मुम्बई में मास्टर अलीबख़्श के घर जन्मी बॉलीवुड की ट्रेजडी क्वीन ‘मीना कुमारी’ को कौन नहीं जानता। प्रसिद्ध फिल्म अभिनेत्री मीना कुमारी उन बॉलीवुड हस्तियों में शुमार हैं जिन्होंने साठ-सत्तर के दौर में अपनी असाधारण प्रतिभा के बल-बूते पर अभिनय के क्षेत्र में जो कर दिखाया, उसे याद कर आज हर कोई दिल के ख्वाबगाह में डूब जाना चाहता है। मीना कुमारी के पिता मास्टर अलीबख़्श की शादी मूक फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री प्रभावती के इस्लाम धर्म कुबूल करने के बाद हुई थी। इक़बाल बेगम के नाम से जानी जाने लगीं प्रभावती मीना कुमारी की मां थीं और महज़बीन के नाम के बाद मीना कुमारी के नाम से मशहूर अभिनेत्री उनकी पुत्री थीं।
यूपी के अमरोहा की बहू और जौन एलिया की भाभी मीना कुमारी
प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक, लेखक कमाल अमरोही से शादी करने के बाद मीना कुमारी का एक सम्बन्ध अमरोहा से भी जुड़ गया। अमरोहवी खानदान से जुड़कर मीना कुमारी ट्रेजेडी क्वीन के साथ-साथ वह अमरोहा की बहू भी कहलायीं। कमाल अमरोही, प्रसिद्ध उर्दू शायर जौन औलिया और पत्रकार रईस अमरोहवी के चचेरे भाई थे। देश विभाजन के बाद 19 अक्टूबर, 1947 को रईस अमरोही अपने परिवार के साथ पाकिस्तान के कराची चले गए और गार्डन ईस्ट इलाक़े में बस गए। विभाजन के 10 साल बीत जाने के बाद जौन औलिया को भी अमरोहा छोड़ना पड़ा और वह भी कराची आ गए। वहीं कमाल अमरोही इस दौरान मुम्बई में अपने पैर जमाने में लगे थे। अमरोहा से निकले इस खानदान ने जिस तरफ़ भी रुख किया अपनी विद्वता का परचम ही लहराया।
महजबीन से मीना कुमारी का सफर
भुवन अमरोही अपनी किताब ‘अमरोहा के गौरव’ में लिखते हैं कि, “विजय भट्ट ने जब महजबीन को अपनी फ़िल्म ‘लीडर फ़ीस’ के लिए बतौर चाइल्ड फ़नकार साइन किया तो उन्हें ‘महजबीन’ नाम फ़िल्मों के लिए नहीं जचा। अतः उन्होंने मीना, प्रभा और रूपाली में से कोई नाम रखने को कहा तो ‘मीना’ रखा। इसी नाम से उन्होंने ‘लीडर फीस’ फ़िल्म में काम किया। फिर उन्हें बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम मिलने लगा। लगभग 18 फ़िल्मों में उन्होंने अपना बचपन गुज़ारा जब बड़ी हुईं तब एक अभिनेत्री के रूप में उन्होंने सामाजिक, रोमान्टिक, ऐतिहासिक आदि फ़िल्मों के अलावा बहुत सी पौराणिक प्राचीन कथाओं पर आधारित फिल्मों में भी काम किया।
मीना कुमारी की पहली मुख्य भूमिका ‘बच्चों का खेल’ 1946 में देखने को मिली। इसके निर्देशक राजा लीसे थे।
विजय भट्ट के निर्देशन में सन 1952 ई. में बनी ‘बैजू-बावरा ने मीना कुमारी को सफलता की बुलन्दियों पर पहुंचाने का काम किया। इसके लिए मीना कुमारी को फ़िल्म फेयर्स बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड मिला। कहा जाता है मीना कुमारी पर्दे पर जब पात्रों के किरदार निभाया करती थीं तो अक्सर उनमें खो जातीं। यह उनके जीवंत अभिनय का नायाब तरीका था।
मीना कुमारी ने दूर से ही किया था ससुराल का दीदार
कमाल अमरोही की दूसरी शादी अमरोहा के ही जमाल हसन की बेटी सैयदा अल-ज़हरा महमूदी से हुई थी। महमूदी मोहल्ला लकड़ा (कमाल के पैतृक निवास) पर रहा करतीं थीं। 15 फरवरी सन् 1952 ई. को कमाल अमरोही से शादी करने के बाद 1958 ई. में मीना कुमारी पहली और अंतिम बार अपने पति क़माल अमरोही के पैतृक आवास अमरोहा आयी थीं लेकिन घर नहीं गईं। उन्होंने अपनी ससुराल का दूर से ही खड़े होकर दीदार किया था। वह अमरोहा की प्रसिद्ध हज़रत शाह विलायत की मज़ार पर चादर चढ़ाकर वापस मुंबई लौट गईं क्योंकि वह कमाल साहब की पहली बीवी अल-ज़हरा महमूदी का दिल दुखाना नहीं चाहती थीं।
