पिछले दिनों मैंने एक अच्छी किताब पढ़ी, जिसका नाम है “मिथकों से विज्ञान तक”I इसके लेखक हैं गौहर रज़ा। इसका प्रकाशन पेंगुइन स्वदेश ने किया हैI लेकिन किताब की विषय-वस्तु पर आने से पहले, मैं गौहर रज़ा का छोटा सा परिचय देना चाहूंगा। गौहर रज़ा का जन्म 1956 में इलाहाबाद में हुआ था। उनका बचपन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बीता, जहां से उन्होंने बीएससी इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। उसके बाद, उन्होंने आईआईटी दिल्ली से एम.टेक किया। उन्होंने काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च में वैज्ञानिक के तौर पर काम किया और वहीं से चीफ साइंटिस्ट के तौर पर रिटायर हुए। वे कवि भी हैं और मुख्य रूप से प्रतिरोध की कविताओं के लिए पढ़े जाते हैं। उनका एक काव्य संग्रह है- “खामोशी”। वे फिल्म मेकर हैं और उनका एक यूट्यूब चैनल भी है, जिसका नाम है “अनहद फिल्म”।
उनकी इस किताब में मिथकों से विज्ञान तक की यात्रा के विभिन्न पहलुओं और पड़ावों पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इस किताब में मिथकों की परिभाषा, उनकी उत्पत्ति, और किसी समाज में उनकी भूमिका को विस्तार से समझाया गया है। साथ ही, यह भी बताया गया है कि मिथक किस प्रकार सामाजिक व्यवहारों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और लोगों के विचारों और मान्यताओं को प्रभावित करते हैं। यह किताब बताती है कि प्राचीन काल से ही मानव ने प्रकृति के बारे में कई प्रश्न पूछने शुरू कर दिए थे। इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढने के प्रयास में मुख्यत: दो रास्ते बनते गये: एक मिथकों, धर्म और ईश्वर पर आधारित था, जबकि दूसरा विज्ञान पर आधारित था।
वैज्ञानिक विकास के पड़ाव
प्राचीन मानव को प्रकृति से जुड़े कई प्रश्नों के उत्तर नहीं मालूम थे, इसलिए उन्होंने धर्म के माध्यम से मिथकीय उत्तरों का सहारा लिया। लेकिन विज्ञान ने एक अलग दृष्टिकोण अपनाया और खोज, अनुसंधान और प्रयोगों के माध्यम से उत्तर ढूंढने का प्रयास किया। विज्ञान और धार्मिक विश्वासों में से एक मुख्य अंतर यह है कि विज्ञान प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए प्रयोग करता है, जबकि धार्मिक विश्वासों में उत्तर को अक्सर एक उच्च शक्ति या भगवान की मर्जी में ढूंढा जाता है। विज्ञान की प्रक्रिया में प्रश्न पूछना, अनुसंधान करना, परीक्षण करना, और नतीजों को सार्वजनिक करना शामिल है। यह प्रक्रिया विज्ञान को एक सार्वजनिक और पारदर्शी प्रक्रिया बनाती है, जिसमें किसी भी नतीजे का परीक्षण करके उन्हें सही या गलत साबित किया जा सकता है।
दूसरी ओर, धार्मिक विश्वासों में अक्सर उत्तर एक उच्च शक्ति या भगवान की मर्जी में ढूंढा जाता है, जो कि एक व्यक्तिगत और निजी मामला हो सकता है। यह प्रक्रिया पारदर्शी और सार्वजनिक प्रक्रिया नहीं होती है, और नतीजों को अक्सर व्यक्तिगत विश्वास या अनुभव के रूप में देखा जाता है। जब हम हर सवाल का उत्तर भगवान में ढूंढते हैं, तो हम वास्तव में खोजने की प्रक्रिया को रोक देते हैं। इस प्रक्रिया में हमारे पास उत्तर पहले से होता है, और हमें लगता है कि हमें और खोजने की जरूरत नहीं है।
