इस बार मुद्दा अमेज़न प्राइम की वेब सीरीज ‘तांडव’ है। इस बार भी भक्त नामधारी हुड़दंगी ‘हिंदू देवी-देवताओं का कथित अपमान किए जाने’ का अपना आजमाया हुआ बहाना काम में लाए हैं और पूरे देश भर में तूफ़ान खड़ा करने की कोशिश की है। मध्य प्रदेश के जबलपुर के किसी थाने में ‘हिंदू सेवा परिषद’ नाम के किसी अस्तित्वहीन संगठन के नाम पर एफआईआर दर्ज कर ली गई है। खुद मुख्यमंत्री चौहान सीरीज को प्रतिबंधित किए जाने की मांग को लेकर बयानों की तलवार भांजने मैदान में कूद पड़े हैं। उनके गृह मंत्री से लेकर देश भर में भाजपा के नेता कोहराम खड़ा किए हुए हैं।
वेब सीरीज के निर्माता, निर्देशक, अभिनेता-अभिनेत्रियों सहित सबके माफी मांगने के बाद भी माफ़ नहीं करने की घोषणाएं की जा रही हैं। पिछले पखवाड़े ठीक यही हरकत इंदौर के एक कैफे में हुए एक आयोजन को लेकर की गई थी। आज ‘ताण्डव’ का बहाना है, कल कुछ और होगा।
यह बर्बरता के अभिषेक का नया चरण है। औचित्य का प्रश्न उठाना भूल चुके मीडिया के झूले में झूठ को बिठाकर उसे उत्तरोत्तर ऊंचाई तक पहुंचाना, उन्माद बढ़ाना इसकी कार्यशैली है। आम जनमानस के सोच को जहरीला बनाना इनका फौरी लक्ष्य है, मगर वह अंतिम लक्ष्य नहीं है।
वो बात सारे फ़साने में जिसका जिक्र न था
वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है
कालेज के नाटक का वह दृश्य इन्हें आपत्तिजनक और देवी-देवताओं का अपमान करने वाला लगा है, जिसमें आधुनिक कपड़े पहने शिव नामधारी पात्र अपने ट्विटर अकाउंट के फ़ॉलोअर्स न बढ़ने की चिंता में लीन है और नारद मुनि उन्हें कुछ सनसनीखेज ट्वीट करने की सलाह देते दिखाई देते हैं। इसी नाटक में आंदोलन कर रहे छात्रों का एक संवाद है, “देश से आज़ादी नहीं चाहिए, देश में रहते हुए आज़ादी चाहिए।” – जाहिर सी बात है कि शिव और नारद तो बहाना हैं, असली चिढ़ तो इस संवाद से हुई होगी।
एक और दृश्य है, जिसमें अपने ब्वायफ्रेंड से धोखा खाई एक महिला अपने आक्रोश को व्यक्त करने के लिए एक रूपक का सहारा लेती है, जो हद से हद बेतुका और टालने योग्य तो माना जा सकता है, लेकिन उसमें देवी या देवताओं का जिक्र कहीं नहीं है।
न इस वेब सीरीज में कहीं देवी-देवताओं का अपमान है, न ही इस तरह का आरोप मढ़ने वालों की चिंता में देवी-देवताओं का सम्मान है। इस वेब सीरीज के निर्देशक का नाम अली अब्बास जफ़र होना, सैफ अली खान का इसका प्रमुख अभिनेता होना और शिव नाम के पात्र की भूमिका में अभिनेता मोहम्मद जीशान अय्यूब का होना इसका एक बड़ा कारण है। इन नामों से मुस्लिम विरोधी उन्माद के आख्यान को आगे बढ़ाने में मदद मिलती है।
नाम ही काफी है गुनहगार साबित करने के लिए
इंदौर में अपने पांच साथियों के साथ गिरफ्तार किए गए गुजराती स्टैंडअप कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी का उदाहरण ताजा-ताजा है। पुलिस के यह मानने कि फारुकी द्वारा देवी-देवताओं के अपमान करने का कोई सबूत नहीं मिला है, के बावजूद; ये पांचों अभी भी जेल में ही हैं। क्यों? क्योंकि शिवराज की पुलिस को लगता है कि भले अभी न किया हो, मगर बाद में तो कभी कर ही सकता है!!
