माकपा की कन्नूर कांग्रेस: दरकार है महिलाओं पर बढ़ते हमलों के खिलाफ व्यापक लामबंदी की 

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भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी (सीपीएम) की कन्नूर (केरल) में छह अप्रैल से जारी 23 वीं पार्टी कांग्रेस में जितनी बहस के बाद ढेर सारे प्रस्ताव पास हुए और महंगाई से लेकर बेरोजगारी, कृषि संकट,महिलाओं, दलितों, धार्मिक-भाषाई अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, छात्रों पर राजकीय संरक्षण में हिंसक हमलों के खिलाफ व्यापक लामबंदी के जन-आंदोलनों की रूपरेखा तय की गई है उनसे कहीं ज्यादा बहस उस महाधिवेशन के बाहर पूरे देश और विदेशों में भी चल रही है। 

अभी तक हमने भारत में कम्युनिस्टों की ‘छोटी-बड़ी लाइन’ के ऐतिहासिक संदर्भों, बेरोजगारी का हाल और उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा  मणिपुर के पाँच राज्यों के चुनाव मार्च 2022 में खत्म होते ही केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा )की अगुवाई में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) की करीब आठ बरस पुरानी नरेंद्र मोदी सरकार की साठगांठ से पेट्रोल, डीजल और रसोई-गैस के दाम में लगभग रोजाना बढ़ोत्तरी की स्थिति का लेखा-जोखा पेश किया है। किसी कम्युनिस्ट सम्मेलन में भाषणों , बहसों, संकल्पों आदि को एक मुक्कमल किताब से कम में नहीं समेटा जा सकता है।

फिर भी हम पाँच -दिवसीय पार्टी कॉंग्रेस की दस अप्रैल की समाप्ति तक अन्य प्रमुख मुद्दों को भी फोकस में लाने में यथासंभव प्रयास करेंगे। इनमें लोकसभा चुनाव-2014 के बाद देश में सांप्रदायिक अर्ध फासीवादी ताकतों और उत्तर-आधुनिक जटिल वैश्विक पूंजीवाद के गठजोड़ के कारण उत्पन्न मौजूदा हालात में महिलाओं पर बढ़ते हमले भी शामिल हैं। माकपा पार्टी कॉंग्रेस में शनिवार को एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ। कॉमरेड मरियम धवले द्वारा पेश इस प्रस्ताव का कॉमरेड सुप्रकाश तालुकदार ने अनुमोदन किया। 

स्वीकृत प्रस्ताव  

सीपीआई(एम) की 23वीं कांग्रेस हमारे देश में महिलाओं पर बढ़ते हमलों पर गहरा दुख व्यक्त करती है। जिस तरह लगातार महिलाओं और युवा लड़कियों को हिंसा और दुर्व्यवहार का शिकार होना पड़ता है, वह डरावना और चिंताजनक है। सामूहिक दुष्कर्म, अपहरण, शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना, विभिन्न प्रकार की यातनाएं, हत्या और बलात्कार की धमकी ये अकेली घटनाएं नहीं हैं। इसके बजाय वे बड़ी प्रणालीगत समस्या का हिस्सा हैं। ऐसी घटनाओं का खास संदर्भ है। ऐसे ऐसे निगरानी समूह जो गैर-संवैधानिक तौर पर स्व-नियुक्त हैं और वे न सिर्फ स्वतंत्रता पर लगाम लगा रहे हैं, बल्कि लोगों की हत्या, लिंचिंग, हत्या और लूटपाट के बाद बेखौफ घूम रहे हैं। उन्होंने कानून अपने हाथ में ले लिया है और अपने आरएसएस-भाजपा राजनीतिक आकाओं से मौन समर्थन और सहमति प्राप्त की है। 

इन राजनीतिक समूहों द्वारा हाल के दिनों में महिलाओं को उनकी ‘असली जगह’ दिखाने के ठोस प्रयास भी किए गए हैं। बलात्कार के एक तिहाई से अधिक मामले बच्चियों के खिलाफ थे, जिसके कारण पूरे देश में रोष, घृणा और पीड़ा की लहर दौड़ गई। यहां तक कि 8 महीने की बच्चियां भी इन पागलपन की हद तक वाली क्रूरताओं का शिकार हो गई हैं। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, दिल्ली में हर महीने सात पॉक्सो मामले दर्ज किए जाते हैं। 

