Author: प्रफुल्ल कोलख्यान
लोकतंत्र में चुनाव लघुता का पर्व और गर्व होता है, प्रभुता का पर्व और प्रसाद नहीं
लोकतंत्र में चुनाव सबसे बड़ा पर्व होता है, लोकतंत्र का पर्व। लोकतंत्र का पर्व असल में किस का पर्व होता है? लोक का होता है। [more…]
मतदाताओं की विवेक-सम्मत रणनीतिक समझदारी महत्वपूर्ण है
लोकतंत्र में चुनाव से अधिक महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं होता है। जीवन की तरह चुनाव में भी महत्वपूर्णता का आधार सत्य से बनता है। मुश्किल [more…]
तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद जनविवेक से स्थिति में बदलाव होगा
भारत में लोकतंत्र के भविष्य को लेकर कुछ गहरी आशंकाएं उभर रही हैं। इतिहास की गहरी घाटियों से कुछ चीखें सतह पर हैं तो भविष्य [more…]
तरह-तरह से सामने आ रही है मोदी की बौखलाहट
अब आम चुनाव 2024 के शुभारंभ की तिथि बिल्कुल सामने है। चार-पांच दिन में प्रथम चरण के चुनाव में प्रचार का दौर समाप्त हो जायेगा। [more…]
पुरखे आते हैं देखने, कुर्बानियों की कद्र और वोट ठगेरों से बचने के उपाय
पर्व त्यौहार के दिन लोग नये-नये कपड़े पहनते हैं। अच्छा-अच्छा खाना खाते हैं। खुश रहते हैं। खुशियां मनाते हैं। घर में समाज में सभी जगह [more…]
लोकतंत्र का पेपर लीक है आखिर सन्नाटा क्यों है गुमराही चच्चा
कोलाहल का हद के पार चला जाये तो अपने पीछे सन्नाटा छोड़ जाता है। विपक्षी गठबंधन के नेताओं के भाषणों से शब्दों और वाक्य खंडों [more…]
लोक-लुभावन राजनीति के गगनचर सपनों के सुराख से सड़क का जायजा
विभिन्न विश्व मानकों पर भारत की स्थिति सकारात्मक और सराहनीय नहीं कही जा सकती है। विश्व-गुरु बनने का सपना तो ठीक है। विश्व की तीसरी [more…]
भय भ्रष्टाचार का मामला और संवैधानिक नैतिकता का सवाल
सामने, बिल्कुल सामने 2024 लोकसभा के लिए आम चुनाव घोषित है। आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) लागू है। संवैधानिक संस्थाएं चुनाव संघर्ष [more…]
तर्कशील लोकतंत्र और तर्कातीत चुनाव में आयुधीकृत अर्धसत्य का विष-प्रभाव
युवाओं का सभ्यता के विकसित होने में बड़ा योगदान रहा है। कहना न होगा कि ‘विकसित भारत’ में भी युवाओं का महत्व कोई कम नहीं [more…]
व्यक्तिवाद-परिवारवाद और समाजवाद अपनी जगह, चुनाव में चाहिए संविधानवाद
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में चुनाव का बहुत महत्व होता है। हम सब हर पल किसी-न-किसी तरह के चुनाव में लगे रहते हैं। सब से [more…]