समय के साथ विराट होता जा रहा है दुबले-पतले मानव का व्यक्तित्व। नश्वर शरीर से मुक्त गांधी भी हिंदुत्व का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। राज्य की दानवी ताकत पर बैठा, तोप, टैंकर, बंदूक, युद्धक और मानव संहारक विमानों पर सवार, हिंदुस्तान की सत्ता पर काबिज हिंदुत्व का तथाकथित ‘महाबली शासक’ गांधी का नाम सुनते ही निश्चय ही कांप उठता होगा।
75 बरसों बाद भी गांधी का भूत हत्यारों का पीछा कर रहा है। इसलिए वे शरीर से कृषकाय व्यक्ति के व्यक्तित्व को मलिन करने की हरसंभव कोशिश करने में लगे हैं। लेकिन उनका व्यक्तित्व और विराट होता हुआ वैश्विक प्रतिष्ठा हासिल कर चुका है।
गांधी की दृष्टि को एकांगी बनाने के षड्यंत्र के तहत सिर्फ स्वच्छता के प्रतीक तक सीमित करने का गहरा षड्यंत्र रचा गया। उनके चरखे की डोरियां घुमाने के प्रहसन के द्वारा स्वदेशी का प्रतीक बनने की कोशिश करने वाले विदूषक बन गये और अंततोगत्वा विश्व कॉरपोरेट पूंजी के।
उस सनातन हिंदू की याद आते ही आज हिंदुत्ववादी कांप उठते होंगे। इसलिए सत्ता की सर्वोच्च शक्ति को मुट्ठी में कैद कर लेने के बाद भी लगातार उसके व्यक्तित्व का अवमूल्यन करने में अपनी शक्ति जाया करते रहे हैं। उनके दमकते आभामय व्यक्तित्व पर अपने अंदर का गलीच कीचड़ उड़ेलते रहते हैं।
लाखों तरीकों और माध्यमों से ये नाजियों और फासीवादियों के भारतीय वारिस दिन-रात तथ्य और तर्कहीन लांछन लगाते है। गालियां बकते है। उसके चरित्र हनन में लगे रहते हैं। उसके विचारों को धूमिल करते हैं। ये उसके शांति और अहिंसा के संकल्प की हंसी उड़ाते हैं। इन बौने लोगों में इतनी सामर्थ्य नहीं है कि उनके वजूद को विश्व जन-गण के मानस पटल से मिटा सकें। हिंदुत्ववादी लुटेरी कॉरपोरेट पूंजी से गठजोड़ कर सत्ता पर काबिज़ तो हो सकते हैं। लेकिन सौहार्द प्रेम समन्वय के मानवीय विचारों वाले व्यक्तित्व की गरिमा को किसी भी स्तर पर धूमिल नहीं कर सकते।
पूंजी की दानवीय ताकत पर सवार होकर सत्ता पर पहुंचने के बावजूद गांधी के चरणों में सर झुकाने को मजबूर हैं। ये ठंडे दिमाग से अपराध और षड्यंत्र रचने वाले लोग हैं। इसलिए गांधी की प्रतिमा के समक्ष सिर झुकाते समय भी अंदर से डरते रहते हैं। ये नफरती उस समय भी उसके भौतिक शरीर की हत्या करने वाले को महिमामंडित करने के लिए तार्किक आधार ढूंढ रहे होते हैं।
यह समय पतन के उस पायदान पर पहुंच गया है जहां से हत्यारे को गांधी से युद्ध-रत दिखाया जा रहा है। वे इसे विचारों का संघर्ष कह रहे हैं। जबकि यह कायराना हरकत थी। हत्यारे के पास इतना भी साहस नहीं था कि वो कह सके कि मैं तुम्हें खत्म करने आया हूं। वह प्रार्थना सभा में जाते हुए चरणों में प्रणाम कर उनकी हत्या करता है। जिसे हिंदुत्व की रक्षा के आदर्श से प्रेरित/घोषित करने की निर्लज्ज कोशिशें हो रही हैं।
