Saturday, April 27, 2024

मुस्लिम, ईसाई धर्म के बाद अब आरएसएस के निशाने पर बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म के देश-विदेश में प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मौर्य वंश के राजा सम्राट अशोक के बहाने एक बार फिर बौद्ध धर्म आरएसएस के खूंखार हिंदुत्ववादी निशाने पर है।

आरएसएस के एजेंडे का साहित्यिक रुपांतरण करने वाले दयाशंकर सिन्हा को 31 दिसंबर, 2021 में उनके नाटक सम्राट अशोक के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिये चुना गया है जबकि इससे पहले 8 नवंबर, 2021 को उन्हें राष्ट्रपति के हाथों पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया है। 

दया शंकर सिन्हा के नाटक को मिले साहित्य अकादमी पुरस्कार और खुद दया शंकर सिन्हा को केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से नवाजने के बाद बिहार की राजनीति गर्मा गई है। और बिहार की सत्ता में भागीदार दो घटक दलों भाजपा और जदयू में नूराकुश्ती शुरू हो गई है।

मनुवादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिये दया शंकर सिन्हा को साहित्य अकादमी पुरस्कार

राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुबोध मेहता ने कहा है कि सम्राट अशोक, वर्ण व्यवस्था विरोधी भगवान बुद्ध व प्राचीन भारत के बहुजन विरासत को मिटाने के संघी षड्यंत्र में अपने मनुवादी नाटक से साझीदार बनने के लिए ही दया प्रकाश सिन्हा के झूठ आधारित नाटक को केंद्र सरकार ने साहित्य अकादमी से नवाज दिया! दया प्रकाश सिन्हा को एक मक्कारी से भरे नाटक के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से जबरदस्ती सम्मानित कर दिया गया जिसमें उन्होंने आरएसएस की शह पर वास्तविकता से दूर संघी प्रोपगेंडा के अनुसार सम्राट अशोक का राक्षसी चित्रण किया।

राजद प्रवक्ता ने आगे कहा कि सम्राट अशोक ने सदैव वर्ण व्यवस्था को धता बताया और बौद्ध धर्म के प्रसार और वर्ण व्यवस्था को नकारते हुए समता पोषक समाज के स्थापना पर जोर दिया। बहुजन सम्राट अशोक की यही बात वर्ण व्यवस्था और ऊँच नीच के पैरोकार RSS और BJP को अखरती है और इसीलिए मिथ्या आधारित नाटक को साहित्य अकादमी दे ये भाजपाई इतिहास को तोड़ मरोड़ कर परोसना चाहते हैं!

सुबोध मेहता ने आगे कहा कि “इसीलिए जब तक झूठ के पुलिंदे, दया प्रकाश सिन्हा के उस निंदनीय नाटक, जिससे संघियों ने पूरे कुशवाहा व बहुजन समाज की विरासत पर कुठाराघात किया है, से भारत सरकार साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस नहीं लेती है तब तक कुशवाहा समाज और शांत नहीं बैठेगा।

RSS का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद संविधान और अशोक के सिद्धांत के विरुद्ध

राजद प्रवक्ता ने सत्ताधारी जदयू पर हमला बोलते हुये कहा कि “सत्ता सुख में डूबी JDU को ना तो सम्राट अशोक के विरासत की चिंता है, न बहुजनों के गौरवमयी इतिहास का ज्ञान है और ना ही मनुवादी RSS व BJP के कुटिल दुष्प्रचार के पीछे SC, ST, OBC व अल्पसंख्यक विरोधी मंसूबों की समझ है। JDU को बस किसी भी तरह BJP संग सत्तासुख भोग घर भरने की चिंता है।