लेकिन विज्ञान ऐसा नहीं करता। विज्ञान कहता है कि हमें हर सवाल का उत्तर खोजने के लिए प्रयास करना चाहिए। हमें प्रयोग करना चाहिए, अनुसंधान करना चाहिए, और नतीजों को सार्वजनिक करना चाहिए। मिथकों पर टिके उत्तर में खोज की संभावना नहीं है, क्योंकि मिथकों में उत्तर पहले से दिए गए होते हैं। लेकिन विज्ञान में उत्तर खोजने के लिए हमें विशेष प्रयास करना पड़ता है। विज्ञान हमें सोचने की शक्ति देता है, प्रयोग करने की शक्ति देता है, और नतीजों को सार्वजनिक करने की शक्ति देता है, नतीजों को गलत साबित करने को कहता है।
चार्वाक दर्शन, जिसे लोकायत दर्शन भी कहते हैं, एक प्राचीन भारतीय दर्शन है जो वास्तविकता को केंद्र में रखता है। चार्वाक के अनुसार, वास्तविकता को जानने के लिए हमें तर्क और प्रयोग का उपयोग करना चाहिए, न कि धार्मिक मान्यताओं पर भरोसा करना चाहिए। चार्वाक ने धर्म की मान्यताओं पर सीधा हमला किया था, जैसे कि स्वर्ग, आत्मा, और कर्मों का प्रभाव। उन्होंने यह भी कहा कि ईश्वर को सर्वज्ञ मानने वाली बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह वास्तविकता को जानने के लिए बाधा बनता है। गौहर रजा के विचारों से सहमत होते हुए, मैं यह कहना चाहूंगा कि चार्वाक दर्शन एक महत्वपूर्ण दर्शन है जो वास्तविकता को केंद्र में रखता है। यह दर्शन हमें सोचने की शक्ति देता है, तर्क करने की शक्ति देता है, और वास्तविकता को जानने के लिए प्रयास करने की शक्ति देता है। (पृष्ठ 7-8) I
बुद्ध का कथन और कबीर की बातें वैज्ञानिक सोच के मूल सिद्धांतों को दर्शाती हैं। बुद्ध के अनुसार, हमें किसी भी बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि वह हमें किसी ने बताई है, या वह हमारी धार्मिक किताबों में लिखी हुई है, या हमारे शिक्षकों और बड़ों ने बताई है। हमें सिर्फ अवलोकन और विश्लेषण के बाद ही किसी बात पर विश्वास करना चाहिए। (पृष्ठ 9) I
कबीर की बात “तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आँखिन की देखी” भी अनुभवपरक दृष्टिकोण को दर्शाती है। कबीर कह रहे हैं कि हमें सिर्फ किताबों में लिखी हुई बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए, बल्कि हमें अपनी आँखों से देखकर और अनुभव करके ही किसी बात पर विश्वास करना चाहिए। बुद्ध और कबीर के कथन वैज्ञानिक सोच के मूल सिद्धांतों को दर्शाते हैं I जैसे कि संदेह, अवलोकन, अनुभव, तर्क आदि I इन सिद्धांतों का पालन करके हम वैज्ञानिक सोच को विकसित कर सकते हैं और दावों की सच्चाई को जान सकते हैं।
अरस्तु का “कारण और प्रभाव” का सिद्धांत विज्ञान के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। अरस्तु के अनुसार, सृष्टि में जो कुछ भी घटता है, उसके पीछे कोई-न-कोई कारण जरूर होता है। यह सिद्धांत विज्ञान को परिभाषित करने की दिशा में एक अहम साबित हुआ, क्योंकि यह हमें घटनाओं को समझने के लिए कारण और प्रभाव के संबंध को खोजने के लिए प्रेरित करता है।
अरस्तु के मुताबिक, अगर किसी घटना को समझना है तो यह भी समझना होगा कि उसके पीछे क्या कारण है। यह सिद्धांत हमें घटनाओं को चमत्कार, दैविक शक्ति और भगवान की माया कहने से रोकता है और हमें उनके पीछे के कारणों को खोजने के लिए प्रेरित करता है।अरस्तु का “कारण और प्रभाव” का सिद्धांत विज्ञान के विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान है और आज भी विज्ञान के अध्ययन में इसका उपयोग किया जाता है।
अल-हसन-हेथम का जन्म इराक में हुआ था और उन्हें प्रकाशिकी का जनक माना जाता है। उन्होंने पहली बार पिनहोल कैमरा का आविष्कार कियाI वे यह समझाने में सफल हुए कि छवियां उलटी क्यों बनती हैं। उनके काम ने आधुनिक फोटोग्राफी की नींव रखी।
