ईवाई इंडिया, यनि अर्न्स्ट एंड यंग कम्पनी-जी हां, जो विश्व की चार बड़ी एकाउंटिंग कम्पनियों में तीसरे नम्बर पर है- की भारतीय शाखा का नाम आज सुर्खियों में है। कारण- एक होनहार 26-वर्षीय युवती, एन्ना सेबैस्टियन ने जुलाई 2024 में, कम्पनी से जुड़ने के ठीक 4 महीने बाद कम्पनी के लिये शहादत दे दी। जी हां, शहादत दे दी, क्योंकि उसे लगता था कि अपनी मेहनत और लगन से वह कम्पनी की सालों से बनी बुरी छवि को पाक साफ बना देगी; कम्पनी के ऊपर लगे सैकड़ों दाग धो डालेगी। यह नये कर्मचारियों में एक अच्छी भावना कही जायेगी। एन्ना ने सचमुच कम्पनी को अपना लिया था।
एन्ना की मां ने कम्पनी के सीईओ राजीव मेमानी को जो पत्र लिखा है, उसका एक-एक लफ्ज़ इस बात का गवाह है कि एन्ना कम्पनी के लिये सब कुछ त्याग चुकी थी- अपनी रात की नींद, अपने दिन का चैन, अपने स्वास्थ्य का खयाल और ठीक से भोजन खाना तक। शायद कोई भी अपने माता-पिता तक के लिये इतनी कुर्बानी नहीं देता जितना उसने कम्पनी के नाम के लिये दिया। खैर, कहानी यहीं खत्म नहीं होती। एन्ना के दुनिया से जाने पर कम्पनी का मालिक राजीव तो क्या, साथ काम करने वाले सहकर्मी भी, उसको अंतिम विदाई देने नहीं जाते। इस बात से एन्ना की मां अनिता ऑगस्टीन का दिल दुख से और भी भर गया है।
कॉरपोरेट कल्चर- चाशनी में लिपटा ज़हर
कम्पनी में इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी कर्मचारियों के बीच केवल एक गुप्त आंतरिक ई-मेल साझा किया जाता है, जिसमें एन्ना की ‘दुखद’ मृत्यु की खबर बाकी कर्मचारियों को दी जाती है, और उसकी मां की चिट्ठी का ज़िक्र होता है। राजीव मेमानी, चेयरमैन कहते हैं कि उन्हें खेद है कि उन्होंने एन्ना का “फ्यूनरल मिस कर दिया।” आगे वह लिखते हैं, “यह हमारे कल्चर के एकदम विपरीत है, ऐसा न पहले कभी हुआ है न आगे होगा…।मैं यह पुष्ट करना चाहता हूं कि हमारे लोगों की भलाई मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता है, और मैं व्यक्तिगत रूप से इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रयास करूँगा।
मैं व्यक्तिगत रूप से एक सामंजस्यपूर्ण कार्यस्थल को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हूँ और इस उद्देश्य को प्राप्त करने तक आराम नहीं करूँगा।” कारपोरेट के चिकने-चुपड़े खोखले शब्द! पर यह पत्र किसी तरह से लीक हो जाता है। यही नियम है- ज़्यादा छिपाने से ही बातें सार्वजनिक हो जाती हैं; कहीं से कड़ी टूट ही जाती है। शायद काफी विलम्ब से अनिता मैनेजर को एक कड़क, क्षोभ भरा खत लिखीं, जिसमें वह एन्ना की मौत के लिये कम्पनी के मालिक और ईवाई के भीतर सालों से पनप रही ज़हरीली संस्कृति को पूरी तरह ज़िम्मेदार ठहराती हैं। पता चला है कि एन्ना के साथ काम करने वाले मज़ाक-मज़ाक में उससे कहते भी थे कि इस मैनेजर से बच के रहना होगा; वह उत्पीड़न करने में काफी माहिर है।
एन्ना की त्रासद यात्रा
केरल के कोच्चि में पली-बढ़ी एन्ना का सपना था चार्टर्ड ऐकाउंटेंट बनने का, और वह भी अपनी मेहनत के बल पर। उसकी मां बताती हैं कि एन्ना पढ़ने में हमेशा अव्वल रहती और मेहनत तो उसके चरित्र को ही परिभाषित करता था। नवंबर 2023 में चार्टर्ड ऐकाउंटेंट बनी एन्ना ने ईवाई के पुणे आफिस को मार्च में ज्वाइन किया। वह फर्म में एक्जीक्यूटिव के पद पर काम कर रही थी और नया अनुभव चाहती थी। अनिता के अनुसार उनकी बेटी काम से आधी रात के बाद, 1-2 बजे लौटकर पीजी आती और आते ही ढह जाती, जैसे कि उसमें जान ही न हो। सुबह होते ही फिर एन्ना के पास दर्ज़नों मेसेज आ जाते कि ढेर सारी रिपोर्टें तैयार करनी है। अनिता सही ही कहती हैं कि यह घटना सबके लिये “एक वेक-अप काल” है।
क्या हुआ था एन्ना को? क्या उसे कोई पुराना मर्ज़ था?
