Thursday, April 25, 2024

कलकत्ता हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस राजेश बिंदल विवादों में, बार काउंसिल ने सीजे से हटाने की मांग की

कलकत्ता हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस राजेश बिंदल से वरिष्ठता क्रम में जूनियर दो अन्य न्यायाधीश जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस पीवी संजय कुमार स्थायी चीफ जस्टिस बना दिए गये जबकि अज्ञात विवादित कारणों से जस्टिस राजेश बिंदल अभी तक कार्यवाहक चीफ जस्टिस ही हैं और उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम द्वारा स्थायी नहीं किये गये। इस बीच, पश्चिम बंगाल में नारदा केस की सुनवाई को लेकर कार्यवाहक चीफ जस्टिस राजेश बिंदल एक बार फिर विवादों में घिर गये हैं। पश्चिम बंगाल के बार काउंसिल ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखकर मांग की है कि कलकता हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल को हटा दिया जाए क्योंकि वे पक्षपाती और अनफेयर हैं। जस्टिस बिंदल पर भाजपा का आदमी होने का आरोप भी लगाया गया है। नारदा केस की सुनवाई में आई विसंगतियों को आधार बनाकर उन्हें हटाने की मांग उठाई गई है।

जस्टिस राजेश बिंदल की नियुक्ति स्थायी न्यायाधीश के रूप में 22 मार्च 2006 को हुई थी जबकि जस्टिस पंकज मित्तल की अपर न्यायाधीश के रूप में 7 जुलाई 2006 को नियुक्ति हुई थी और वे 2 जुलाई 2008 को स्थयी जज बने थे। जस्टिस मित्तल को 14 जनवरी 2021 को जम्मू काश्मीर में चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया है। इसी तरह जस्टिस पीवी संजय कुमार की अपर जज के रूप में 8 अगस्त 2008 को नियुक्ति हुई और इन्हें 20 जून 2010 को स्थायी जज बनाया गया। जस्टिस पीवी संजय कुमार को 14 फरवरी 2021 को मणिपुर हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया है।

विकिपीडिया पर जस्टिस राजेश बिंदल के बारे में दर्ज़ है कि ये हरियाणा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कट्टर (हार्डकोर) समर्थक रहे हैं और हरियाणा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े रहे हैं। इसके बावजूद इनसे दो जूनियर जजों को चीफ जस्टिस बना दिया गया और ये अभी तक कार्यवाहक ही बने हुए हैं।        

पश्चिम बंगाल की बार काउंसिल ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर कोलकाता हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल को तत्काल हटाने की मांग की है। पत्र में लिखा गया है कि कोलकाता हाईकोर्ट देश की सबसे पुरानी अदालत है, ऐसे में इस कोर्ट का ऐतिहासिक महत्व भी है। इस कोर्ट से जुड़कर ऐसा पत्र हमें लिखना पड़ रहा है, यह दुखद है। इस कोर्ट में जजों ने, अधिवक्ताओं ने उच्चस्तरीय समर्पण हमेशा से दिखाया है। किसी भी तरह का गलत प्रयास इस संस्था की छवि को धूमिल कर सकता है।

बार काउंसिल ने नारदा स्कैम केस की सुनवाई में आई विसंगतियों का हवाला देते हुए कहा कि सीबीआई की एक स्पेशल कोर्ट ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के कुछ नेताओं को बिना अपील करने का अवसर दिए हुए, जमानत के अंतरिम आदेश पर रोक लगा दी थी। पत्र में कथित पक्षपातपूर्ण और अनुचित लिस्टिंग और नारदा घोटाले, ममता बनर्जी की चुनाव याचिका और राज्य में दवाओं की बर्बादी पर एक मामले जैसे विभिन्न मामलों की सुनवाई सहित अनुरोध करने के लिए कई आधार निर्धारित किए गए हैं। बार काउंसिल ने कहा कि न्यायमूर्ति बिंदल के आचरण की उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीशों ने निंदा की और न्यायमूर्ति अरिंदम साहा ने इस आशय का एक पत्र भी लिखा।

जब उपरोक्त मामला न्यायमूर्ति बिंदल की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष गया, तो उसने सीबीआई द्वारा हलफनामा दाखिल करने के बार-बार अनुरोध की अनुमति दी, लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कानून मंत्री मलय घटक के सामने अनुरोधों को अस्वीकार कर दिया, हालांकि उनके खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए थे। पत्र में यह भी कहा गया है कि जस्टिस बिंदल की पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ की यात्रा की तस्वीरें हैं जो सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रकाशित है। इसके अलावा, विभिन्न सोशल मीडिया पोस्टों से यह धारणा बनाने की कोशिश की जाती है कि जस्टिस बिंदल भाजपा के आदमी हैं।