अल-हसन-हेथम का योगदान विज्ञान के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है। उन्हें दृष्टि विज्ञान यानी ऑप्टिक्स का जनक माना जाता है, और उन्होंने वैज्ञानिक पद्धति की परिभाषा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अल-हसन-हेथम का कथन “सच को सच के लिए तलाश किया जाना चाहिए” I (पृष्ठ 11) I यह बात वैज्ञानिक सोच के मूल सिद्धांतों में से एक है। उन्होंने कहा कि सच को जानने के लिए हमें अपने आप को किसी भी दावे का दुश्मन-आलोचक मानकर उस दावे के हर पहलू पर हमला करना चाहिए। यह वैज्ञानिक पद्धति का मूल है, जिसमें हमें किसी भी दावे को संदेह के साथ देखना चाहिए और उसकी जांच करनी चाहिए। अल-हसन के विचारों ने विज्ञान के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, और आज भी उनके विचार वैज्ञानिक सोच के मूल सिद्धांतों में से एक हैं।
इतिहास में कई वैज्ञानिकों की तरह अल-हसन-इब्न-अल-हेथम के साथ भी ऐसा हुआ। उन्हें सुल्तानों और खलीफाओं के गुस्से का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से उन्हें छुपना पड़ा और पागल बनकर खुद को नजरबंद करना पड़ा। इसके बावजूद, उन्होंने आधुनिक प्रकाशिकी पर सात खंडों में उल्लेखनीय किताबें लिखीं, जो उनके स्वघोषित पागलपन और नजरबंदी के दौरान ही लिखी गई थीं।
विज्ञान के प्रति समझ के विकास में कार्ल पापर बेहद महत्वपूर्ण हैं I उन्होंने वैज्ञानिक दावों की प्रकृति को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया। पापर के अनुसार, केवल उसी दावे को वैज्ञानिक दावा माना जा सकता है, जिसके गलत साबित होने की संभावना हो। पापर ने इस कांसेप्ट को Falsifiability कहा I किसी वैज्ञानिक दावे को गलत साबित करने के लिए पर्याप्त और पक्के प्रमाण होने चाहिए I यह बात बहुत ही महत्वपूर्ण है I क्योंकि यह वैज्ञानिक दावों को धार्मिक दावों से अलग करती है। धार्मिक दावे अक्सर ऐसे होते हैं जिन्हें गलत साबित नहीं किया जा सकता है, क्योंकि वे व्यक्तिगत विश्वास या आस्था पर आधारित होते हैं।
दूसरी ओर, वैज्ञानिक दावे हमेशा परीक्षण और प्रयोग के लिए खुले होते हैं। वैज्ञानिक दावे को गलत साबित करने के लिए प्रयोग और अवलोकन किया जा सकता है, और यदि दावा गलत साबित होता है, तो यह वैज्ञानिक सोच के लिए एक महत्वपूर्ण सबक होता है। पापर की बात से यह भी स्पष्ट होता है कि धार्मिक दावे, वैज्ञानिक दावे नहीं हो सकते हैं I क्योंकि उन्हें गलत साबित नहीं किया जा सकता। यह बात वैज्ञानिक सोच के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमें वैज्ञानिक दावों को धार्मिक दावों से अलग करने में मदद करती है। यह दावा कि “भगवान, अल्लाह, या गॉड इस पूरी सृष्टि को चला रहा है और वो हर इंसान की किस्मत लिखता है” न गलत साबित किया जा सकता है और न सही I इसलिए यह दावा, वैज्ञानिक दावा नहीं है। (p. 16) I
गौहर रजा की पुस्तक में पापर की बात का उल्लेख करना बहुत ही प्रासंगिक है, क्योंकि यह वैज्ञानिक सोच के मूल सिद्धांतों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है।
इन पहलुओं के आधार पर, पॉपर ने विज्ञान की परिभाषा को निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत किया है: इस परिभाषा के आधार पर, पॉपर ने विज्ञान को एक ऐसी प्रणाली के रूप में देखा है जो निरंतर विकास और सुधार के लिए खुली होती है, और जो प्राकृतिक घटनाओं की व्याख्या करने और उन्हें नियंत्रित करने के लिए प्रयास करती है।
