‘दक्षिण पंथ से भारत में अगर कोई मुकाबला कर सकता है तो वो वामपंथ ही है’ कहने वाले प्रो. धनंजय वर्मा को किया गया याद

इंदौर। प्रलेस इंदौर और स्टेट प्रेस क्लब इंदौर के संयुक्त तत्वावधान में बीते रविवार की शाम अभिनव कला समाज के सभागार में स्मरण: धनंजय वर्मा और मुनव्वर राणा कार्यक्रम संपन्न हुआ। दो सत्रों वाले कार्यक्रम के पहले सत्र में जाने माने मार्क्सवादी आलोचक, वसुधा के पूर्व संपादक, शिक्षाविद और पूर्व कुलपति सागर विश्वविद्यालय धनंजय वर्मा को याद किया गया। भोपाल से आईं सुपरिचित लेखिका डॉ रेखा कस्तवार, राग भोपाली के संपादक और एक्टिविस्ट शैलेंद्र शैली ने तथा इंदौर की डॉ. शोभना जोशी ने डॉ धनंजय वर्मा के कृतित्व एवं अवदान को संस्मरणात्मक ढंग से रेखांकित किया।

दूसरे सत्र में जाने माने लोकप्रिय शायर मुनव्वर राणा को जावेद आलम एवं प्रो. अज़ीज़ इरफ़ान ने उनके कलाम के मार्फ़त संजीदा पेश किया। दोनों सत्रों में उपस्थित कवि एवं सामाजिक कार्यकर्ता विनीत तिवारी ने समाहार वक्तव्य में धनंजय वर्मा एवं मुनव्वर राणा के हवाले से सांगठनिकता और मौजूदा दौर की चुनौतियों के संबंध में अदीबों की भूमिका पर रोशनी डाली।

वक्ताओं ने माना कि साहित्यकारों को उनके जीवन काल में उतना प्रदेय या सम्मान नहीं मिलता जिसके वे हकदार थे। लेकिन आने वाले वक्त में ये साहित्यकार ही होते हैं जो लोकतांत्रिक समाजवादी मार्ग प्रशस्त करते हैं। प्रोफेसर धनंजय वर्मा और मुनव्वर राणा धर्मनिरपेक्ष भारत में मानवीय मूल्यों और वैचारिक प्रतिबद्धता वाले लेखक थे।

पहले सत्र को संबोधित करते हुए प्रो. धनंजय वर्मा की विद्यार्थी रहीं डॉ रेखा कस्तवार ने उनके अनेक संस्मरण सुनाते हुए कहा कि धनंजय जी मानते थे कि जीवन की तरह ही साहित्य में भी शॉर्टकट नहीं होता है। अगर आप शॉर्टकट से कुछ पाना चाहते हैं तो उसका एक ही मतलब है आप जल्द ज़िंदगी पूरी कर लेना चाहते हैं। आलोचना और रचना एक दूसरे के पूरक होते हैं, विरोधी नहीं। उनकी स्टूडेंट के रूप में मैंने हमेशा उन्हें मेंटॉर मित्र और हँसमुख मनुष्य पाया।

मप्र प्रगतिशील लेखक संघ अध्यक्ष मंडल के सदस्य, प्रोफेसर वर्मा के विद्यार्थी रहे शैलेंद्र शैली ने कहा कि नफ़रत से भरे जा रहे इस दौर में इन लेखकों को याद करना मानवीय मूल्यों का स्मरण है। डॉ. वर्मा ने अपनी शर्तों पर जीवन जिया, इस हेतु उन्होंने जब ज़रूरत पड़ी तो कई महत्वपूर्ण पदों को ठुकरा भी दिया।

उन्होंने जीवन के अनुभवों से मार्क्सवाद को समझा, इसी आधार पर वे वाम आंदोलन से आजीवन जुड़े रहे और लेखन, वक्तृता, अध्ययन अध्यापन को अपना पूरा ही जीवन समर्पित कर दिया। डॉ धनंजय वर्मा कार्यक्रमों की बेहतरीन सिनॉप्सिस बनाया करते। उनका दृढ़ और सुचिंतित मत था कि दक्षिण पंथ से भारत में अगर कोई मुकाबला कर सकता है तो वो वामपंथ ही है।

