क्या अब महत्वहीन हो चुके हैं शिक्षक और साक्षरता ?

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सितम्बर माह में शिक्षक दिवस और साक्षरता दिवस केवल दो दिन के अंतराल पर मनाए जाते हैं ‌एक दिन शिक्षा देने वाले शिक्षक के सम्मान का दिन होता है, जबकि दूसरा दिवस लोगों को साक्षर बनाने के लिए समर्पित है। आजकल इन दोनों दिनों की कोई उपयोगिता नहीं रही।

जियो को धन्यवाद देना चाहिए जिसने दुनियां मुट्ठी में कर दी है। आज उसी का महत्व है जो घर बैठे एक मोबाइल पर तमाम काम कर रहा है। बड़ी से बड़ी लाइब्रेरी को चट करने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी यदि मोबाइल चलाने की दक्षता नहीं रखते तो उनका लेखन पन्नों की फड़फड़ाहट के बीच सुबकता रह जाता है।

सबसे बड़ी बात तो यह है कि इसे चलाने की सीख आपके अभ्यास से ही आ जाती है। शिक्षकों की कतई जरूरत नहीं पड़ती।

मोबाइल में ज्ञान का अपरिमित भंडार पड़ा है अब ये आप पर निर्भर है आप किस ज्ञान से जुड़ना चाहते हैं। सभी विषयों पर आपको वृहत ज्ञान उपलब्ध है। कुछ गृहणियों ने तो हज़ारों व्यंजन बनाना सीख लिए, तो कई लोग आयुर्वेद का ज्ञान इससे लेकर घर बैठे चिकित्सक बन गए।

खेती किसानी से लेकर गीत संगीत, स्वास्थ्य, कला, साहित्य, मंत्र तंत्र, खेलकूद, मनोरंजन, धरम-करम सब कुछ इस नन्हे मोबाइल में है। फिर क्या ज़रूरत है स्कूल जाकर समय बर्बाद करने की।

पढ़ना यदि ज़रूरी लगे तो कोरोना काल की तरह घर में जब इच्छा हो पढ़ सकते हैं। फिर आजकल आईएस और आईपीएस अधिकारी भी तो बिना पढ़ाई और परीक्षा के बन रहे हैं। अपराध शास्त्र हो या राजनीति का क्षेत्र घर बैठे सब तरह का इंतजाम है।

अपना गुरु ‌गूगल से चुन लीजिए तथा उसका अनुसरण कीजिए कुछ ही दिनों में आप पुख्ता अपराधी और राजनैतिक बन जाएंगे।वैसे भी इसके उदाहरण हमारे देश में मौजूद हैं। वरना जियो का प्रचार साहेब जी ना करते।

इस बात को संभवतः हमारी सरकार गहराई से समझ रही है, इसलिए सरकारी स्कूल बंद करती जा रही है, बेतुके खर्च और समय की बर्बादी का उसे ख्याल है। शिक्षा का बजट निरंतर घटता जा रहा है विश्व विख्यात जेएएनयू की अवधारणा को क्षत-विक्षत किया जा रहा है।

डीयू में मनुसंहिता पढ़ाने की कोशिश की गई। प्रत्येक शिक्षा केंद्र के द्वार पर सरस्वती देवी विराजमान हुई हैं। मतलब पूजा से ही ज्ञान के द्वार खुलते हैं संदेश दिया जा रहा है।

जब राजशाही में शिक्षा दीक्षा की व्यवस्था चंद घरों तक सीमित थीं तब क्या कठिनाई थी हमें सब कुछ अनुशासित चलता था। अगर चंद नेताओं और अमीरजादे विदेश में पढ़ाई कर लें तो हमें चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है।

अब तो देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था है हम सब स्वतंत्र हैं अपने विकास का पथ चुनने के लिए। नि:शुल्क मोबाइल तो फिर भी मिल भी जाता है पर रिचार्ज बढ़ने से कदम लड़खड़ा जाते हैं।

इसलिए गरीब पिछड़ जाते हैं अमीर आगे निकल जाते हैं। ये सरासर अन्याय है गरीबों के साथ। इनको इस बावत आरक्षण मिलना चाहिए मोबाइल रिचार्ज नि: शुल्क हो जाए तो मोबाइल शैक्षणिक जगत से गरीब बच्चे भी आगे आ जाएंगे और हम समानता के ऊंचे पायदान पर होंगे।

इससे सबसे ज्यादा फायदा ये होगा कि विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं और प्रश्नपत्र लीकेज से राहत मिलेगी। युवाओं की विश्वविद्यालय, कालेज और स्कूल में भीड़ भी नहीं जुट पाएगी। यानि तमाम आंदोलन, प्रदर्शन ठंडे बस्ते में। अपनी राह खुद चुनो इसके लिए कोई दोषी भी नहीं होगा।

युवतियों के साथ होने वाले अमानवीय व्यवहार भी खत्म होने लगेंगे। सब कुछ घर में ही मोबाइल उपलब्ध करा देगा। बुजुर्ग वर्ग घर बैठे अभिषेक, भजन कीर्तन और भगवान के प्रसाद का आनंद लें सकेंगे। घर बैठे मैच का लुत्फ लें। दिलचस्पी हो तो संसद की तू-तू-मैं-मैं देख लें। दुनिया घूम लें वगैरह वगैरह।

इसलिए मोबाइल के ज़रिए अपने अपने गूगल गुरु चुनिए उनको सम्मान की भी ज़रूरत नहीं वे संपूर्ण ज्ञान बिना ऊंच नीच का ध्यान धरे दे देंगे। स्कूल कालेज जाने की जहमत ना उठाएं। बस मोबाइल चलाने का हुनर सीख लीजिए। सब कुछ आपकी मुट्ठी में होगा।

रोजगारों की जननी है मोबाइल, बशर्ते आप इसका प्रयोग ईमानदारी से करें। रोजगार देने के सरकार और अंबानी की जय जयकार कीजिए। सरकार के मुहताज ना बने सिर्फ़ मोबाइल और रिचार्ज के लिए ही संघर्ष करें।

वैसे सरकार खुद समझदार है। उसे इसको अपनी एकमेव जिम्मेदारी समझ यह खर्च वहन करना चाहिए। भले वह देशवासियों पर कोई कोरोना जैसी बीमारी वाला टैक्स लगाकर आपूर्ति कर लें।

एक और निवेदन अर्ज़ है, जैसे बहुत से कानूनों की उपयोगिता ना होने के कारण उन्हें वापस लिया गया है उसी तरह शिक्षा की यह गांव-गांव फैली घाटे की दुकान भी सरकार को जनहितार्थ बंद कर देनी चाहिए। अब कैसा शिक्षक सम्मान और कैसी साक्षरता।

मोबाइल है तो आपकी चिट्ठी पत्री है, प्रेम मोहब्बत है। रजिस्ट्री है, कैमरा है, टार्च है, अखबार है, टीवी है, रेडियो है, ज्ञान संवर्धन सभी कुछ केंद्र में है। मोबाइल में गुन बहुत हैं सदा राखिए संग।

अब तो वैसे भी अंगूठे का चलन लौट आया है। हस्ताक्षर भी ज़रूरी नहीं। आइए इस बेहतरीन कार्य में बेझिझक सहभागिता निभाएं।

(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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