विज्ञान में, किसी दावे को गलत साबित करना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिससे हमें नई जानकारी और ज्ञान प्राप्त होता है। विज्ञान में, हमें किसी भी दावे पर संदेह करना चाहिए और उसकी जांच करनी चाहिए। यह प्रक्रिया विज्ञान को आगे बढ़ाने में मदद करती है और हमें नई खोजों की ओर ले जाती है।
दूसरी ओर, धर्म में, किसी बात को गलत साबित करना अक्सर बुरा माना जाता है। धर्म में, अक्सर किसी बात को सच मान लिया जाता है और उस पर संदेह करना या उसकी जांच करना वर्जित माना जाता है। यह प्रक्रिया धर्म को एक स्थिर और अपरिवर्तनीय व्यवस्था बना देती है, जिसमें नई जानकारी और ज्ञान की खोज की गुंजाइश नहीं होती है।
विज्ञान और धर्म के बीच तनाव
यह अंतर विज्ञान और धर्म के बीच एक मूलभूत तनाव को पैदा करता है। विज्ञान हमें नई जानकारी और ज्ञान की खोज के लिए तैयार करता है, जबकि धर्म हमें अक्सर पुरानी मान्यताओं और परंपराओं को मानने के लिए बाध्य करता है। दुनिया की व्याख्या करने में अंतर्निहित तनाव वास्तव में बहुत गहरा हो सकता है। कई बार, किसी धर्म की किसी बात को गलत कहने भर से ही उस धर्म को मानने वाले हिंसा पर उतारू हो जाते हैं। यह दिखाता है कि धर्म में किसी बात को गलत साबित करना कितना खतरनाक हो सकता है।
इस बहस में यह कहना जरूरी है कि विज्ञान और टेक्नोलॉजी दो अलग-अलग चीजें हैं। विज्ञान एक व्यवस्थित ज्ञान है जो हमें प्राकृतिक दुनिया के बारे में समझने में मदद करता है, जबकि टेक्नोलॉजी विज्ञान के सिद्धांतों को व्यावहारिक उपयोग में लाने का तरीका है। दुनिया में टेक्नोलॉजी के बिना किसी का काम नहीं चलता, लेकिन विज्ञान के बिना भी हमारा जीवन चल सकता है।
हमारे पूर्वजों ने विज्ञान के बिना भी अपना जीवन जीया था, लेकिन टेक्नोलॉजी के बिना नहीं। धार्मिक आदमी को भी टेक्नोलॉजी की जरूरत होती हैI धार्मिक-से-धार्मिक आदमी को भी अधिक-से-अधिक सुविधाजनक घर, गाड़ी, फोन, चाहिए। धार्मिक आदमी को अपने प्रचार के लिए लाउडस्पीकर और सोशल मीडिया की जरूरत होती हैI धार्मिक आदमी को आरती का दिया जलाने के लिए माचिस या लाईटर की जरूरत पड़ती है। धार्मिक आदमी दिये को मंत्र के बल पर नहीं जला पाता I दिया जलाने के लिए उसे टेक्नोलॉजी का सहारा लेना पड़ता है।
विज्ञान के प्रति नकारात्मक सोच में कमी के कारण
अपनी इस किताब में गौहर राजा ने एक महत्त्वपूर्ण तथ्य की ओर ध्यान खींचा है। वे लिखते हैं कि भारत में धर्म को मानने वालों की अधिक संख्या होने के बाद भी विज्ञान के प्रति नकारात्मक विचार रखने वालों की संख्या बेहद कम है। इसके पीछे दो मुख्य कारण हैं: पहला, विज्ञान के आधार पर विकसित तकनीक का लाभ सभी उठा रहे हैं। इसलिए विज्ञान पर सीधा हमला करना सभी के लिए मुश्किल हो जाता है। यहां तक कि कुछ धार्मिक लोगों को अंधविश्वास फैलाने के लिए भी विज्ञान का सहारा लेना पड़ता है। जब कोई यह कहता है कि यज्ञ करने से वातावरण शुद्ध होता है तो दरअसल वह विज्ञान का सहारा लेकर यज्ञ करने को सही साबित कर रहा होता है।
दूसरा, धार्मिक व्यक्ति भी अपनी दिनचर्या में ज्यादातर तर्कवादी होता है। पर कुछ खास हालत में धार्मिक, आध्यात्मिक, यहां तक की अंधविश्वासी भी हो जाता है। आपने सबका भविष्य बताने वाले किसी ज्योतिषी को कभी आंख बंद करके सड़क पार करते नहीं देखा होगा। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अंधविश्वासी लोग भी अपनी जिंदगी के निर्णय भौतिक वास्तविकताओं के आधार पर लेते हैं।