फासिस्टी गिद्धों के इस तांडव का फौरी निशाना अल्पसंख्यक हैं… मगर असली निशाना ज्यादा गहरा और बुनियादी है। इनमें से एक है, कई हजार साल पुरानी आलोचना और विमर्श, असहमति और चिंतन की परंपरा का निषेध और नकार। जबलपुर में दर्ज एफआईआर के अनुसार ‘धर्म का मजाक उड़ाने’ की कोशिश की गई है। इस प्रसंग में भले ऐसा कुछ न हो, किंतु यदि यह आधार पैमाना बन गया, तो भृगु से लेकर कपिल, कणाद, बुध्द, महावीर तक सबकी जगह जेल होगी। भारतीय चिंतन परंपरा का दो-तिहाई और षड-दर्शन का आधे से अधिक हिस्सा प्रतिबंधित कर दिया जाएगा।
युवाओं के लिए गीतापाठ से ज्यादा जरूरी फुटबॉल खेलने, पण्डों-पुजारियों से खेती-किसानी में श्रम कराने के अपने दो टूक कथनों के चलते स्वामी विवेकानंद और मूर्तिपूजा की भर्त्सना करने वाले स्वामी दयानंद किसी जेल में पाए जाएंगे और कम्युनिस्टों की तो सोचिए ही मत, वैज्ञानिकों इत्यादि की गत के बारे में विचारिए मत, कबीर से लेकर ज्योतिबा फुले और डॉ. अंबेडकर तक काले पानी से बदतर किसी जेल में आजन्म कारावास भुगतते मिलेंगे। यह गाजे-बाजे के साथ भारत को घोर अंधकार में डुबो देने की तैयारी के सिवा कुछ नहीं है। तार्किकता और कॉमनसेंस का भोग लगाते गिद्धों के तांडव के अलावा कुछ नहीं है।
यह मध्य प्रदेश के शिवराज की स्वयं को उत्तरप्रदेश के योगी से भी बड़ा वीर साबित करने की जिद्दी कोशिश मात्र मानकर इसलिए नहीं समझी जा सकती, क्योंकि अब यह समूची भाजपा एक साथ कर रही है। अटल बिहारी वाजपेयी का ‘मुखौटा युग’ पीछे छूट चुका है, जब इस तरह के हमलों के काम में कथित आनुषंगिक संगठनों को लगाकर भारतीय जनता पार्टी एक दिखावटी दूरी बनाए रखने का स्वांग रचा करती थी।
अब सारे मुखौटे उतारे जा चुके हैं और नए-नए बघनखे धारण कर आरएसएस-भाजपा और कॉरपोरेट नियंत्रित मीडिया एकमेक होकर संविधान और लोकतांत्रिक मर्यादाओं को चींथने-भंभोड़ने के लिए निकल चुके हैं।
ऐतिहासिक किसान आंदोलन में शामिल किसानों को बांटी जा रही पदवियां इन्ही की भंभोड़ की एक मिसाल हैं। गिद्धों के ताण्डव की नयी सीरीज का यह अगला एपिसोड किसान मजदूरों की जघन्य लूट से उपजे देश व्यापी आक्रोश, स्थायी डेरा जमाकर बैठ गई आर्थिक मंदी से उपज रहे विक्षोभ, ट्रंप की जी-हुजूरी के बाद से लगातार बढ़ते अंतरराष्ट्रीय अलगाव, कोरोना वैक्सीन के फ्रॉड और चौतरफा विफलताओं से ध्यान बंटाने की एक और बाजीगरी है। इनका जाल कितना बड़ा और देशघाती है, यह हर रोज सार्वजनिक हो रही अर्नब गोस्वामी की व्हाट्सऐप चैट्स से पता चल जाता है, जिन पर यह पूरा कुनबा चुप लगाए बैठा है।
किसान-मजदूर आंदोलनों के उमड़ते सैलाब, उसमें महिलाओं सहित आमजनों की बढ़ती भागीदारी और उनके जरिए लगातार मजबूत होती जनता की एकता गिद्धों के इस तांडव को रोकने का एक बड़ा जरिया हो सकती है… बशर्ते उसके साथ-साथ इस जहरीले उन्माद और नफ़रत की खेप के मुकाबले भी प्रतिरोध को तीखा और गाढ़ा किया जाए।
(लेखक पाक्षिक ‘लोकजतन’ के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं।)