Tuesday, March 19, 2024

बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का विस्तार देश में सैन्य शासन की आहट तो नहीं?

सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के देश के भीतर कुछ सीमावर्ती राज्यों में अधिकार क्षेत्र को 15 किमी से 50 किमी तक बढ़ाये जाने का मुद्दा गरमाता जा रहा है। सबसे अधिक विरोध पंजाब प्रांत की कांग्रेस सरकार और विपक्षी दलों की ओर से देखने को मिल रहा है, और अब इसमें पश्चिम बंगाल की ओर से भी तीखी प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई है।

इस बीच बॉर्डर सिक्योरिटी फ़ोर्स ने गुरुवार को अपने आधिकारिक वक्तव्य में स्पष्ट किया है कि पंजाब, पश्चिम बंगाल, गुजरात, राजस्थान और असम जैसे सीमावर्ती राज्यों में अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अधिकार क्षेत्र को 50 किमी तक बढ़ाये जाने के फैसले ने सभी राज्यों में “अधिकार क्षेत्र में एक समानता” लाने का काम किया है और सीमा-पार से होने वाले अपराधों को प्रभावी तौर पर रोकने में यह “संशोधन”सीमा-सुरक्षा बल को मदद करेगा।

शिरोमणि अकाली दल ने इस फैसले को पंजाब में तकरीबन आधे हिस्से में हमेशा के लिए राष्ट्रपति शासन के समान शासन को लगा देने की श्रेणी में रखा है। अकाली दल के नेता दलजीत सिंह चीमा ने इसे “शैतानी कोशिश”करार देते हुए राज्य को केंद्र के शासन के तले रखने की कोशिश बताया है और इसका हर हाल में पुरजोर विरोध की मांग की है।
वहीं कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने अपनी ही सरकार पर हमला बोल दिया है, और उन्होंने चन्नी की गृहमंत्री अमित शाह के साथ मुलाक़ात पर भी प्रश्न चिन्ह खड़े कर दिए हैं। उन्होंने चन्नी की समझदारी पर कहीं न कहीं बड़ा प्रश्नचिन्ह लगाते हुए उन्हें भविष्य में अधिक सतर्क रहने की सलाह दी है।

पंजाब में इस फैसले का सिर्फ एक हलके से समर्थन प्राप्त हुआ है और वह है पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की ओर से। उनका कहना है कि “इस फैसले से बीएसएफ की मौजूदगी और शक्तियों में इजाफा होने जा रहा है। कृपया सैन्य शक्तियों को राजनीति में न घसीटें।” इस पर पंजाब के शिक्षा एवं खेल मंत्री परगट सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह द्वारा केंद्र के इस फैसले का स्वागत करने पर जमकर आलोचना की है। उनका आरोप है कि इस मामले में केंद्र के साथ अमरिंदर सिंह ने पंजाब को नुकसान पहुंचाने के लिए गुप्त रूप से आपस में समझौता किया है। उनका कहना है कि उन्होंने हमेशा इस बात को दोहराया था कि अमरिंदर सिंह पंजाब में भाजपा की राजनीति कर रहे हैं।

अमरिंदर सिंह की दिल्ली में हाल के दिनों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ हुई बैठक का उद्धरण देते हुए परगट सिंह ने कहा है “जब वे पहले मिलने गए थे तो उनके कारण धान की खरीद में देरी हुई, इस बार गए तो उनकी हरकतों के कारण केंद्र ने बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र को बढ़ा दिया।” उन्होंने आगे कहा “कैप्टन साहब, प्लीज ऐसा मत करो। हम आपका सम्मान करते हैं लेकिन आप कृपा करके भाजपा के साथ मिलकर यह सब मत करो।”

जवाब में अमरिंदर सिंह ने मंत्री पर जवाबी हमला बोलते हुए कहा है कि किसी राज्य मंत्री के गैर-जिम्मेदार होने की कोई हद होती है। आप और प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के पास मनगढ़ंत कहानियाँ गढ़ने और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के अलावा कोई काम नहीं है।