एन्ना कोई पुरानी बीमारी के चलते हार्ट अटैक की शिकार नहीं बनी, जैसा कि कम्पनी का दावा है। जब उसके माता-पिता पुणे गये थे, उसने बताया था कि उसे सीने में जकड़न महसूस होती रहती थी। वे उसे डॉक्टर के पास ले गये तो उन्होंने बताया कि वह बहुत तनाव में थी और खाना भी काफी कम और असमय खा रही थी। उसे आराम की सख्त ज़रूरत थी। एन्ना ने एचआर से बात की थी। उसके माता-पिता ने भी कम्पनी मालिक और एचआर से बात की थी, पर उनकी बातों को तवज्जो नहीं दिया गया। एन्ना की दोस्त ऐन बताती है कि एन्ना रोज़ रोती थी और नौकरी छोड़ना चाहती थी, पर वह एक प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी। उसके बाद 15 दिन कि छुट्टी लेकर आगे की योजना बनाने वाली थी। “शी वाज़ ए फाइटर!”
गलत जीवनशैली से स्ट्रोक का खतरा
जर्नल आफ क्लिनिकल मेडिसिन के एक अध्ययन में बताया गया है कि भारत में 50 से कम उम्र के युवक-युवतियों में स्ट्रोक के मामले दोगुने हो गये हैं। और इसका प्रमुख कारण है गलत जीवनशैली, जिसकी वजह से हाइपरटेंशन, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, रीढ़ में दर्द आदि बीमारियां हो जाती हैं। कम उम्र में तनाव, सोने में दिक्कत, चिंता और घबराहट होने लगे, तो आप समझ सकते हैं कि इसके पीछे गलत जीवनशैली का बहुत बड़ा हाथ है, जिसका प्रोफेशनल ज़िंदगी में कोई समाधान नहीं दिखाई पड़ता।
मसलन, एक चार्टर्ड ऐकाउंटेंट, नासिरा काज़ी, सोशल मीडिया पर मेमानी से सवाल करती हैं- आप सुझा रहे हैं कि हम मानसिक दिक्कतों और ईवाई में हो रहे उत्पीड़न के बारे में “एथिक्स हॉटलाइन ” के माध्यम से शिकायत करें? मैंने और अन्य साथियों ने महीनों पहले कई-कई बार ऐसा किया है। हमने कम्पनी में भेदभाव, परेशान करने, धमकाने, उत्पीड़न और अन्य मानसिक स्वास्थ्य दुर्व्यवहार करने की शिकायत की। हमने देखा कि इस हॉट लाइन का इस्तेमाल उन लोगों को चिन्हित करने के लिये किया जाता है जो शिकायत करते हैं। फिर उन्हें कठोरतम सज़ा दी जाती है।” ऐन बताती हैं कि राजीव ने कहा था कि उसके पास एक क्वार्टर से ज़्यादा कोई टिकता ही नहीं, इसलिये उसे ही इस चक्र को तोड़ना होगा। टॉक्सिक वर्क कल्चर को सामान्य बना दिया गया था, नॉर्मलाइज़ कर दिया गया था। शिकार बनी एन्ना!
