Tuesday, March 19, 2024

मोदी के खिलाफ यूं ही अचानक आक्रामक नहीं हुए हैं केजरीवाल

आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का राजनीति करने का अंदाज हाल के दिनों में अचानक बदल गया है। वे अब आक्रामक होकर सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमले कर रहे हैं। उनके हमले किसी भी विपक्षी नेता के मुकाबले ज्यादा तीखे और निजी हैं।

दूसरे विपक्षी नेता आमतौर पर चुनावी रैलियों में मोदी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे हैं लेकिन केजरीवाल पहले ऐसे नेता हैं जिन्होंने विधानसभा के मंच का इस्तेमाल करते हुए मोदी को देश का सबसे भ्रष्ट और सबसे कम पढ़ा-लिखा प्रधानमंत्री कहा। यही नहीं, उन्होंने एक अनाम भाजपा नेता के हवाले से यह तक कह दिया कि अडानी तो सिर्फ मुखौटा है, उसके नाम पर सारा कारोबार और पैसा मोदी का है। सवाल है कि आखिर केजरीवाल प्रधानमंत्री के खिलाफ अचानक इस तरह आक्रामक क्यों हो गए? 

दरअसल पिछले दिनों दिल्ली सरकार की शराब नीति में कथित घोटाले को लेकर अपने विश्वस्त सहयोगी मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद केजरीवाल को अहसास हो गया है कि केंद्र सरकार आने वाले दिनों में उन पर भी किसी न किसी बहाने हाथ डाल सकती है, यानी उन्हें भी गिरफ्तार कर सकती है, भले ही वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कुछ बोले या न बोलें।

इसलिए उन्होंने सीधे मोदी के प्रति सद्भाव दिखाने की अपनी रणनीति बदल दी और आक्रामक होकर मोदी पर निजी हमले शुरू कर दिए। इसके अलावा केजरीवाल को यह आशंका भी है कि केंद्र सरकार आने वाले समय में दिल्ली में विधानसभा को खत्म कर 1993 से पहले वाली स्थिति बहाल कर सकती है। उनकी इस आशंका का आधार वह कानून है जो कुछ समय पहले संसद में पारित हुआ है। 

गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली नामक इस कानून में साफ कहा गया है कि दिल्ली सरकार का मतलब उप राज्यपाल है। अब या तो दिल्ली में यह कानून लागू होगा या चुनी हुई विधानसभा और सरकार रहेगी। दोनों के साथ-साथ रहने का कोई मतलब नहीं है। यह सिर्फ आम आदमी के पैसे की बरबादी है।

अगर चुनी हुई सरकार जनादेश के हिसाब से काम नहीं कर सकती है, अपने चुनावी वादों पर अमल नहीं कर सकती है और मामूली से मामूली बात के लिए उसे उप राज्यपाल से मंजूरी लेनी है तो फिर उस सरकार के रहने का कोई मतलब नहीं है। वैसे भी भाजपा 1998 से अब तक दिल्ली में लगातार हारते-हारते तंग आ गई है। इसलिए हैरानी नहीं होगी अगर इसी विवाद में विधानसभा खत्म हो जाए। 

मोदी के खिलाफ केजरीवाल के एकाएक आक्रामक हो जाने की एक बड़ी वजह यह भी है कि वे अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद भाजपा और नरेंद्र मोदी के मुकाबले विपक्ष का बड़ा चेहरा बनने की होड़ में पिछड़ रहे हैं। अडानी मामले को लेकर राहुल गांधी के आक्रामक तेवर और मानहानि मामले में उन्हें मिली सजा के चलते उनकी लोकसभा की सदस्यता खत्म होने की वजह से मीडिया और सोशल मीडिया में उनके ऊपर ज्यादा फोकस बन गया है।

केजरीवाल का मकसद अडानी मामले को लेकर मोदी पर ज्यादा तीखा हमला कर यह दिखाना है कि मोदी से असली लड़ाई उनकी ही है। इस सिलसिले में उन्होंने राहुल गांधी सहित बाकी विपक्षी नेताओं से एक कदम आगे बढ़ कर यह भी आरोप लगा दिया कि अडानी का पूरा कारोबार और पैसा वास्तव में मोदी का है और अडानी की भूमिका सिर्फ मोदी के मैनेजर की है। अपनी इस बात को विस्तार देने के लिए दिल्ली विधानसभा में 28 मार्च को उन्होंने पूरे 18 मिनट का भाषण दिया। 

दरअसल केजरीवाल जानते हैं कि विधानसभा में उन्हें विशेषाधिकार हासिल है। इसलिए विधानसभा में कही गई उनकी किसी भी बात को लेकर न तो पुलिस में मामला दर्ज हो सकता है और न ही अदालत में उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की जा सकती है। विधानसभा में उनकी पार्टी का भारी-भरकम बहुमत है और स्पीकर भी उनकी ही पार्टी के हैं, इसलिए विशेषाधिकार हनन की कार्रवाई की भी कोई चिंता नहीं है।