वहीं पश्चिम बंगाल से भी विरोध के स्वर फूटने शुरू हो चुके हैं। तृणमूल कांग्रेस ने गुरूवार को केंद्र के फैसले पर हमला बोलते हुए इसे राज्य के अधिकारों पर “अतिक्रमण” बताया है और देश के संघीय ढाँचे पर सीधा हमला कहा है। इस फैसले को वापस लिए जाने की मांग करते हुए टीएमसी का दावा है कि पश्चिम बंगाल सरकार के साथ बिना किसी सलाह मशविरे के इसे थोपा गया है।

टीएमसी के प्रवक्ता कुनाल घोष ने कहा है “हम इस फैसले का विरोध करते हैं। यह राज्य के अधिकारों का अतिक्रमण है। राज्य सरकार को सूचित किये बगैर ही अचानक से बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में बढ़ोत्तरी करने की आखिर क्या जरूरत पड़ गई? यदि बीएसएफ को किसी सर्च की जरूरत है तो वह इसे कभी भी राज्य पुलिस के साथ कर सकती है। कई वर्षों से यही चलन में भी रहा है। यह संघीय ढाँचे पर हमला है।” वहीं वरिष्ठ टीएमसी सांसद सौगत रॉय ने आरोप लगाया है कि “बीएसएफ का सीमावर्ती गाँवों में मानवाधिकारों के मामले में अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड नहीं रहा है। केंद्र और गृह मंत्री अमित शाह राज्यों को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।” कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने भी आलोचना करते हुए इसके दूरगामी परिणामों के लिए केंद्र को चेताया है।

वहीं भाजपा के प्रदेश महासचिव सयनतन बासु ने कहा “तृणमूल सीमा-पार से घुसपैठ को रोक पाने में विफल रही है। तृणमूल का यह विरोध असल में अपने वोट बैंक को तुष्ट करने के लिए किया जा रहा है।”

कुछ रिपोर्टों के अनुसार केंद्र ने बीएसएफ को भारतीय इलाके के भीतर 50 किमी के क्षेत्र में सर्च ऑपरेशन चलाने, संदिग्धों की धर-पकड़ करने और जब्त करने के लिए भी अधिकार-संपन्न बना दिया है। इससे पहले बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में सिर्फ 15 किमी तक ही ये अधिकार थे।

यदि पंजाब में इस पर प्रतिक्रिया को देखें तो पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी सहित उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने इस कदम के पीछे भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की मंशा पर बड़ा प्रश्नचिंह लगाना शुरू कर दिया है। अपने ट्वीट में पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से निवेदन किया है कि वे इस अविवेकपूर्ण फैसले को तत्काल वापस लें। “मैं भारत सरकार के बीएसएफ को राज्य की अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगे क्षेत्रों के 50 किमी की अंदरूनी सीमा पर अतिरिक्त शक्तियाँ दिए जाने की कड़ी भर्त्सना करता हूँ, जो कि संघवाद पर प्रत्यक्ष हमला है। मैं केंद्रीय गृह मंत्री से आग्रह करता हूँ कि वे इस अविवेकपूर्ण फैसले को तत्काल वापस लेने की कृपा करें।” — चरणजीत सिंह चन्नी (@CHARANJITCHANNI) 13 अक्टूबर 2021।

पंजाब के उप-मुख्यमंत्री एस. सुखजिंदर सिंह रंधावा ने भी केंद्र के इस फैसले पर घोर आश्चर्च व्यक्त करते हुए इससे पूरी तरह से “अतार्किक” बताते हुए अमित शाह से इस फैसले को रद्द करने के लिए कहा है। रंधावा का कहना है कि यह सीमा की सुरक्षा पर तैनात बलों के लिए पूरी तरह से अनुचित होगा कि वे अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर पहली पंक्ति की सुरक्षा की जिम्मेदारी छोड़कर देश के भीतर अपना ध्यान बंटाएं। उनका कहना था कि सीमा सुरक्षा बल का काम यह नहीं है कि वह देश के अंदरूनी हिस्सों में निगरानी रखने का काम करे।
इस फैसले से माना जा रहा है कि अमृतसर-जालन्धर राजमार्ग का अधिकांश हिस्सा बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में आ जाएगा। इतना ही नहीं बल्कि गुरदासपुर, बटाला, पठानकोट और अमृतसर-पठानकोट राजमार्ग के दोनों तरफ पड़ने वाले छोटे कस्बे भी केंद्र की इस घोषणा के बाद से बीएसऍफ़ के प्रभाव क्षेत्र में आ जायेंगे। अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर भी भारत-पाक सीमा से मात्र 32 किमी की दूरी पर है, और इसके अपने निहितार्थ हैं।