टेक्नोलॉजी के साथ धार्मिक कट्टर पंक्तियों का रिश्ता प्रेम और घृणा का रहा है। इस तथ्य को समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं। “ अफगानिस्तान में जब तालिबान ने कब्जा कर लिया तो टीवी देखने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया कोई नागरिक अगर टीवी देखता पाया गया तो उसे कत्ल के लायक ठहराया गयाI मगर उस समय ओसामा बिन लादेन हो या तालिबान का कोई और लीडर, उन्हें दुनिया भर में अपनी बातें पहुंचने के लिए कैमरा और टीवी का इस्तेमाल करने से कोई परेशानी नहीं थीI उन्हें तस्वीरें खिंचवाने से भी कोई आपत्ति नहीं थीI जबकि वो दूसरे लोगों द्वारा तस्वीरें खिंचवाने को गैर-इस्लामिक करार दे रहे थेI हमने उन्हें टीवी और तस्वीरों के माध्यम से ही देखा और सुना है”I
एक ओर, तालिबान और ओसामा बिन लादेन जैसे धार्मिक कट्टरपंथी टीवी और तस्वीरों को गैर-इस्लामिक और हराम मानते थे, लेकिन दूसरी ओर, वे अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए इन्हीं टेक्नोलॉजियों का उपयोग करते थे। (पृष्ठ 32)I
विज्ञान से नफ़रत का कारण
विज्ञान से नफरत और उससे उत्पन्न होने वाली हिंसा की सिर्फ एक ही वजह हैI धर्म की राजनीति, सत्ता के ऐसे ढांचे को खड़ा करने में मदद करती है जिसमें सवाल पूछने की क्षमता कम-से-कम रहे, तर्क-वितर्क और बहस की गुंजाईश खत्म हो जाए और सत्ता के आगे बिना सवाल पूछे झुकने की आदत आम हो जाए। यह सत्ता का ढांचा समाज पर इतना हावी होता है कि नजरों से छुप जाता है। आम नागरिक इसे प्रकृति के नियम की तरह मानने लगता है I इसका अपना बाजार होता है। अपनी राजनीति होती है। इसका अपना इतिहास होता है। परंपराएं होती हैंI अपनी संस्कृति होती है और अपनी चेतना होती हैI मंदिर, मस्जिद, दरगाह, चर्च, बाबा, मठाधीश, ज्योतिषी, ताबिज देने वाले ओझा, चमत्कारी बाबा इसके बाजार का हिस्सा हैं। (पृष्ठ 34-35) I
ऐसी सोच कि हमारे पूर्वज यही करते आये हैं, इतिहास और परंपरा का हिस्सा है। प्रवचन, जगराते, मजलिसें आदि संस्कृति बन जाती है और जाति प्रथा जैसी प्रथाएं हमारी चेतना का सहज हिस्सा बन जाती हैं। विज्ञान का प्रसार-प्रचार इस बाजार और शक्ति संरचना के लिए खतरा बनने लगता है। वैज्ञानिक चेतना से रूढ़िवादी सामाजिक ढांचे का संतुलन बिगड़ने लगता है। यह खतरा पैदा हो जाता है कि लोग सिर्फ वैज्ञानिक सवाल नहीं पूछेंगेI वे राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक सवाल भी पूछेंगेI अगर इस जानकारी पर याकिन हो कि धरती की उम्र बस 4.5 बिलियन साल है तो ये तो सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, और कलयुग पर से लोगों का विश्वास उठ जाएगा। इस बात पर से विश्वास उठ जाएगा कि किसी महाशक्ति ने सारी सृष्टि को सात दिन में बना दिया था। (वही) I
अगर इस जानकारी को सभी लोग स्वीकार कर लें कि सभी इंसानों का खून ही नहीं डीएनए भी लगभग एक है और हमारे पूर्वज अफ्रीका के जंगलों से निकल कर सारी दुनिया में फैले हैं तो मूल निवासी और विदेशी की राजनीति नहीं चलाई जा सकेगीI इसीलिए जो लोग वैज्ञानिक जानकारी आमजन तक ले जाने का प्रयास करते हैं, उन्हें सताया जाता हैI अनेक बार उन्हें जान से भी मार दिया जाता हैI ऐसा इतिहास में भी हुआ है और ऐसा वर्तमान में भी हो रहा है I (वही)
