Friday, April 26, 2024

अररिया गैंगरेप: न्यायिक मजिस्ट्रेट ने न्याय को ही लटका दिया सूली पर

अगर किसी के साथ गैंग रेप हुआ है और उसका किसी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष धारा 164 के तहत बयान दर्ज़ हुआ है तो बयान पढ़कर सुनाये जाने की बात कहने पर न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत की अवमानना हो सकती है और पीड़िता को गिरफ्तार करके जेल भेजा जा सकता है। क़ानूनी स्थिति यह है कि निचली अदालतों में कोर्ट की अवमानना का मामला नहीं चलाया जा सकता है। अगर लोअर कोर्ट में ऐसी कोई बात सामने आती है तो उसे उच्च न्यायालय के संज्ञान में लाना जरूरी होता है। अदालत की अवमानना के इस मामले में जिस तरह से जेल भेज दिया गया है वह प्रक्रिया कंटेंप्ट ऑफ़ कोर्ट के प्रावधान के उलट है।

यक्ष प्रश्न यह है कि आकंठ भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डूबी लोवर जुडिशियरी ने बयान में ही ट्विस्ट करके कुछ और लिख दिया हो तो इसे कैसे दुरुस्त कराया जा सकता है?क्या बयान दर्ज़ कराने वाली पीड़िता के कोई अधिकार नहीं है? यह मामला बहुत तूल पकड़ता जा रहा है।  

देश भर के साढ़े तीन सौ से अधिक वकीलों के एक समूह ने पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को एक पत्र लिखा है, जिसमें अररिया जिला न्यायालय, बिहार में हिंसक यौन अपराधों के शिकार हुए पीड़ितों के उपचार में तत्काल और प्रणाली में बदलाव की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। यह पत्र एक ‘परेशान करने वाली घटना’ की पृष्ठभूमि में लिखा गया है, जिसमें एक न्यायिक मजिस्ट्रेट ने एक सामूहिक बलात्कार पीड़िता और उसकी देखभाल करने वाले दो लोगों को हिरासत में भेज दिया। बताया गया है कि कथित तौर पर न्यायिक मजिस्ट्रेट ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान दर्ज करते समय उसके मन की अव्यवस्थित अवस्था को निजी अपमान की तरह मान लिया गया था।

वकीलों ने दावा किया है कि गैंगरेप की घटना के बाद से वह केवल चौथा दिन था और मामले को ‘कुछ संवेदनशीलता’ के साथ निपटाया जाना चाहिए था। पत्र में कहा गया है कि पीड़िता की नाजुक अवस्था को समझने के बजाय पीड़िता को सीधा पुलिस हिरासत में भेज दिया गया। यह भी इंगित किया गया है कि पीड़िता का कोरोना का टेस्ट भी नहीं करवाया गया था, जबकि उसके साथ कई अजनबियों ने सामूहिक बलात्कार किया है। सबसे परेशान करने वाली बात ये है कि जब वह तीनों पुलिस की हिरासत में थे, तो मामले की कार्यवाही के दौरान जो बाते सामने आईं, उन सबके बारे में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में रिपोर्ट किया गया। इतना ही नहीं मीडिया ने पीड़िता की सारी जानकारी, उसके पिता का नाम व उसके घर के पते का भी खुलासा कर दिया था।

उन्होंने आरोप लगाया है कि तीनों को 10 जुलाई को हिरासत में ले लिया गया था, लेकिन अवमानना मामले की प्राथमिकी अगले दिन दर्ज की गई थी। वह भी उस पुलिस स्टेशन में जिसके अधिकार क्षेत्र में, वो इलाका आता ही नहीं है जहां पर न्यायालय स्थित है। इसके अलावा गवाहों से खाली गिरफ्तारी ज्ञापन’ पर हस्ताक्षर करवाए गए थे। बाद में तीनों को अदालत में पेश किया गया और उन्हें न्यायिक हिरासत के तहत 240 किलोमीटर दूर स्थित दलसिंहसराय की जिला जेल में भेज दिया गया। वकीलों का तर्क है कि परिस्थितियों को देखते हुए उनको न्यायिक हिरासत में भेजना अत्यधिक कठोर कदम है।

वकीलों ने दावा किया है कि जब पीड़िता का बयान मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया जा रहा था, उस समय पीड़िता समेत ये तीनों पूरी तरह से परेशान थीं और उसका मन बहुत ही भटका हुआ था। वह न खा रही थी और न ही सो पा रही थी। उसके शरीर में दर्द भी था। चार दिनों के दौरान, उसने अपने अनुभव को कई लोगों के सामने दोहराया, वो भी सिर्फ दृश्य-संबंधी उद्देश्यों के लिए या घटना का ब्यौरा देने के लिए। वह घटना के बाद से पूरी तरह से व भावनात्मक रूप से उसकी देखभाल करने वालों पर निर्भर थी। जो खुद आघात में थे और बहुत परेशान थे।