उन्होंने बिहार भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल के बयान का प्रतिवाद करते हुये कहा कि संजय जायसवाल जिस RSS-BJP द्वारा परिभाषित ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ की बात कर रहे हैं वह संविधान की अवधारणा और सम्राट अशोक के सिद्धांत के विरुद्ध है, देश में SC, ST, OBC व माइनॉरिटी के विरुद्ध है। और इसीलिए RSS-BJP बहुजन सम्राट अशोक की विरासत को मिटाकर वर्ण व्यवस्था थोपना चाहते हैं।

उन्होंने आगे पूछा कि “JDU-BJP की आपसी सहमति से चल रही ‘सलीकेदार नूराकुश्ती’ में उपेंद्र कुशवाहा जान बूझकर संजय जायसवाल द्वारा उल्लेखित “सांस्कृतिक राष्ट्रवाद” पर चुप्पी क्यों साध लेते हैं? यह दबी जुबान सम्राट अशोक की विरासत से मनुवादी संघी छेड़छाड़ देश के दलित, पिछड़े, आदिवासी बर्दाश्त नहीं करेंगे।

अशोक तो बहाना है, शराब की अवैध कमाई में हिस्सेदारी के लिये हो रही नूराकुश्ती

सम्राट अशोक के मुद्दे पर एक ही गठबंधन का हिस्सा जदयू और भाजपा के बीच पहले से ही विवाद छिड़ा हुआ है। इसी बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा में जहरीली शराब से 13 लोगों की मौत के बाद ये विवाद और बढ़ गया है।

सत्ता में सहयोगी दल के बीच जारी विवाद पर विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल ने तंज कसते हुये कहा है कि “बीजेपी-जेडीयू में अवैध शराब से हो रही कमाई को लेकर ठन गई है। असली विवाद यही है। बाकी सब बहानेबाजी है”।

वहीं, एक अन्य ट्वीट में राजद ने कहा है कि “बिहार एनडीए केकड़ों के झुंड की तरह है, जो लगातार एक दूसरे से गुत्थमगुत्था करते रहेंगे, लड़ते रहेंगे, एक दूसरे की टांग खींचते रहेंगे, पर आपसी स्वार्थ के लिए एक ही टोकरे में पड़े रहेंगे। ना बिहार हित में किसी विषय पर आगे बढ़ेंगे और ना ही बिहार को आगे बढ़ने देंगे”।

राजद ने जदयू-भाजपा के नूराकुश्ती पर कहा है कि BJP व JDU मिलबाँटकर सत्ता सुख भोग रहे हैं और त्रस्त जनता को दिग्भ्रमित करने के लिए सम्राट अशोक से जुड़े भारतीय विरासत के प्रश्नों पर आपसी सहमति से तू-तू-मैं-मैं का दिखावटी खेल कर रहे हैं। क्यों नहीं बिहार सरकार इस विषय पर आधिकारिक विरोध दर्ज कर अवार्ड वापसी, माफी की माँग कर रही?

JDU वाले BJP से आग्रह क्या कर रहे हैं? अगर उनमें सिद्धांत व मर्यादा है तो बहुजन शिरोमणि सम्राट अशोक पर अनुचित टिप्पणी के लिए सरकार से बाहर होकर दिखाएँ, अवार्ड वापसी व FIR करवाएं।

पद्मश्री पुरस्कार वापस लेने की मांग पर अड़ी जदयू

नीतीश कुमार की पार्टी ने बीजेपी से दया प्रकाश को निकालने और पद्मश्री वापस लेने की मांग करके कहा है कि “सरकार सकारात्मक सोच के साथ आगे आए और तत्काल पुरस्कार वापस लेने का काम करे, ताकि भविष्य में कोई भी साहित्य के नाम पर देश की अस्मिता से खिलवाड़ करने की हिमाकत न कर सके”।