इससे पूर्व गृह मंत्रालय के नोटिफिकेशन के मुताबिक: “11 अक्टूबर से प्रभावी होने जा रहे इस संशोधन से बीएसएफ के पास अपने क्षेत्र में सीमा सुरक्षा के लिए तैनाती के संबंध में कार्यभारों की सूची को पूरा कर पाने की भूमिका और क्रियान्वयन में एकरूपता लाना संभव हो जायेगा

पंजाब के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने गोपनीयता की शर्त पर एक न्यूज़ एजेंसी से इस बीच कहा है, “इस फैसले से केंद्रीय और राज्य एजेंसियों के बीच में मनमुटाव बढ़ने की आशंका है। केंद्र के इशारे पर किसी की गिरफ्तारी को प्रभावित किया जा सकता है। 50 किमी का अर्थ है इसमें आधा राज्य ही समाहित हो जायेगा। यहाँ तक कि हरियाणा के भी कुछ इलाके इसके अधिकार क्षेत्र में आ सकते हैं, जिसका इस अधिसूचना में कोई जिक्र नहीं किया गया है। वहीं बीएसएफ के एक अधिकारी का कहना था कि अधिसूचना समय की मांग थी। पंजाब में अगर कोई ड्रोन 15 किमी की सीमा से आगे चला जाता है तो क्या हमें उसका पीछा नहीं करना चाहिए? इसी प्रकार से भारत-बांग्लादेश सीमा पर भी कई बार बीएसएफ के जवानों पर हमला हो जाता है और हमलावर बच जाते हैं, क्योंकि उन्हें पता होता है कि 15 किमी से आगे उनका पीछा नहीं किया जाने वाला है।”

गृह मंत्रालय की इस नई अधिसूचना का प्रभावी तौर पर असर तीन राज्यों पर पड़ने जा रहा है, और वे हैं पंजाब, असम और पश्चिम बंगाल। वहीं दूसरी तरफ गुजरात में बीएसएफ के पास पहले 80 किमी तक भीतर तक का जो इलाका था, उसे घटाकर अब 50 किमी कर दिया गया है। अर्थात गुजरात सरकार और गुजरात पुलिस के अधिकार क्षेत्र में पहले से इजाफा किया गया है। जबकि राजस्थान में यह पहले से ही 50 किमी था और मेघालय, नागालैण्ड, मिजोरम, त्रिपुरा, मणिपुर, जम्मू कश्मीर और लद्दाख के लिए कोई सीमा पहले से ही तय नहीं की गई थी। इसीलिए विरोध के स्वर सिर्फ पंजाब और अब पश्चिम बंगाल से सुनने को मिल रहे हैं, लेकिन सूचना को इस प्रकार से रखा गया था कि उससे लगता था कि पूर्वोत्तर राज्य भी इससे कहीं न कहीं प्रभावित होने जा रहे हैं, लेकिन सिर्फ पंजाब ही कांग्रेस पार्टी के हाथ में होने के कारण चीख-पुकार मचा रहा है और मामले का राजनीतिकरण करने में लगा हुआ है।

असम में भाजपा को एक बार फिर जीत हासिल हुई है और हाल ही दोरंग जिले में 74000 वर्ग मीटर से भी अधिक खेती योग्य भूमि से मुस्लिम परिवारों की बेदखली के लिए असम की भाजपा सरकार द्वारा अभियान ने असमिया जातीय समूहों को कहीं न कहीं से अपने पक्ष में पहले से भी अधिक मजबूत करने का काम किया है, इसलिए वहां पर ऐसे फैसलों पर आम लोगों की कोई तीखी प्रतिक्रिया जल्दी सुनने को मिले, ऐसी आशा नहीं करनी चाहिए। हालांकि, इस फैसले का वहां पर भी व्यापक प्रभाव आने वाले दिनों में देखने को मिल सकता है।

पंजाब के चार जिले, पठानकोट, तरनतारन, फिरोजपुर और फाजिल्का पूरी तरह से बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में आने वाले हैं, जबकि गुरदासपुर, अमृतसर, कपूरथला, मोगा, फरीदकोट और मुक्तसर आंशिक तौर पर इसके अधिकार क्षेत्र में आ जायेंगे। इस प्रकार से तकरीबन आधे पंजाब के बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में आ जाने की संभावना जताई जा रही है। अभी तक बीएसएफ की गतिविधियां भारत-पाक सीमा के कुछ सौ मीटर से लेकर एक किलोमीटर तक ही सीमित रहा करती थीं, लेकिन इस फैसले के बाद यहां के स्थानीय लोगों को नई परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बैठाना पड़ सकता है।

जहां तक पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का प्रश्न है तो उन्होंने अपने कार्यकाल में केंद्र को पत्र लिखकर पाकिस्तान सीमा पर बीएसएफ के जवानों की संख्या में बढ़ोत्तरी किये जाने की मांग की थी, लेकिन भारत की सीमा के भीतर उसके कार्यक्षेत्र में विस्तार की कोई मांग नहीं की थी। पिछले सप्ताह कांग्रेस में उनके मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे की मज़बूरी के बाद कांग्रेस छोड़ने और दिल्ली आकर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ मुलाक़ात को अब इस फैसले से जोड़कर देखा जा रहा है। उस समय भी संवाददाताओं से बातचीत के क्रम में उन्होंने लगातार इस बात का खंडन किया था कि वे भाजपा में शामिल होने नहीं जा रहे हैं, लेकिन पंजाब के आंतरिक मसले और सीमा सुरक्षा पर उनके इनपुट के आधार पर इस पहल को लिए जाने से इंकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन अब बदली परिस्थितियों में उनका बयान केंद्र के इस फैसले के पक्ष में गया है, जिसके कारण पंजाब में कांग्रेस सहित अन्य हलकों में कैप्टन की भूमिका को लेकर व्यापक स्तर पर नाराजगी व्यक्त की जा रही है।

ऐसा भी नहीं है कि बीएसएफ और पंजाब पुलिस के द्वारा राज्य के भीतर और सीमा-पार संयुक्त अभियान नहीं चलाए गए हों, लेकिन एक दूसरे के प्रति विश्वास की कमी और समन्वित प्रयास में कुछ न कुछ कमी जरुर देखने को मिलती थी। इसे दूर करने के लिए समय-समय पर बैठकों का दौर भी दोनों बलों की ओर से चलता था। हाल के दिनों में पंजाब पुलिस की ओर से सीमा पर चौकसी और कार्यवाही के दावे बीएसएफ की तुलना में ज्यादा सुनने को मिले हैं। इसमें पंजाब पुलिस द्वारा पाकिस्तान सीमा पार से भारी मात्रा में हथियारों और नशीले पदार्थों की आपूर्ति का दावा किया गया था। हालाँकि, बीएसएफ की ओर से पंजाब पुलिस द्वारा सीमा के पास से ड्रोन के जरिये आपूर्ति की जाने वाली वस्तुओं को जब्त किये जाने के दावे पर कोई बयान देने से बचने की कवायद देखी गई थी। लेकिन अब अचानक से बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र में बढ़ोत्तरी को पंजाब पुलिस के लिए एक धक्के के रूप में देखा जा रहा है, जिसने हाल के दिनों में भारत-पाक सीमा पर अपनी स्थिति को पहले की तुलना में कहीं अधिक मजबूती से स्थापित किया था।

बॉर्डर सिक्योरिटी फ़ोर्स (बीएसएफ) की स्थापना और उद्देश्य:

