ये लो कर लो बात। भगवा भाइयों के राज में भी ऐसा अत्याचार हो रहा है। छत्तीसगढ़ में पारसबाड़ा गांव में बेचारे आधा दर्जन पंच पतियों ने अपनी निर्वाचित पंच पत्नियों की तरफ से जरा-सी शपथ क्या ले ली, मनुस्मृति-विरोधियों ने हंगामा ही खड़ा कर दिया। कहते हैं कि पंच तो पत्नी चुनी गयी है, तब पति उसकी जगह पंच के रूप में कैसे शपथ ले सकता है? कमाल है, सब मानते हैं और सब हमेशा से जानते हैं कि जैसे पंच होते हैं, वैसे ही पंच पति भी होते हैं।
चुना कौन जाता है, कौन नहीं, यह बात ही अलग है। और यह तो खैर दलील ही बिल्कुल बेतुकी है कि जैसे पंच पति होता है, वैसे ही पंच पत्नी क्यों नहीं होती है? ऐसा क्यों नहीं होता कि पति पंच चुना जाए और बदले में पत्नी ही जाकर शपथ ले आए! ऐसा होता, तो पारसबाड़ा में गांव में ही बाकी आधा दर्जन पंचों की जगह पंच-पत्नियां शपथ ले आतीं और गिनती बराबर हो जाती। मगर गिनती बराबर नहीं हुई और कभी होगी भी नहीं। और कहीं हो तो हो, भारत देश में तो नहीं होगी।
यह संस्कारों वाला देश है। हम झूठी बराबरी के पीछे नहीं भागते हैं। झूठी बराबरी के पीछे वो भागते हैं, जो स्त्री को सिर्फ औरत मानते हैं। पुरुष से अलग, फिर भी बराबर। हम नारी की पूजा करने वाले लोग हैं। बराबर के चक्कर में उसका दर्जा घटकर सिर्फ इंसानों वाला नहीं होने दे सकते हैं। वैसे भी हम पत्नी को अर्धांगिनी मानते हैं।
स्त्री अगर पंच या कुछ और चुन भी जाए, तब भी रहेगी तो अर्धांगिनी ही। बाकी आधा अंग यानी पति भी तो उसके बराबर का, आधे-आधे का पंच चुना जाएगा, तभी तो पूरा बनेगा। फिर साड़ी वाले आधे ने शपथ ली या मूंद-दाढ़ी वाले आधे ने, क्या फर्क पड़ता है? मकसद तो पंचायती राज चलाने से है। और पंचायती राज चल रहा है, तो पंच पतियों के चलाए ही चल रहा है। नहीं तो, रुककर ही खड़ा हो जाए।
वह तो कम से कम आधे पंच होते हैं और बाकी पंच पति सहारा लगाते हैं, इससे गाड़ी चल जाती हैै, वर्ना महिला पंचों के चक्कर में ही पड़े रहते, तब तो पंचायती राज चल ही नहीं पाता। पहले कदम पर ही बैठ जाता, जैसे पारसबाड़ा की पंचायत का उद्घाटन कार्यक्रम बैठ जाता, अगर पंच-पतियों ने पचास फीसद शपथ ग्रहण का जिम्मा नहीं उठाया होता। पंच पति रहते हैं, तो सारी व्यवस्था ठीक तरीके से चलती है। महिला प्रतिनिधित्व का प्रतिनिधित्व भी और पंचायत की पंचायत भी!
हम तो कहते हैं कि सारी गड़बड़ी वीडियो की है। न शपथ ग्रहण का वीडियो बनता, न वीडियो सोशल मीडिया में डाला जाता और न पंच-पतियों के शपथ ग्रहण का हंगामा होता। हमें तो इस हंगामे में एक षडयंत्र की बू आती है। हमारी पंचायती राज व्यवस्था को बदनाम करने का षडयंत्र। पंचायती राज में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बदनाम करने का षडयंत्र।
और चूंकि छत्तीसढ़ में डबल इंजन की सरकार है, रायपुर से लेकर दिल्ली तक की सरकारों को बदनाम करने का षडयंत्र। और जाहिर है कि सनातन संस्कृति को बदनाम करने का षडयंत्र। और मनुस्मृति को बदनाम करने का षडयंत्र। और सबसे बड़ी बात, विश्व गुरु को बदनाम करने का षडयंत्र। जो पंच-पति, विधायक पति आदि-आदि डेमोक्रेसी की मम्मी का, डेमोक्रेसी के लिए खास योगदान है, उसे बदनाम करने का यह षडयंत्र, नहीं सहेगा भारत महान!
(राजेंद्र शर्मा ‘लोकलहर’ के संपादक हैं)
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