महिला निर्देशकों और अभिनेत्रियों ने कान्स में रचा है इतिहास

Estimated read time 1 min read

वर्ष 2024 में फिल्म जगत के अंदर एक खुशनुमा बयार बह रही है। यह बयार एक नई सेंसिटिविटी लेकर हाज़िर है, जिसको जन्म दिया है महिला निर्देशकों और ऐक्टरों ने। उनकी फिल्मों को देश-विदेश में सराहा जा रहा है, क्योंकि वे सेक्स, हिंसा, मिसोजिनी (महिलाओं के प्रति घृणा) और भोंड़े आइटम नम्बरों से बहुत दूर हैं, और दर्शकों के वास्तविक जीवन के अंतरविरोधों से सीधा सरोकार कराती हैं। वे आम ज़िन्दगी के रूटीन में भी कुछ ऐसे पहलू ढूंढकर निकालती हैं जो रोज़्मर्रे की दौड़भाग में अक्सर हमारी नज़र से छूट जाते हैं; यही नहीं, ये फिल्में हमें चीज़ों को देखने का एक नया नज़रिया भी देती हैं। उनमें न ही कोई फार्मूला है और न ही कोई सीधा-सपाट सामाजिक संदेश। पर ये फिल्में हमें जीवन के रंग-बिरंगे कैन्वास से ज़रूर रू-ब-रू कराती हैं;  इनमें एक खास ज़ायका है- कुछ मीठा, तो कुछ खट्टा भी, कुछ तीखा और कुछ कड़वा भी।

तो सबसे पहले चर्चा होनी चाहिये इस साल की सबसे उत्साहवर्धक घटना की-भारत का नाम फिल्म जगत के विश्व-विख्यात कान्स फिल्म फेस्टिवल; (जो 77 वां था),  30 साल बाद आना; यानी पाल्मे डी’ओर के बाद दूसरे नंबर के सबसे बड़े सम्मान, ग्रां प्री से युवा फिल्मकार पायल कपाडिया को नवाज़ा जाना। हम में से अधिकतर फिल्म प्रेमियों के लिये पायल का नाम अपरिचित नहीं है। यह पुरस्कार पायल को अपनी फिल्म ‘‘ ‘ऑल वी इमैजिन ऐज़ लाइट’ के लिये मिला। पायल ने जीतने के बाद एक बेहद संजीदा और विनम्र टिप्पणी की-‘‘प्रतियोगिता में मेरा चयन एक सपने समान था और यह पुरस्कार तो मेरी कल्पना के परे! अब एक और भारतीय फिल्म के लिए 30 वर्ष और इन्तज़ार मत करियेगा।’’ कान्स में कपाडिया को 8 मिनट का स्टैंडिंग ओवेशन मिला। यह सच है कि 30 साल पहले भारत का नाम प्रतियोगिता के प्रमुख अंश में आया था, जब शाजी एन करुण निर्देशित मलयालम फिल्म स्वहम को कान्स फेस्टिवल में मनोनीत किया गया था।

पर पायल के लिये पुरस्कृत होना स्वप्न समान नहीं हो सकता। पायल पहले भी पुरस्कृत हो चुकी हैं-2021 के कान्स फेस्टिवल में उन्हें अपनी डाॅक्युमेंटरी ‘ए नाइट ऑफ नोइंग नथिंग’ के लिये गोल्डन आई अवार्ड से नवाज़ा गया था; स्क्रिप्ट उनका ही था। कपाडिया की फिल्म ‘आफ्टरनून क्लाउड्स’ भी कान्स के 70 वें समारोह के लिए मनोनीत की गई थी। आखिर इतनी कम उम्र में पायल ने अपने को फिल्म जगत में एक नामचीन हस्ती के बतौर कैसे स्थापित किया? शायद पायल के घर का माहौल कला में रचा-बसा होने के कारण उन्हें कला की दृष्टि विरासत में ही मिली है। कपाडिया की मां नलिनी मलानी, जिनका जन्म कराची (अब पाकिस्तान में)  के सिंध में हुआ था, खुद एक जानी-मानी चित्रकार और वीडियो कलाकार हैं। उन्हें भी अपने काम के लिए काफी सराहा गया है और पुरस्कृत भी किया गया है। वह कला एवं संस्कृति के लिये फुकुओका पुरस्कार पाने वाली पहली एशियाई महिला बनीं।

पायल कहती हैं, ‘‘मुझे उन चीज़ों में दिलचस्पी है जो आसानी से दिखाई नहीं देतीं या जिनके बारे में खुलकर बात नहीं की जा सकती। भारत में महिलाओं के लिए गुप्त इच्छाओं, चिंताओं और अनकहे प्यार के बारे में खुलकर बात करना मुश्किल है। अच्छी फिल्म बनाने के लिये गांव की ओर रुख करना पड़ता है’’।

फिल्म की कहानी मुम्बई की है, जहां दो मलयाली नर्सें किसी अस्पताल में साथ काम करती हैं और अस्पताल के बाहर एक फ्लैट में साथ रहती भी हैं। एक है प्रभा (कानी कुसरुती) और दूसरी अनु (दिव्या प्रभा)। प्रभा एक गम्भीर मिजाज़ की महिला है, जिसका पति शादी के बाद ही उसे छोड़कर जर्मनी चला गया है। फिल्म ने संजीदगी से चि़त्रित किया है कि दोनों महिलाएं शहर में प्रवासी होने के नाते किस किस्म की दिक्कतों से जूझती हैं, और मुम्बई के चकाचौंध से दूर उनका जीवन किस हद तक घिसाऊ और उबाऊ बन चुका होता है। दोनों नर्सों का भविष्य अधर में लटका हुआ लगता है, क्योंकि एक ओर प्रभा का पति जर्मनी से साल में महज एक बार उससे फोन पर बात करता है। पर उसे अपने पास बुलाने के मामले में बहाने करता रहता है। दूसरी ओर अनु एक मुस्लिम युवक से प्रेम करती है, पर दोनों को शहर में ऐसी कोई जगह नहीं मिलती जहां वे साथ-साथ समय बिता सकें और अपने भविष्य को लेकर कुछ सोच पाएं।

