Friday, March 29, 2024

केंद्र के ‘कृषि सेवा अध्यादेश-2020’ का पंजाब में चौतरफा विरोध

केंद्र के ‘कृषि सेवा अध्यादेश-2020’ की घोषणा के साथ ही पंजाब में इसका बड़े पैमाने पर विरोध शुरू हो गया है। विभिन्न प्रमुख किसान संगठन तो मुखालफत में आ ही गए हैं, भाजपा का गठबंधन सहयोगी शिरोमणि अकाली दल भी इसके खिलाफ मुखर है। जैसे ही केंद्र की ओर से कृषि संबंधी फैसले लिए गए, वैसे ही देर शाम शिरोमणि अकाली दल की एक आपात बैठक अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल की अगुवाई में हुई। यह बैठक बेहद अहम है।                                                   

सुखबीर की अगुवाई में हुई बैठक में दल के प्रमुख नेताओं जत्थेदार तोता सिंह, राज्यसभा सदस्य बलविंदर सिंह भूंदड़, प्रेम सिंह चंदूमाजरा, दलजीत सिंह सीमा और महेश इंदर सिंह ग्रेवाल ने शिरकत की। यानी शिरोमणि अकाली दल की पूरी ‘टॉप लीडरशिप’ हाजिर रही। आनन-फानन में यह बैठक पार्टी के सरपरस्त पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की हिदायत पर चंडीगढ़ में हुई। बेशक वह खुद इसमें शामिल नहीं हुए।

आगे बढ़ने से पहले बता दें कि केंद्र के जिन फैसलों पर ‘गहन मंथन’ के लिए शिरोमणि अकाली दल की यह आपात बैठक हुई, उनकी घोषणा के वक्त दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में हुई विशेष बैठक में केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल भी उपस्थित थीं और वह बादल घराने की बहू तथा शिरोमणि अकाली दल की बड़ी नेता हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल में दल का प्रतिनिधित्व करती हैं। तमाम फैसलों पर हरसिमरत कौर बादल की मुहर भी लगी है।           

सूत्रों के मुताबिक शिरोमणि अकाली दल की आपात बैठक में केंद्र सरकार की ओर से फसलों की बिक्री और खरीद के लिए लाए जा रहे ऑर्डिनेंस और नई न्यूनतम सहयोग मूल्य नीति पर विस्तार से देर रात तक विचार-विमर्श हुआ। राज्यसभा सदस्यों बलविंदर सिंह भूंदड़ और प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने बैठक में जोर देकर कहा कि मौजूदा केंद्र सरकार शक्तियों का केंद्रीकरण कर रही है और राज्यों से उनके अधिकार धीरे-धीरे पूरी तरह छीन लिए जा रहे हैं।

दोनों नेताओं ने सुखबीर सिंह बादल से कहा कि अब उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नए सिरे से शिरोमणि अकाली दल की नीति से अवगत कराना चाहिए। शिरोमणि अकाली दल संघीय ढांचे की मजबूती के पक्ष में है। पावर सेक्टर में केंद्र के दखल को लेकर भी बैठक में चर्चा की गई। संसदीय राजनीति के पुराने अनुभवी नेता और शिरोमणि अकाली दल के संस्थापकों में से एक बलविंदर सिंह भूंदड़ के अनुसार एकाएक नए अध्यादेश के जरिए 1955 के आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन कर दिया गया। जबकि इसके लिए संसद में बहस कराई जानी चाहिए थी।                                                  

कतिपय वरिष्ठ अकाली नेताओं का मानना है कि नरेंद्र मोदी ने कृषि के मंडीकरण की बाबत इतना बड़ा फैसला लेते हुए भाजपा के गठबंधन सहयोगियों को विश्वास में नहीं लिया। जबकि यह आत्मघाती कदम है। किसानों के लिए बेहद ज्यादा नुकसानदेह है।केंद्र का कृषि सेवा अध्यादेश-2020 इसलिए भी शिरोमणि अकाली दल की चिंता का सबब है कि पंजाब में जमीनी स्तर पर आम किसानों द्वारा इसका विरोध किया जाना तय है और अकाली खुद को किसान हितों का सबसे बड़ा राजनीतिक प्रवक्ता और अभिभावक मानते हैं।