एक निगाह देश में सुरक्षा बलों और उनके कार्यक्षेत्र पर भी डालना समीचीन होगा। भारत में देश की आंतरिक और वाह्य सुरक्षा के लिए सेना और अर्ध-सैनिक बलों की एक वृहद श्रृंखला मौजूद है।
भारतीय सेना (तकरीबन 12.37 लाख) के अलावा देश में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ 2.57 लाख, असम राइफल(64 हजार), सीआईएसएफ (1.48 लाख), सीआरपीएफ (3.24), आईटीबीपी (90000) सहित सशस्त्र सीमा बल (97000) मौजूद हैं, जिनकी कुल संख्या 11 लाख से अधिक है।
इसके अलावा देश के भीतर राज्यों में राज्य पुलिस और कुछ राज्यों में पीएसी बल भी तैनात हैं। संख्या बल के लिहाज से भारतीय सेना के बाद बीएसएफ के पास सबसे अधिक संख्या बल है। इसकी स्थापना जुलाई 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद की गई थी, क्योंकि कई सीमावर्ती इलाकों में अचानक से पाकिस्तान ने घुसपैठ कर कई महत्वपूर्ण ठिकानों पर कब्जा जमा लिया था।

बीएसएफ के कार्यक्षेत्र में सीमा सुरक्षा और निगरानी का कार्यभार सर्वप्रमुख है। इसके अलावा, सीमा पार से अपराधों को रोकने, किसी व्यक्ति के अनधिकृत प्रवेश या भारत से निकलने को रोकना, सीमा पर किसी भी प्रकार की तस्करी या गैर-क़ानूनी गतिविधियों पर लगाम लगाना, घुसपैठ रोकना, सीमा-पार की ख़ुफ़िया जानकारी इकट्ठा करना, सीमा के आस-पास रहने वाले लोगों के बीच में सुरक्षा की भावना को बढ़ाना है। इसके अलावा युद्ध के समय कुछ और भी विशेषाधिकार उसे मिल जाते हैं।

बीएसएफ को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुख्य विवाद बांग्लादेश के साथ बना हुआ है। बांग्लादेश की ओर से पिछले कुछ दशकों में बीएसएफ पर उनके नागरिकों की हत्या के आरोप लगते रहे हैं। इसके अलावा एक बार 2010 में एक सेवानिवृत्त बीएसएफ के जवान फतेह सिंह पंधेर को इस बिना पर कनाडा के लिए वीजा देने से इंकार कर दिया गया था कि उनके मुताबिक बीएसएफ एक कुख्यात अर्धसैनिक बल है जो नागरिकों पर सुनियोजित ढंग से हमले करने और संदिग्ध अपराधियों को यन्त्रणा देने के लिए कुख्यात है। हालाँकि भारत सरकार की ओर से इस पर कड़ी प्रतिक्रिया और विरोध जताने के बाद इस टिप्पणी को वापस ले लिया गया था।

ऐसे में देश के आम नागरिकों के लिए सबसे बड़ा सवाल यह बनकर उभर रहा है कि एक तरफ जब देश में कश्मीर से लेकर उत्तर पूर्व एवं मध्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों में पहले से ही भारत सरकार के पास ऐसे अनेकों विवाद हैं, जिसका शांतिपूर्ण स्थायी समाधान निकालने की बजाय कहीं न कहीं उन्हीं से देश में व्याप्त भयानक बेरोजगारी, गैर-बराबरी और सांप्रदायिकता से निपटने की चुनावी सोच व्याप्त रहती है, वहीं सीमा पर चीन की ओर से तीन तरफ से और पाकिस्तान की तरफ से सीमा पर झड़प से निपटने के लिए जिसके पास जो जिम्मेदारी तय है, उस पर ध्यान दिये जाने के बजाय देश के भीतर कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार राज्य प्रशासन को विश्वास में लेने के बजाय उन पर केन्द्रीय सशस्त्र बलों के जरिये अपरोक्ष रूप से नकेल कसने से आखिर देश का भला कैसे हो सकता है? क्या देश को एक अर्ध-सैन्य शासन में तब्दील किये जाने की यह पूर्व-पीठिका तो नहीं है, क्योंकि मूलभूत प्रश्न तो उत्तरोतर गहराते ही जा रहे हैं।

(रविंद्र सिंह पटवाल टिप्पणीकार हैं और जनचौक से जुड़े हैं।)

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