5 अप्रैल 1930 को, गांधी और उनके सत्याग्रही सहयात्री, दांडी गांव पहुंच गए थे। दांडी में, उनका स्वागत करने के लिए, सरोजिनी नायडू, वहां पहले ही, पहुंच चुकी थीं। सरोजिनी नायडू (13 फरवरी 1879 - 2 मार्च 1949) का...
गांधी अब दांडी के बहुत नजदीक आ गए थे। सागर तट करीब आता जा रहा था। 1 अप्रैल को, गांधी प्राचीन व्यापारिक शहर सूरत में प्रवेश कर गए थे। सूरत भारत का एक व्यापारिक शहर है। ईस्ट इंडिया कंपनी...
गांधी जी ने अपने जीवनकाल में जो भी आंदोलन चलाया, उसे एक योजनाबद्ध रूप से, पूरी तैयारी के बाद ही शुरू किया और उसे जनता के बीच लेकर गए। वे अपने साध्य और साधन, दोनों के ही प्रति स्पष्ट...
ऐसा नहीं था कि, गांधी की दांडी यात्रा का असर, जनता पर, पहली बार पड़ रहा था। भारत का आम जनमानस, गांधी के चंपारण सत्याग्रह से ही, उनके साथ जुड़ने लगा था और फिर तो जनता और गांधी जी...
जैसे-जैसे दांडी यात्रा के प्रारंभ होने का दिन नजदीक आता गया, लॉर्ड इरविन नमक सत्याग्रह को लेकर, अभी भी इसी मत के थे कि, यह सत्याग्रह, देर सबेर विफल हो जाएगा और, नमक जैसी साधारण सी वस्तु पर, लगाया...
इकतीस हजार की आबादी वाले शहर नदियाड में गांधी लोगों को संबोधित करते हुए कह रहे हैं, "मैं अक्सर नदियाड आया हूं और यहां कई भाषण दिए हैं, लेकिन इससे पहले मैंने जनता का इतना बड़ा जनसमूह कभी नहीं...
दांडी यात्रा के दूसरे दिन, 13 मार्च को गांधी और उनके सहयात्री, बवेजा गांव पहुंचे और वहां उनका पड़ाव था। गांधी ने यात्रा की तैयारी के दौरान, रास्ते में पड़ने वाले गांवों से, कुछ जरूरी सूचनाएं मंगवाई थी। उन्होंने...
12 मार्च, 1930 को सुबह 6 बजकर 10 मिनट पर, गांधी, प्रभाशंकर पटानी, महादेव देसाई और अपने सचिव प्यारेलाल के साथ, अपने कमरे से बाहर आए। वे शांत और आत्मविश्वास से भरे दिख रहे थे। उन्होंने प्रार्थना की, अपनी...
वाइसरॉय और उनका पूरा सूचना तंत्र, इस बात पर निश्चिंत था कि, नमक कर के विरुद्ध होने वाला गांधी जी का सविनय अवज्ञा आंदोलन, असहयोग आंदोलन की तरह न तो व्यापक होगा और न ही, उससे ब्रिटिश सरकार को...
गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन और सत्याग्रह की योजना के पहले, नमक पर कर और उसके विरोध के इतिहास पर भी एक नजर डालते हैं। ऐसा बिल्कुल भी नहीं था कि नमक पर, कर 1930 में ही लगाया गया...
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