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संस्कृति-समाज

जन्मदिवस पर विशेष: इंक़लाब, तब्दीली और उम्मीद के शायर मजाज़

दीगर शायरों की तरह मजाज़ की शायराना ज़िंदगी की इब्तिदा, ग़ज़लगोई से हुई। शुरुआत भी लाजवाब हुई, तस्कीन-ए-दिल-ए-महज़ूं न हुई वो सई-ए-करम फ़रमा भी गए [more…]

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संस्कृति-समाज

भारतीय साहित्य के निर्माता शैलेन्द्र: जीते जी जलने वाले, अंदर भी आग जला

साल 2023 कवि-गीतकार शैलेन्द्र की जन्मशती है। ‘तू ज़िंदा है, तो ज़िंदगी की जीत में यक़ीन कर’, ‘हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में’, ‘क्रांति के [more…]

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राजनीति

एहतिजाज की बुलंद आवाज़ नरगिस मोहम्मदी को नोबेल शांति पुरस्कार

एहतिजाज की आवाज़ बुलंद करने वाली ईरानी मानवाधिकार कार्यकर्ता नरगिस मोहम्मदी को साल 2023 के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजे़ जाने का ऐलान एक [more…]

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संस्कृति-समाज

जन्मदिवस पर विशेष: बेगम अख़्तर के बग़ैर ग़ज़ल अधूरी है

वे सरापा ग़ज़ल थीं। उन जैसे ग़ज़लसरा न पहले कोई था और न आगे होगा। ग़ज़ल से उनकी शिनाख़्त है। ग़ज़ल के बिना बेगम अख़्तर [more…]

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संस्कृति-समाज

दीगर शायरों से ज़ुदा, बेहद ख़ास और बग़ावती तेवर वाले थे मजरूह सुल्तानपुरी

1 अक्टूबर, 1919 यही वो तारीख है जब तरक़्क़ीपसंद शायर मजरूह सुल्तानपुरी का जन्म हुआ था। तरक़्क़ीपसंद तहरीक के शुरुआती दौर का अध्ययन करें, तो [more…]

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संस्कृति-समाज

अदाकार देव आनंद का जन्मदिवस और साल 2023 जन्मशती वर्ष                  

मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया’’, फ़िल्म ‘हम दोनों’ में देव आनंद पर फ़िल्माया गया यह [more…]

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संस्कृति-समाज

‘ज़ब्तशुदा साहित्य’ पर उत्तर प्रदेश पत्रिका का एक अभिनव विशेषांक

साल 2022 में हमने आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया। 15 अगस्त, 2021 से शुरू हुए देशव्यापी आयोजन, इस साल जाकर अपने समापन पर पहुंचे हैं। [more…]

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संस्कृति-समाज

जन्मदिवस पर विशेष: अपने जीते जी गाथा पुरुष बन गए हबीब तनवीर

बीसवीं सदी के चौथे दशक में मुल्क के अंदर तरक़्क़ी-पसंद तहरीक अपने उरूज पर थी। इप्टा के नाटक अपनी सामाजिक प्रतिबद्धता और सरोकारों के चलते [more…]

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संस्कृति-समाज

स्मृति शेष: बी वी कारंत-दक्षिण और उत्तर रंगमंच को जोड़ने वाले सेतु

भारतीय रंगमंच में बी.वी. कारंत की पहचान असाधारण रंगकर्मी और रंगमंच प्रशिक्षण देने वाले विद्वान अध्यापक की है। उन्हें लोग प्यार से बाबा कारंत नाम [more…]

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संस्कृति-समाज

जन्मदिवस पर विशेष: शैलेंद्र के गीत कैसे बने जन आंदोलनों के नारे?

जन गीतकार एक ऐसा ख़िताब है, जो हिन्दी में बहुत कम गीतकारों को नसीब हुआ है। जब तक गीत जनता के जज़्बात से न जुड़ें, [more…]