तवलीन सिंह का कैसे हुआ मोदी से मोहभंग पढ़िए पूरी कहानी

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तवलीन सिंह का यह साक्षात्कार सचमुच उल्लेखनीय है। पिछले छ: सालों में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के उनके स्तंभ में कई बार मोदी की तारीफ़ में उनकी बातें इतनी छिछली और भक्तों के प्रकार की हुआ करती थीं कि उन पर तीखी टिप्पणी करने से हम खुद को रोक नहीं पाते थे । बाद में तो उनके स्तंभ की ओर झांकना ही बंद कर दिया था । 

लेकिन इधर कुछ दिनों से उनके इस भक्त-छाप रुख़ में क्रमिक बदलाव की लोग चर्चा किया करते रहे हैं । ख़ास तौर पर कहा जाता है जब पिछले साल उनके प्रसिद्ध पत्रकार बेटे आतिश तासीर की ‘टाइम’ पत्रिका की कवर स्टोरी ‘India’s Divider-in-chief’ छपी थी, मोदी ने आतिश के ख़िलाफ़ अपनी प्रतिशोधमूलक मानसिकता का नंगा परिचय देते हुए कार्रवाई की और उनका भारतीय पासपोर्ट रद्द कर दिया, तभी से तवलीन सिंह के लेखन में मोदी-विरोधी रुझान दिखाई देने लगा था। 

लेकिन इसी बीच तवलीन सिंह की मोदी पर एक मुकम्मल किताब आ गई है – ‘Messiah Modi: A Tale of Great Expectations’ । यह किताब मोदी के सत्ता में आने के बाद से अब तक के उनके पूरे उस सफ़रनामा की कहानी है, जिसमें वे क्रमश: अपनी सच्चाई पर से, अपनी चरम संघ वालों की ख़ास अज्ञानता से पर्दा उतारते चलते हैं । मोदी की इस अपने को नग्न रूप में रख देने की अब तक की यात्रा को देख कर तवलीन सिंह सचमुच अवाक् हो गईं।

वे आरएसएस के डीएनए को हमेशा से जानती थीं । संघियों की मूर्खताओं और उनके अंदर की मुसलमान-विरोधी घृणा की गंदगी को भी पहचानती थीं । लेकिन कई साल तक गुजरात जैसे प्रदेश का मुख्यमंत्री रहने के बाद भारत का प्रधानमंत्री बन जाने पर भी मोदी उन सारी बुराइयों को न सिर्फ़ अपने पर लादे रहेंगे, बल्कि उसके सबसे जघन्य रूपों का परिचय देते जाएंगे, यह उनकी समझ के बाहर था । 

यह सिर्फ उनका नहीं, हमेशा तत्काल के उत्सव में मग्न रहने वाले पत्रकारों की कमजोर तत्व मीमांसक दृष्टि का दोष था । 

बहरहाल, तवलीन सिंह को पहला बड़ा झटका मोदी की नोटबंदी की शक्ति प्रदर्शनकारी विध्वंसक अश्लीलता से लगा । वे कहती हैं कि इनके पास किसी समझदार से सलाह करने जितनी भी बुद्धि नहीं है । इसके बाद पशुवत लिंचिंग की एक के बाद एक घटनाएं और उनके प्रति मोदी की मौन स्वीकृति। और इन सबके चरम पर अब कश्मीर और नागरिकता क़ानून ! 

जिन चीजों को सामान्य शीलाचरण के तहत भी ढक कर रखा जाता है, मोदी ने उन्हीं का जैसे सबके सामने नंगा प्रदर्शन कर दिया है । आज की दुनिया में हिटलर शासन की बुराइयों का, एक राक्षसी सरकार का चरम उदाहरण है । जनतंत्र में कोई भी शासक अपनी सारी बुरी महत्वाकांक्षाओं के बावजूद हिटलर तक पहुंचने से डरता है । लेकिन मोदी और आरएसएस में उतनी सी सभ्यता भी नहीं है ।

उन्होंने नंगे तौर पर हिटलर के रास्ते का ही पालन करते हुए नागरिकता के विषय को अपने घृणा पर टिके शासन का हथियार बना कर भारत के मुसलमानों के खिलाफ उसका हुबहू उसी प्रकार प्रयोग करना शुरू कर दिया है जिस प्रकार हिटलर ने जर्मनी के यहूदियों के विरुद्ध किया था । यह इस विशाल समुदाय को राज्यविहीन स्थिति में डाल कर उसके व्यापक जन-संहार की परिस्थितियाँ तैयार करने का खुला अभियान है । 

तवलीन सिंह को मोदी की इन कारस्तानियों को समझने में कोई कष्ट नहीं हुआ । शुरू के दिनों में वे अपने इतिहास-बोध को ताक पर रख कर जिस प्रकार मोदी को कांग्रेस शासन की कथित कमज़ोरियों से निजात के एक औज़ार के रूप में समझ रही हैं, छ: साल के अनुभवों से उन्होंने जान लिया कि मोदी किसी बीमारी का इलाज नहीं है, वे स्वयं एक लाइलाज बीमारी है । 

उनकी किताब पर केंद्रित करण थापर के साथ बातचीत में तवलीन सिंह ने इन सारी बातों को बड़ी स्पष्टता और शालीनता के साथ भी रखा है । कुलीनता का जो शील न्याय के अनेक मामलों में बहुत क्रूर नज़र आता है, वहीं कुछ नितांत मानवीय और स्वातंत्र्य के मूल्यों के निर्वाह के मामले में बहुत दृढ़ भी होता है । तवलीन सिंह की बातों से इस सच्चाई का भी एक परिचय मिलता है। यह किताब इस बात का भी प्रमाण है कि तवलीन सिंह के मोहभंग के पीछे उनका कोई नितांत व्यक्तिगत कारण भर काम नहीं कर रहा है । 

(अरुण माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक और स्तंभकार हैं। आप आजकल कोलकाता में रहते हैं।)

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