जदयू ने कहा है कि सम्राट अशोक के योगदान को हमारे राष्ट्र ने कई अवसरों पर स्वीकार किया है। आज हमारे यहां राष्ट्रीय झंडा में अशोक चक्र को अहम स्थान मिला हुआ है तो अशोक स्तंभ की अपनी प्रतिष्ठा है। ऐसे में दया प्रकाश सिन्हा का सम्राट अशोक पर किसी भी तरह के आपत्तिजनक लेखन को साहित्य अकादमी पुरस्कार देकर मान्यता देना शर्मनाक है। इस तरह से सिर्फ उनकी सफाई से संतुष्ट होने का सवाल ही नहीं है। उनका लेखन देश की अस्मिता पर हमला है और बगैर साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म श्री पुरस्कार के वापस लिए हम किसी भी कार्रवाई को ऑयवाश ही मानते हैं।

जदयू ने अपने बयान में आगे कहा है कि अगर सरकार सकरात्मक सोच के साथ आगे आए और तत्काल प्रभाव से साहित्य अकादमी और पदम् श्री पुरस्कार वापस लेने का काम करे, ताकि भविष्य में कोई भी साहित्य के नाम पर देश की अस्मिता और प्रतिष्ठा से खिलवाड़ करने की हिमाकत न कर सके। जब तक इस दिशा में भारत सरकार की ओर से सकारात्मक निर्णय नहीं लिया जाएगा, तब तक हमारा विरोध जारी रहेगा।

जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने बयान देकर कहा है कि “प्रियदर्शी सम्राट अशोक महान के बारे में झूठ लिखकर और फिर बोलकर साहित्य अकादमी पुरस्कार पा लेना देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है, शर्मनाक है। सभी पुरस्कार अविलंब वापस लिया जाए। हमारा विरोध तब तक जारी रहेगा जब तक दया प्रकाश सिन्हा का पुरस्कार वापस नहीं हो जाता, चाहे राष्ट्रपति जी करें या प्रधानमंत्री जी”।

पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह (राजीव रंजन) ने कहा है कि “प्रियदर्शी सम्राट अशोक मौर्य बृहत-अखंड भारत के निर्माता थे। उनके बारे में अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल असहनीय है, अक्षम्य है। ऐसा व्यक्ति विकृत विचारधारा से प्रेरित है। महामहिम राष्ट्रपति जी व माननीय मोदी जी से ऐसे व्यक्ति का पद्मश्री वापस लेने की मांग है”।

FIR  व गिरफ्तारी की मांग करके भाजपा ने गेंद जदयू के पाले में डाली

बिहार भाजपा अध्यक्ष ने RSS –BJP लेखक दया शंकर सिन्हा के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज़ कराते हुये, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सम्राट अशोक पर विवादित टिप्पणी करने वाले साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता दया प्रकाश सिन्हा को गिरफ्तार करने का आदेश देने की मांग करके सियासी गेंद जदयू के पाले में डाल दी है।

इस मामले में संजय जायसवाल ने पिछले सप्ताह दया शंकर सिन्हा के ख़िलाफ़ बिहार का गर्व माने जाने वाले सम्राट अशोक के ख़िलाफ़ गलत जानकारी फैलाने और उनकी छवि को धूमिल करने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करवाई थी।

पटना के कोतवाली थाना में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने प्राथमिकी दर्ज़ कराई है। थाने को दिए गए आवेदन में उन्होंने कहा है कि लेखक द्वारा बीपेजी में होने की अफवाह फैलाई जा रही है। साथ ही उनके द्वारा लिखे गए लेख से समाज में नफ़रत फैल रही है।

जायसवाल एफआईआर में आगे कहा है कि “सिन्हा ने निजी चैनल को दिए साक्षात्कार के दौरान बिहार के गौरव सम्राट अशोक के संबंध में ग़लत बातें कही हैं। उनका कहना था कि अशोक एक बदसूरत इंसान थे। सत्ता पाने के लिए उन्होंने मुग़ल शासक औरंगजेब की ही तरह अपने परिजनों को कष्ट दिया था। वहीं, अपनी पत्नी की जलाकर हत्या कर दी थी। उन्होंने सम्राट अशोक के चरित्र पर भी सवाल उठाया है। ये बातें कहते हुए प्रदेश अध्यक्ष ने अपील की है कि साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजे जा चुके लेखक के ख़िलाफ़ आईपीसी की सुसंगत धारा के तहत प्राथमिकी दर्ज़ कर कार्रवाई की जाए।