पीड़िता और उसकी देखभाल करने वालों को आईपीसी की धारा 353 (सार्वजनिक कर्मी को उसके कर्तव्य का निर्वहन करने से रोकने के लिए हमला करना या आपराधिक बल का प्रयोग करना), धारा 228 (न्यायिक कार्यवाही में बैठे लोक सेवक के काम में रूकावट ड़ालना या उसका जानबूझकर अपमान करना) और धारा 188 ( लोक सेवक द्वारा दिए गए विधिवत आदेश का पालन न करना) के तहत मामला बनाया गया है। वकीलों का कहना है कि बाद के दो अपराध जमानती हैं, लेकिन मजिस्ट्रेट पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करने का आरोप सबसे अविश्वसनीय लगता है। वकीलों ने अदालत से इस मामले में हस्तक्षेप करने और ऐसी मजबूत आपराधिक न्याय प्रणाली बनाने का आग्रह किया है, जो हिंसक यौन अपराधों के सर्वाइवर या पीड़ितों की जरूरतों को अनुकूल हो। इस पत्र का 376 वकीलों ने समर्थन किया है।

इस बीच गैंगरेप पीड़िता को ही गिरफ्तार कर लेना हैरान करने वाली बात है। बिहार राज्य महिला आयोग आयोग ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए अररिया प्रशासन को नोटिस भेजकर घटना की पूरी जानकारी मांगी है।महिला आयोग की तरह ही इस मामले को लेकर विभिन्न समाजिक संगठन और नागरिक समाज के लोग भी स्तब्ध हैं। महिला संगठनों ने पीड़िता को जल्द रिहा करने की मांग की है तो वहीं सामाजिक कार्यकर्ताओं कहना है कि एक तो पीड़िता पहले ही कभी न भरने वाले घाव से गुज़र रही है और ऊपर से उसे जेल भेज दिया जाना, उसके साथ दोहरी प्रताड़ना है।

दरअसल  बिहार के अररिया जिले में 6 जुलाई की शाम एक 22 साल की लड़की के साथ कई लोगों ने मिलकर सामूहिक दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया। इसके बाद वारदात के अगले दिन यानी 7 जुलाई को पीड़िता ने इसकी रिपोर्ट अररिया महिला थाने में दर्ज कराई। ये मामला महिला थाने में कांड संख्या 59/2020, भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (डी) के तहत दर्ज किया गया है। इस एफ़आईआर में ज़िक्र है कि मोटरसाइकिल सिखाने के बहाने पीड़िता को एक परिचित लड़के ने बुलाया और फिर एक सुनसान जगह ले जाया गया। जहाँ मौजूद चार अज्ञात पुरुषों ने उसके साथ बलात्कार किया। इस दौरान पीड़िता ने अपने परिचित से मदद मांगी, लेकिन वो वहाँ से भाग गया।

पीड़िता के बयान के मुताबिक गैंगरेप के बाद रात 10.30 बजे आरोपी उसे नहर के पास लाकर छोड़ गए, जिसके बाद उसने अररिया में ही काम करने वाले जन जागरण शक्ति संगठन (जेजेएसएस) के सदस्यों की मदद ली। इस मामले में 7 और 8 जुलाई को पीड़िता की मेडिकल जाँच हुई। जिसके बाद 10 जुलाई को उसे बयान दर्ज कराने के लिए ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट कोर्ट में ले जाया गया। इसी दिन तकरीबन शाम 5 बजे पीड़िता और जेएसएस के दो सदस्यों को हिरासत में ले लिया गया और 11 जुलाई को उन्हें जेल भेज दिया गया।

न्यायालय के पेशकार राजीव रंजन सिन्हा ने दुष्कर्म पीड़िता सहित दो अन्य महिलाओं के विरुद्ध महिला थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई है। दर्ज प्राथमिकी में बताया गया है कि पीड़िता ने बयान देकर फिर उसी पर अपनी आपत्ति जताई। रिपोर्ट में लिखा है कि न्यायालय में बयान की कॉपी भी छीनने का प्रयास किया गया। न्यायालय में इस तरह की अभद्रता से आक्रोशित न्यायिक दंडाधिकारी ने तीनों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया है।

गौरतलब है कि निर्भया मामले के बाद साल 2013 में रेप संबंधित कानून क्रिमिनल लॉ एमेन्डमेंट एक्ट को महिला केंद्रित बनाया गया। इसका मतलब है कि अब कानून में पुरानी सेक्शुएलिटी हिस्ट्री डिस्कस नहीं करने की बात को मान्यता दी गई। विक्टिम की प्राइवेसी को महत्वपूर्ण माना गया। साथ ही ये भी प्रावधान किया गया कि अगर 164 का बयान (जो निजी होता है और उस दौरान वहाँ कोई और मौजूद नहीं रह सकता) दर्ज़ कराते वक़्त अगर पीड़िता सहज नहीं है और किसी ‘पर्सन ऑफ कॉन्फिडेंस’ (विश्वस्त व्यक्ति) को साथ में ले जाना चाहती है, तो इसकी अनुमति दी गई। इसमें बयान की कॉपी भी मिलने का प्रावधान किया गया है ।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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