शिरोमणि अकाली दल के वोट बैंक का 76 प्रतिशत हिस्सा ग्रामीण पंजाब से वाबस्ता है। केंद्र के नए अध्यादेश पर बादलों की सरपरस्ती वाले अकाली दल का केंद्र की सत्ता पर काबिज भाजपा से टकराव तय है। एक वरिष्ठ अकाली नेता की मानें तो इस बार यह टकराव ‘निर्णायक’ होगा। आकस्मिक नहीं है कि अचानक पंजाब भाजपा ने 59 सीटों पर चुनाव लड़ने का राग कुछ महीनों के बाद फिर से अलापना शुरू कर दिया है। इसका आगाज पार्टी प्रवक्ता और कई बार विधायक रहे पूर्व मंत्री मदन मोहन मित्तल ने किया है।                              

पंजाब के प्रमुख किसान संगठनों ने भी नरेंद्र मोदी सरकार के कृषि सेवा अध्यादेश–2020 का तीखा विरोध शुरू कर दिया है। सभी का मानना है कि यह अध्यादेश किसानों के लिए नहीं बल्कि व्यापारियों के लिए ज्यादा फायदेमंद है। किसान नेताओं का मानना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म करने तथा प्रचलित मंडीकरण व्यवस्था में इस मानिंद बदलाव किसानों को तबाही की ओर धकेलने वाला है।                         

भारतीय किसान यूनियन (राजोवाल) के अध्यक्ष बलबीर सिंह राजोवाल कहते हैं, “नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल द्वारा पारित नया ऑर्डिनेंस साफ तौर पर मौजूदा मंडी व्यवस्था का खात्मा करने वाला है। केंद्र सरकार लॉकडाउन के चलते समूचे कृषि क्षेत्र को कॉर्पोरेट घरानों के हवाले करने के लिए खासी तत्पर है। नए अध्यादेश के जरिए पंजाब और हरियाणा की मंडियों का दायरा और ज्यादा सीमित कर दिया जाएगा। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद बंद होने से किसान एकदम बर्बाद हो जाएंगे।”  भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू/लक्खोवाल) के प्रधान अजमेर सिंह लक्खोवाल के मुताबिक, “कृषि राज्यों का विषय है लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार राज्यों की शक्तियों का केंद्रीयकरण करने की राह पर है।

फसल कहीं भी बेचने की छूट का ज्यादा फायदा व्यापारियों को होगा। किसान तो अपने सूबे में भी बहुत मुश्किलों से मंडियों तक पहुंचते हैं। वे दूसरे राज्यों में आसानी से फसल बेचने नहीं जा पाएंगे। कॉरपोरेट घराने जरूर अपनी सुविधानुसार खुली लूट करेंगे। हम इस अध्यादेश के खिलाफ राज्यव्यापी आंदोलन करेंगे।” पंजाब के एक अन्य वरिष्ठ किसान नेता सुखदेव सिंह कहते हैं, “एक ‘देश-एक कृषि बाजार’ की अवधारणा सरासर किसान विरोधी है और यह किसानों के लिए बेहद मारक साबित होगी।”                                   

वरिष्ठ कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर देवेंद्र शर्मा के अनुसार, “3 जून को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पारित कृषि संबंधी तीनों कानून मूलतः किसान विरोधी हैं। ऐसे कानून यूरोप और अमेरिका में पूरी तरह नाकाम साबित हो चुके हैं। किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य ही आमदनी का एकमात्र जरिया है, अध्यादेश इसे भी खत्म कर देगा। पंजाब और हरियाणा के किसानों को इसका सबसे ज्यादा नुकसान होगा। इसलिए कि इन राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य और खरीद की गारंटी है।”                          

आम आदमी पार्टी (आप) के बागी विधायक सुखपाल सिंह खैहरा केंद्र द्वारा पारित ऑर्डिनेंस पर कहते हैं, “यह किसानों और कृषि के लिए बेहद घातक है। इन ऑर्डिनेंस के जरिए मोदी सरकार खेती उत्पादों की खरीद को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करके कॉरपोरेट घरानों के हाथों में देना चाहती है। सब कुछ बाकायदा साजिश के तहत किया जा रहा है। ‘एक देश-एक मंडी’ दरअसल छलावा देने वाला लुभावना मुहावरा है।”

(पंजाब से वरिष्ठ पत्रकार अमरीक सिंह की रिपोर्ट।)

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