और भी एन्ना हैं
एक 27 साल की युवती, तनिका (नाम बदला गया है) कहती हैं कि उन्होंने इंफोसिस के एक पार्टनर कंसर्न के साथ 2 साल काम किया तो समझ में आ गया कि 25 लोगों का काम (जिसका पैसा कम्पनी को मिलता है) को 6 लोगों से करवाया जाता है ताकि मैनेजर और असिस्टेंट मैनेजर को मोटी तनख्वाह मिल सके और बाकी लोगों को 25,000-30,000 रुपये प्रति माह में निपटा दिया जाये।
बेंगलुरु में रहने-खाने के खर्चे ही इतने हो जाते हैं कि घर भेजने के लिये मात्र 3-4 हज़ार रुपये बचते। तनिका 2 बजे रात काम खत्म करने के बाद ठीक से सो नहीं पाती और सुबह 7.30 से फोन आने लगते कि 8 बजे ऑनलाइन आना है। “दिन भर में 3-4 मीटिंग होतीं और बीच में तरह-तरह के काम पटके जाते। हम सबको याद है कि पहले भी नारायण मूर्ति के एक बयान पर, कि “सप्ताह में 70 घंटे काम करना चाहिये”, पर खासा बवाल हुआ था।
तनिका ने बताया कि इसका एक और कारण है मैनेजर्स को तकनीकी काम न आना। हम आप विज्ञापन देखकर खुश होते हैं कि “नो एक्सपीरियेंस रिक्वायर्ड”, पर जब ये बिना साफ़्टवेयर में अनुभव लिये एमबीए की डिग्री लेकर ऊपर के पदों पर बैठ जाते हैं, वे प्रोजेक्ट तो विदेशी कम्पनियों से हथिया लेते हैं, पर बाद में पैनिक मोड में आ जाते हैं और हमारा माइक्रो मैनेजमेंट करने लगते हैं। तब सारा स्ट्रेस कर्मचारियों पर आ जाता है।” ईवाई में तो और भी बुरा था। मैनेजर खुद क्रिकेट मैच देखने में मशगूल रहता, और रात को अचानक ढेर सारा काम दे देता।
राहुल गांधी की पहल सराहनीय
इस बीच नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के एक दूत एन्ना के परिवार से मिलने कोच्चि गये। आल इंडिया प्रोफेशनल्स कांग्रेस के अध्यक्ष प्रवीन चक्रवर्ती नाम के इस दूत के माध्यम से उन्होंने विडियो कान्फ्रेंसिंग के ज़रिये अनिता से बात की और उनकी बहादुरी को सलाम किया। उन्होंने वायदा किया कि इस मसले को वे संसद में उठाएंगे। आशा है उनकी इस पहल से चर्चा शुरू होगी। उन्होंने प्रवीन से कहा कि प्रोफेशनल्स कांग्रेस इस मुद्दे पर एक चेतना अभियान चलाये।
प्रवीन ने बताया कि जल्द ही उनका संगठन एक हेल्पलाइन शुरू करेगा जिसमें पेशेवर कर्मी “ टॉक्सिक वर्क कल्चर और उससे पैदा हो रहे तनाव के बारे में अपनी शिकायत दर्ज़ कर सकेंगे। इसके बाद ही मसौदा दिशानिर्देश तैयार किये जायेंगे, ताकि कारपोरेट सेक्टर में कार्य स्थितियों को और माहौल को भी बेहतर बनाने की ओर पहला कदम उठाया जा सके। अगर ऐसा नहीं किया जाता तो कम्पनियों में ऐट्रिशन रेट, यानि छोड़ने की दर बहुत अधिक रहेगी और एन्ना जैसे कितने ही होनहार लोगों को हम खोते रहेंगे।
सवाल ही सवाल हैं
