Friday, April 19, 2024

यूपी में नहीं थम रहा है डेंगू का कहर, निशाने पर मासूम

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रदेश में जनसंख्या क़ानून तो लागू कर दिया लेकिन वो डेंगू वॉयरल फीवर, न्यूमोनिया, टायफाइड, डायरिया और मलेरिया जैसी साधारण बीमारियों का इलाज भी प्रदेश के बच्चों को नहीं मुहैया करवा पा रही है। जिसके चलते पिछले डेढ़ महीने में उत्तर प्रदेश में डेंगू और वायरल बुखार से 150 से अधिक बच्चों की मौत हो चुकी है।

गौरतलब है कि सिर्फ़ फ़िरोज़ाबाद जिले में ही मंगलवार को डेंगू और वायरल के कारण 9 बच्चों समेत 11 मरीजों ने दम तोड़ दिया। इसके साथ ही जिले में मृतकों का आंकड़ा 151 पर पहुंच गया है। जबकि पिछले 24 घंटे में जांच के दौरान 167 बच्चों में डेंगू बुखार की पुष्टि हुई है।

फिरोजाबाद में मंगलवार को दोपहर के समय मेडिकल कॉलेज के डेंगू वार्ड में मरीजों की संख्या 465 बताई गई, जिसमें अधिकांश बच्चे हैं। इसके बावजूद भी मरीज इलाज के लिए भटक रहे हैं। प्राइवेट अस्पतालों में भी बड़ी संख्या में मरीज इलाज करा रहे हैं। आगरा-दिल्ली में भी मरीज इलाज के लिए निजी अस्पतालों में भर्ती हैं।

अकेले सौ शैय्या अस्पताल में मरीजों का आंकड़ा 450 पहुंच गया है। अब अस्पताल में भी मरीजों के इलाज में मुश्किलें आ रही हैं। एक-एक बेड पर दो-दो मरीजों का इलाज किया जा रहा है। वहीं प्राइवेट हॉस्पिटल फुल होने के कारण अब गंभीर मरीजों को चिकित्सक आगरा रेफर कर रहे हैं। कई तीमारदारों का कहना है कि आगरा के अस्पतालों में अब आसानी से भर्ती नहीं किया जा रहा है। जाएं तो कहां जाएं।

संसाधनों के अभाव में मरीजों को परेशानी हो रही है। मरीजों को कई-कई घंटे इंतजार करना पड़ रहा है। हालात बेहद गंभीर हैं।

फिरोजाबाद में अगस्त माह के बाद हर रोज बच्चे डेंगू से दम तोड़ते नज़र आ रहे हैं। सरकार का दावा है कि बच्चों के इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज में 70 डॉक्टर नियुक्त हैं बावजूद इसके बच्चों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।

रविवार को बीमार बच्चों को मेडिकल कॉलेज पहुंचे माता-पिता को वापस कर दिया गया। परिजनों का आरोप है कि डॉक्टरों द्वारा उनके बच्चों को भर्ती नहीं किया जा रहा है जबकि उनकी तबियत बहुत खराब है। वह शनिवार रात्रि से अस्पताल के बाहर पड़े हैं लेकिन वहां कोई सुनने वाला नहीं है। जान बूझकर उन्हें ओपीडी में चेक कराने के लिए भेजा जा रहा है। इस मामले में मेडिकल कॉलेज की प्राचार्या डॉ. संगीता अनेजा का कहना है कि गंभीर बीमार बच्चों को भर्ती किया जा रहा है जबकि हल्के बुखार वाले बच्चों को ओपीडी में जाकर चेक करने के लिए भेजा जा रहा है।

वहीं राजधानी लखनऊ में बुखार की चपेट में आने वाले बच्चों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में सरकारी अस्पतालों के बाल रोग विभाग में बेडों की मारामारी शुरू हो गई है। सरकारी अस्पतालों में आधे से ज्यादा बेड भर चुके हैं। डॉक्टरों के अनुसार वायरल फीवर के कारण बच्चों में बुखार के साथ ही उल्टी-दस्त की समस्या आ रही है। सिविल अस्पताल के बाल रोग विभाग में 47 बेड हैं। अस्पताल के सीएमएस डॉ. एस के नंदा के मुताबिक 23 बेडों पर मरीज भर्ती हैं। दो बच्चे आईसीयू में हैं। बलरामपुर अस्पताल के बाल रोग विभाग में 25 बेड हैं। यहां सभी बेड फुल होने के कारण बच्चों को भर्ती करवाने में दिक्कत हो रही है। डेंगू के अलावा टायफाइड और डायरिया भी तेजी से फैल रहा है। सरकारी अस्पतालों में तीन दिनों में 40 से अधिक मरीज आ चुके हैं। लोकबंधु अस्पताल में ही टायफाइड और डायरिया के 17 मरीज आ चुके हैं। अस्पताल में रोज 100 से अधिक बुखार पीड़ित आ रहे हैं।

आगरा,  फैजाबाद, कानपुर और प्रयागराज में भी वायरल बुखार के मामले सामने आ रहे हैं। अस्पतालों में बेड लगभग फुल हो गए हैं। स्वास्थ्य विभाग की टीमें लगाई गई हैं। प्रयागराज में 97 डेंगू के मामले सामने आए हैं। कानपुर में रोज लगभग सौ बुखार के मरीज भर्ती हो रहे हैं।

इससे पहले उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में अगस्त 2017 में ऑक्सीजन की कमी से 60 बच्चों की मौत हो गई थी। तब योगी सरकार को सत्ता में आये पांच महीने हुये थे।

उत्तर प्रदेश में हर एक हजार मौत पर 91 बच्चे शामिल हैं। ये आंकड़ा इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैनेजमेंट रिसर्च (आईआईएचएमआर) की रिपोर्ट में निकलकर आया है। भारत में हर साल 26 मिलियन बच्चों का जन्म होता है, वहीं अकेले उत्तर प्रदेश में यह संख्या 55 लाख है, जिनमें से प्रदेश में 2 लाख नवजात शिशुओं की मृत्यु हो जाती है।

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय भारत सरकार के अनुसार, उत्तर प्रदेश में कुल मृत्युदर में 21.2 प्रतिशत नवजात शिशुओं की मौत और 27.6 प्रतिशत बच्चों की पांच साल से कम उम्र में मृत्यु हो जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि पांच साल तक की आयु के 1,000 शिशुओं में से 91 की मृत्यु हो जाती है। प्रदेश में 5-59 माह की आयु के 70 फीसदी बच्चे एनीमिया यानी खून की कमी से पीड़ित हैं। इनमें से अधिकांश मौतों को या तो नियंत्रित अथवा रोका जा सकता है।

यूपी की 70 प्रतिशत आबादी निजी अस्पताल जाने को मजबूर

आईआईएचएमआर की रिपोर्ट के मुताबिक़, प्रदेश में लगभग 70 प्रतिशत आबादी निजी अस्पतालों में इलाज के लिये अभिशप्त है। अस्पताल में भर्ती होने वाले खर्चों में जबर्दस्त बढ़ोत्तरी होने से आम आदमी को जेब से ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है। प्रदेश में वर्तमान में सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च का वितरण 13 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में अस्पताल में भर्ती होने का औसत खर्च 18,693 रुपए है जबकि 30.2 प्रतिशत लोग ही सरकारी अस्पतालों में इलाज करवा पाते हैं। 69.8 प्रतिशत लोग निजी अस्पतालों की सेवा लेते हैं।

इसके अलावा विकसित क्षेत्रों/शहरी इलाकों में अस्पताल में भर्ती होने का औसत खर्च तो और भी अधिक है जो कि 31,563 रुपए है। इनमें से भी केवल 28 फीसदी लोग ही सरकारी अस्पतालों की सेवाएं प्राप्त कर सकते हैं। 71.7 प्रतिशत को निजी अस्पतालों की सेवाओं पर निर्भर रहना पड़ता है।

रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में संक्रामक रोगों से औसत मृत्यु दर (प्रति एक लाख की आबादी पर) 253 है और वहीं गैर संक्रमणकारी बीमारियों से मृतकों की संख्या 682 है।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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