गुजरात दंगों का चेहरा रहे अशोक ने ‘एकता चप्पल शॉप’ खोलकर समाज को दिया भाईचारे का संदेश

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अहमदाबाद। गोधरा और 2002 गुजरात दंगों की बात होती है तो दो चेहरे सामने आ जाते हैं। एक अशोक भवान भाई परमार जो कट्टर हिन्दू दंगाई का चहरा बना और दूसरा  कुतुबुद्दीन अंसारी जो पीड़ित मुस्लिमों के चेहरे के तौर पर सामने आया। देश विदेश के मीडिया ने इन्हे खूब दिखाया। जिसके चलते आज भी ये लोग दंगे के प्रतीक के रूप में देखे जाते हैं। 

अशोक परमार अहमदाबाद के शाहपुर हलीम की खिड़की के पास मोची का काम कर दिन में ढाई से लेकर तीन सौ कमा कर अपने जीवन का गुजारा करते थे। भले ही अशोक गुजरात दंगे का प्रतीक हों लेकिन उन्हें कभी भी विश्व हिन्दू परिषद या किसी अन्य संगठन का कोई सहयोग नहीं मिला। वह आर्थिक तंगी के चलते विवाह नहीं कर पाए और सोने के लिए उन्हें घर की जगह फुटपाथ नसीब हुआ। फुटपाथ पर सोते हुए देखने के बाद डी देसाई स्कूल के प्रिंसिपल ने रात को स्कूल में सोने की उन्हें जगह दे दी। अशोक के रात का वही ठिकाना है। कभी सरकार के लिए इस्तेमाल हो जाने वाले अशोक को एकाएक उससे इतनी नाराज़गी हो गयी कि 2002 के बाद उन्होंने कभी वोट ही नहीं किया। 2014 में चुनाव आयोग ने मतदारयादी से नाम निकाल दिया। अशोक के पास कोई पहचान पत्र नहीं है जिस वजह से वह रेलवे के सामान्य डिब्बे में ही सफर करते हैं। 

अशोक उर्फ मोची की आर्थिक परिस्थिति को देखते हुए केरल के विधायक पी जयराजन  जो कन्नूर सीपीएम सचिव हैं, ने अशोक परमार को आर्थिक सहयोग देकर चप्पल जूते की दुकान का मालिक बना दिया है। सीपीएम के सहयोग से अशोक ने अहमदाबाद के दिल्ली दरवाज़ा बीआरटीएस बस स्टॉप के पास “एकता चप्पल घर” नाम से दुकान खोली है। मज़े की बात यह है कि अशोक ने दुकान का उद्घाटन करने के लिए 2002 दंगे में पीड़ितों का चेहरा बने कुतुबुद्दीन अंसारी और हसन शहीद दरगाह मस्जिद के इमाम मौलाना अब्दुल क़दीर पठान को आमंत्रित किया। मौलाना और अंसारी ने रिबन काट कर दुकान का उद्घाटन किया। पहले ग्राहक अंसारी ही बने। पिछले पांच वर्ष से दोनों मित्र हैं। मौलाना ने दुआ कराई और अंसारी ने शुभ कामना देते हुए कहा कि “हम चाहते हैं अशोक को जो आर्थिक सहयोग एक राजनैतिक दल द्वारा मिला है। उसका सही उपयोग करते हुए मेहनत करें और तरक्की करें यही हमारी शुभ कामना है।” 

अशोक जब फुटपाथ पर काम करते थे तो उनके पास औज़ार रखने की लकड़ी की पेटी थी और पेटी पर लकड़ी का एक मंदिर हुआ करता था जिसमें मेलोडी माता का फोटो और दीवार पर बाबा साहेब आंबेडकर की तस्वीर होती थी। नई दुकान में कुछ बदलाव है। जो उनके विचार में आए बदलाव को दिखाता है। अशोक ने दुकान का नाम एकता चप्पल घर रखा है। दुकान की दीवार में तीन फोटो फ्रेम हैं। एक बाबा साहेब का। दूसरी खुद की नसीरुद्दीन शाह के साथ बात करते और तीसरी फ्रेम में अशोक और अंसारी हाथ मिला रहे हैं साथ में पी जयराजन खड़े हैं। दुकान के उद्घाटन में अधिकतर मुस्लिम ही थे। 

2002 दंगे के बाद अंसारी को गुजरात छोड़ कर बंगाल जाना पड़ा था। अंसारी को गुजरात से बंगाल ले जाने में सीपीएम के मोहम्मद सलीम ने सहयोग दिया था। लगभग एक वर्ष रहने के बाद अंसारी कोलकाता से फिर अहमदाबाद आ गए थे। अशोक को भी पी जयराजन ने केरल में 15000 प्रति माह वाली नौकरी दिलाई थी। परंतु भाषा और खान पान की समस्या के कारण अशोक ने नौकरी नहीं की। जिसके बाद राजन ने आर्थिक सहयोग देकर दुकान खुलवा दी है। 

अंसारी और अशोक की पहली मुलाकात मार्च 2014 में “मैं कुतुबुद्दीन अंसारी” नामक किताब के अनावरण के मौक़े पर हुई थी। यह कार्यक्रम केरल में सीपीएम द्वारा आयोजित किया गया था। दोनों चेहरों को एक स्टेज पर लाने में अहमदाबाद स्थित सामाजिक कार्यकर्ता कलीम सिद्दीकी और मलयाली पत्रकार शहीद रूमी की भूमिका थी। 2014 से अंसारी और अशोक कन्नूर ज़िला सचिव और विधायक पी जयराजन के संपर्क में हैं। 2019 लोकसभा चुनाव में दोनों ने राजन के लिए प्रचार भी किया था। 

अशोक भली भांति जानते हैं कि वह दलित समाज से आते हैं। जाति आधारित भेद भाव के बारे में अशोक ने बताया कि हिन्दू संगठन दलित विरोधी विचारों वाले हैं। 2002 की एक घटना का जिक्र करते हुए वह बताते हैं कि “दंगे के बाद जब अखबरों में मेरी तस्वीर खूब छप रही थी तो मेरा एक दोस्त पालडी स्थित विश्व हिन्दू परिषद कार्यालय ले गया। वहां पहला सवाल था कितने मुस्लिमों को मारा? जब मैंने कहा किसी को नहीं तो उनका जवाब था। सिर्फ फोटो खिंचवा कर आये हो। नाम पूछने पर अशोक परमार बताया तो मुझे गीता मंदिर कैंप में जाने को कहा गया। क्योंकि वह कैंप दलित समुदाय का था। मुझे लगा यह जाति देख कैंप में भेजते हैं तो मैं कहीं नहीं गया।” 

लेकिन अब जब कि अशोक के पास एक दुकान हो गयी है और आय का निश्चित साधन हो गया है। तब उन्हें उम्मीद है कि कब से भटक रही जिंदगी की गाड़ी अब अपनी पटरी पर आ जाएगी।

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