भुवन अमरोही लिखते हैं कि, “मीना कुमारी कमाल अमरोही के घर अमरोहा से नाराज़ होकर आईं थी इसके बाद फिर वह कभी वापस नहीं गयीं। इस बारे में कमाल साहब की बिटिया रूख़सार-ए-ज़हरा बताती हैं कि एक मर्तबा छोटी अम्मी (मीना कुमारी) ने बाबा को सेट पर बुलाया था लेकिन वह नहीं आये। इसी बात को लेकर दोनों के बीच में दूरियाँ बन गयीं। छोटी अम्मी अभिनेता महमूद के घर चली गयीं। बाद में उन्होंने बांद्रा में घर लिया और वहीं रहीं।”
जब मीना कुमारी ने की कमाल अमरोही से मक्खियों की शिकायत
एक किस्सा याद करते हुए, अमरोहा शहर के बारे में जानकारी रखने वाले साहिल फ़ारूक़ी अमरोहवी बताते हैं कि जब वह कमाल अमरोही साहब की हवेली पर गए तो वहां उनकी मुलाकात निहाल अमरोहवी से हुई। इस दरम्यान क़माल साहब के बारे में बातचीत चलती रही। निहाल अमरोहवी, साहिल से बताते हैं कि “जब मीना कुमारी अमरोहा आईं तो उन्होंने खिनखिनाते हुए कमाल साहब से कहा ” अमरोहा में मक्खियां बहुत हैं” धीमी सी मुस्कान से कमाल अमरोही के होठ खिल उठे। कमाल साहब ने मीना कुमारी की ओर देखते हुए कहा ” क्या करें, यहां के लोग भी तो बहुत मीठे हैं।”
पाकीज़ा बनेगी तो मीना ही के साथ
सन् 1958 ई. में पाकीज़ा की तैयारी शुरू हुई। निर्माता और निर्देशक कमाल स्वयं थे। शानदार शुरुआत होने के बावजूद कमाल और मीना कुमारी के बीच तकरारें बढ़ने लगीं। कहा जाता है कि कमाल अमरोही, मीना कुमारी की बढ़ती लोकप्रियता को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। इसकी भनक तब लगी जब सोहराब ने महाराष्ट्र के राज्यपाल से मीना कुमारी का परिचय कराते हुए कहा, ये मशहूर अभिनेत्री मीना कुमारी हैं और ये इनके पति कमाल अमरोही हैं।
बीच में ही टोकते हुए अमरोही ने कहा, नहीं, मैं कमाल अमरोही हूँ और ये मेरी पत्नी हैं। नतीजा यह हुआ कि ‘पाकीज़ा’ की सूटिंग जहाँ की तहाँ रुक गयी। इधर कमाल अमरोही ने भी ठान लिया था ‘पाकीज़ा’ अगर बनेगी तो केवल और केवल मीना कुमारी के ही साथ, लेकिन क़माल अमरोही ने मीना को मनाने से इंकार कर कहा, ‘मैं उसे मनाने नहीं जाऊंगा।”
भुवन अमरोही लिखते हैं, एक लम्बे अर्से के बाद एक पार्टी में मीनाकुमारी ने कमाल अमरोही से पूछा ‘पाकीज़ा का क्या हुआ? कमाल। अमरोही ने कहा कि जब तुम आ जाओगी ‘पाकीज़ा बन जायेगी। सन् 1967 ई. में एक दिन मीना कुमारी ने कमाल अमरोही को बुलाया और उनसे पाकीज़ा फिर शुरू करने का अनुरोध किया, रुकी हुई फिल्म आगे बढ़ी और मुकम्मल हो गयी। मुहूरत के चौदह साल बाद 3 फरवरी सन् 1972 ई. को पाकीज़ा रिलीज़ हुई।
मीना कुमारी जैसे पाकीज़ा पूरी करने ही लौटी थीं। फिल्म के रिलीज़ होने के कुछ ही दिन बाद ही मीनाकुमारी ने आँखें मूंद ली। 31 मार्च सन् 1972 ई. को उनका निधन हो गया। भुवन लिखते हैं कि “मीना कुमारी की जिंदगी में अस्ल और नक़ल का पर्दा बहुत बारीक रहा। उन्होंने अपने किरदारों को जिस तरह जिंदा रखा आज तक उनके मुक़ाबिल में कोई भी दूसरी अभिनेत्री वह मुकाम हासिल न कर सकी।”
आखिरी वक्त कमाल अमरोही के बाहों में दम तोड़ना चाहती थीं मीना कुमारी
पाकीजा की शूटिंग के बाद एक अर्से तक कमाल अमरोही और मीना कुमारी की मुलाकात नहीं हो सकी। दोनों के रिश्ते प्रगाढ़ होने के बजाय और तल्ख होते गए। हालांकि दोनों में द्वेष भावना जैसी कोई बात नहीं थी। कमाल साहब की बेटी रुख़सार-ए-ज़हरा मीना कुमारी और कमाल अमरोही के तलाक़ की बात को अफवाह मानती हैं। रुखसार कहती हैं, अम्मी (मीना कुमारी) और बाबा (कमाल अमरोही) आखिरी वक़्त में एक दूसरे से दूर ज़रूर हो गये थे लेकिन एक दूसरे को बेपनाह मोहब्बत करते थे।
(लेखक राजनीतिक, साहित्यिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं)