मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद घातक साबित हुआ है कोरोना

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कोविड-19 के बाद देश में मानसिक रोगों के मामले चिंताजनक रूप से बढ़े हैं। कोविड-19 एक अदृश्य शत्रु है। यह रूप बदलने वाला है। यह कब प्रकट होगा, कब समाप्त होगा और कितना विनाशकारी होगा इसका अनुमान लगाना अब तक असंभव है। यही अनिश्चितताजन्य भय एवं असुरक्षा की भावना मानसिक रोगों हेतु उत्तरदायी रही है। 

कुछ मनोरोग विशेषज्ञ तो कोविड-19 को फियरोडेमिक की संज्ञा दे रहे हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेन्टल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज(निमहान्स) बेंगलुरु के विशेषज्ञों के अनुसार अपने स्वजनों और मित्रों से दूर किसी अपरिचित वातावरण में मृत्यु का भय लोगों को मानसिक रूप से कमजोर बना रहा है। मीडिया में लगातार दिखाए जाने वाले अंतिम संस्कार हेतु लंबी कतारों एवं सामूहिक अंतिम संस्कार आदि के भयानक दृश्य तथा बेड, ऑक्सीजन एवं दवाओं की कमी से मौतों के समाचार लोगों में मृत्यु भय उत्पन्न कर रहे हैं। एथिक्स एंड मेडिकल रजिस्ट्रेशन बोर्ड, निमहान्स, इंडियन साइकाइट्री सोसाइटी तथा एम्स के अनेक डॉक्टर्स ने 28 अप्रैल 2021 को लिखे एक पत्र में मीडिया द्वारा इस तरह के दृश्यों के प्रसारण के कारण स्वस्थ और कोविड संक्रमित व्यक्तियों दोनों के मनोबल पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों के विषय में आगाह किया है। 

मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में हमारी स्थिति कोविड-19 के पूर्व से ही गंभीर थी। वर्ष 2017 में  राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने एक संबोधन में कहा था कि भारत एक संभावित मानसिक स्वास्थ्य महामारी का सामना कर रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि वर्ष 2012 से 2030 के बीच मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं के कारण भारत को 1.03 ट्रिलियन डॉलर का भारी भरकम आर्थिक नुकसान हो सकता है। कोविड-19 के बाद तो मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति चिंताजनक रूप से खराब हुई है। इंडियन साइकाइट्री सोसायटी के एक सर्वेक्षण के अनुसार कोविड-19 महामारी के प्रारंभ के बाद से 20% ज्यादा लोग खराब मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित थे। आईसीएमआर और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया की 2019 की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में 19 करोड़ 73 लाख लोग मानसिक रोगों से ग्रस्त हैं।

‘सुसाइड प्रिवेंशन इन इंडिया फाउंडेशन’ के संस्थापक नेल्सन मोसेज़ का आकलन है कि कोविड-19 के कारण अधिकांश लोग निराशा, हताशा एवं अवसाद का अनुभव कर रहे हैं और अब मानसिक रोगों का फैलाव घर घर तक हो गया है।

दूसरी लहर के दौरान कोविड-19 के नए नए सांघातिक वैरिएंट्स की उपस्थिति, इन वैरिएंट्स द्वारा उत्पन्न विभिन्न एवं विरोधाभासी लक्षण, इलाज के विषय में बदलते प्रोटोकॉल, कोविड संक्रमण से मुक्त होने के बाद दुबारा कोविड ग्रस्त होने की आशंका और म्यूकोरमाइकोसिस जैसे जानलेवा संक्रमण का खतरा आम लोगों के भय हेतु उत्तरदायी रहे हैं तथा इनके कारण मानसिक तनाव एवं मानसिक व्याधियों में असाधारण वृद्धि हुई है।

कोविड-19 की चिकित्सा के दौरान भी एकाकी होने का एहसास लोगों को भयग्रस्त करता रहा है। स्थिति गंभीर होने पर किसी आत्मीय जन के निकट न होने की कल्पना लोगों को कमजोर बनाती रही है। होम आइसोलेशन में रहने वाले कोविड रोगी इस बात को लेकर चिंतित रहे हैं कि यदि उनका स्वास्थ्य अधिक खराब हुआ तो क्या उन्हें सही इलाज मिल पाएगा?