मानव मस्तिष्क के विकास और नई खोजों के सामने आ जाने के क्रम में मिथक भी बदलते रहे और नये मिथक भी जुड़ते गये। जब तक फसल चक्र या पौधों के जीवन चक्र की जानकारी नहीं थी तब तक बारिश के देवता, इंद्र की या फसल के देवता बलराम की कोई जरूरत नहीं थी। कृषि के महत्व का पता, चलने के बाद, इंद्र या बलराम जैसे देवताओं की मिथक रचे गए I क्योंकि अच्छी और खराब फसल होने के कारणों के बारे में जानकारी नहीं थी। ऐसे में आस्था पर भरोसा करने के अलावा कोई बेहतर विकल्प नहीं रहा होगा।
जब इंसानों ने पशुओं को पालतु बनाया बनाना सीखा तो उसकी कल्पना में पहली बार प्राइवेट प्रॉपर्टी का विचार उभरा। प्राइवेट प्रॉपर्टी को पीढ़ी-दर-पीढ़ी संभाले रखने के लिए किसी वैध वारिस की जरूरत महसूस की गई। वारिस की वैधता को सूनिश्चित करने के लिए औरतों की सेक्सुअलिटी पर कठोर नियंत्रण और उनकी सेक्सुअलिटी का कठोरता से दमन करना जरूरी समझा गया। इसके लिए ऐसे देवता रचे गये जो पुरुषों द्वारा औरतों को गुलाम बनाए जाने को सही साबित करने के काम में लगाए गए I उन देवताओं के जरिए औरतों को गुलाम बनाने का काम आसन बना दिया गया?
धार्मिक मिथकों के सबसे पुराने लिखित प्रमाण मेसोपोटामिया की सभ्यता से मिलते हैं। प्राचीन मेसोपोटामिया में उरुक नाम का नगर बस चुका था, जहां के निवासियों ने सबसे पहले लिखने का तरीका खोजा था। उनके लिखने के तरीके को क्यूनिफार्म कहते हैं। मेसोपोटामिया में लिखे गए महाकाव्य गिलगमेश को सबसे पुराना काव्य माना जाता है, जिसमें सृष्टि की रचना का जिक्र है। यह महाकाव्य लगभग 2100 ईसा पूर्व लिखा गया था और इसमें गिलगमेश नामक राजा की कहानी बताई गई है। इस महाकाव्य में सृष्टि की रचना के बारे में बताया गया है कि कैसे देवताओं ने मानव जाति को बनाया और कैसे उन्होंने सृष्टि को बनाया।
सामान्य और इंकलाबी विज्ञान
थॉमस कुहन एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक और दार्शनिक थे जिन्होंने विज्ञान के इतिहास और दर्शन पर महत्वपूर्ण काम किया। उनकी पुस्तक “द स्ट्रक्चर ऑफ साइंटिफिक रिवोल्यूशंस” विज्ञान के इतिहास और दर्शन में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ मानी जाती है। कुहन के अनुसार, विज्ञान दो तरह का होता है: साधारण विज्ञान (नार्मल साइंस) और इंकलाबी विज्ञान (क्रांतिकारी विज्ञान या प्रतिमान बदलाव या पैराडाइम शिफ्ट करने वाला विज्ञान)। साधारण विज्ञान विज्ञान के किसी एक वैज्ञानिक ढांचे के अंदर की गुत्थियों को सुलझाने वाला विज्ञान है, जबकि इंकलाबी विज्ञान पुरानी समझ और सोच दोनों के ढांचे को तोड़कर नए ढांचे खड़ा करता है।
कुहन के मुताबिक, इंकलाबी विज्ञान पुराने विचारों, खोज के तरीकों, और इस ब्रह्मांड को देखने की दृष्टि को पूरी तरह बदल देता है। कीटाणु और वायरस की खोज, डार्विन का विकास का सिद्धांत, और न्यूटन द्वारा गुरुत्वाकर्षण के कॉन्सेप्ट की खोज इंकलाबी विज्ञान के उदाहरण हैं। इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि इंकलाबी विज्ञान, विज्ञान के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और हमारी समझ और सोच को बदलता है। यह विज्ञान के विकास में एक महत्वपूर्ण कारक है और हमें नई खोजों और आविष्कारों की ओर ले जाता है।
वैज्ञानिक और धार्मिक प्रश्नों में अंतर
विज्ञान और धर्म के सवालों में महत्त्वपूर्ण अंतर यह है कि विज्ञान कैसे से शुरू होने वाले सवालों का जवाब देता है, जबकि धर्म क्यों से शुरू होने वाले सवालों का जवाब देता है।
