Saturday, April 20, 2024

गांधी की दांडी यात्रा-4: देशवासियों की रगों में खून बनकर दौड़ने लगा नमक सत्याग्रह

12 मार्च, 1930 को सुबह 6 बजकर 10 मिनट पर, गांधी, प्रभाशंकर पटानी, महादेव देसाई और अपने सचिव प्यारेलाल के साथ, अपने कमरे से बाहर आए। वे शांत और आत्मविश्वास से भरे दिख रहे थे। उन्होंने प्रार्थना की, अपनी घड़ी देखी और ठीक 6.30 बजे गांधी और उनके साथी, आश्रम से बाहर निकले और बाएं मुड़ गए। गांधी अपनी चिरपरिचित कोमल मुस्कान के साथ, अपने उद्देश्य की पूर्ति और उस महान अभियान की सफलता के लिए, अपने तेज और अडिग कदमों के साथ इस जुलूस का आगाज किया।

साबरमती आश्रम के बाहर, प्रशंसकों की कतार एलिस ब्रिज तक फैली हुई थी। “पुरुष और महिलाएं, लड़के और लड़कियां, करोड़पति और मिल-मजदूर गांधी जी की दांडी यात्रा की शुरुआत को देखने और कम से कम कुछ दूरी तक इसका हिस्सा बनने के लिए, उत्साह के साथ आए थे। सड़क झंडों से सजी हुई थी। जैसे ही गांधी सड़क के दोनों ओर लोगों की कतार को पार करते हुए बढ़ते गए, उनका अभिवादन, अभिनंदन, माला फूल और यहां तक ​​कि बड़ी संख्या में रुपए के नोटों की बौछार के साथ स्वागत किया गया।”

(रामचंद्र गुहा, गांधी, द ईयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड)

कांग्रेस वर्किंग कमेटी के कुछ बड़े नेता भले ही नमक सत्याग्रह को लेकर सशंकित रहे हों, पर जब नमक कानून तोड़ने का संकल्प और दांडी यात्रा का प्रारम्भ गांधी जी द्वारा कर दिया गया तब, देश के हर कोने से उन्हें बधाई और शुभकामना संदेश मिलने लगे। गांधी के नमक सत्याग्रह को, क्विक्जॉटिक यानी अव्यवहारिक कहने वाले, मोतीलाल नेहरू ने, गांधी को भेजे, एक संदेश में कहा, ‘रामचंद्र की लंका की ऐतिहासिक यात्रा की तरह दांडी की यात्रा भी यादगार होगी।’ पीसी रे ने इसे, ‘मूसा के नेतृत्व में हुए इजराइलियों की यात्रा’ की तरह कहा। जवाहरलाल नेहरू ने गांधी को, भेजे अपने संदेश में, यात्रा की सफलता की कामना करते हुए अपने संदेश में कहा, ‘… सत्य की अपनी खोज पर निकले ये तीर्थयात्री, शांत, शांतिपूर्ण, दृढ़ संकल्प और निडर होकर, परिणामों की परवाह किए बगैर, इस शांत तीर्थयात्रा को जारी रखेंगे।’

गांधी की इस महाकाव्य (जिसे अंग्रेजी में एपिक मार्च कहा गया है) सरीखे दांडी यात्रा की शुरुआत के बाद, पूरे देश में उत्साह की जबरदस्त लहर दौड़ गई। 12 मार्च का दिन, एक ऐतिहासिक दिवस के रूप में, पूरे भारत में मनाया गया। कलकत्ता उस, सुबह शंख ध्वनि और ‘गांधीजी की जय’ के नारों के बीच जाग उठा था। बंगाल के कांग्रेस नेताओं ने एक सम्मेलन में गांधीजी द्वारा उल्लिखित कार्यक्रम को पूरा करने के उद्देश्य से बंगाल सविनय अवज्ञा परिषद नामक एक तदर्थ परिषद, का गठन, तत्काल करने का निर्णय लिया गया। बंगाल कांग्रेस के नेता, जेएम सेनगुप्ता ने बंगाल प्रान्त के सभी पुरुषों और महिलाओं से, स्वयं को सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए, स्वयंसेवकों के रूप में नामांकन कराने की अपील की। उन्होंने कहा, ‘बंगाल के लिए यह परीक्षा की घड़ी है। बंगाल, हमेशा से देश की आजादी की लड़ाई में, आगे रहा रहा है और अब इस परीक्षा की घड़ी में भी वह पीछे नहीं रह सकता। आइए हम लड़ाई में सिर झुकाएं और उन अधिकारों को हासिल करें जो हमारे हैं।’

बम्बई में, केएफ नरीमन की अध्यक्षता में एक जनसभा आयोजित की गई। उन्होंने जनसभा में भाग लेने वाली जनता से आज़ादी की निर्णायक लड़ाई के लिए तैयार होने का आह्वान किया। बॉम्बे प्रांतीय कांग्रेस कमेटी की ‘युद्ध परिषद’ ने शहर से स्वयंसेवकों की पहली टुकड़ी में शामिल होने की एक सूची की घोषणा की।

मद्रास में, तिलक घाट पर एक जनसभा में, मद्रास जिला कांग्रेस कमेटी, आंध्र कांग्रेस कमेटी, ट्रिपल कांग्रेस सभा और यूथ लीग के राजनीतिक वर्ग द्वारा, सविनय अवज्ञा अभियान की सफलता के लिए प्रार्थना की गई। बैठक ने गांधी के नेतृत्व में, उनके मार्ग पर चलकर, अहिंसक तरीकों से स्वराज हासिल करने के, भारत के संकल्प को दोहराया।’

लाहौर में, कांग्रेस के स्वयंसेवकों ने, बैंड बाजे के साथ, सड़कों पर परेड किया और जुलूस निकाला। उन्होंने, ‘महात्मा गांधी की जय’ के नारे लगाए। लाहौर नगर कांग्रेस कमेटी के तत्वावधान में आयोजित शहर के नागरिकों की एक विशाल बैठक में, मौलाना अब्दुल कादिर ने सदारत की और सभा में बोलते हुए, हुए कहा, ’12 मार्च, हिंदुस्तान के इतिहास में, स्वर्णाक्षरों से, लिखा जाने वाला दिन होगा और यह इतिहास में अपना अहम मुकाम प्राप्त करेगा। हमें उम्मीद है कि, इस दिन से, भारत के लोग, स्वतंत्रता प्राप्त करने के अपने दृढ़ संकल्प दुहरायेंगे।’ गांधी जी की गिरफ्तारी की आशंका पर, उस सभा में यह निश्चय किया गया, कि जैसे ही पंजाब के लोगों को गांधी की गिरफ्तारी की खबर मिलेगी, वे अपना व्यवसाय बंद कर देंगे और अगले आंदोलन की योजना तैयार करेंगे।

पेशावर में जुलूस निकाल कर और एक जनसभा आयोजित कर ‘सत्याग्रह दिवस’ मनाया गया। पूर्ण स्वराज्य के संकल्प और स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा को दोहराते हुए और स्वतंत्रता के सैनिकों को ईश्वर से शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की गई। सरदार वल्लभभाई पटेल को, जेल भेजे जाने के ब्रिटिश सरकार के फैसले की निंदा की गई और सरदार पटेल के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने संबंधी प्रस्तावों को, सर्वसम्मति से पारित किया गया। इसके अलावा, बड़ी संख्या में स्वयंसेवकों को, सत्याग्रह के लिए सूचीबद्ध भी किया गया था।

सविनय अवज्ञा दिवस, दिल्ली में, एक सभा के रूप में, मनाया गया, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाओं सहित, लगभग 10,000 व्यक्तियों ने भाग लिया। महात्मा गांधी के पुत्र, देवदास गांधी ने नमक कर का विस्तृत इतिहास, जनता के सामने रखा, और इसे सबसे ‘बर्बर’ टैक्स कहा, जिसने गरीब वर्गों को, गहराई तक प्रभावित किया है, और इसे तुरंत समाप्त करने का अनुरोध, सरकार से किया गया। उन्होंने लोगों से आह्वान किया कि यदि महात्मा गांधी को गिरफ्तार किया जाता है तो वे पूर्ण लेकिन शांतिपूर्ण हड़ताल करें।

संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) की राजनीतिक गतिविधियों के केंद्र, इलाहाबाद में नमक सत्याग्रह अभियान की शुरुआत के संबंध में मोतीलाल नेहरू के आवास, आनंद भवन में एक बैठक हुई और पूरे इलाहाबाद में, हर्ष और उल्लास के दृश्य, उत्साह के साथ देखे गए। जवाहरलाल नेहरू ने एआईसीसी, (ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी) इलाहाबाद सिटी कांग्रेस कमेटी और अखिल भारतीय स्पिनर्स एसोसिएशन, यूपी के कार्यालयों के भवन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया। इन समारोहों में विशाल जनसमूह ने भाग लिया।

श्रोताओं को संबोधित करते हुए, जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि, “सत्याग्रह की प्रतिज्ञा ने, अहिंसा पर जोर दिया है, जो सविनय अवज्ञा अभियान का मूल आधार था।” उन्होंने चेतावनी दी कि, “देश की वर्तमान परिस्थितियों में एक पंथ या नीति के रूप में, अहिंसा और सत्याग्रह की पद्धति की प्रभावशीलता के प्रति आश्वस्त होने वालों को ही, शपथ लेनी चाहिए।” उनका मत था कि, “अहिंसा, कायरों के लिए या हिंसा की तैयारी करने वालों के लिए सुविधाजनक आश्रय नहीं है। उन्होंने अहिंसा में विश्वास रखने वालों को, दूसरों को, इस नीति का अनुसरण करने के लिये, मौका देने की भी बात की।

उधर, गांधी के दांडी यात्रा पर निकल जाने के बाद, अहमदाबाद में, यूथ लीग की एक बैठक आयोजित की गई जिसमें एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें सचिवों को सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए वालेंटियर्स को सूचीबद्ध करने का अधिकार और दायित्व दिया गया। दो सचिवों और एक स्थानीय मिल-मालिक की बेटी मृदुला अंबालाल साराभाई सहित, लगभग पच्चीस वॉलिंटियर्स के नाम मौके पर ही दर्ज कर लिए गए।

विदर्भ के नागपुर में, राष्ट्रीय ध्वज फहराकर ‘दांडी मार्च दिवस’ मनाया गया।  जुलूस कस्बे के मुख्य बाजारों से होकर गुजरा और उसके बाद एक जनसभा भी हुई। वायसराय को गांधी द्वारा भेजे गए पत्र, जिनमें, नमक कर को समाप्त करने का उल्लेख था, पढ़कर सुनाया गया और दर्शकों को, इस टैक्स के खतरे, बताए गए और किन परिस्थितियों में गांधी जी ने, सविनय अवज्ञा आन्दोलन के रूप दांडी यात्रा का विकल्प चुना है, इसे भी लोगों को समझाया गया। सत्याग्रह के लिए, स्वयंसेवकों की भर्ती के लिए भी अपील की गई। लोगों को इस आंदोलन को, अपना पूर्ण समर्थन देने के लिए प्रोत्साहित करते हुए एमवी अभ्यंकर ने कहा, ‘मैं स्वतंत्रता के संघर्ष में, या तो, नष्ट हो जाऊँगा या उसकी उपलब्धि के बाद, स्वतंत्रता का आनंद लेने के लिए जीवित रहूँगा।’

उधर, गांधी जी और अन्य दांडी यात्रियों के शहर से बाहर निकलते ही, उनके पीछे जाने वालों की भीड़ कम होने लगी लेकिन इस यात्रा के प्रत्यक्षदर्शी लोग जहां जहां गए इस यात्रा की चर्चा होने लगी। तीन घंटे की पैदल यात्रा के बाद साढ़े दस बजे गांधी जी, अपने पहले पड़ाव, असलाली गांव पहुंचे, जहां के निवासियों ने झंडों, फूलों और तुरही बजाकर उनका स्वागत किया। असलाली में, गांधी जी का पहला भाषण हुआ। 

नमक कर की चर्चा करते हुए, उन्होंने कहा, “केवल खादी पहनने और कताई करने से ही सन्तुष्ट नहीं हो लेना चाहिए। अपने गांव का ही मामला लें: कुल 1700 की आबादी के लिए, गांव में, 850 मन नमक की जरूरत पड़ेगी। 200 बैलों के लिए 300 मन नमक की आवश्यकता होगी। यानी कुल 1,150 मन नमक की जरूरत गांव को होगी। सरकार कर लगाती है, एक रुपया चार आना, नमक के एक पक्के मन पर। इसलिए, 1,150 मन पर, जो 575 पक्के मन के बराबर है, आप रुपये में कर देते हैं, 720 रुपया।”

अब गांधी उसे और सरल तथा सहज कर गांव वालों को समझाते हैं, “एक बैल को दो मन नमक देना चाहिए। इसके अलावा आपके गांव में 800 गाय, भैंस और बछड़े हैं। यदि आप उन्हें नमक देते हैं, या यदि चर्मकार खाल के उपचार के लिए नमक का उपयोग करता है, या यदि आप नमक को खाद के रूप में उपयोग करते हैं, तो आप उस कर की राशि रुपाए में भुगतान करेंगे, 720 रुपया।”

अब आगे वे सवाल करते हैं, “क्या आपका गांव हर साल टैक्स की इस राशि का भुगतान कर सकता है? भारत में, एक व्यक्ति की औसत आय की गणना 7 पैसे पर की जाती है या, दूसरे शब्दों में, सैकड़ों हजारों व्यक्ति एक पैसा भी नहीं कमाते हैं और या तो भूख से मर जाते हैं या भीख मांगकर जीते हैं। वे भी बिना नमक के नहीं रह सकते। ऐसे व्यक्तियों का क्या हाल होगा यदि उन्हें नमक न मिले या बहुत अधिक कीमत पर नमक मिले?

नमक, जो पंजाब में नौ पैसे प्रति मन बिकता है, जितना नमक काठियावाड़ और गुजरात के तट पर, ढेर का ढेर बनाया जा रहा है, गरीबों को कम कीमत में नहीं मिल सकता है? गरीब बेसहारा ग्रामीणों के पास इस कर को निरस्त कराने की ताकत नहीं है। हम इस ताकत को विकसित करना चाहते हैं।

एक लोकतांत्रिक राज्य वह है जिसके पास ऐसे कर को समाप्त करने का अधिकार है जिसका भुगतान करने योग्य यदि आम जनता नहीं है तो। लोकतांत्रिक व्यवस्था में लोग यह निर्धारित कर सकते हैं कि, किसी निश्चित वस्तु पर कितने टैक्स का भुगतान कब किया जाना चाहिए या नहीं किया जाना।

हालाँकि, हमारे पास ऐसा अधिकार नहीं है। इसी तरह, हमारे कथित महान प्रतिनिधियों के पास भी यह नहीं है। केंद्रीय विधान सभा में पंडित मालवीय ने कहा कि जिस तरीके से सरदार वल्लभभाई को गिरफ्तार किया गया, उसे न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता; कि यह अन्यायपूर्ण कृत्य था। और इस प्रस्ताव का समर्थन श्री जिन्ना ने किया था। इस पर सरकारी अधिकारी ने उत्तर दिया कि ‘उनके मजिस्ट्रेट ने इस तरह से काम किया था जो, कानूनन किया जाना चाहिये था। अगर उसने, ऐसा (सरदार पटेल की गिरफ्तारी) काम नहीं किया होता, तो उसे देशद्रोही माना जाता। लेकिन अगर ऐसा है तो इस दाढ़ी वाले (अब्बास साहब, जो उनके सहयात्री थे) और मुझे भी गिरफ्तार कर लेना चाहिए, क्योंकि मैं अपनी तरफ से खुलेआम नमक बनाने के बारे में भाषण देता हूं।

