब फ्लाइंग लाइज लिखी है और अडानी घोटाले पर उन्होंने कई खोजी लेख भी लिखे हैं। उनके खिलाफ अडानी समूह ने मानहानि के कई मुकदमे भी दायर करवा रखे हैं। एक जानकारी यह भी आ रही है कि एक्टिविस्ट तीस्ता सीतलवाड़ के घरों पर भी छापा मारा गया है। यह भी खबर है कि मुंबई में रहने वाली तीस्ता सीतलवाड़ से दिल्ली पुलिस के अधिकारी पूछताछ कर रहे हैं।

द वायर के अनुसार यह छापेमारी एफआईआर संख्या 224/2023 के संबंध में है। यह मामला 17 अगस्त 2023 को दायर किया गया था और इसमें 153 (ए) (धर्म, जाति के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के साथ-साथ यूएपीए UAPA की धाराएं 13, 16, 17, 18 और 22  लगाई गईं हैं। साथ ही भारतीय दंड संहिता की धारा 120 (बी) (किसी अपराध को करने के लिए आपराधिक साजिश के अलावा किसी अन्य आपराधिक साजिश में शामिल होना) भी जोड़ी गई है।

वर्तमान एफआईआर की जड़ें कथित तौर पर न्यूयॉर्क टाइम्स की अगस्त की रिपोर्ट से जुड़ी हैं। द वायर के लेख के अनुसार, “भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया था कि कांग्रेस नेताओं और न्यूज़क्लिक को “भारत विरोधी” माहौल बनाने के लिए चीन से धन मिला था।

द वायर ने न्यूज क्लिक के और कुछ अन्य पत्रकारों के खिलाफ छापे के संबंध में जिन आपराधिक मुकदमों की उल्लेख किया है, उनमें आईपीसी भारतीय दंड विधान की धारा 153A के साथ साथ UAPA, यूएपीए कानून की धारा 13/14/15/16/17/18 का उल्लेख है।

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A ‘धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा, आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और सद्भाव बिगाड़ने’ के मामले में लगाई जाती है। इसमें 3 साल तक के कारावास या जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है। इस धारा का संबंध किसी भी फंडिंग से नहीं है।

अब आते हैं, UAPA की धाराओं पर-

० धारा 13 : गैरकानूनी गतिविधियों के लिए सजा 

(1) जो कोई भी- (ए) किसी भी गैरकानूनी गतिविधि में भाग लेता है या करता है, या (बी) उसे करने के लिए उकसाता है, सलाह देता है या उकसाता है, उसे सात साल तक की अवधि के लिए कारावास से दंडित किया जाएगा, और साथ ही उसे दंडित भी किया जाएगा। जुर्माने का भागी होगा।

० धारा 14 : अपराधों का शमन

राज्य सरकार द्वारा अधिसूचना द्वारा इस संबंध में विशेष रूप से सशक्त एक अधिकारी, इस संबंध में राज्य सरकार के किसी भी सामान्य या विशेष आदेश के अधीन, इस अधिनियम के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का शमन, संस्था के पहले या बाद में कर सकता है। अभियोजन पक्ष के, अहसास पर..

० UAPA एक्ट धारा 15

यूएपीए की धारा 15 “आतंकवादी कृत्य” को परिभाषित करती है और इसमें कम से कम पांच साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। यदि आतंकवादी कृत्य के परिणामस्वरूप मृत्यु हो जाती है, तो सजा मृत्यु या आजीवन कारावास है।

० धारा 16: आतंकवादी कृत्य के लिए सज़ा

जो कोई भी धारा 15 में उल्लिखित किसी भी आतंकवादी कृत्य को अंजाम देता है उसे सजा मिल सकती है – 5 साल से लेकर आजीवन कारावास, जुर्माना या दोनों।

० धारा 17 : यह धारा धन की फंडिंग से जुड़ी है

जो कोई भी आतंकवादी कृत्य करने के उद्देश्य से धन जुटाएगा, उसे कारावास से दंडित किया जाएगा, जिसकी अवधि पांच साल से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

यहां यह सवाल उठता है कि,

यदि चीन से धन आया भी तो वह किस तरह से आया, वैध और आरबीआई के नियमों के अंतर्गत आया या किसी हवाला या आपराधिक चैनल के द्वारा आया है।

यदि धन आया भी है तो क्या वह धन मीडिया कंपनी के पास आया है या, उर्मिलेश, भाषा, अभिसार शर्मा, सोहेल हाशमी आदि पत्रकारों की जेब में आया है?