एक और नर्स पार्वती (छाया कदम) भी कथानक का हिस्सा बनती है, जब उसे शहर में घर न मिलने की वजह से वापस अपने घर जाना पड़ता है और उसकी मदद के लिए प्रभा और अनु साथ जाते हैं। समुद्र तट के शहर में अनु का प्रेमी भी उसके पीछे-पीछे आ जाता है और वहां उसके साथ कुछ समय गुज़ार पाता है। तीनों महिलाओं को आज़ादी, आत्मनिर्भरता और बहनापे का अहसास होता है और वे अपने लिए नये जीवन की तलाश करती हैं। प्रभा अपने पति द्वारा अकस्मात भेजे हुए एक तोहफे को मेज के नीचे डालकर भूल जाती है और समुद्र तट पर बैठे-बैठे ऐेसे पति की राह देखने की जगह बेहतर ज़िंदगी की कल्पना करती है। फिल्म ने महिलाओं की ‘एजेन्सी’ को कथानक का केंद्र बिन्दु बनाया है। बम्बई के जीवन को भी रात के अंधेरे वाले बैकग्राउंड में शानदार ढंग से पेश किया गया है।

पायल खुद कहती हैं कि ‘‘अक्सर महिलाओं को महिलाओं के खिलाफ खड़ा किया जाता है। मैंने महिलाओं के बीच दोस्ती के संबंध को तवज्जो दी है।’’

अन सर्टन रिगार्ड सेक्शन में ‘द शेमलेस’ फिल्म में अपनी बहतरीन अदाकारी के लिए अनसुइया सेनगुप्ता को ‘बेस्ट ऐक्टरेस’ के खिताब से नवाज़ा गया। किसी भारतीय को यह पुरस्कार पहली बार मिला है। बल्गेरियन निर्देशक काॅन्स्टैन्टिन कहते हैं ‘‘कहानी के माध्यम से मैंने वर्तमान भारत की जातीय और धार्मिक मान्यताओं के दायरे में प्रेम, लैंगिकता, स्वतंत्र इच्छाएं और कलात्मक अभिव्यक्ति सहित कई विषयों को तलाशने की कोशिश की है। मैं दिखा रहा हूं कि फिल्म की भाषा कैसे सांस्कृतिक दीवाारों को लांघ सकती है।’’

फिल्म में रेनूका (अनसुइया सेनगुप्ता) एक भगोड़ी सेक्स वर्कर है, जो एक पुलिसवाले की हत्या के जुर्म में पकड़े जाने के डर से भागी हुई है। उसकी मुलाकात एक देवदासी की बेटी देविका (ओमारा शेट्टी) से होती है और यहीं से दोनों के बीच प्रेम बढ़ने लगता है। यह कहानी एक क्रूर दुनिया में दो मासूम दिलों के बीच समलैंगिक प्यार की कहानी है। अनसुइया सेनगुप्ता पेशे से एक इलस्ट्रेटर और प्रोडक्शन डिज़ाइनर है। वह कहती है, ‘‘मुझे कहानी बहुत पसंद आई। मैंने किरदार को पढ़ा और सोचा ‘‘हे भगवान, क्या कोई मुझे इस महिला का किरदार निभाने के लिए कह रहा है? कुछ ऐसा हुआ था जिसने मुझे बहुत ही तीव्रता से इसके लिए बुला लिया।“ एक साक्षात्कार में वह कहती हैं ‘‘इस अहसास को बयां करने के लिये मेरे पास शब्द ही नहीं हैं! ऐसा लग रहा था कि हम एक टीम के रूप में गए थे और हम अपनी दोस्ती, आपसी सम्मान और एक दूसरे के काम को लेकर प्रशंसा से जुड़े हुए विश्व के एक बड़े स्टेज पर खड़े थे।

कान्स के क्लासिक्स सेक्शन में भी श्याम बेनेगल की कालजयी फिल्म ‘मंथन’ को भी दिखाया गया। इस फिल्म में बिंदू के रूप में स्मिता पाटिल का किरदार प्रमुख है। वह ग्रामीण औरतों का नेतृत्व करती हैं, जब उन्हें एक दुग्ध कोआपरेटिव बनाने के लिये प्रेरित किया जाता है। आज जहां ओटीटी प्लेट्फार्म के  लिये  हीरामंडी जैसी सीरीज़ बनाने पर 200 करोड़ ख्रर्च किये गये, मंथन फिल्म 5 लाख किसानों द्वारा 2-2रुपये के क्राउडफंडिंग से बनाई गई थी। आज इसकी कल्पन करना भी मुश्किल लगता है। दिवंगत स्मिता को समारोह में मिस किया गया और अपनी बेहतरीन अदाकारी के लिये याद भी किया गया। कहा जाए तो कान्स समारोह में इस बार महिलाओं की सशक्त उपस्थिति और दावेदारी देखने को मिली, और भारत में ताज़ा किस्म के मुद्दों पर नई फिल्मों के ज़रिये नया इतिहास रचा गया। आशा की जाती है कि 2024 से आरंभ हुई यह यात्रा आगे भी जारी रहेगी। विजेताओं को बधाई!

(कुमुदिनी पति राजनीतिक एवं महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं।)

You May Also Like

More From Author

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments