ग्राउंड रिपोर्ट: थाने में ही हो गयी थी अरुण वाल्मीकि की मौत

आगरा। नाम- अरुण वाल्मीकि। उम्र-24 साल। पेशा-सफाई कर्मी। विवाह- शादीशुदा, तीन छोटे बच्चे, दो लड़कियां एक लड़का। सबसे छोटी बच्ची की उम्र- डेढ़ महीने। पांच भाइयों में सबसे छोटे अरुण वाल्मीकि की मौत जगदीशपुरा थाने की पुलिस चौकी में होती है। हालांकि यह बात न तो पुलिस मान रही है और न ही अखबार इसको लिख रहे हैं। अमर उजाला जिसकी पैदाइश आगरा की है। वह भी इस घटना की सही रिपोर्टिंग नहीं कर पा रहा है। अब यह प्रशासन का दबाव है या फिर कोई और बात कह पाना मुश्किल है।

मसलन पेपर में लिखा गया है कि अरुण को पुलिस थाने से उसके घर ले गयी तलाशी के लिए और उसी समय उसकी तबियत अचानक खराब हो गयी। जबकि हकीकत यह है और जिसकी खुद अरुण के भतीजे ने तस्दीक की कि उसकी मौत थाने में ही हो गयी थी। और उस समय थाने में मौजूद परिजनों को पुलिस की तरफ से कहा गया कि आप सीधे मोर्चरी में जाइये यानि वहां जहां अरुण की लाश रखी गयी थी।

प्रशासन का यह दबाव अरुण के घर पर रहते भी महसूस किया जा सकता था। आगरा के चर्चित मोहल्ले लोहामंडी की वाल्मीकि बस्ती में स्थित अरुण के घर से लोहामंडी थाने की दूरी महज डेढ़ फर्लांग है। जनचौक की टीम के पहुंचने पर देखा गया कि घर के आस-पास चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात थी। एसपी से लेकर एएसपी तक की गाड़ियां और खाकी वर्दी में ढेर सारे पुलिसकर्मी मौजूद थे। मेन रोड से अरुण के घर तक जाने में सैकड़ों पुलिसकर्मियों के बीच से होकर गुजरना पड़ा। घर के सामने और घर के भीतर भी पुलिस और प्रशासन की मौजूदगी इस बात का इशारा कर रही थी कि यह सब कुछ ऊपर से निर्देशित है।

शायद यही वजह है कि एक महिला पुलिसकर्मी साये की तरह परिजनों के साथ थी। वह सादे ड्रेस में थी। देखने में कोई नहीं कह सकता था कि उसका पुलिस या फिर प्रशासन से कोई जुड़ाव है। लेकिन जब मेरे सामने ही पुलिसकर्मियों ने उसके खाने की व्यवस्था की तो पता चल गया कि वह किस पक्ष से है। इसके अलावा सफाई कर्मचारी आयोग के सदस्य और उसके अध्यक्ष समेत सरकारी पक्ष से जुड़े तमाम लोगों का लगातार आना-जाना बना हुआ था। और सब एक ही बात दोहरा रहे थे कि परिजनों की मुख्यमंत्री से बात हो गयी है और बीजेपी परिजनों के साथ है उन्हें न्याय दिलवाकर ही रहेगी। इस बीच विपक्षी नेताओं का भी वहां आना जाना बना हुआ है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और आप नेता संजय सिंह पहले ही दौरा कर चुके हैं।

अब आइये इस पूरे मामले को समझने की कोशिश करते हैं। अरुण जगदीशपुरा थाने में सफाई का काम करता था। यह थाना अरुण के घर से तकरीबन दो किमी की दूरी पर है। पुलिस के मुताबिक थाने के मालखाने से शनिवार को 25 लाख रुपये की चोरी हुई थी। पुलिस का शक अरुण पर था। लिहाजा उसने अरुण को पकड़ने के लिए छापेमारी शुरू कर दी। इस कड़ी में उसने अरुण के सभी परिजनों जिसमें अरुण की पत्नी, मां, दो चाचा, भतीजे, फूफा और तकरीबन 17-20 वाल्मीकि समुदाय के युवकों को हिरासत में ले लिया। और इन सभी की थाने में बुरी तरीके से पिटाई की। अरुण के भतीजे की मानें तो उसके चाचा और फूफा का पीट-पीट कर पुलिस ने बुरा हाल कर दिया था। यहां तक कि थाने में रहते परिजनों को पेशाब करने तक की इजाजत नहीं दी गयी।

अरुण की पत्नी तक को पुलिस ने नहीं बख्शा। और उसके चेहरे पर पड़े चोट के निशान आज भी उसकी गवाही दे रहे थे। परिजनों की मानें तो उनके थाने में रहने के दौरान ही अरुण का थर्ड डिग्री टॉर्चर शुरू हो गया था। भतीजे का कहना था कि अरुण के लगातार चीखने और चिल्लाने की आवाजें उनके पास आ रही थीं। मां कमला देवी का तो रोते-रोते बुरा हाल है। उनका तो गला ही बिल्कुल बैठ गया था लिहाजा उनके साथ बहुत ज्यादा बातचीत कर पाना संभव नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि “…….मुझे कुछ पता नहीं। मुझे जब अस्पताल में ले जाया गया तब पता चला कि अब मेरा लाल नहीं है।” उनका कहना था कि “पुलिस हिरासत में बच्चों की पिटाई की गयी थी। बच्चे रात में चिल्ला रहे थे”। थाने से लोगों के छोड़े जाने के मामले में उन्होंने बताया कि “जब बेटे की मौत हो गयी तब जाकर सबको छोड़ दिया था”।

इस बीच, पुलिस ने परिजनों की गैरमौजूदगी में अरुण के घर की तलाशी भी ले ली। जिसके बारे में परिजनों का कहना है कि पुलिसकर्मियों ने बक्शे से लेकर आलमारी सबको तोड़ डाला। और 15 लाख रुपये की बरामदगी दिखाया जिसे उसने सोफे से बरामद करने की बात कही। बाकी सात लाख रुपये के लिए वे परिजनों पर दबाव बनाते रहे और इसके लिए उनकी पिटाई करते रहे। पुलिसकर्मियों का परिजनों से कहना था कि चाहे घर बेच डालो लेकिन उनके पैसे लौटाओ। इस बीच सोमवार को जब अरुण की मौत हो गयी तो पूरी कहानी ही पलट गयी।

परिजनों की मानें तो अरुण की मौत मंगलवार और बुधवार के बीच की रात को हुई। समय बताया जा रहा है 2.30 बजे। परिजनों का कहना है रात में 12 बजे तक अरुण जीवित था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह दिल का दौरा बतायी गयी है। इसके साथ ही शरीर के कई अंगों में चोट की भी बात कही गयी है। इसमें अरुण के पुट्ठे और पीठ पर भी चोट के निशान पाए गए हैं। जानकारों का कहना है कि शॉक से या फिर ज्यादा पिटाई से भी कई बार दिल के दौरे पड़ सकते हैं। हालांकि परिजनों की मानें तो अरुण को किसी तरह की कोई बीमारी नहीं थी। और वो बिल्कुल स्वस्थ था।

जगदीशपुरा थाना इलाका में रहने वाले एक शख्स ने अपना नाम न जाहिर करने की शर्त पर जो बताया उससे मामले पर कुछ रोशनी ज़रूर पड़ती है। उसका कहना था कि पूरा मोहल्ला सट्टे और जुए के लिए बदनाम है। और यह सब कुछ पुलिस और प्रशासन के संरक्षण और उसकी मिलीभगत से होता है। उसकी मानें तो पुलिस भले ही 25 लाख रुपये दिखा रही है लेकिन वह राशि 75 लाख रुपये थी। लेकिन उसको कम करके दिखाया जा रहा है। और इस मामले में अरुण को बलि का बकरा बनाया गया है।

दरअसल पूरे पैसे को ही हड़प कर जाने की साजिश थी। जिसके लिए इस तरह के किसी बकरे की तलाश थी। और ऊपर से बताया जा रहा है कि पूछताछ के दौरान उसने तीन पुलिसकर्मियों के नाम बता दिये थे। यही बात उसकी जान के लिए भारी पड़ गयी। क्योंकि उसके जिंदा रहते उन पुलिसकर्मियों की नौकरी ही नहीं बल्कि पूरा जीवन ही संकट में पड़ जाता। नतीजतन उसकी यह जानकारी ही उसके लिए जानलेवा साबित हुई।

वरना इस पूरे प्रकरण में सबसे बड़ा सवाल यही खड़ा होता है। थाने के मालखाने में भला कोई सामान्य सफाईकर्मी कैसे पहुंच सकता है। उसकी सुरक्षा के कई घेरे होते हैं। वह लॉकर में होगा। उसकी चाभी किसी जिम्मेदार पुलिस अफसर या कर्मी के पास होगी। और सबसे बड़ी बात जो प्रशासन पूरे शहर में सीसीटीवी कैमरों के जाल बिछा देता है क्या उसने अपने थानों में सीसीटीवी कैमरे नहीं लगवाए हैं। लेकिन आम तौर पर ऐसे मामलों में सीसीटीवी कैमरों के होने पर भी वो काम नहीं करने वालों की श्रेणी में खड़े कर दिए जाते हैं।

बहरहाल कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी और आप नेता संजय सिंह समेत तमाम नेताओं के दौरों और मीडिया में बात आने के बाद प्रशासन ने तीन पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया है। इसके अलावा कहा जा रहा है कि पुलिस ने 302 के तहत एफआईआर भी दर्ज की है। हालांकि उसमें किसी का नाम दर्ज नहीं किया गया है। वह अज्ञात है। पुलिस की मानें तो उस पर अरुण के भाई सोनू का हस्ताक्षर है। इतने दबाव के बाद सरकार ने मुआवजे के तौर पर 10 लाख रुपये और एक सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया है।

योगी सरकार यहां भी अपने जातिवादी चश्मे और गरीब विरोधी सोच से बाहर नहीं निकल पायी। अभी तक पुलिस हिरासत या फिर उसके हाथों हुई मौतों पर उसने पीड़ितों के परिजनों को 40-40 लाख रुपये दिए हैं। लेकिन अरुण वाल्मीकि के परिजनों को महज 10 लाख रुपये में ही निपटा दिया गया। इस बारे में पूछे जाने पर सफाई कर्मचारी आयोग के सदस्य का कहना था कि व्यक्ति-व्यक्ति में अंतर होता है। और उसको बढ़ाने के लिए वह योगी जी से आग्रह करेंगे।

बहरहाल प्रशासन की घेरेबंदी तेज होती जा रही है। यह बात उस समय सामने दिखी जब कैमरे के सामने मां को छोड़कर कोई भी खुल कर बोलने के लिए तैयार नहीं था। यहां तक कि अरुण का भाई सोनू जो सारे मामलों का चश्मदीद है वह एक भी सवाल का ठीक से उत्तर देने के लिए तैयार नहीं था। इसके पीछे का राज उस समय खुला जब अरुण के भतीजे ने आपस में बात करते हुए बताया कि उसके दोनों चाचाओं ने बिल्कुल चुप्पी साध ली है। उसने बताया कि पुलिस के एक बड़े अधिकारी ने कल दोनों को अलग से ले जाकर बात की थी उसके बाद से ही दोनों चुप हैं।

अरुण का कहना था कि उसके चाचा की रात तकरीबन 2.30 बजे मौत हो गयी। उसने बताया कि पुलिस वाले उसके सामने ही अरुण-अरुण कहकर बुलाए लेकिन उधर से कोई आवाज नहीं निकली। उसकी मानें तो फूफा को चार दिन तक पुलिस ने हिरासत में रखा था और इस बीच लगातार उनको पीटा जा रहा था। उसका कहना था कि चाची को न केवल भद्दी-भद्दी गालियां दी गयीं बल्कि पुरुष अफसरों ने उनकी पिटाई की है। उसने चुनौती देने के अंदाज में कहा कि चाचा को सबके सामने यह बात बतानी चाहिए कि आखिर पुलिस ने उनसे क्या बात की? उसका कहना था कि वह चुप नहीं रहने वाला है और वह अपनी चाची को न्याय दिलाकर ही रहेगा।

(आगरा से जनचौक संपादक महेंद्र मिश्र की रिपोर्ट।)

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