आज की ज़मीन से उड़ान भर कर विलुप्त कल की यादों के आंगन में पहूंचा हूं। बसवा… जी, बसवा। इसी क़स्बा में बचपन बीता, एक हिस्सा किशोर काल का भी। स्कूल का घंटा बजता, सुनते ही दौड़ता और प्रार्थना...
आधी सदी पहले...
1973 का साल था, महीना था जनवरी। तबके बम्बई महानगर में दलित आंदोलन का ज्वार उमड़ा हुआ था। नामदेव ढसाल जैसे जुझारू कवि की धूम मची हुई थी। वैसे आंदोलनकर्मियों की जुबां पर और भी दलित लेखक-कवि-पत्रकार...
सबसे पहले : केरल में वामपंथी सरकार का दूसरी दफे ‘लाल परचम’ फहराने के लिए वाम नेतृत्व, विशेष रूप से मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, को मुबारकबाद और लाल सलाम। विजयन मंत्रिमंडल बन चुका है और ईश्वर की भूमि (केरल) के...
(स्वामी जी का कर्म रण भूमि से हठात जाना किसे नहीं अखरेगा? मौजूदा दौर में तो उनकी हस्तक्षेपकारी भूमिका की पहले से अधिक ज़रूरत थी। यकीनन उनके जाने से फासीवादी शक्तियों को राहत की सांस लेने का अवसर ज़रूर मिल गया है। इन्हीं फासीवादी तत्वों ने 2018 में झारखण्ड में उनके लीवर को इतना आघात पहुँचाया कि वह तब से सामान्य नहीं हो सका। इसी कुकृत्य को 2019 में भी दोहराया गया था जब ...
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की आज पुण्य तिथि हैं। आज ही के दिन 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरम्बदूर में एक चुनावी सभा में लिट्टे समर्थक आतंकवादियों ने मानव बम से उनकी हत्या कर दी थी। राजीव गांधी...
अहिंसा महात्मा को सिर्फ बीती सदी तक ही सीमित करना, उनके साथ न्याय करना नहीं होगा। यह सही है, उनका कर्म रंग मंच 19वीं और 20वीं सदी रही हैं। लेकिन वे किसी राष्ट्र या भूभाग या नस्ल के...
यदि मैं मार्क्सवादी भाषा में कहूं तो उस समय का मुख्य अंतर्विरोध था साम्राज़्यवाद और उसकी दासता से आज़ादी उन्नीसवीं और बीसवीं सदी के मध्य तक यह अंतर्विरोध प्रमुख बना रहा। गांधी जी अपनी दृष्टि, आस्था...
जब यह फ्रेम गांधी जी के लिए है ही नहीं तब क्यों उनकी प्रासंगिकता पर चिंतन किया जाए। ऐसा चिंतन फिजूल की क़वायद ही होगी।यह सही है, कोई भी नायक-महानायक अपने, चिंतन, विचारधारा और क्रिया में समय-समाज सापेक्ष होते हैं।...
सर्व प्रथम यह सपष्ट कर दूं, मैं गांधीवादी या गांधी अनुयाई नहीं हूं। पचास साल पहले जब थोड़ी बहुत राजनीतिक या विचारधारात्मक चेतना मुझमें आयी थी तब मैंने महात्मा गांधी के विचारों और कार्यशैली की आलोचना की...