पर सवाल तो यह है कि भारत में कितनों के डिप्रेशन में जाने के बाद भी लोग गुलाम बनने के लिये क्यों तैयार हैं? क्यों वे यूनियन बनाना नहीं चाहते? क्या पढ़े लिखों के लिये रोज़गार का इतना अभाव है कि वे दब गये हैं? क्या सरकारी नौकरियों में घूस और नेपोटिज़्म भर गया है, इसलिये विकल्पहीनता की स्थिति है? तमिलनाडु में परिमला पंजु से बात हुई तो उन्होंने बताया कि वह खुद एक यूनियन, फेडरेशन ऑफ आईटी एम्प्लाईज़ चलाती हैं, पर यूनियन ने केवल बर्खास्तगी जैसे कुछ व्यक्तिगत मामले हल किये हैं। पुणे जैसे कम्प्लेंट उन्होंने अब तक नहीं उठाए। आखिर क्यों ये सवाल नहीं उठते? क्या नई पीढ़ी और उनके माता-पिता को भी अच्छे ‘पे पैकेज’ की लालच है? यह इसलिये कि वे उच्च मध्यम वर्ग की श्रेणी में शामिल होना चाहते हैं? वे पूंजीवाद के हत्थे चढ़ना मंज़ूर कर रहे हैं, जबकि इसी पूंजी की चमक-दमक के नीचे कितनी एन्ना दफनाई जा चुकी हैं!
प्रोफेशनल कोर्सेज़ की कोचिंग के लिये होड़
अगर आप और आगे नज़र दौड़ाएं तो आप देखेंगे कि 10वीं कक्षा पास करने के बाद से ही दौड़ शुरू हो जाती है-प्रोफेशनल बनने की कोचिंग में लड़के-लड़कियां दाखिल हो जाते हैं। यहां लाखों रुपये फूंकने के बाद भी बच्चे आत्महत्या करते हैं। आईसी3 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में छात्र आत्महत्या दर 4% सालाना के हिसाब से बढ़ रही है। पिछले 10 सालों में 10 लाख छात्रों ने आत्महत्या की है और लेटेस्ट आंकड़ा एक साल में 13, 044 आत्महत्याओं का है। इसमें सामाजिक दबाव (पीयर प्रेशर) का बड़ा योगदान है।
चौतरफा पहल की ज़रूरत है
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने एन्ना की मौत के मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया है। उसने घटना पर केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय से रिपोर्ट मांगी है। इसने कानून और विनियमन की समीक्षा के लिए ‘व्यापार और मानवाधिकार पर एक कोर समूह’ का गठन भी किया है। अपने बयान में उसने कहा है कि, “यदि मीडिया रेपोर्ट्स सही हैं तो वे काम पर युवा नागरिकों के समक्ष चुनौतियों के बारे में गंभीर मुद्दे उठाते हैं, मानसिक तनाव, चिंता और नींद की कमी से पीड़ित, उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। अव्यवहारिक लक्ष्यों और समय सीमाओं का पीछा करते हुए “उनके मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन हुआ है।” पर एनएचआरसी केवल सुझाव दे सकती है; इससे अधिक कुछ नहीं।
इस मामले में सभी राजनीतिक दलों और उनके कर्मचारी संगठनों को जमकर आवाज़ उठानी चहिए। कारपोरेट दुनिया के चकाचौंध के पीछे की दर्दनाक कहानियों का पर्दाफाश होना चाहिये, और ‘वर्क-लाइफ बैलेंस’ को सही किया जाना चाहिये। आठ घंटे काम, आठ घंटे अपने लिये, और आठ घंटे आराम के साथ सप्ताह के दो दिन की छुट्टी। इसके अलावा महिलाओं के लिये महीने में एक दिन वैतनिक पीरियड लीव। काम के मामले में ठोस नियम व मानदंड तय किये जाने चाहिये, और उन्हें लागू करने के लिये हर शहर में स्वतंत्र निकाय की स्थापना होनी चाहिये, जिसके पास न्यायिक शक्ति हो। तभी उत्पीड़न, धमकी और क्षमता से अधिक काम की संस्कृति पर रोक लग सकेगी।
(कुमुदिनी पति लेखिका और महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं।)
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