उस हत्यारे का जीवन-व्यवहार किसी औसत इंसान के समकक्ष भी नहीं था। उसके निष्पक्ष जीवनीकार भी उसे एक निम्न स्तर का मनुष्य बताते हैं। ऐसे बौने व्यक्ति को विचारों के लिए लड़ने वाला योद्धा बनाने की तमाम कोशिशें हताशा में तब्दील हो रही हैं।
यह उस अपराधी गिरोह के अपराध को छिपाने की कोशिश है जो आज हिंदुत्व के नाम पर लंपट तत्वों को बेगुनाहों की हत्या के लिए प्रेरित करता है। जो माब लिचिंग के लिए भीड़ को उत्साहित करता है और उन्हें अपराध के लिए दिमागी रूप से तैयार करता है। बलात्कारियों हत्यारों की पूजा-अर्चना करता है।
अंधकारमय भविष्य के डर में जी रहे हजारों युवाओं को धर्म के नाम पर मानसिक रूपांतरण द्वारा हत्यारा बनाने का व्यापार आज भी जारी है। इसलिए आज हमारी महान विभूतियां इनका शिकार हो रही हैं।
कुलवर्गी साहब, दाभोलकर, गौरी लंकेश और पांसारे जैसे समाज सुधारक और तर्कवादी बुद्धिजीवियों की हत्या हुए ज्यादा समय नहीं गुजरा है। आज भी नागरिकों का नरसंहार उसी विचार और संस्थान द्वारा हो रहा है जिसने गांधी की हत्या को वध कहा था।
यह औपनिवेशिक भारत के समय से चली आ रही समर्पणवादी परंपरा है। जो अपने चरित्र में मानवद्रोही है। लुटेरी साम्राज्यवादी पूंजी की जर-खरीद गुलाम है। उपनिवेशकालीन भारत में यह अंग्रेजों की आज्ञाकारी सेवक थी। गोरों की भटकी हुई पूर्णतः आज्ञाकारी औलादें थी। जो आजाद भारत में कॉरपोरेट की गोद में बैठी हुई उसकी विश्वस्त सेवक है। लोकतांत्रिक मूल्यों के निषेध वाली परंपरा का वाहक है।
हमारे इतिहास के हजारों वर्ष की मानवीय परंपरा का निषेध करती हुई उसकी शत्रु है। हमारे पूर्वजों की मेधा,योग्यता,अन्वेषण और तर्क के महान परंपरा की विरोधी है। यही नहीं आधुनिक दुनिया के लोकतांत्रिक मूल्यों, मानवीय सरोकारों और उदात्त सांस्कृतिक परंपराओं का निर्वहन करने की क्षमता से विहीन है।
लुटेरी वित्तीय पूंजी की सेवक कोई भी सांस्कृतिक परंपरा, सामाजिक विचार और राजनीति आधुनिक युग के लिए अभिशाप है। वरदान नहीं।
इसके साथ ही यह विचार प्राचीन सामंती सांस्कृतिक मूल्यों की “जो मनुष्य के समानता स्वतंत्रता और भाईचारे के पूर्ण निषेध पर पली-बढ़ी थी, उसकी आधुनिक प्रतिनिधि है। गांधी के खिलाफ खड़ा होने का सीधा अर्थ है कि लोकतंत्र व मनुष्य के विकास यात्रा के खिलाफ खड़े होना। इसीलिए किसी भी उदारवादी लोकतांत्रिक दृष्टि से इनके पक्ष में कोई तर्क नहीं दिया जा सकता।
इसलिए इस हत्यारी सांस्कृतिक परंपरा के पूर्णतया निषेध पर निर्मित परंपरा ही आज मनुष्यता को बचाने की गारंटी हो सकती है। वहीं भारत के हजारों वर्षों की मानवतावादी परंपरा का प्रतिनिधित्व कर सकती है। जो चार्वाकों के साथ बुद्ध जैन सांख्य आदि से चलकर भक्ति आंदोलन बीच से गुजरते हुए स्वतंत्रता आंदोलन के दौर तक अनवरत स्वच्छ सरिता की तरह संचारित और प्रवाहित हो रही है।
हम जानते हैं कि स्वतंत्रता संघर्ष में गांधी के विचारों के कट्टर आलोचक और विरोधी अनेकों महापुरुष थे। डॉक्टर अंबेडकर, भगत सिंह, स्वामी सहजानंद, हसरत मोहनी और मार्क्सवादी चिंतन परंपरा के हजारों बुद्धिजीवी कार्यकर्ता ऐसे रहे हैं जो गांधी के विचारों से असहमत थे। उनसे बैचारिक धरातल पर टकराते रहे, जूझते रहे और गांधी के विचारों के प्रति आख्यान रचते रहे।