कोविड-19 के कारण मृत परिजनों के अंतिम संस्कार में सम्मिलित न हो पाना, मृत्योपरांत होने वाले पारंपरिक कार्यक्रमों का सम्पादन न कर पाना, किसी आत्मीय की मृत्यु के दुःख को अकेले सहन करने की विवशता तथा शोक के पलों में मित्रों एवं परिजनों की अनुपस्थिति आदि भी मानसिक रोगों को जन्म देने वाले रहे हैं।

स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों के लिए कोविड-19 का यह दौर भयानक रहा है। उन्होंने मृत्यु को बहुत करीब से देखा है। उन्हें लगातार बिना अवकाश के घंटों काम करना पड़ा है और ड्यूटी की समाप्ति के बाद आइसोलेशन में रहना पड़ा है। पूरे विश्व में हुए अनेक अध्ययन यह दर्शाते हैं कि चिकित्सक, नर्सिंग स्टॉफ तथा स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत स्वच्छता कर्मी भयानक मानसिक अवसाद और थकान के शिकार हुए हैं।

चाहे वे स्कूलों और कॉलेजों के विद्यार्थी हों या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में लगा युवा वर्ग, बार बार स्थगित होती परीक्षाओं के फलस्वरूप निर्मित अनिश्चितता का वातावरण तथा खुलते बंद होते स्कूल-कॉलेज-कोचिंग संस्थानों के कारण अनियमित हुई दिनचर्या इनके मानसिक तनाव का कारण बने हैं। परीक्षाओं को कभी भौतिक उपस्थिति द्वारा तो कभी डिजिटल रूप में संपन्न किया गया है।  मूल्यांकन की बदलती विधियों ने विद्यार्थियों को चिंता में डाला है।

यूनिसेफ का आकलन है कि दक्षिण एशियाई देशों में कोरोना वायरस महामारी के बढ़ते प्रकोप का असर बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।  यूनिसेफ ने इस संकट को अभूतपूर्व बताया है। यूनिसेफ के अनुसार दक्षिण एशियाई देशों में कोरोना वायरस के कारण  मार्च 2020 से स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर अत्यधिक दबाव पड़ा है। यूनिसेफ का मानना है कि कोरोना की पहली लहर के दौरान ही दक्षिण एशियाई देशों में  दो लाख बच्चों और हजारों माताओं को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता के संकट से गुजरना पड़ा। कोरोना काल में अनेक बच्चे अचानक अनाथ हो गए हैं जबकि अनेक बच्चों ने माता या पिता को खोया है।

कोविड-19 को नियंत्रित करने हेतु बार बार लगाए जाने वाले लॉक डाउन के कारण आर्थिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित रही हैं। लोग आजीविका छिनने की आशंका से ग्रस्त हैं। असुरक्षित भविष्य का भय उन्हें सता रहा है। निजी क्षेत्र में बहुत से लोगों ने नौकरियां गंवाईं हैं और बहुत सारे लोगों की आय में कमी आई है। आर्थिक अनिश्चितता मानसिक तनाव का कारण बनी है। प्रवासी मजदूरों के लिए यह समय कठिन रहा है, अपनों से दूर किसी अनजाने स्थान में मृत्यु का डर एवं रोजी रोटी छिनने का दर्द दोनों इनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले रहे हैं।

कोरोना काल में महिलाओं को सर्वाधिक मानसिक दबाव झेलना पड़ रहा है। वर्क फ्रॉम होम करने वाली महिलाएं  घरेलू कार्य के बढ़ते बोझ से परेशान हैं। लॉक डाउन के कारण परिवार के सभी सदस्य घर पर हैं, बाहर से कोई मदद हासिल नहीं हो सकती। ऐसे हालातों में इन कामकाजी महिलाओं को परिवार एवं नौकरी में संतुलन बनाए रखने हेतु घोर मानसिक तनाव का सामना करना पड़ा है। निर्धन ग्रामीण परिवारों में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के बाद सदस्य संख्या बढ़ी है और कई बार तो सबसे अंत में भोजन करने वाली गृहणी को भूखा रहना पड़ता है। परिवार के पुरुष रोजगार छिनने और आय में कमी के कारण परेशान हैं और अपनी हताशा की अभिव्यक्ति वे घरेलू महिलाओं पर अत्याचार के रूप में कर रहे हैं। कोरोना के दौर में घरेलू हिंसा के मामले बेतहाशा बढ़े हैं जिससे महिलाएं तनाव एवं असुरक्षा की भावना से ग्रस्त हैं।

संपूर्ण विश्व  में चिकित्सक इस प्रकार के मामलों की सूचना दे  रहे हैं जिनमें कोविड-19 संक्रमण होने के बाद अचानक रोगियों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ा है। इस संबंध में अमेरिका, ब्रिटेन और स्पेन जैसे देशों में अनेक अध्ययन भी किए जा रहे हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन के अनुसार कोरोना के कारण लोग मानसिक तौर पर भी अस्वस्थ हो सकते हैं। शोधकर्ताओं द्वारा 2,36,000 से अधिक कोरोना से पीड़ित रोगियों के इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड्स की जांच की गई।  इस जांच में यह तथ्य ज्ञात हुआ  कि कोरोना वायरस से संक्रमित होने के छह महीने के भीतर 34 प्रतिशत रोगियों में किसी न किसी प्रकार का मानसिक रोग देखा गया। यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थकेयर पॉलिसी एंड इनोवेशन इन यूएस द्वारा 50 से 80 वर्ष आयु वर्ग के दो हजार से भी अधिक लोगों पर जनवरी 2021 में किए गए एक सर्वे के अनुसार यह सभी अधेड़ एवं वृद्धजन अनिद्रा, तनाव, बेचैनी एवं घबराहट आदि किसी न किसी मानसिक समस्या से पीड़ित थे।

