धुप्प अंधेरे के बीच उम्मीद की चंद किरणें

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घटाटोप अंधकार के बीच कुछ अच्छी ख़बरें भी आनी शुरू हो गई हैं जिनसे यह ज़ाहिर होता है यदि हौसले बुलंद हैं, आप सही हैं तो देर-सबेर उम्मीद का सूरज ज़रूर निकलेगा। यह उजाला न्याय व्यवस्था और जनता जनार्दन के सहयोग से ही संभव है।

ताजा मामला फिल्म निर्देशक अविनाश दास को निचली अदालत से जमानत मिलने की है। अमित शाह की एक पुरानी फोटो शेयर करने के मामले में अविनाश दास को अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने हिरासत में लिया था। उनको अहमदाबाद मेट्रोपॉलिटन कोर्ट में पेश किया गया। अविनाश दास को अहमदाबाद मेट्रोपॉलिटन कोर्ट ने आज न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने उनकी कस्टडी की मांग की थी लेकिन कोर्ट ने इसकी इजाजत नहीं दी। इसके बाद अविनाश दास ने जमानत की अर्जी लगाई थी, जिसको कोर्ट ने मंजूर कर लिया।अहमदाबाद क्राइम ब्रांच ने जमानत का विरोध किया था। पुलिस ने कहा था कि अविनाश दास को पेश होने के लिए तीन नोटिस भेजे गये थे। लेकिन वह पुलिस के सामने पेश नहीं हुए। पुलिस ने यह भी कहा कि अविनाश दास पहले भी ऐसी फर्जी पोस्ट शेयर कर चुके हैं। अविनाश पर जांच में सहयोग ना करने का आरोप भी लगा था।

दूसरी महत्वपूर्ण ख़बर कल ऑल्ट न्यूज़ के फैक्ट चेकर मोहम्मद जुबैर को मिलने वाली जमानत आश्चर्य जनक है। क्योंकि पुलिस ने जिस मामले में उन्हें उठाकर ले गई और अचानक एक पुरानी फिल्म के कुछ दृश्यों पर टिप्पणी को आस्था के सवाल से जोड़कर उन्हें गिरफ्तार किया उन्हें जिस तरह पच्चीस रोज परेशान किया उससे लग रहा था जुबैर की जमानत मुश्किल होगी किंतु सुप्रीम कोर्ट ने ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को बड़ी राहत दी है। शीर्ष अदालत ने मोहम्मद जुबैर को बुधवार को सभी मामलों में अंतरिम जमानत दे दी।

इस दौरान अदालत ने कहा कि उन्हें अंतहीन समय तक हिरासत में बनाए रखना उचित नहीं है। अदालत ने साथ ही यूपी में दर्ज सभी 6 FIR को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल में ट्रांसफर करने का आदेश दिया। साथ ही यूपी सरकार की तरफ से बनाई गई एसआईटी को भी भंग कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मोहम्मद जुबैर की रिहाई हो गई है। कोर्ट ने कहा कि “उनको लगातार जेल में रखने का कोई औचित्य नहीं है, उन्हें तत्काल जमानत दें।” कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी नई एफआईआर में उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

इन दो घटनाओं ने जो राहत दी है वह पिछले मामलों को देखते हुए बहुत महत्वपूर्ण है। पिछले दिनों गांधी वादी सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार की याचिका पर जिस तरह पांच लाख जुर्माने की बात हो या तीस्ता सीतलवाड़ और श्रीकुमार की गिरफ्तारी का मामला हो इससे जो छवि अदालत की बनी उसके परिप्रेक्ष्य में यह उम्मीद जगाती है कि देर सबेर इन मामलों पर भी सुप्रीम कोर्ट ध्यान केंद्रित करेगा।

सबसे अहम सवाल इस बात का है कि उपर्युक्त दो मामलों में दिल्ली और अहमदाबाद की पुलिस की जो भूमिका रही है उसका विश्लेषण ज़रूरी है। वे किसके इशारों पर काम करते हैं और क्यों? पुलिस की कार्यपद्धति भी स्पष्ट होनी चाहिए।

(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)

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