इतना ही नहीं संजय जायसवाल ने सम्राट अशोक की औरंगजेब से की गई तुलना को नकारात्मक प्रचार से मेवा प्राप्त करने वाला पेड़ बताया है।

लेकिन किंतु परंतु

बिहार भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने अपने पेसबुक वॉल पर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का जहरीला शिकारी जाल बुनते हुये कहा है कि “हम अपनी संस्कृति और भारतीय राजाओं के स्वर्णिम इतिहास के साथ कोई छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं कर सकते। लेकिन हम यह भी चाहते हैं कि बख्तियार खिलजी से लेकर औरंगजेब तक के अत्याचारों की सही गाथा हमारी आने वाली पीढ़ियों को बताई जाए। 74 साल के इतिहास में कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि जब किसी पद्मश्री पुरस्कार की वापसी हुई हो। उन्होंने आगे लिखा कि पहलवान सुशील कुमार पर हत्या के आरोप सिद्ध हो चुके हैं उसके बावजूद राष्ट्रपति ने उनका पदक वापस नहीं लिया क्योंकि पुरस्कार वापसी के मसले पर हमारे यहां कोई निश्चित मापदंड नहीं है।

भाजपा बिहार अध्यक्ष ने आगे कहा – लेकिन हरिद्वार में हुई धर्म संसद का मामला हो या फिर सैकड़ों नफ़रती भाषणों का, सरकार न केवल इन पर संज्ञान लेती है बल्कि बड़े से बड़े व्यक्ति को भी जेल में डालने से नहीं हिचकती है। इसलिए बिहार सरकार मेरी एफआईआर के आधार पर दया प्रकाश सिन्हा को गिरफ्तार करे और फास्टट्रैक कोर्ट से तुरंत सजा दिलाए। इसके बाद सरकार का एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति से मिलकर बताए कि एक सजायाफ्ता मुजरिम का पद्मश्री पुरस्कार वापस लिया जाए।

कुर्सी बचाने की नसीहत

जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह से लेकर अन्य नेता तक ने लगातार ट्विटर पर दया प्रकाश के पद्मश्री वापस लेने का मुहिम चला रखी है और ट्विटर पर अपनी इस मांग को लेकर प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक को टैग कर रहे हैं जो बीजेपी को नागवार गुज़र रहा है।

संजय जायसवाल ने फेसबुक पर एक लंबा पोस्ट लिखकर गठबंधन सहयोगी जेडीयू (JDU) के दो बड़े नेताओं को गठबंधन धर्म निभाने, उसे मजबूत रखने और सभी मर्यादाओं का ख्याल रखने की नसीहत देते हुये कहा है कि यह एकतरफा अब नहीं चलेगा।

संजय जायसवाल ने जनता दल यूनाइटेड को चेताया है कि एनडीए गठबंधन को मजबूत रखने के लिए मर्यादा का पालन रखना चाहिए। जनता दल यूनाइटेड को गठबंधन धर्म का पालन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ट्विटर- ट्विटर खेलना बंद करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर प्रधानमंत्री के साथ जेडीयू के नेता ट्विटर- ट्विटर खेलेंगे तो बिहार के 76 लाख बीजेपी कार्यकर्ता इसका जवाब देना जानते हैं। जायसवाल ने सीएम नीतीश कुमार की कुर्सी तक का जिक्र कर दिया।

बिहार भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल ने इशारों-इशारों में जनता दल यूनाइटेड को चेताते हुये कहा है कि गठबंधन में अगर कोई समस्या होती है तो गठबंधन के सभी घटक दलों के नेताओं को मिलकर उसका समाधान निकालना चाहिए वरना ऐसा ना हो कि हालात बिगड़ जाएं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कुर्सी चली जाए। हम हरगिज नहीं चाहते हैं कि फिर से मुख्यमंत्री आवास 2005 से पहले की तरह हत्या कराने और अपहरण की राशि वसूलने का अड्डा हो जाए।