पत्र में इस बात का भी जिक्र था कि कैसे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चुनावी याचिका को जस्टिस कौशिक चंदा के समक्ष सूचीबद्ध किया गया।चुनाव याचिकाएं दीवानी मामले हैं जिनकी सुनवाई कलकत्ता उच्च न्यायालय के मूल पक्ष की अध्यक्षता करने वाले एकल न्यायाधीशों द्वारा की जाती है। इसलिए, इसे एकल न्यायाधीश न्यायमूर्ति सब्यसाची भट्टाचार्य के समक्ष दायर किया गया और इसका उल्लेख किया गया। पत्र में आरोप लगाया गया है कि इस बीच, न्यायमूर्ति बिंदल ने न्यायमूर्ति भट्टाचार्य से मामले को छीन लिया और अपने पसंदीदा न्यायाधीश, न्यायमूर्ति कौशिक चंदा को सौंप दिया। बार काउंसिल ने आगे दावा किया कि इसने कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक तूफान खड़ा कर दिया है क्योंकि न्यायमूर्ति चंदा का भाजपा के साथ लंबे समय से जुड़ाव सर्वविदित है।

बार काउंसिल ने अपने पत्र में यह भी कहा है कि जस्टिस बिंदल को जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस के तौर पर भी हटा दिया गया था और जम्मू-कश्मीर बार एसोसिएशन ने उनके व्यवहार के कारण उनकी अदालत का बहिष्कार करने का संकल्प लिया था। बार काउंसिल ने जस्टिस बिंदल के जम्मू कश्मीर में कार्यकाल पर भी प्रश्न उठाया है। साथ ही यह भी कहा कि वहां भी इनकी पोस्टिंग से अधिवक्ता खुश नहीं थे और न्यायिक कार्यों का बहिष्कार किया था। कोलकाता के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनाए जाने के बाद के कार्यकाल पर बार काउंसिल लगातार प्रश्न खड़े कर रही है।पश्चिम बंगाल बार काउंसिल के अध्यक्ष अशोक देब ने चीफ जस्टिस को लिखे गए पत्र में अपने हस्ताक्षर भी किए हैं।

बार काउंसिल ने कहा कि कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद लगातार जस्टिस बिंदल ने ऐसे काम किए हैं, जिसकी वजह से यह चिट्ठी लिखनी पड़ी है। बार काउंसिल ने उन केसों का भी जिक्र किया है, जिनकी सुनवाई जस्टिस बिंदल की पीठ ने की, जिस पर फैसले के बाद काउंसिल ने आपत्ति जताई है।

पत्र में हाल ही में नारदा मामले की सुनवाई और सुनवाई के तरीके पर प्रकाश डाला गया था, जिसमें दावा किया गया था कि न्यायमूर्ति बिंदल भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में पक्षपाती और पक्षपातपूर्ण हैं। पत्र में कहा गया है कि जस्टिस बिंदल एक पक्षपातपूर्ण, अनुचित और पक्षपाती जज हैं, जिनका उच्च न्यायालय में बने रहना न्याय के निष्पक्ष और निष्पक्ष वितरण में हस्तक्षेप करता है।पत्र में अनुरोध किया गया है कि हम आपसे सम्मानपूर्वक अनुरोध करते हैं कि न्यायमूर्ति राजेश बिंदल को कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद से हटाने के लिए तत्काल कदम उठाएं ताकि कलकत्ता उच्च न्यायालय की महिमा और पवित्रता को बरकरार रखा जा सके।

गौरतलब है कि नारदा रिश्वत कांड की सुनवाई में कलकत्ता हाइकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल की भूमिका पर हाइकोर्ट के ही एक वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस अरिंदम साहा ने सवाल उठाया है। जस्टिससाहा ने इस सिलसिले में उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों को पत्र लिखा है। खास बात यह है कि उन्होंने यह पत्र कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल को भी भेजा है। इस पत्र में मामले को हाइकोर्ट में स्थानांतरित करने और चारों अभियुक्तों को सीबीआई कोर्ट की तरफ से दी गई जमानत पर स्टे लगाने में न्यायाधीश बिंदल के हस्तक्षेप पर सवाल उठाए गए हैं।

पत्र में लिखा गया है कि हमारा आचरण हाइकोर्ट की गरिमा के विरुद्ध है। हम एक मजाक बन कर रह गए हैं। इसलिए, मैं सभी से अनुरोध करता हूं कि हमारे नियमों की पवित्रता और अलिखित आचार संहिता को बनाए रखने के लिए कदम उठाएं। इसके लिए यदि आवश्यक हो, तो फुल कोर्ट की भी बैठक बुलाई जानी चाहिए।

जस्टिस साहा ने यह पत्र 24 मई को लिखा था । इसके एक दिन पहले ही सीबीआई ने हाइकोर्ट की खंडपीठ के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें मंत्रियों सुब्रत मुखर्जी, फिरहाद हाकिम, तृणमूल विधायक मदन मित्रा और कोलकाता के पूर्व मेयर शोभन चटर्जी को हाउस अरेस्ट करने का निर्देश दिया गया था। सीबीआई ने विशेष अदालत के जमानत के फैसले के खिलाफ उसी रात हाइकोर्ट में अर्जी दी थी। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीश अरिजित बनर्जी की खंडपीठ ने रात में ही निचली अदालत के फैसले पर स्टे लगा दिया था। पत्र में सीबीआई की अर्जी स्वीकार करने और कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के अपनी पीठ में ही मामला भेजने में प्रक्रियागत खामियों पर सवाल उठाए गए हैं। पत्र में स्टे ऑर्डर पर भी सवाल उठाए गए हैं।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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