Sunday, April 28, 2024

वर्ष 2023 ने दिये महिलाओं के लिए बुरे संकेत, लामबंद होने की जरूरत

2023 के सबसे दुखद अध्याय- महिला पहलवानों की तौहीन- का पटाक्षेप दिसम्बर महीने में, यानि साल खत्म होते-होते देखने को मिला, जब साक्षी मलिक ने मीडिया के समक्ष रोते हुए कहा कि वह कुश्ती को अलविदा कह रही हैं। उनके समर्थन में बहन विनेश फोगाट ने अपने पुरस्कार- खेल रत्न और अर्जुन अवार्ड वापस कर दिये। वह बोलीं कि पुरस्कारों से उन्हें घिन आने लगी है।

महिला पहलवानों का संघर्ष लगभग 5 महीने चलता रहा, जबकि अत्याचारी व व्यभिचारी बृजभूषण शरण सिंह को नए संसद भवन के उद्घाटन में पूरे दम-खम के साथ हिस्सा लेते हुए देखा गया। उस समय महिला खिलाड़ियों को दिल्ली की सड़कों पर पुलिस द्वारा बाल पकड़कर घसीटा जा रहा था। इस वाकिये के बारे में सुन-सुनकर लोग भले ही थककर चुप लगा गए हों, लेकिन पूरा प्रकरण समाप्त नहीं हुआ है। पहलवान बजरंग पूनिया और विरेन्दर सिंह ने पद्मश्री लौटाकर कहा कि न्याय नहीं मिलने पर यही उनका फैसला है।

शायद आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र खेल मंत्रालय ने तय किया कि डब्लूएफआई को निलंबित कर देना ही आखिरी रास्ता है। पर जो सबसे महत्वपूर्ण सवाल है वह यह कि क्यों पूरे मामले पर प्रधानमंत्री साल भर चुप्पी साधे रहे और गृह मंत्रालय की ओर से महिलाओं को अपमानित किया जाता रहा? क्या इससे पूरे देश की आधी आबादी को यह संदेश नहीं दिया गया है कि कुछ भी हो जाए बृजभूषण सरीखे उत्पीड़कों को सत्ता के गलियारों में पालकर रखा जाएगा, क्योंकि वे बाहुबली हैं?

शायद इसीलिए ऐसा ही सुलूक किया गया था भोजपुरी अदाकारा आकांक्षा दुबे के साथ भी। आज तक उसकी मां अपनी मृत बेटी के लिए न्याय की गुहार लगाती प्रधानमंत्री के चुनावी क्षेत्र बनारस की सड़कों पर भटक रही हैं, पर पुलिस समर सिंह को बचाने की कवायद में लगी है।

दलित महिलाओं का उत्पीड़न बढ़ा

2023 में एनसीआरबी की रिपोर्ट सामने आई तो पता चला कि भाजपा शासन वाले सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में महिलाओं के विरुद्ध अपराध के सबसे अधिक 65,743 मामले दर्ज हुए। उत्तर प्रदेश से जो आंकड़े सामने आए हैं, उनसे यह भी पता चलता है कि दलित महिलाओं के साथ बलात्कार के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं और अब प्रतिदिन 10 से अधिक हो गए हैं।

सबसे दर्दनाक कांड बांदा में अक्टूबर में हुआ, जहां एक 40 वर्षीय दलित-मजदूर महिला को आटा मिल मालिक और उसके गुर्गों ने मिल में बंद कर सामूहिक बलात्कार का शिकार बनाया और बाद में उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर फेंक दिये। पुलिस अधीक्षक ने अपराध की धाराओं को न केवल हलका कर दिया, बल्कि उसे मिल मशीन के कारण हुई दुर्घटना बता दिया।

इसी साल अगस्त में महाराजगंज में भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चे के अध्यक्ष मासूम रज़ा राही ने एक 17 वर्षीय लड़की से बलात्कार किया था और उसके पिता को पीट-पीटकर मार डाला। उस पर कार्रवाई नहीं हुई। बाराबंकी सामूहिक बलात्कार कांड में भी उत्पीड़ित महिला के अनुसार मामले को हल्का बनाने की कोशिश जारी है। अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार 13.1 प्रतिशत बढ़ा है और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ 14.3 प्रतिशत।

महिला आयोग बना सरकार का अंग

एनसीआरबी के अनुसार महाराष्ट्र और राजस्थान में महिलाओं पर अपराध के 45,000 से अधिक मामले दर्ज हुए हैं। ये तो सिर्फ वे आंकड़े हैं, जो बताते हैं कि कितने केस दर्ज किये गए। बाकी, जहां थानों में एफआईआर नहीं लिखे जाते या डर के मारे रिपोर्ट लिखाई नहीं जाती, ऐसे मामले कम नहीं होते। पर जितनी तेज़ी से ये कांड बढ़ रहे हैं, उतनी मुस्तैदी से सरकारें इन मामलों को दबाने की कोशिश में लग जाती हैं।

वहीं केंद्रीय महिला एवं बाल मंत्रालय अथवा महिला आयोग की ओर से इस पर चिंता ज़ाहिर करना तो दूर, आयोग विपक्षी शासन वाले राज्यों को ही टार्गेट किये हुए है- कभी केरल, कभी राजस्थान, म.प्र. तो कभी बिहार। यहां तक कि मणिपुर में कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र करने वाले वीडियो पर ट्विटर को नोटिस तक भेज दी गई। आप यूं कह सकते हैं कि महिला आयोग अब स्वायत्त न होकर सरकार के एक अंग के रूप में काम कर रहा है।

मणिपुर में लगी आग

इस साल मणिपुर को आग में झोंक दिया गया। किसने किया यह सब? शासक पार्टी के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह लगातार कुकी समुदाय के खिलाफ भड़काऊ बयान देते रहे और आग में घी डालने का काम करते रहे, पर न उनके इस्तीफे की मांग पर गौर किया गया न ही राष्ट्रपति शासन पर विचार किया गया। कुकी औरतों के साथ जिस किस्म की वहशियाना दरिंदगी चलती रही उससे देश शर्मसार हुआ पर किसी प्रकार की मदद नहीं की गई और लोगों को मरने के लिए व राज्य को पूरी तरह बर्बाद होने के लिए छोड़ दिया गया।

जैसा फिलिस्तीनियों के साथ इज़राइल ने किया, वैसा ही सुलूक कुकी समुदाय के साथ किया गया- एथनिक क्लिंसिंग! आज भी मणिपुर शान्त नहीं है; शायद आपसी दुश्मनी कभी समाप्त न हो सकेगी, क्योंकि नफ़रत के बीज बोने के लिए आरक्षण का शिगूफ़ा जानबूझकर छोड़ा गया। इतने पर भी संतोष नहीं हुआ तो एनएफआईडब्लू की नेता ऐनी राजा और दो अन्य महिलाओं पर देशद्रोह का मुकदमा कायम कर दिया गया क्योंकि अपनी जांच रिपोर्ट में उन्होंने सच्चाई बयान कर दी।

गुजरात में सामाजिक सूचकांक गिरे

इस बार विकास की राह पर बढ़ रहे सम्पन्न राज्य गुजरात में सामाजिक सूचकांक एक भयावह दृश्य पेश कर रहे थे। एनएचएफएस-5 के अनुसार गुजरात की महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा रक्ताभाव से यानि ऐनीमिया से ग्रस्त है। आंकड़ों के अनुसार 15-49 वर्ष आयु की महिलाएं, जो प्रजनन के काबिल हैं, का 65 प्रतिशत हिस्सा रक्ताभाव का शिकार है जबकि राष्ट्रीय औसत 57 प्रतिशत है।

गर्भवती महिलाओं का 63 प्रतिशत ऐनीमिया ग्रस्त पाया गया जबकि राष्ट्रीय औसत 52 प्रतिशत है। 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में यह स्थिति 80 प्रतिशत बच्चों में देखी गई जबकि राष्ट्रीय औसत 67 प्रतिशत है। सामाजिक सूचकांकों की बात करें तो गुजरात माॅडल की हालत काफी दयनीय है। पर क्या किसी ने सवाल उठाया कि एक समृद्ध प्रान्त में औरतों और बच्चों के प्रति इतना भेदभाव और इतनी बेरुखी क्यों है? क्या यहां डबल इंजन वाली सरकार ने विकास पर लेशमात्र भी ध्यान नहीं दिया?

