batham victim

उन्नाव गैंगरेप पीड़िता मौत से जूझ रही है और महिला आयोग अध्यक्ष बाथम मना रही हैं हरियाली तीज

नोएडा। ऊपर लगी तस्वीर में ये उत्तर प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष विमला बाथम हैं। उन्नाव गैंगरेप पीड़िता जब लखनऊ के ट्रौमा सेंटर में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है तब महिलाओं के सवालों को उठाने और उन्हें हल करने की जिम्मेदारी लेने वाली कुर्सी पर बैठीं बाथम हरियाली तीज मना रही हैं। महिलाओं के बीच उनके मुस्कराते प्रफुल्लित चेहरे को देखा जा सकता है। जब पूरे देश की पल-पल की निगाह उन्नाव की उस बच्ची पर लगी है और उसका हर लमहा गमगीन है तब बाथम जी को त्योहार मनाने की मस्ती सूझ रही है।

इतनी निर्लज्जता और संवेदनहीनता आखिर ये नेता लाते कहां से हैं? उन्होंने इस कार्यक्रम की बाकयदा फोटो अपने फेसबुक पेज पर लगा रखी है। जिसमें नोएडा लायंस क्लब की हरियाली तीज के कार्यक्रम में उनके शामिल होने की सूचना है और नीचे फूलों के गुलदस्तों के साथ मुस्कराता हुआ चेहरा। उन्नाव हादसे को आज तीसरा दिन होने जा रहा है। पीड़िता को देखने और लखनऊ जाने की बात तो छोड़ दीजिए बाथम ने उस पर एक बयान भी देना जरूरी नहीं समझा। इस बीच फेसबुक पर बाथम रोजाना एक्टिव दिख रही हैं। 28 तारीख की एक पोस्ट में उन्हें मैराथन दौड़ में बच्चों को पुरस्कार देते हुए देखा जा सकता है। लेकिन इस बीच और उसके बाद उन्नाव घटना का कोई नामो-निशान तक नहीं है।

इनसे जरूर यह बात पूछी जानी चाहिए कि आखिर क्या महिला आयोग का गठन तीज मनाने के लिए हुआ है या उसका काम पुरस्कार बांटना है। महिला आयोग अगर पीड़ित महिलाओं और उनके दुख दर्द के साथ नहीं ख़ड़ा होगा तो भला उसकी क्या उपयोगिता है? विपत्ति की मारी और तमाम समस्याओं से जूझ रही महिलाओं के साथ अगर महिला आयोग नहीं खड़ा होता है तो उसे बंगाल की खाड़ी में क्यों नहीं फेंक दिया जाना चाहिए?

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विमला बाथम अपनी पड़ोसी स्वाती मालीवाल से कुछ सीख सकती थीं। दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष होने के नाते उनकी कोई सीधी जिम्मेदारी भी नहीं बनती थी। लेकिन हादसे की सूचना मिलते ही उन्होंने तत्काल लखनऊ का रुख किया और पीड़िता के परिजनों से मिलकर न केवल उन्हें ढांढस बंधाया बल्कि उनकी हर संभव सहायता करने में जुट गयीं। और अभी भी पीड़िता के स्वास्थ्य पर पल-पल की नजर बनाए हुए हैं। जो उनके ट्विटर के जरिये देखा और महसूस किया जा सकता है।

यह कोई बाथम का ही अकेले मामला नहीं है। पीड़िता के इलाज को लेकर सूबे की सरकार जिस तरह से ठंडा रवैया अपनाए हुए है वह आपराधिक है। जो काम ट्रक नहीं कर सका लगता है अब उसे सूबे की सरकार पूरा कर रही है। वरना पीड़िता को क्या और बेहतर इलाज नहीं मुहैया कराया जा सकता था? और ऐसी स्थिति में जबकि स्वाती मालीवाल ने दिल्ली के अस्पतालों में बात कर ली थी। और उसे एयर एंबुलेंस से महज लिफ्ट कराकर शिफ्ट करना था। लेकिन न तो सूबे की और न ही केंद्र की सरकार ने इसमें कोई रुचि दिखायी।

किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि आरोपी विधायक के सिर पर सत्तारूढ़ पार्टी के बने हाथ ने पीड़िता को इन इस्थितियों में पहुंचाया है। क्योंकि विधायक को पता था कि पार्टी सत्ता में है लिहाजा अपनी मनचाही चीजों को हासिल किया जा सकता है। और इस दौरान जांच से लेकर पुलिस तक और सुरक्षा से लेकर न्यायपालिका तक सब उसे अपनी मुट्ठी में दिख रहे थे। नहीं तो कोई यह बताएगा कि पिछले तकरीबन डेढ़ सालों की जांच में सीबीआई ने क्या किया? इस दौरान पीड़िता के चाचा को जेल जरूर भेज दिया गया। और उसके परिजनों को धमकियां मिलती रहीं। और जो कुछ बचा खुचा था उसकी कमी सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मियों ने उनकी खुफियागिरी के जरिये पूरी कर दी।

इतनी सारी परेशानियों के बावजूद भी पीड़िता और उसके परिजन पीछे नहीं हट रहे थे। शायद यही बात विधायक और उसके गुर्गों को नागवार गुजरी और उसका नतीजा सामने है।

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