प्रोफेसर शोभना जोशी ने कहा कि मैं प्रोफेसर वर्मा एवं कमला प्रसादजी की विद्यार्थी रही। विडंबना है कि साहित्यकारों की मृत्यु के बाद ही उन्हें याद किया जाता है। धनंजय जी ने अपने लेखन में वैचारिकता को बनाए रखा था। वे माटी से जुड़े लेखक थे।

कार्यक्रम में प्रलेसं के प्रदेश अध्यक्ष प्रो. सेवा राम त्रिपाठी द्वारा धनंजय वर्मा को दी गई श्रद्धांजलि का वाचन हरनाम सिंह ने किया। आयोजन में प्रोफेसर वर्मा की सुपुत्री निवेदिता भी सम्मिलित होने के लिए उज्जैन से आईं।

दूसरे सत्र में प्रोफेसर अजीज़ इरफान ने मुनव्वर राणा को याद करते हुए कहा कि “वे कहते थे कि देश विभाजन में पाकिस्तान तो जीत गया और देश के मुसलमान हार गए।” लोगों को परखने का उनका अपना नजरिया था। वे बुरे में अच्छाई को और अच्छों में सुधारने लायक बुराई को तलाश लेते थे। पत्रकार और अनुवादक जावेद आलम ने मुनव्वर राणा की शायरी के उदाहरणों से कहा की मुनव्वर राणा की शायरी के अनेक पहलू सामने नहीं आ पाए हैं। उनकी लोकप्रिय शायरी ही मंचों पर सुनी गई है। लेकिन वे प्रतिरोध के भी शायर थे। मंचों के पीछे की उनकी शायरी इंसानियत के संघर्ष की मज़बूत साथी है। जावेद आलम ने मुनव्वर राणा की शायरी के माध्यम से उनके व्यक्तित्व की भी जानकारी दी।

आयोजन का समाहार करते हुए प्रलेस राष्ट्रीय सचिव मंडल के सदस्य विनीत तिवारी ने साहित्य के क्षेत्र में दोनों लेखकों के अवदान को महत्वपूर्ण माना। उन्होंने कहा कि कोई भी व्यक्ति मुकम्मल नहीं होता, दिवंगत लेखकों की अच्छाइयों से सीखा जाना चाहिए। आलोचना के क्षेत्र में नामवर सिंह के बाद धनंजय वर्मा का ही नाम आता है। इस आयोजन में मुनव्वर राणा का वह व्यक्तित्व सामने आया है जो अब तक नजरों से ओझल था। आज सामने आ सका कि शायरों की लोकप्रियता के पीछे उनके सरोकार भी हो सकते हैं जिन्हें समझ के साथ अपनाया जाना चाहिए।

विनीत तिवारी ने याद किया कि धनंजय वर्मा वसुधा के पुनर्प्रकाशन से मुतमईन हुए थे। उन्होंने यक़ीन भी जताया कि अच्छा काम हो रहा है। धनंजय वर्मा के विषय में एक बात अवश्य गौर करने की है कि संगठन में उनकी क्षमताओं का वैसा समावेश न हो सका जैसा होने पर बहुत अच्छे नतीज़े हमारे सामने होते। विनीत तिवारी ने रेखांकित किया कि धनंजय वर्मा की मार्क्सवादी समझ निर्माण में प्रो कल्पना मेहता की महती भूमिका थी। इस बात को वे बड़े सम्मान से याद किया करते। विनीत तिवारी ने अंत में कुमार अंबुज की कविता, “कवि की अकड़” का वाचन भी किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रलेस इंदौर इकाई अध्यक्ष मंडल के सदस्य चुन्नीलाल वाधवानी ने सिंधी कविता के उदाहरणों से कहा कि कट्टरता पुरानी बीमारी है। इसके खिलाफ लेखकों को सामने आना चाहिए। उन्होंने सिंधी भाषा के कवियों के कई शेर सुनाए।

दोनों सत्रों का संचालन करते हुए शशि भूषण ने कहा कि देश के हालात सबके सामने हैं। आशंका जाहिर की जाती है कि जल्द होने वाले आम चुनाव कहीं सेक्युलर भारत के अंतिम आम चुनाव साबित न हों। ऐसी कठिन परिस्थितियों में धनंजय वर्मा और मुनव्वर राणा जैसे लेखकों का स्मरण संबल प्रदान करता है।

अतिथियों का स्वागत स्टेट प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल ने किया। आभार माना अभय नेमा ने। कार्यक्रम में भोपाल, उज्जैन, देवास के श्रोताओं और साहित्यकारों ने भी शिरकत की।

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

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