FII देश छोड़ भाग रहे, DII लगातार खरीद, जबकि सरकार, इनसाइडर ट्रेडिंग और बाजार नियामक की पारदर्शिता सवालों के घेरे में   

भारतीय शेयर बाजार से विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) का पलायन रुकने का नाम नहीं ले रहा। सोमवार, 3 मार्च को भी विदेशी निवेशक 4,788 करोड़ रुपये मूल्य के शेयरों की बिकवाली कर जा चुके थे। मेहता इक्विटीज लिमिटेड के सीनियर वाईस प्रेसिडेंट (रिसर्च) प्रशांत तापसे का इस बारे में कहना है, “एफआईआई ने इस वित्त वर्ष में 4,08,984 करोड़ रुपये से अधिक की बिकवाली की है, जिससे बाजार में भय का माहौल पैदा हो गया है।”

शेयर बाजार मुख्य रूप से तीन फंड से निर्मित होता है। पहला है रिटेल निवेशक, जो अपनी बचत के एक हिस्से को शेयर बाजार में निवेश करते हैं। उन्हें उम्मीद होती है कि भारतीय उद्योगों की सफलता के साथ उन्हें भी हिस्सेदारी मिल सकती है, जो बैंक में सावधि जमा, गोल्ड की खरीदारी या प्रॉपर्टी में निवेश की तुलना में हाल के दशकों में अधिक पाई गई थी। 

इसमें लॉन्ग टर्म निवेशक आम तौर पर बाजार की तेजी-मंदी के बजाय कंपनी की उचित परख, साख और भविष्य में उस सेक्टर में संभावित ग्रोथ को ध्यान में रखकर निवेश करते हैं। हालांकि, शेयर बाजार के हालिया क्रैश में उनके पोर्टफोलियो में भी अच्छा खासा असर पड़ा है, लेकिन इसके बावजूद उन्हें मूलधन में नुकसान का संकट नहीं है। बड़ा नुकसान, या भारी कर्ज के बोझ तले वे नए रिटेल निवेशक हैं जो बाजार में तब आये जब अधिकांश शेयर्स अपने वास्तविक मूल्य से कई गुना ऊंचे स्तर पर बाजार में मौजूद थे। 

रिटेल निवेशकों में से अधिकांश लोग इसी श्रेणी से हैं। ये वे लोग हैं, जिन्हें सरकार, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने पिछले कुछ वर्षों से यही बताने की कोशिश की है कि जल्द से जल्द धनवान बनने का रास्ता शेयर बाजार में निवेश से ही संभव है। लॉन्ग टर्म निवेश के बजाय शेयर बाजार आज सट्टेबाजी का अड्डा बन चुका था। 

दूसरी श्रेणी है विदेशी निवेशकों की, जिसमें संस्थागत निवेशकों की बड़ी भूमिका है। आमतौर पर विदेशी संस्थागत निवेशक बड़े पोर्टफोलियो के साथ लॉन्ग टर्म निवेश और अच्छे मुनाफे की तैयारी से आते हैं। देशी रिटेल निवेशकों के लिए भी ऐसे शेयर्स से अच्छा मुनाफा कमाने की उम्मीद होती है, जिसमें ये निवेशक शोध के बाद अपना निवेश करते हैं। एनएसडीएल के 2024 के आंकड़ों पर निगाह डालें तो यह पूरा साल विदेशी संस्थागत निवेशकों की खरीद और बिक्री से भरा रहा। वर्ष की पहली तिमाही और अंतिम तिमाही में विदेशी निवेशकों ने जमकर बिकवाली की, जबकि 2024 आम चुनाव के नतीजों के बाद उन्होंने भारत में निवेश किया था। 

2024 में FII की खरीद और बिकवाली का नतीजा +427 करोड़ रुपये में था, लेकिन यह साफ़ होने लगा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था की कमजोरी, अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी, डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में तेज गिरावट, अमेरिकी फ़ेडरल रिजर्व में निवेश से बेहतर रिटर्न और चीन के द्वारा दो-दो बड़े आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज को लागू करने से विदेशी निवेशकों के लिए भारतीय बाजार अब आकर्षक नहीं रहा। 

