भारत की जीत पर नहीं, उसकी हार पर भी खुश थे रामबुझावन

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बांग्लादेश को 28 रनों से हराकर भारत आईसीसी वर्ल्ड कप क्रिकेट के सेमीफाइनल में पहुंच चुका है। शायद अब यह कहना मुफीद हो कि 8 मैचों में भारत की इस छठी जीत पर कल मैं खुश भी हुआ और उन्हें मतलब हमारे पड़ोसी रामबुझावन को इस पर रंज भी नहीं हुआ। उल्टे वह भी खुश थे, मेरी ही तरह बल्कि मुझसे भी ज्यादा। उन्होंने तो खूब आतिशबाजियां कीं और पटाखे भी चलाये, रात के करीब 11 बज जाने के बावजूद। उनका क्या है, उन्होंने तो पिछली 23 मई को नरेन्द्र मोदी की दूसरी सरकार बनने की खुशियां भी देर रात में ही मनाई थी, गो नतीजे तो शाम होते-होते साफ हो चुके थे। उन्हें रोकने का ताब भी किसमें था, वह तो उनकी भलमनसाहत थी या जाने क्या कि इतनी बड़ी जीत पर पटाखे इतने ही थोड़े, फोड़े।

बहरहाल, आश्चर्य यह नहीं कि कल वह भारत की जीत पर खुद भी खुश थे, अजीब यह था कि 30 जून को वह इंग्लैंड के हाथों भारत की पराजय पर भी खुश थे, बल्कि भारत के हारने पर मेरे दुख को लेकर नाराज भी। भारत ने इस टूर्नामेंट में हार का पहला स्वाद चखा था। जीत के लिये 338 रन बनाने की इंग्लैंड की चुनौती के सामने भारत 31 रन से पिछड़ गया था और वह खुश थे। तो तब वह भारत की हार पर खुश थे, कल भारत की जीत पर।

उस दिन हार पर मेरे दुखी होने पर भारी नाराजगी जताते हुये उन्होंने पूछा भी था, ‘‘तब क्या आप चाहते थे कि पाकिस्तान सेमी-फाइनल में पहुंच जाये?’’ वह थोड़ा रुके थे और कहा था, ‘‘जानते हैं आप कि अब सेमी में पहुंचने के लिये पाकिस्तान का 5 जुलाई को बंग्लादेश के खिलाफ जीत दर्ज करना जरूरी होगा।’’ यह सोशल मीडिया, खासकर ट्विटर पर भारत की हार के बाद, मचे बावेले का कन्फर्मेशन नहीं था – न रावलपिंडी एक्सप्रेस के नाम से मशहूर शोएब अख्तर के इस तंज का कि भारत चाहता तो बेहतर प्रदर्शन कर सकता था, न पाकिस्तान के पूर्व कप्तान वकार यूनुस की इस टिप्पणी का कि ‘हम सेमी-फाइनल में पहुंचेंगे या नहीं, पता नहीं, पर इतना तय है कि वर्ल्ड चैंपियन रहे कुछ देश आज खेल-भावना की परीक्षा में बुरी तरह विफल साबित हुये हैं।’

क्या रामबुझावन का भी आशय पैसे की खातिर नहीं, बल्कि पाकिस्तान को अंतिम चार से बाहर करने की गरज से स्ट्रैट्जिक मैच फिक्सिंग करने से था, जिसका इशारा कई विश्लेषकों ने 198 के स्कोर पर तीसरा विकेट गिरने के बाद हार्दिक पांड्या की बजाय अपेक्षाकृत कम अनुभवी रिषभ पंत को भेजे जाने, आक्रामक धोनी की धीमी बल्लेबाजी, और 5 विकेट शेष रहते लक्ष्य का पीछा नहीं कर पाने आदि के हवाले से किया है।

‘‘हां, लेकिन पाकिस्तान तो तब भी सेमी-फाइनल में होगा, अगर इंग्लैंड 3 जुलाई को लीग राउंड के अपने अंतिम मैच में न्यूजीलैंड से हार जाये और आपने ठीक कहा है, अगर 5 को वह बांग्लादेश से जीत जाये। असल में तो नुकसान श्रीलंका का हुआ है और उसके सेमी-फाइनल में पहुंचने की संभावना अंतिम तौर पर खत्म हो गयी है। वेस्ट इंडीज, दक्षिण अफ्रीका, अफगानिस्तान पहले ही सेमीफाइनल की होड़ से बाहर हो चुका था और श्रीलंका चौथी टीम है — टूर्नामेंट के अंतिम चार में पहुंचने की स्पर्धा कर रही 10 टीमों में चौथी ।’’ — मैं थोड़ा रुका और फिर जोड़ा, ‘‘और भारत से कल हारने के बाद तो बांग्लादेश की भी संभावनाएं खत्म ही हैं। ऐसे में होड़ में बचे कौन? न्यूजीलैंड, इंग्लैंड और पाकिस्तान ही न!’’

रामबुझावन इतना सुनते ही चीखने लगे, ‘‘ऐसे कैसे पहुंच जायेगा पाकिस्तान सेमी फाइनल में, आप भी कैसी बातें करते हैं। भारतीय हैं आप?’’

तो उनका आशय स्ट्रेट्जिक मैच फिक्सिंग से नहीं था, वह केवल एक ‘शत्रुवत अन्य’ का प्रस्ताव कर रहे थे और यह अन्य पाकिस्तान था, इस तथ्य के बावजूद कि एजबेस्टन क्रिकेट ग्राउंड की दर्शक दीर्घा में बैठे भारतीय और पाकिस्तानी समवेत स्वरों में हमारे खिलाड़ियों की हौसला आफजाई करने और कभी-कभी इंग्लैंड के खिलाफ नारेबाजी करने की खबरें आपने भी सुनी होंगी। पर यह एकता तो अवाम के स्तर पर है!

(राजेश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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