हम एक ऐसी सरकार बनाना चाहते हैं जो लोगों की इच्छा के विरुद्ध एक भी व्यक्ति को गिरफ्तार न कर सके, जो हमसे एक चौथाई पैसे का घी भी न निकाल सके, हमारी गाड़ियाँ न छीन सके, हमसे पैसे न माँग सके।”

गांधी बोलना जारी रखते हैं, “ऐसी सरकार स्थापित करने के दो तरीके हैं: एक, हिंसा और दूसरी अहिंसा या सविनय अवज्ञा। हमने दूसरा विकल्प चुना है, इसे अपना धर्म मानते हुए। और इसी वजह से हमने सरकार को इस आशय का नोटिस देकर नमक बनाने का काम शुरू किया है।

मैं समझ सकता हूं कि हुक्का, बीड़ी और शराब जैसी चीजों पर टैक्स लगता है।  और यदि मैं सम्राट होता तो आपकी आज्ञा से प्रत्येक बीड़ी पर एक पाई का कर लगा देता। और अगर बीड़ी बहुत महंगी पाई जाती है, तो उनके आदी लोग उन्हें छोड़ सकते हैं। लेकिन क्या नमक पर टैक्स लगाना चाहिए?

ऐसे करों को अब निरस्त किया जाना चाहिए। हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम नमक तैयार करेंगे, खाएंगे, लोगों को बेचेंगे और ऐसा करते समय जरूरत पड़ने पर अदालती कारावास भी भुगतेंगे। अगर गुजरात की 90 लाख की आबादी में से हम महिलाओं और बच्चों को छोड़ दें, और बाकी 30 लाख नमक कर का उल्लंघन करने के लिए तैयार हो जाएं, तो सरकार के पास इतने लोगों को रखने के लिए जेलों में पर्याप्त आवास नहीं है। बेशक, सरकार कानून का उल्लंघन करने वालों को पीट-पीट कर मार भी सकती है। लेकिन आज की सरकारें इस हद तक नहीं पहुंच पा रही हैं। हालांकि, हम सरकार की इच्छा होने पर हमें मारने देने के लिए दृढ़ हैं।नमक कर को अब निरस्त किया जाना चाहिए। तथ्य यह है कि मानवता का एक समुद्र इकट्ठा हुआ था और हम पर आशीर्वाद बरसा था – आश्रम से चंदोला झील तक सात मील की दूरी के लिए – देवताओं के दर्शन के लिए – यह एक अच्छा शगुन है। और, अगर हम एक कदम भी चढ़ते हैं, तो हम आसानी से स्वतंत्रता की जगह की ओर जाने वाली दूसरी सीढ़ियों पर चढ़ने में सक्षम होंगे।

(नवजीवन, 16-3-30)

पूरे देश में इसी तरह के समारोह आयोजित किए गए और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के लिए लोगों में काफी उत्साह पैदा हुआ। पहली बार स्वराज प्राप्ति की एक नई भावना, पूर्ण और केवल पूर्ण स्वराज्य पा लेने की भावना, हर जगह लोगों को प्रेरित करती व्याप्त थी। वायसराय ने 13 मार्च 1930 को, लंदन में सेक्रेटरी ऑफ स्टेट, को सूचित किया, ‘इस समय मेरा अधिकांश विचार गांधी पर केंद्रित है। काश मुझे यकीन होता कि, उससे निपटने का सही तरीका क्या है।’

….क्रमशः

(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।

Related Articles

लोकतंत्र का संकट राज्य व्यवस्था और लोकतंत्र का मर्दवादी रुझान

आम चुनावों की शुरुआत हो चुकी है, और सुप्रीम कोर्ट में मतगणना से सम्बंधित विधियों की सुनवाई जारी है, जबकि 'परिवारवाद' राजनीतिक चर्चाओं में छाया हुआ है। परिवार और समाज में महिलाओं की स्थिति, व्यवस्था और लोकतंत्र पर पितृसत्ता के प्रभाव, और देश में मदर्दवादी रुझानों की समीक्षा की गई है। लेखक का आह्वान है कि सभ्यता का सही मूल्यांकन करने के लिए संवेदनशीलता से समस्याओं को हल करना जरूरी है।