जायसवाल ने लिखा है,- चलिए माननीय जी को यह समझ आ गया कि एनडीए गठबंधन का निर्णय केंद्र द्वारा है और बिल्कुल मजबूत है इसलिए हम सभी को साथ चलना है। फिर बार-बार महोदय मुझे और केंद्रीय नेतृत्व को टैग कर न जाने क्यों प्रश्न करते हैं। एनडीए गठबंधन को मजबूत रखने के लिए हम सभी को मर्यादाओं का ख्याल रखना चाहिए। यह एकतरफा अब नहीं चलेगा।

दया शंकर सिन्हा का विवादित इंटरव्यू

दरअसल दया प्रकाश सिन्हा पर आरोप है कि उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा था कि जब वे सम्राट अशोक नाटक लिख रहे थे तब उन्होंने रिसर्च किया था। इस दौरान उन्हें आश्चर्य हुआ कि अशोक और मुगल बादशाह औरंगजेब के चरित्र में बहुत समानता है। सिन्हा ने कहा था कि औरंगजेब और अशोक ने शुरुआती जिन्दगी में बहुत पाप किए थे। फिर इसे छिपाने के लिए अतिधार्मिकता का सहारा लिया। उन्होंने सम्राट अशोक को बदसूरत बताया था। इसके साथ ही उन्होंने कहा था कि दोनों ने अपने भाई की हत्या कराई थी और पिता को जेल में डाल दिया था।

कुछ दिन पहले दया प्रकाश सिन्हा ने अपने नाटक पर अख़बार नवभारत टाइम्स को एक इंटरव्यू दिया था। एक प्रश्न- नाटक ‘सम्राट अशोक’ तत्कालीन इतिहास के उजले और स्याह पक्ष को उजागर करता है। प्लीज बताएं स्याह पक्ष क्या है और उजले पक्ष क्या हैं?

इसके जवाब में दया शंकर सिन्हा ने कहा कि- “ हमारे यहां अशोक का बहुत महत्व है, क्योंकि कलिंग युद्ध के बाद वह अहिंसक हो गया था और उसने निर्णय लिया था कि अब वह कभी युद्ध नहीं करेगा। भारत सरकार ने भी अशोक स्तंभ पर बने शेर को अपना शासकीय निशान बनाया है। देश के विभिन्न स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में भी सम्राट अशोक के उजले पक्ष को ही शामिल किया गया है। श्रीलंका के तीन बौद्ध ग्रंथ दीपवंश, महावंश ,अशोकावदान और तिब्बती लेखक तारानाथ के ग्रंथ से यह ज्ञात होता है कि सम्राट अशोक बहुत ही बदसूरत था। उसके चेहरे पर दाग था और वह आरंभिक जीवन में बहुत ही कामुक था। बौद्ध ग्रंथ भी कहते हैं कि अशोक कामाशोक और चंडाशोक था। चंडाशोक यानी कि वह बहुत ही क्रूर था। उसने बौद्ध भिक्षुओं की हत्या करवाई थी। बाद में वह धम्म अशोक बन गया था। बिंदुसार चाहते थे कि बड़े बेटे सुसीम राजा बनें, लेकिन अशोक ने विद्रोह कर दिया और अपने भाई की हत्या कर दी। वह अपने पिता की हत्या का कारण भी बना था। अशोक ने अपने आरंभिक जीवन के पापों को छिपाने के लिए एक पागल की तरह बौद्ध धर्म के प्रचार में धन लुटा दिया जिस कारण उसे राज्य से अपदस्थ कर दिया गया था और एक कारावास में डाल दिया गया था। एक दिन उसके पास एक बौद्ध भिक्षु भिक्षा मांगने गया तो उसने कहा कि मेरे पास कुछ भी नहीं है। मेरे पास तो यही एक फल है, और उसने वही दे दिया”।