थॉम्पसन रॉयटर्स फाउंडेशन की रिपोर्ट ने भारत को मानव तस्करी के मामले में महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश के रूप में स्थान दिया था, जिसमें यौन दासता और घरेलू दासता और सामाजिक कुप्रथाओं जैसे कि जबरन शादी, पथराव और कन्या भ्रूण हत्या शामिल है। 

हाल ही में राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) द्वारा जारी डेटा से पता चलता है कि 2021 के पहले आठ महीनों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा में 2020 की तुलना में 46 फीसद वृद्धि हुई। लगभग 35 प्रतिशत मामले या तो घरेलू हिंसा से संबंधित थे या पतियों और रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता से संबंधित थे। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में हर दिन 10 दलित महिलाओं के साथ बलात्कार होता है। असली आंकड़े इससे कहीं ज्यादा हैं। 29 सितंबर 2020 को जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 2019 में प्रतिदिन औसतन 87 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए और वर्ष के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराधों के कुल 4,05,861 मामले दर्ज किए गए। यह 2018 से 7 प्रतिशत से भी अधिक की वृद्धि थी। एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में हर 16 मिनट में एक महिला का रेप होता है।

यूपी के उन्नाव और हाथरस की वारदात 

उन्नाव (उत्तर प्रदेश) के भाजपा विधायक द्वारा अपनी ही पड़ोसी और बेटी की उम्र की बच्ची के साथ बलात्कार, उसके पिता की हत्या ने लाखों लोगों को झकझोर दिया। इसके लिए यूपी पुलिस और विधायक के भाई को दोषी ठहराया गया। विधायक को हिरासत में तभी जेल भेजा गया जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उसकी गिरफ्तारी के आदेश दिए। इसी तरह, हाथरस ( त्तर प्रदेश) में 19 वर्षीय दलित बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार और फिर उसकी हत्या चौंकाने वाली थी। 

महिलाओं को चुनावों में अपनी पसंद के अधिकार के प्रयोग से वंचित करना, जातिगत अहंकार में वृद्धि, अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा की सियासत और  सम्मान हत्याओं (ऑनर किलिंग) में वृद्धि हुई है। विभिन्न राज्यों में जाति पंचायतों के उकसावे पर तथाकथित उच्च जातियों द्वारा क्रूर हत्याएं हुई हैं। दहेज से संबंधित उत्पीड़न और मौत हमेशा हमारे समाज का अभिशाप रहा है। 

महिलाओं के बड़े संघर्षों के बाद धारा 498ए लागू की गई। भाजपा ने इस कानून को कभी स्वीकार नहीं किया। परिवार की पवित्रता के नाम पर भाजपा और उसकी सरकार इस कानून को कमजोर करने की कोशिश कर रही है। महिलाओं के खिलाफ अपराधों में अभियुक्तों की सजा सुनिश्चित करने के लिए वर्मा आयोग की सिफारिशों को ठीक से लागू नहीं किया गया है। यह सिर्फ 25 प्रतिशत है। 

दलित और आदिवासी महिलाओं के खिलाफ अपराधों के लिए सजा की दर तो और भी कम है। महिला समूह वैवाहिक बलात्कार को 376 आईपीसी के तहत अपराध के रूप में मान्यता देने और वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को आईपीसी से हटाने की मांग कर रहे हैं। भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली की धारा में मौजूद रूढ़िवादी और पितृसत्तात्मक धारणाओं को समाप्त किया जाना चाहिए।

‘मी टू’ अभियान ने मीडिया के क्षेत्र में कई महिलाओं द्वारा झेले गए यौन शोषण और आघात को उजागर किया। प्रस्ताव में कहा गया है कि सीपीआई(एम) उन बहादुर महिलाओं की सराहना करती है जो प्रचलित पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती देने के लिए सामने आईं, वो मानदंड जो अपराधी के बजाय पीड़िता को ही दोषी ठहराते हैं। शिकायतकर्ताओं को बदनाम करने और उन्हें चुप कराने के लिए सोशल मीडिया पर चरित्र हनन और गाली-गलौज करने वाली ट्रोलिंग निंदनीय है। 

