इतिहास गवाह है कि शताब्दियों से मानव, सामाजिक न्याय प्राप्त करने के लिए निरंतर भटकता रहा है और इसी कारण दुनिया में कई युद्ध, क्रांति, बगावत, विद्रोह हुये हैं जिसके कारण अनेक बार सत्ता परिवर्तन हुए हैं। अगर भारत...
दूसरों के मल को अपने हाथों से ढोना बेहद अमानवीय है। ये अमानवीय प्रथा सदियों से हमारे देश में एक मान्य प्रथा की तरह चलती आ रही है। सरकार यह कहती रही है कि पिछले कुछ वर्षों में देश...
भारतीय संविधान में दर्ज स्वतंत्रता, समानता, न्याय, बंधुता, व्यक्ति की गरिमा जैसे अन्य संवैधानिक मूल्य हमारे जीवन के घोषित आधार हैं। लेकिन आजाद भारत के 75 वर्ष बाद हम संवैधानिक मूल्यों को कितना स्वीकार पाए?
हमारे देश में संवैधानिक मूल्यों का कितना पालन...
कर्नाटक में कांग्रेस ने अंततः भावी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में सिद्धारमैया को ही चुन लिया है। वे कर्नाटक की जनता, कांग्रेस विधायक दल और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की मुख्यमंत्री पद के लिए पहली पसंद बने।...
भारत में जाति को लेकर मुख्य समझ एक सांस्कृतिक परिघटना के रूप में जाति के विचार पर केंद्रित रही है। जाति और व्यापक सामाजिक न्याय की मांग करने वाली राजनीति का मजाक उड़ाते हुए 'पहचान की राजनीति' बताया जाता...
नई दिल्ली। तमिलनाडु में पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह (वीपी सिंह) की आदमकद प्रतिमा जल्द ही लगने जा रही है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने 20 अप्रैल को घोषणा की कि उनकी सरकार वीपी सिंह का सम्मान करने...
जब यह बात कहने पर, कि “लोकतंत्र खतरे में है”, आपके ऊपर हमले होने लगें और आपको गाली दी जाने लगे, या जब सत्ताधारी राजनेता को सत्ता से हटाने का आह्वान करने वाले पोस्टर छापने पर आपके ऊपर पुलिसिया...
कांग्रेस पार्टी ने रायपुर में हुए अपने 85वें महाधिवेशन में सामाजिक न्याय से जुड़े निम्न महत्पूर्ण फैसले लिए
एससी-एसटी, ओबीसी, महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए पार्टी के सांगठनिक ढांचे में नीचे से ऊपर तक 50 प्रतिशत आरक्षण।
जाति आधारित जनगणना कराने...
प्रिय तेजस्वी यादव जी,
कुछ दिन पहले मैं राजधानी पटना में था। तभी सोशल मीडिया पर आप की एक तस्वीर कुछ दोस्तों ने शेयर की। तस्वीर में आप किसी ‘परशुराम जयंती’ में बोल रहे थे।
आप की आलोचना में जब मैंने...
हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, विकास, सामाजिक न्याय और धर्म निरपेक्षता जैसे भारी भरकम और आसमानी मुद्दों के नीचे उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति एक बार फिर से जातियों की हकीकत पर आकर खड़ी हो गई है। इसलिए यह सवाल उठना लाजिमी...