बलात्कारी छूटकर आया बाहर

मोनिंदर सिंह पंधेर, जो निठारी केस में अभियुक्त था, 14 वर्ष जेल में रहने के बाद साक्ष्य के अभाव में दो मामलों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा बरी कर दिया जाता है और दूसरी ओर मृत बच्चों के परिवारों को भारी झटका लगता है। कोर्ट का कहना था कि जांच सही तरीके से नहीं की गई थी, जिसकी वजह से पंधेर पहले 12 हत्या के मामलों में बरी हो चुका था, जिसमें निचली अदालत से उसे मौत की सज़ा सुनाई गई थी, और बाद में एक युवती की हत्या और एक घरेलू कामगारिन के साथ बलात्कार व हत्या मामले में उसे राहत भी मिल गई।

दूसरा चर्चित मामला था बिल्किस बानो का, जिसमें गुजरात उच्च न्यायालय ने सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया था और उनमें से एक को तो दाहोद में इस साल एक सरकारी कार्यक्रम में भाजपा विधायक और सांसद के साथ मंचासीन देखा गया। इस शख़्स का नाम है सैलेश चिमनलाल भट्ट।

ये घटनाएं आकस्मिक नहीं हैं। इनके पीछे एक पैटर्न है; महिलाओं पर होने वाले अत्याचार बढ़ेंगे क्योंकि अपराधियों को समझ में आ गया है कि वे आसानी से अभियोग से मुक्त हो जाएंगे। उनका महिमामंडन भी होगा। औरतों को भी बताया जा रहा है कि अब भारत उनके लिए सुरक्षित नहीं है।

आखिर बीएचयू के आईआईटी की एक छात्रा के साथ बाहर से कैम्पस में घुसे शोहदे कैसे यौन हमला कर पाते हैं और विश्वविद्यालय प्रशासन लड़की को दोषी ठहरा देता है? यही नहीं, पुलिस द्वारा हमला करवाकर आंदोलनकारी छात्राओं के मनोबल को तोड़ने की कोशिश भी होती है।

महिलाएं पितृसत्ता, ब्राह्मणवाद के साथ भगवा गुंडागर्दी से भी निपटेंगी

महिलाओं की दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं। महंगाई आसमान छू रही है और हर गृहिणी अपना पेट काटकर परिवार चला रही है। पर महिला वितमंत्री निर्मला सीतारमण के ऐसे बयान आते हैं जैसे कि उन्हें घरेलू बजट से कोई वास्ता ही नहीं है। दूसरी ओर महिला एवं बाल विकास मंत्री का बयान आता है कि कामकाजी महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश की कोई आवश्यकता नहीं हैं। वे दवा खाकर दर्द से निपटें और काम पर आएं।

आश्चर्य है कि महिला मंत्री इस बात पर खुश हैं कि महिलाओं की श्रम में हिस्सेदारी 4.2 प्रतिशत बढ़कर 37 प्रतिशत तक पहुंची है। पर देखने पर पता चलेगा कि यह श्रम अधिकतर अनौपचारिक श्रम है। चुनावों में भी महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ी है, पर महिला आरक्षण विधेयक को लेकर संसद में जैसा मज़ाक हुआ, उसकी मिसाल किसी देश में नहीं मिलेगी। ये महिला मंत्री सत्ता में बने रहने के लिए महिलाओं की गर्दनें ही रेत रही हैं।

5 राज्यों के चुनावों में महिला वोटरों को लुभाने के लिये पक्ष-विपक्ष में होड़ भी लगी। पर चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि इनको जीत में निर्णयक नहीं समझा जा सकता है। आज औरतें अपनी आज़ादी के लिए फिर से लड़ रही हैं- वह आज़ादी जो उनसे छीनी जा रही है। उन्हें दो भूमिकाओं में से एक चुनने पर मजबूर किया जा रहा है। घर में रहो या फासीवादी ऐजेन्डा को आगे बढ़ाने में योगदान दो।

इसलिए जरूरत है कि एकताबद्ध महिला आंदोलन अपनी ताकत का एहसास करे और आम चुनाव में अपनी भूमिका तय करे, क्योंकि आज़ादी का और कोई रास्ता नहीं है।

(कुमुदिनी पति महिला अधिकार कार्यकर्ता और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।) 

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