हाथरस कांड की एक पेंटिंग।

महिलाओं को सुरक्षा और कानूनी सहायता प्रदान करना सरकार का कर्तव्य है। बलात्कार के संकट का मुकाबला करने वाले ‘रेप क्राइसिस सेंटर’ स्थापित करने और निर्भया फंड के उपयोग का भाजपा सरकार का वादा अधूरा सपना बनकर रह गया है। 2018 में एक आरटीआई अर्जी के जवाब के अनुसार, कुल फंड का केवल 30 प्रतिशत उपयोग किया गया था। बच्चों के लिंगानुपात में सुधार की कमी मोदी सरकार के बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ नारे के झूठे प्रचार को पर्दाफ़ाश करती है। 

कई रिपोर्टें बच्चियों की मानव तस्करी में वृद्धि की ओर इशारा करती हैं। समाज को पीछे धकेलने वाली विचारधाराएं एक शोषक व्यवस्था को न्यायोचित ठहराने, स्वीकार्य बनाने, मजबूत करने और कायम रखने की कोशिश करती हैं। वे पितृसत्ता, पदानुक्रम और निजी संपत्ति का समर्थन करते हैं। मनुस्मृति ने ब्राह्मणवाद को सर्वोच्चता प्राप्त करने और देश के विशाल हिस्सों पर वर्णाश्रम धर्म (जाति व्यवस्था) की सामाजिक संरचना को लागू करने में योगदान दिया। मनुस्मृति से अधिक कोई अन्य ज्ञात धार्मिक-सामाजिक व्यवस्था असमानता, पितृसत्ता और शोषण को बढ़ावा नहीं देती है।

आरएसएस-भाजपा सरकारों द्वारा मनुवादी एजेंडे को लगातार लागू करने से महिलाओं को उनके मेहनत से जीते गए सभी अधिकारों, उनके समानता के अधिकार और उनको आजीविका के अधिकार से वंचित करने का खतरा है। पहले से श्रम बाजार में महिलाएं कम ही थीं। श्रम बाजार में उनका प्रवेश अब और भी कम हो रहा है। नव-उदारवादी नीतियों को बढ़ावा देने वाले अति-शोषण की सबसे अधिक पीड़ित महिलाएं हैं। सुपर-प्रॉफिट सुपर-शोषण के पूरे ढांचे को बनाए रखने के लिए उनका सस्ता श्रम अधिक से अधिक आवश्यक होता जा रहा है। आरएसएस के विभिन्न संगठनों को भाजपा शासित राज्यों में संरक्षण देकर नैतिक पुलिसिंग करवाया जा रहा है। कभी लव जिहाद का आरोप लगाकर उत्पीड़न तो कभी धर्मांतरण विरोधी कानूनों का उपयोग करने वाले परिवारों का उत्पीड़न तो कभी ड्रेस कोड को थोपने आदि की घटनाएं भाजपा शासित राज्यों में आम हो गई हैं। 

देश भर में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा की व्यापकता को देखते हुए सीपीआई(एम) की 23वीं कांग्रेस ने प्रत्येक राज्य में अधिक से अधिक पुरुषों और महिलाओं को लामबंद करके अन्याय एवं हिंसा और महिलाओं की समानता के लिए और भी अधिक त्वरित, दृढ़ और प्रभावी हस्तक्षेप करने का संकल्प लिया है।

हम इस प्रस्ताव का विश्लेषण विधि विशेषज्ञों , महिला संगठनों के प्रतिनिधियों आदि से बातचीत करने के बाद पेश करने की कोशिश कर पार्टी कांग्रेस में संशोधनों से पारित राजनीतिक रिपोर्ट की भी अलग से चर्चा करेंगे। 

(सीपी नाम से चर्चित पत्रकार,यूनाईटेड न्यूज ऑफ इंडिया के मुम्बई ब्यूरो के विशेष संवाददाता पद से दिसंबर 2017 में रिटायर होने के बाद बिहार के अपने गांव में खेतीबाड़ी करने और स्कूल चलाने के अलावा स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं।) 

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