2025 के आग़ाज के साथ यह अंदेशा सही साबित हो रहा है। जनवरी माह में नेट -78027 करोड़, फरवरी -34574 करोड़ और मार्च में अब तक -12026 करोड़ रुपये मूल्य की इक्विटी बेचकर विदेशी संस्थागत निवेशक चीन या अमेरिकी बाजारों में जा चुके हैं। 

यूपीए काल विदेशी संस्थागत निवेशकों के लिहाज से ड्रीमवर्ल्ड रहा 

2004-2013 और 2014-2025 के आंकड़ों को देखने पर यही निष्कर्ष निकलता है. NSDL के आंकड़े बताते हैं कि 2004-2013 के पीएम मनमोहन सिंह के काल में विदेशी संस्थागत निवेशकों ने नेट 6 लाख करोड़ रुपये से अधिक धन का निवेश किया। इसमें सिर्फ 2008 की वैश्विक मंदी को छोड़ दें तो भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेश की धूम रही।

इसके उलट, एनडीए काल (2014-मार्च 2025) में 3.65 लाख करोड़ रुपये का ही शुद्ध निवेश हुआ है, जो यूपीए काल के 6.01 लाख करोड़ का लगभग आधा है। इस समय दुनिया के बाजारों में रौनक है, जबकि भारतीय शेयर बाजार अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक गड़बड़ी और वैश्विक उथल-पुथल से थर-थर काँप रहा है, क्योंकि उसे इस बात का अहसास है कि वह कमजोर विकेट पर खड़ा है। 

जनवरी में राष्ट्रपति पद की शपथ के साथ ही डोनाल्ड ट्रम्प के एग्जीक्यूटिव ऑर्डर्स पूरी दुनिया में हड़कंप मचाये हुए हैं। ऐसा माना जा रहा था कि ट्रम्प के निशाने पर चीन होगा, लेकिन ट्रम्प तो चीन के साथ-साथ कनाडा, मेक्सिको, यूरोपीय संघ, ताइवान के साथ-साथ भारत को भारी इम्पोर्ट ड्यूटी थोपने के मामले में टेरिफ किंग कहने से नहीं चूक रहे। ऐसा कोई दिन नहीं जा रहा जब ट्रम्प की प्रेस कांफ्रेंस में टेरिफ किंग के तौर पर भारत का उदाहरण नहीं दिया जा रहा। मोदी सरकार ने 2025-26 के अपने बजट में कई वस्तुओं पर आयात शुल्क में भारी कटौती का ऐलान कर दिया था। प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रम्प के साथ अपनी पुरानी दोस्ती का सहारा लेकर अमेरिका जाने का फैसला तक किया। 

लेकिन ट्रम्प अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। ट्रम्प Reciprocal Tariff थोपने की धमकी से पीछे हटने को तैयार नहीं, जिसका तगड़ा असर भारतीय शेयर बाजार के संवेदी सूचकांक में नजर आ रहा है। भारत सरकार की कोशिश है कि चीन और कनाडा की तरह उसे अमेरिकी टेरिफ का सामना न करना पड़े, क्योंकि इसका सबसे बुरा असर भारतीय आईटी उद्योग और फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री पर पड़ने वाला है।

DII संभाले हुए हैं भारतीय शेयर बाजार को धड़ाम होने से 

शेयर बाजार में तीसरा पहलू है म्यूच्यूअल फंड, एसआईपी निवेश और DII के माध्यम से आने वाला निवेश। घरेलू संस्थागत निवेशक (DII) में बैंक, जीवन बीमा निगम सहित वे तमाम म्यूच्यूअल फंड्स और एसआईपी स्कीम और फंड्स आते हैं, जिनके पास देश में अपने करोड़ों ग्राहकों का एकमुश्त धन या मासिक बचत जमा होती रहती है। 

इनमें से कई फंड भारत सरकार के अधीन हैं, जिनका काम करोड़ों प्रोविडेंड फंड धारकों, पेंशन फंड का सही निवेश कर अपने ग्राहकों के भविष्य को ज्यादा से ज्यादा सुनहरा बनाने का होता है। एक स्टडी के मुताबिक 2015 तक भारतीय शेयर बाजार में विदेशी संस्थागत का एकछत्र राज था, जिसे 10 वर्ष बाद DII स्थानापन्न करने जा रही है।

2015 में FII का भारतीय शेयर बाजार में निफ्टी 500 कंपनियों में 21% की हिस्सेदारी थी, जो मार्च 2025 में घटकर 17.8% रह गई है। इसके उलट DII की हिस्सेदारी 2015 में महज 11% हुआ करती थी, वह अब लगभग दोगुना हो चुकी है। विशेषकर पिछले वर्ष से DII बेहद आक्रामक तरीके से भारतीय शेयर बाजार में अपने निवेश को बढ़ाती जा रही है, और DII की कुल हिस्सेदारी 17% तक पहुंच चुकी है।

अकेले म्यूच्यूअल फंड बाजार में DII के पास फरवरी 2025 तक 55 लाख करोड़ रुपये जमा हो चुके थे। मार्च 2025 में एक दिन के भीतर ही DII ने 12,000 करोड़ रुपये मूल्य की इक्विटी की खरीद कर FII की बिकवाली से शेयर बाजार में बड़े भूकंप को रोक दिया है। ऐसा भी माना जा रहा है कि DII की अनुपस्थिति में भारतीय शेयर बाजार 25-40% दूटने के बजाय 60-70% तक गिर सकता था।      

यहां पर बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि क्या DII के द्वारा किये जा रहे सभी निवेशों को शुद्ध रूप से अपने ग्राहकों, पेंशनधारकों या बीमा ग्राहकों के हितों के अनुरूप ही निवेश किया जा रहा है या इसमें कहीं न कहीं बड़े पूंजीपति घरानों, क्रोनी पूंजी और एनबीएफसी में संलग्न कंपनियों और बैंकिंग समूह की मिलीभगत भारतीय शेयर बाजार को कृत्रिम रुप से फुलाकर व्यावसायिक, राजनीतिक हितों की पूर्ति की जा रही है और करोड़ों भारतीयों की खून-पसीने की कमाई को दांव पर लगाया जा रहा है? 

उदाहरण के लिए भारतीय जीवन बीमा निगम के एक आंकड़े को देखने पर पता चलता है कि 31 मार्च, 2023 तक कंपनी के पोर्टफोलियो में लगभग 10 लाख करोड़ रुपये थे और एलआईसी ने लगभग 273 कंपनियों में अपना निवेश किया था। एलआईसी की शीर्ष होल्डिंग्स में रिलायंस इंडस्ट्रीज में 6.31%, ITC में 15.21%, TCS में 4.84%, SBI में 9.02% और ICICI बैंक में 6.93% निवेश किया गया था। एक समय था जब एलआईसी का बड़ा फंड भारत सरकार द्वारा निर्देशित सार्वजनिक उद्यमों में ही निवेश किया जाता था। बीमा निगम को इसके बदले में लॉन्ग टर्म assured रिटर्न की गारंटी हो जाती थी, और बीमाधारकों को मृत्यु या समयावधि पूरी होने पर assured रकम मिल जाती थी। 

आज एलआईसी बाजार के उतार-चढ़ाव और झटकों में अपने ग्राहकों के बजाय बाजार को गिरने से बचाने की भूमिका में खड़ी है। भारतीय उद्योगधंधों की हालत यदि इसी प्रकार पतली रही और भारत एक तरफ चीन से आयातित माल के सहारे विश्व बाजार में निर्यात की खामख्याली पाले रहता है तो वह दिन दूर नहीं जब ट्रम्प की धमकियां भयानक असर दिखाना शुरू कर देंगी। उस स्थिति में शेयर बाजार में DII के सिवाय कोई नजर नहीं आने वाला। क्या DII या भारत सरकार को इसकी चिंता है कि DIIs और उसके करोड़ों ग्राहक इसके पास जायेंगे?   

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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