वो गांधी के सनातनी हिन्दू-दृष्टी के निषेध के पक्षधर थे। गांधी के वर्णाश्रम धर्म के दृष्टिकोण का तीखा प्रतिरोध करते हुए लोकतांत्रिक विकल्प पेश करते रहे। वे गांधी से अपनी असहमति के प्रति दृढ़ थे। लेकिन उनके अंतस-चेतना में कभी भी यह विचार नहीं आया होगा कि के गांधी को शारीरिक छति पहुंचे। इन महापुरुषों ने कभी ऐसा नहीं सोचा होगा कि स्वतंत्र भारत में कोई ऐसा राज-समाज भी बनाया जा सकता है जो गांधी के पूर्ण निषेध पर खड़ा हो, फले-फूले और भारतीय राज्य की अगुवाई करे ।
डा. अंबेडकर, भगत सिंह, नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कल्पना में भी नहीं सोचा होगा कि गांधी के हत्यारों का महिमामंडन करता हुआ कोई राजनीतिक विचार भारत की अगुवाई करेगा। डॉक्टर अंबेडकर ने तो यहां तक कहा था कि अगर कभी भारत में हिंदू राष्ट्र कायम होगा तो वह भारत के लिए त्रासदी होगी।
इसलिए अनेक सवालों पर गांधीजी से असहमत होते हुए भी हम उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन के आकाश में महान पूर्वजों की विराट तारावलियों में चमकते हुए सितारे की तरह ही देखते हैं। इसलिए हम उनकी गरिमा के अनुरूप उन्हें प्रतिष्ठा आस्था के साथ लोकतंत्र के सर्वोच्च प्रतिष्ठान पर सम्मान के साथ स्थापित करते हैं।
आज गांधी के बलिदान दिवस पर गांधी के निषेध पर पली-बढ़ी फासीवादी विचारधारा के खिलाफ संघर्ष में गांधी हमारे लिए एक मजबूत आधार स्तंभ है। अंबेडकर और भगत सिंह की तरह आज भी स्वतंत्र भारत के सुरक्षा समृद्धि और निर्माण के लिए हमारे लिए वह महान शिक्षक हैं महान नेता हैं और हमारे महान पूर्वज हैं।
भारतीय चिंतन के विविध परंपराओं में गांधी चिंतन भी अपनी सीमाओं के बावजूद हमारे लिए अनुकरणीय, प्रेरणा का स्रोत, और मार्गदर्शक हैं।
हिंदू फासीवादियों को स्वतंत्रता आंदोलन की परंपरा को विकृत करके गांधी को लांक्षित करने की इजाजत नहीं दी जा सकती। अपने इस कृत्य द्वारा वे आजादी के दौरान किए गए अपने पूर्वजों के पापों को धोने के लिए और अपनी कायरता को छुपाने के लिए तर्क गढ़ने की कोशिश कर रहे हैं ।
इसीलिए हमें भी अपने पूर्वजों की स्मृतियों और विचारों का झंडा बुलंद करते हुए फासीवाद के खिलाफ संघर्ष में व्यापक जन की एकता को सुदृढ़ करना होगा। गांधी जी के बलिदान दिवस पर लोकतंत्र समानता और बंधुत्व की लड़ाई को आगे बढ़ाना हमारा दायित्व है। गांधी की शहादत आज हमें यही प्रेरणा दे रही है।
स्वतंत्रता की उदात्त परंपरा पर हमला करने वालों के खिलाफ हमारी एकता ही हमारा संबल बनेगी।
बीसवीं सदी के “महान अंतर्विरोधों वाले महान व्यक्तित्व” महात्मा गांधी के बलिदान दिवस पर हमसब अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
(जयप्रकाश नारायण किसान नेता हैं)