स्पष्टीकरण

दया प्रकाश सिन्हा का स्पष्टीकरण अखबारों में आया है, जिसमें सिन्हा ने किताब में सम्राट अशोक से औरंगजेब से तुलना नहीं करने की बात कही है। अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि वो पठन-पाठन और सम्राट अशोक पर नाटक लिखने के दौरान अशोक और औरंगजेब के चरित्र में खासी समानताएं पाते हैं। सिन्हा सम्राट अशोक के विश्व में योगदान पर बुनियादी हमला कर रहे हैं।

सिन्हा इंटरव्यू में कहते हैं कि दोनों ही शासकों ने अपनी शुरुआती जिंदगी में कई पाप किए, फिर उन्हें छिपाने के लिए अतिधार्मिकता का सहारा लिया, ताकि उनके पाप पर किसी का ध्यान न जाए।

उन्होंने सफाई दी है और कहा है कि उन्होंने औरंगजेब और सम्राट अशोक की कोई तुलना नहीं की है। उन्होंने कहा है कि उनकी किताब में औरंगजेब का उल्लेख तक नहीं है। दया प्रकाश सिन्हा ने कहा है कि 2012-13 में सम्राट अशोक नाटक लिखा था जो पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई है। इसमें औरंगजेब का दूर-दूर तक कोई जिक्र ही नहीं है। अशोक और औरंगजेब की कोई तुलना ही नहीं है। अशोक महान थे उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया लेकिन किसी दूसरे को इसे जबरन अपनाने के लिए मजबूर नहीं किया। वह बौद्ध श्रमण और वैदिक ब्राह्मणों को बराबर का सम्मान देते थे। उन्होंने कहा कि औरंगजेब धर्मांध था जबकि अशोक सभी धर्मों को समान भाव से देखने वाले थे।

इसके साथ ही उन्होंने बीजेपी से संबंध पर कहा कि बीजेपी से उनका अब कोई वास्ता नहीं है। बीजेपी से उनके संबंधों को लेकर गलत जानकारी दी गई। वह 12 साल पहले बीजेपी से जुड़े थे। 2010 में उन्होंने बीजेपी से अलग होने का फैसला लिया था। उसके बाद से बीजेपी से उनका संबंध नहीं है।

कौन हैं दया प्रकाश सिन्हा

दया प्रकाश सिन्हा, जिन्हें डीपी सिन्हा के नाम से भी जाना जाता है, वो वर्तमान में भाजपा सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के उपाध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं।

दया प्रकाश सिन्हा का जन्म 2 मई, 1935 का उत्तर प्रदेश के कासगंज में हुआ था। वे अवकाशप्राप्त आईएएस अधिकारी होने के साथ-साथ हिन्दी के प्रतिष्ठित लेखक, नाटककार, नाट्यकर्मी, निर्देशक व आरएसएस के इतिहासकार हैं। दया प्रकाश सिन्हा विभिन्न राज्यों की प्रशासनिक सेवाओं में रहे हैं। साहित्य कला परिषद, दिल्ली प्रशासन के सचिव, भारतीय उच्चायुक्त, फिजी के प्रथम सांस्कृतिक सचिव, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी व ललित कला अकादमी के अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के निदेशक जैसे अनेकानेक उच्च पदों पर रहने के पश्चात सन 1993 में भोपाल स्थित भारत भवन के निदेशक पद से सेवानिवृत्त हुए।

कला और साहित्य में योगदान के लिए दया प्रकाश सिन्हा को संगीत नाटक अकादमी के “अकादमी अवार्ड”, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के “लोहिया सम्मान” और हिन्दी अकादमी, दिल्ली के “साहित्यकार सम्मान” से अलंकृत किया जा चुका है।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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