यह भी सवाल उठता है कि मीडिया कंपनी के खिलाफ क्या कार्यवाही हुई। छापों की सूचना तो इन्हीं पत्रकारों के संदर्भ में आ रही है। यदि इस बात के सुबूत जांच एजेंसी के पास हैं कि, इन पत्रकारों ने चीन से धन लेकर उससे आतंकवादी गतिविधियां में अपना योगदान दिया है, तब तो बात अलग है पर केवल पत्रकारों को ही टारगेट करना, यह अनेक संदेहों को जन्म देता है।

वर्तमान सरकार का रवैया आजाद प्रेस के प्रति अक्सर शत्रुतापूर्ण दिखता रहा है। चाहे मणिपुर में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के खिलाफ दर्ज मुकदमे हों या अन्य जगहों पर पत्रकार उत्पीड़न के मामले हों। सोशल मीडिया के तेजी से हो रहे प्रसार के कारण, सरकार को भय है कि जन संचार का यह सुलभ और सुगम माध्यम आने वाले चुनावी साल और समय में बीजेपी की असहजता को बढ़ा सकता है।

अडानी समूह के खिलाफ शेल कंपनियों से मनी लांड्रिंग करके निवेश के आरोप हलफनामों के रूप में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिकाकर्ता अनामिका जायसवाल द्वार दायर किए गए हैं और सुप्रीम कोर्ट ने इसी अक्टूबर में उसकी सुनवाई नियत की है। पर क्या सरकार का यह दायित्व नहीं बनता है कि वह अडानी समूह के खिलाफ मनी लांड्रिंग के आरोपों की जांच कराए। पर सरकार चुप है।

यह भी एक विडंबनापूर्ण तथ्य है कि जिस चीन से फंडिंग का आरोप है, उसी चीन का एक कनेक्शन अडानी समूह से भी है। इसका खुलासा भी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में आया है। अडानी समूह के प्रति तो आज तक किसी एजेंसी ने जांच करने की जहमत नहीं उठाई।

सीपीआई-एम नेता सीताराम येचुरी के आधिकारिक आवास पर भी दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल द्वारा न्यूज़क्लिक से जुड़ी संस्थाओं पर चल रही कार्रवाई के तहत मंगलवार सुबह छापा मारा गया था, जिसे न्यूयॉर्क टाइम्स ने कथित तौर पर चीनी फंडिंग प्राप्त करने के रूप में एफआईआर में नामित किया गया है।

छापे पर सीताराम येचुरी ने कहा, “पुलिस मेरे घर पर आई क्योंकि मेरे एक साथी का बेटा न्यूज़क्लिक के लिए काम करता है। वो मेरे साथ ही रहते हैं। पुलिस ने उससे पूछताछ की। उन्होंने उसका लैपटॉप और फोन जब्त कर लिया। वे क्या जांच कर रहे हैं, कोई नहीं जानता। अगर ये पत्रकारिता का गला घोंटने की कोशिश है तो देश को इसके पीछे का कारण जानना चाहिए।”

पत्रकारों पर छापा जातीय जनगणना के बाद सामाजिक न्याय के मुद्दे को चर्चा में आने से रोकने का एक कुत्सित प्रयास है। यदि चीन से अवैध धन आया भी है तो उसमें कोई पत्रकार या लेखक कैसे दोषी हो सकता है। कानून के उल्लंघन से अर्जित धन का दोष मीडिया कंपनी का तो हो सकता है पर पत्रकारों का दोष हो, इस पर संशय है।

ऐसा संशय जातीय जनगणना के बाद देश में हो रही सामाजिक न्याय के मुद्दे पर चर्चा के बाद, इस तरह के छापे की टाइमिंग के कारण उठ रहा है। क्योंकि जितने भी पत्रकार इस छापे में निशाने पर हैं वे सरकार विरोधी दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। बीजेपी और सरकार जब से जातीय जनगणना की रिपोर्ट बिहार सरकार ने जारी की है, तब से असहज है और इस रिपोर्ट को लेकर इंडिया गठबंधन उत्साहित है और बीजेपी भ्रम में है।

भारत विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में निचले 20 देशों में है। जहां तक ​​प्रेस की स्वतंत्रता का सवाल है, यह G-20 देशों में सबसे निचले पायदान पर है। 2015 से नियमित रूप से सभी वैश्विक सूचकांकों, फ्रीडम हाउस, वी-डेम, इकोनॉमिस्ट इंडेक्स द्वारा डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग दर्ज की गई है।

(विजय शंकर सिंह पूर्व आईपीएस और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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