प्यार में हिंसा की कोई जगह नहीं

गत दिनों एक युवा कार्यशाला में जाना हुआ। 16 से 21 साल के 30 युवाओं की दो टोली आपस में एक रोचक विषय पर वाद-विवाद कर रही थी। विषय था लव मैरिज सही या अरेंज मैरिज। दो पक्षों में बंटी इस टोली के सदस्य अपने आसपास देखी-सुनी और पढ़ी बातों के आधार पर चर्चा मे तल्लीन थे। लव मैरिज वालों का पक्ष रखते हुए अभिनव ने कहा कि ऐसे जोड़ों में फ़्रीडम अधिक रहती है, वे एक दूसरे को ठीक से समझते हैं और एक-दूसरे को सपोर्ट करते हैं। बिल्कुल सही, लड़की चाहे तो उसे शादी के बाद भी पढ़ने और काम करने के लिए लड़के का सपोर्ट मिलता है संगीता ने तर्क दिया।

लेकिन अरेंज मैरिज को ठीक मानने वाले मयंक ने लव मैरिज को जल्दबाज़ी में उठाया गया कदम बताते हुए, परिवार और समाज के ताने-बाने को चोट पहुंचाने और माता-पिता को जीवन भर दुख देने वाला दर्द बताया। कविता के शब्दों में अरेंज मैरिज घर-परिवार की सहमति से हो तो संबंध लंबा चलता है और इसमें पार्टनर के छोड़ने पर परिवार के दूसरे सदस्यों का साथ मिल जाता है जिससे लड़की को अकेलापन नहीं झेलना पड़ता, उसकी चिंता लड़की के भविष्य को लेकर रही।

वाद-विवाद के इस क्रम में दोनों पक्ष के युवाओं ने लव मैरिज और अरेंज मैरिज के कमज़ोर पहलुओं पर चर्चा बढ़ायी तो पति-पत्नी के बीच होने वाले घरेलू हिंसा की घटनाएं दोनों तरफ से निकल आयीं। किसी ने अखबार में छपी पत्नी की पति द्वारा हत्या की खबर को हाइलाइट किया तो किसी ने शराब पीकर रोजाना कामकाजी पत्नी की पिटाई का उदाहरण दिया। वाद-विवाद के इस हिस्से में आकर दोनों तरफ के युवा इस उलझन में फंसे कि किस पक्ष की हिंसा को वे कम या ज्यादा बताएं। अंततः दोनों पक्ष के कुछ युवाओं ने माना कि आजकल जीवन सम्बन्धों को लेकर जिस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं उसमे लव मैरिज हो या अरेंज मैरिज दोनों तरह के संबंधों में हिंसा का होना ठीक नहीं है, क्योंकि प्यार में हिंसा की कोई जगह नहीं है।

फिर राजेश ने बात छेड़ी लव यानि प्रेम की, उनका कहना था कि शादी के बाद भी पति-पत्नी में प्रेम होता है इसलिए अरेंज ही ठीक है, वहीं लव मैरिज के समर्थक समूह का कहना था कि पहले से प्रेम होने पर अपनी पसंद से विवाह करना गलत नहीं है क्योंकि दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं और वे एक-दूसरे के लिए जीते-मरते हैं। हालांकि दूसरे समूह का मानना था कि ऐसे संबंध ज्यादा दिन चल नहीं पाते।

इस चर्चा के बीच एक युवा ने कहा कि जरूरी नहीं कि प्रेम सिर्फ लड़का-लड़की के बीच हो माता-पिता और राष्ट्र प्रेम भी हो सकता है। शायद यह बात इसलिए कही गयी कि युवाओं के घरों तक यह सब चर्चा गयी तो हंगामा न खड़ा हो जाए। हालांकि इस आधे घंटे के वाद-विवाद के बाद खड़े हुए कुछ सवाल और स्थितियों पर बातचीत को समटेने की प्रक्रिया प्रशिक्षकों की ओर से की गयी। इस चर्चा में बड़ा सवाल तो यही निकला कि क्या लड़का-लड़की या पति-पत्नी के बीच प्रेमभाव के बिना बेहतर जीवन चल सकता है?

यहां संबंध बनाए रखने के लिए सामंजस्य का एक रास्ता भी निकलता दिखा जिसमें नदीम, विनोद और स्वप्निल जैसे युवाओं ने कहा कि लड़का-लड़की एक दूसरे से प्रेम होने और यहां तक कि वे विवाह करना चाहते हैं वाली बात अपने परिवार वालों को बता दें तो कुछ समय बाद मामला सुलझ सकता है और घर परिवार वाले मान जाते हैं। किन्तु वनिता ने ज़ोर देते हुए कहा कि यहां भी समाज मे परिवार की इज्जत जाने, अपनी जाति के खिलाफ होने और चार लोग क्या बोलेंगे इस बात की चिंता पैरेंट्स मे बच्चों से अधिक प्रभावी दिखाई देती है। जबकि यही चार लोग जब पति-पत्नी के बीच में झगड़ा होकर संबंध टूटने तक पहुंचने लगता है तब वे कोई दाखल नहीं देते और पति-पत्नी का निजी मामला बताकर घरेलू हिंसा पर चुप्पी साध लेते हैं।

इन सब बातों को ध्यान से सुन-समझ रहे प्रशिक्षक मनोहर ने वाद-विवाद में मध्यस्थ की भूमिका लेते हुए सवाल उठाया कि क्या पारिवारिक मामले में संवाद और सामंजस्य बनाने मे समाज की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए? क्या हम युवाओं को इन सब बातों पर सोच-विचार नहीं करना चाहिए? क्या पति-पत्नी के विवाद को पुलिस और न्यायालय से ही सुलझाया जा सकता है? इस सवाल पर कुछ देर दोनों युवा टोली मे शांति रही।

आखिरकार यह वाद-विवाद इस नतीजे पर पहुंची कि प्यार होना या करना बुरा नहीं है लेकिन लड़का-लड़की एक-दूसरे का ख्याल रखें, एक-दूसरे का मान-सम्मान बनाए रखें और दोनों पक्ष के परिवार जनों को जोड़कर चलें जो आजकल थोड़ा मुश्किल हो रहा है तो जीवन सम्बन्ध प्यार के साथ टिकाऊ रह सकेंगे। इन युवाओं ने माना कि अपने निर्णय के बारे मे परिवार को बताना प्रेम और आपसी संबंध की बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए एक ज़िम्मेदारी भरा कदम है। इस प्यार भरी बातचीत से गुजरते हुए यह महसूस हुआ कि हम सभी के जीवन सम्बन्ध की बुनियाद के आधार स्तम्भ स्वतंत्रता, समानता और गरिमा जैसे मूल्य हैं जिसमें हिंसा की कोई जगह ही नहीं है। इस वाद-विवाद का समापन अभिनव और कविता के गीत एक-दूसरे से करते हैं प्यार हम… से हुआ।

(रामकुमार विद्यार्थी विकास संवाद से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)

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