इसीलिए उन्होंने विधानसभा में प्रधानमंत्री मोदी के बारे में ऐसी-ऐसी बातें कही, जो इससे पहले किसी और विपक्षी नेता ने नहीं कही थी। लेकिन सवाल है कि क्या केजरीवाल ये सारी बातें विधानसभा के बाहर भी किसी सार्वजनिक मंच से कह सकेंगे? मोदी के कम पढ़े-लिखे होने और उनके मनोरोगी होने की बात तो रैलियों और प्रेस कांफ्रेन्स में भी कह चुके हैं लेकिन मोदी पर भ्रष्टाचार के आरोपों को विधानसभा के बाहर दोहराना उनके लिए आसान नहीं होगा। 

गौरतलब है कि अपनी राजनीति के शुरुआती दिनों केजरीवाल ने मोदी पर बेहद तीखे हमले किए थे। यही नहीं, वे 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी को चुनौती देने बनारस भी पहुंच गए थे। जब 2015 में केजरीवाल के निजी सचिव के घर और दफ्तर पर सीबीआई ने छापा मारा था तो केजरीवाल इतने आगबबूला हो गए थे कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को कायर और मनोरोगी तक कह दिया था।

लेकिन उसके कुछ समय बाद उन्होंने अचानक मोदी के खिलाफ बोलना बंद कर दिया था। यहां तक कि 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला, जबकि मोदी ने अपनी सभी चुनावी रैलियों में केजरीवाल पर तीखे हमले किए थे।

बाद में आम आदमी पार्टी ने पंजाब, गोवा, उत्तराखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में विधानसभा के चुनाव भी पूरी ताकत से लड़े जिनमें केजरीवाल ने भाजपा और केंद्र सरकार पर तो हमले किए लेकिन मोदी के खिलाफ कुछ नहीं कहा। लेकिन अब वे इस हद तक तक चले गए हैं कि मोदी को इतिहास का सबसे भ्रष्ट और अनपढ़ प्रधानमंत्री बता रहे हैं और ऐसा कहने के लिए विधानसभा के मंच का इस्तेमाल कर रहे हैं। 

इन दिनों अडानी मामले को लेकर अपनी सरकार के खिलाफ एकजुट हो रहे विपक्ष पर प्रधानमंत्री भी तीखे हमले कर रहे हैं, जिसका विपक्षी नेता अपनी तरह से जवाब दे रहे हैं, लेकिन केजरीवाल का जवाब देने का अंदाज सबसे अलग और सबसे तीखा है। मोदी जिस भाषा और अंदाज में विपक्षी नेताओं पर हमला कर रहे हैं, केजरीवाल भी उसी अंदाज और भाषा में उनके हमले का जवाब दे रहे हैं।

मोदी लगातार कहते आ रहे हैं कि ईडी और सीबीआई की कार्रवाई की वजह से विपक्ष एकजुट हो रहा है। यह बात उन्होंने संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए भी कही और फिर बीते मंगलवार को भाजपा संसदीय दल के बैठक में भी इसे दोहराया। इस पर केजरीवाल ने कहा कि सारे भ्रष्ट एक साथ नहीं आए हैं बल्कि ईडी और सीबीआई के डर से सारे भ्रष्ट अपनी जान बचाने के लिए एक पार्टी में इकट्ठा हो गए हैं, जिसका नाम भाजपा है। उन्होंने कहा कि जब भाजपा सत्ता से बाहर होगी तो भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई करने में आसानी होगी, क्योंकि सारे भ्रष्ट एक ही जगह मिल जाएंगे। 

तो इस तरह मोदी के खिलाफ आक्रामक तेवर दिखा कर केजरीवाल यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि वे विपक्षी नेताओं में सबसे निडर हैं और अपने दो विश्वस्त सहयोगियों की गिरफ्तारी के बावजूद मोदी से नहीं डरते हैं। ऐसा करके वे अपनी पार्टी के बारे में होने वाले इस प्रचार को भी नकारने की कोशिश कर रहे हैं कि आम आदमी पार्टी भाजपा की बी टीम है।

हालांकि केजरीवाल के आलोचक अब भी यही मान रहे हैं कि केजरीवाल ने मोदी के खिलाफ जो एकाएक आक्रामक तेवर अपनाए हैं, वह एक नाटक से ज्यादा कुछ नहीं है और इस नाटक का मकसद राहुल गांधी और कांग्रेस को विपक्षी एकता की धुरी बनने से रोकना है। 

प्रधानमंत्री मोदी की एमए की डिग्री सार्वजनिक किए जाने की मांग से जुड़े मामले में गुजरात हाई कोर्ट द्वारा केजरीवाल पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाए जाने को भी इस नाटक की एक कड़ी माना जा रहा है, ताकि केजरीवाल को राहुल के समकक्ष खड़ा किया जा सके।

गौरतलब है कि केजरीवाल की मांग पर मोदी की बीए और एमए की डिग्री सार्वजनिक करने का आदेश मुख्य सूचना आयुक्त (सीआईसी) ने दिया था, जिसे गुजरात हाई कोर्ट में चुनौती गुजरात युनिवर्सिटी ने दी थी। लेकिन हाई कोर्ट ने सीआईसी के आदेश को खारिज करते हुए कोर्ट का वक्त बरबाद करने के लिए जुर्माना केजरीवाल पर लगाया है।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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RAMESH AHIRWAR
RAMESH AHIRWAR
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11 months ago

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Last edited 11 months ago by RAMESH AHIRWAR

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