कैसे से शुरू होने वाले सवाल विज्ञान की तरफ ले जाते हैं और हमें किसी घटना की प्रक्रिया को समझने के लिए प्रेरित करते हैं। ये सवाल हमें किसी घटना को एक्सप्लेन करने की डिमांड करते हैं और हमें इसका जवाब देने के लिए प्रेरित करते हैं। अगर हमारे पास इसका जवाब नहीं है, तो हम कह देते हैं कि मुझे नहीं पता। दूसरी ओर, क्यों से शुरू होने वाले सवाल धर्म की तरफ ले जाते हैं और हमें भगवान की मर्जी में उत्तर खोजने के लिए प्रेरित करते हैं।
इस प्रकार, विज्ञान और धर्म के सवालों में महत्त्वपूर्ण अंतर यह है कि विज्ञान कैसे से शुरू होने वाले सवालों का जवाब देता है, जबकि धर्म क्यों से शुरू होने वाले सवालों का जवाब देता है। विज्ञान हमें किसी घटना की प्रक्रिया को समझने के लिए प्रेरित करता है, जबकि धर्म हमें भगवान की मर्जी में उत्तर खोजने के लिए प्रेरित करता है।ता है कि इंकलाबी विज्ञान, विज्ञान के इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और हमारी समझ और सोच को बदलता है। यह विज्ञान के विकास में एक महत्वपूर्ण कारक है और हमें नई खोजों और आविष्कारों की ओर ले जाता है।
विज्ञान और धर्म के सवालों में महत्त्वपूर्ण अंतर यह है कि विज्ञान कैसे से शुरू होने वाले सवालों का जवाब देता है, जबकि धर्म क्यों से शुरू होने वाले सवालों का जवाब देता है।
कैसे से शुरू होने वाले सवाल विज्ञान की तरफ ले जाते हैं और हमें किसी घटना की प्रक्रिया को समझने के लिए प्रेरित करते हैं। ये सवाल हमें किसी घटना को एक्सप्लेन करने की डिमांड करते हैं और हमें इसका जवाब देने के लिए प्रेरित करते हैं। अगर हमारे पास इसका जवाब नहीं है, तो हम कह देते हैं कि मुझे नहीं पता। दूसरी ओर, क्यों से शुरू होने वाले सवाल धर्म की तरफ ले जाते हैं और हमें भगवान की मर्जी में उत्तर खोजने के लिए प्रेरित करते हैं। इस प्रकार, विज्ञान और धर्म के सवालों में महत्त्वपूर्ण अंतर यह है कि विज्ञान कैसे से शुरू होने वाले सवालों का जवाब देता है, जबकि धर्म क्यों से शुरू होने वाले सवालों का जवाब देता है। विज्ञान हमें किसी घटना की प्रक्रिया को समझने के लिए प्रेरित करता है, जबकि धर्म हमें भगवान की मर्जी में उत्तर खोजने के लिए प्रेरित करता है।
सार
मिथकों से विज्ञान तक किताब एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जो मिथकों और विज्ञान के बीच के संबंधों को समझने के लिए एक अनोखा दृष्टिकोण प्रदान करती है। इस पुस्तक में हमें मिथकों की जरुरत और उनमें आये बदलावों के बारे में पता चलेगा I यह किताब बताती है कि मिथक हमारे समाज के विकास में कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह पुस्तक विज्ञान के उदय को समझने के लिए एक विस्तृत दृष्टिकोण प्रदान करती है। यह बताती है कि विज्ञान कैसे मिथकों में उठाये गये सवालों का उत्तर खोजने के लिए भी प्रेरित हुआ । यह पुस्तक मिथकों और विज्ञान के बीच के संघर्ष को समझने के लिए एक अनोखा दृष्टिकोण प्रदान करती है। यह बताती है कि मिथक और विज्ञान के बीच का संघर्ष कैसे हमारे जीवन को प्रभावित करता आया है और कैसे यह हमारे समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है।
(समीक्षक बीरेंद्र सिंह रावत दिल्ली-विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं)
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