P and H highcourt

नियमों और कानूनों को ताक पर रखकर हो रहा है पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का संचालन

क्या न्यायपालिका के कतिपय न्यायाधीश स्वेच्छाचारी हो गये हैं? उन पर क्या न्यायिक अनुशासन नहीं लागू होता? इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश एस एन शुक्ला एक मामले में स्वेच्छाचारी आदेश पारित करने के कारण उच्चतम न्यायालय के राडार पर हैं और उनके खिलाफ एफ़आईआर लिखने का आदेश चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सीबीआई को दे रखा है। पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट का नया मामला न्याय की निष्पक्षता पर ज्वलंत सवाल उठाता है। यह मामला बताता है कि जब एक पूर्व न्यायाधीश को न्याय नहीं मिल सकता तो आम आदमी के साथ न्यायपालिका में कैसा व्यवहार होता है इसका सिर्फ अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है।
यहां शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल और विधायक बिक्रमजीत सिंह मजीठिया के खिलाफ जस्टिस रंजीत सिंह आयोग पर अपमानजनक टिप्पणियां करने की शिकायत सुनवाई के लिए विचाराधीन है।

गुरुवार को इस मामले की  सुनवाई होनी थी । रिटायर्ड जस्टिस रंजीत सिंह के वकील के विरोध के बावजूद केस को दोपहर दो बजे आउट ऑफ टर्न सुनवाई के लिए लिया गया और दो घंटे की सुनवाई के बाद केस को सोमवार के लिए के लिए रखा गया है। रिटायर्ड जस्टिस रंजीत सिंह ने अपने केस में कार्यरत जज की सुनवाई के तरीके पर सवाल उठाते हुए इस संबंध में कार्यवाहक चीफ जस्टिस को एसएमएस भेज कर शिकायत किया है।

गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय  ने केस की सुनवाई कर रहे जज का तबादला करने का आदेश दे रखा है। ऐसे में केस की सुनवाई जरूरत से ज्यादा जल्दबाजी में की जा रही है। इससे न्याय मिलने में बाधा पहुंच सकती है। इस मामले में हाईकोर्ट का रिटायर्ड जज संस्थान की शान को बचाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है लिहाजा कार्यवाहक चीफ जस्टिस जरूरत के मुताबिक कार्रवाई करें।

हाईकोर्ट ने इससे पहले इस मामले में दोनों की जमानत मंजूर करते हुए कहा था कि दोनों सीनियर राजनेता हैं और उन्हें लंबा सफर तय करना है। ऐसे में इस तरह की परिस्थितियों को नजरअंदाज किया जा सकता था। इसके बाद दोनों नेताओं की तरफ से पेश हुए वकीलों ने इस शिकायत पर सुनवाई के अधिकार पर सवाल उठाए। कहा गया कि शिकायत सुनवाई के योग्य नहीं है।
 दरअसल पंजाब सरकार ने गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाओं और बेहबल कलां गोलीकांड की जांच के लिए जस्टिस रंजीत सिंह आयोग का गठन किया था। जस्टिस रंजीत सिंह की तरफ से कोर्ट में क्रिमिनल कंप्लेंट दायर कर कहा गया कि सुखबीर बादल और बिक्रमजीत मजीठिया ने उन पर व्यक्तिगत तौर पर टिप्पणियां कीं और उनके जांच आयोग पर उंगली उठाई हैं।

जस्टिस रंजीत सिंह को पंजाब की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 2017 में उस एक सदस्यीय आयोग में नियुक्त किया था, जिसे धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी और उसके बाद हुई पुलिस गोलीबारी की घटनाओं की जांच की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। साथ ही आयोग को 2015 में शिरोमणि अकाली दल-भाजपा शासनकाल के दौरान हुई इस तरह की अन्य घटनाओं की जांच की भी जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

जस्टिस रंजीत सिंह ने इस साल फरवरी में अपनी शिकायत में कहा था कि सुखबीर और मजीठिया, दोनों ने उनका और समिति का निरादर करने के लिए उनके खिलाफ अपमानजनक बयान दिए। सुखबीर बादल और बिक्रमजीत मजीठिया ने उन पर व्यक्तिगत तौर पर टिप्पणियां की और उनके जांच आयोग पर अंगुली उठाई।

कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट की धारा 10ए के तहत कमीशन अथवा इसके किसी सदस्य के खिलाफ अपमानजनक बयान देने पर शिकायत दायर की जा सकती है। इसमें छह माह का साधारण कारावास और जुर्माना अथवा दोनों की सजा का प्रावधान है। शिकायत में कहा गया कि सुखबीर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस और दूसरी जगहों पर भी एक से ज्यादा बार आयोग के खिलाफ बयान दिए। जस्टिस रंजीत सिंह आयोग अप्रैल 2017 में पंजाब में कांग्रेस सरकार के सत्ता में आते ही गठित किया गया था।

(लेखक जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

More From Author

conf ap front

सोनभद्र में आयोजित मजदूर-किसान मंच के सम्मेलन में उठी भूमि आयोग के गठन की मांग

howdy modi

दो घटनाओं से खुली ‘हाउडी यूएस यात्रा’ की पोल

Leave a Reply