मानसिक रोगों की चिकित्सा हेतु सुविधाओं के विषय में हम पहले ही बहुत पिछड़े हुए हैं। देश में मनोचिकित्सकों का अभाव है। हमारी प्रति एक लाख आबादी पर केवल एक मेन्टल हेल्थ केयर प्रोफेशनल उपलब्ध है। मनोचिकित्सा बहुत महंगी है। किसी महानगर में एक घण्टे की काउंसलिंग का औसत शुल्क 1500 रुपए है।

वर्ष 2020 में कोविड-19 के प्रारंभ से पूर्व पेश किए गए स्वास्थ्य बजट में मानसिक स्वास्थ्य की हिस्सेदारी नाममात्र की अर्थात 0.05 प्रतिशत थी। जबकि विकसित देशों में औसतन स्वास्थ्य बजट का 5 प्रतिशत हिस्सा मानसिक स्वास्थ्य के लिए आरक्षित होता है। इंडियन जर्नल ऑफ साइकाइट्री के अनुसार मेन्टल हेल्थ केयर एक्ट 2017 को लागू करने हेतु सरकार को 94073 करोड़ रुपए का अनुमानित वार्षिक व्यय करना होगा किंतु जो वास्तविक खर्च हुआ है वह नहीं के बराबर है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम ग़ैबरेयेसस ने चेतावनी भरे लहजे में कहा है कि कोविड-19 ने विश्व भर में मानसिक सेवाओं में ऐसे समय में व्यवाधान पैदा कर दिया है, जब इन सेवाओं की सर्वाधिक आवश्यकता है। उन्होंने विश्व नेताओं से अपील की है कि महामारी के दौरान और उसके बाद के समय में, जीवनरक्षक मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में और अधिक संसाधन निवेश करने के लिये निर्णायक व त्वरित कार्रवाई करनी होगी। 

केंद्र सरकार ने कोविड-19 के बाद गहराते मानसिक स्वास्थ्य संकट के मद्देनजर  सितंबर 2020 में 13 भाषाओं में मानसिक समस्याओं हेतु मार्गदर्शन देने वाली 24×7 मेन्टल हेल्थ रिहैबिलिटेशन हेल्प लाइन प्रारंभ की है। कोविड-19 के दौरान छात्रों को मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से सरकार ने ‘मनोदर्पण’ नामक एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म भी प्रारंभ किया है जिसमें ऑनलाइन चैट विकल्प, मेन्टल हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स की एक डायरेक्टरी और एक हेल्पलाइन नंबर सम्मिलित है। इसके अतिरिक्त अपने माता पिता को कोविड-19 के कारण खोने वाले बच्चों की सहायता एवं सशक्तिकरण के लिए पीएम केयर्स फॉर चिल्ड्रन योजना का प्रारंभ भी किया गया है। किंतु कोविड-19 के दौर में मानसिक स्वास्थ्य का संकट जितना गंभीर है उसे देखते हुए यह प्रयत्न नितांत अपर्याप्त हैं।

हमें मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता के एजेंडे में ऊपर रखना होगा। हमें कम से कम जिला स्तर पर एक मानसिक स्वास्थ्य केंद्र उपलब्ध कराना होगा जो मानसिक रोगों हेतु मुफ्त काउन्सलिंग एवं मार्गदर्शन दे। हमें क्षेत्रीय भाषाओं में काउन्सलिंग करने में सक्षम चिकित्सकों का प्रादेशिक स्तर पर एक पूल बनाना होगा। हमें निर्धन और अशिक्षित वर्ग तक पहुंच कर उनकी मानसिक समस्याओं को समझना और सुलझाना होगा। मनोचिकित्सकों और अन्य विशेषज्ञों को चाहिए कि वे देशहित को आर्थिक हितों से ऊपर रखें। उन्हें स्वयं को निःशुल्क सेवाएं देने तथा समयदान हेतु तैयार करना होगा। समाजसेवी संस्थाओं तथा समाज के अग्रणी व्यक्तियों को पहलकदमी करते हुए आम जन को हताशा, निराशा, अवसाद, चिंता तथा भय से मुक्ति दिलाने हेतु प्रयत्न करना होगा। सभी के समवेत प्रयास से हम इस कठिन समय में अपना मनोबल और मानसिक स्वास्थ्य बरकरार रख सकते हैं।

(डॉ. राजू पांडेय गांधीवादी विचारक हैं।)

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