नॉर्थ ईस्ट डायरी: म्यांमार से आए शरणार्थियों को लेकर मोदी सरकार और मिजोरम सरकार का रुख अलग-अलग क्यों है?

एक सैन्य तख्तापलट के बाद म्यांमार से आए शरणार्थियों की सहायता को लेकर केंद्र और मिजोरम सरकार के बीच आधिकारिक बातचीत की एक श्रृंखला के बाद दोनों के अलग-अलग रुख सामने आए हैं। मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरमथांगा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा है कि भारत मानवीय संकट की तरफ से नजरें नहीं फेर सकता है।

इससे पहले मिजोरम सरकार ने म्यांमार में तख्तापलट के बाद सीमा पार करने वालों का स्वागत करने की व्यवस्था की और मिजोरम में आने वाले म्यांमार के नागरिकों को शरण दी। हालांकि मोदी सरकार ने कहा कि किसी भी शरणार्थी को रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में कहा कि म्यांमार से भारत में गैर कानूनी रूप से प्रवेश करने वालों को रोकने और उनका निर्वासन शुरू करने के लिए अधिकारियों की कोई कार्रवाई मिजोरम सरकार को स्वीकार्य नहीं है। इन अधिकारियों में म्यांमार की सीमा से लगे पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्य सचिवों और असम राइफल्स और बीएसएफ जैसे सुरक्षा बलों के लिए गृह मंत्रालय के सलाहकार भी शामिल है।

“मिजोरम आज उनके कष्टों के प्रति उदासीन नहीं रह सकता है। भारत अपने पड़ोस में पैदा हुए इस मानवीय संकट का महज मूक दर्शक बनकर नहीं रह सकता,” 18 मार्च को लिखे पत्र में बताया गया है।

दोनों देशों के बीच फ्री मूवमेंट रिजीम (FMR) नामक एक व्यवस्था है जो लोगों को सीमाओं के दोनों ओर 16 किमी तक की यात्रा करने और 14 दिनों तक रहने की अनुमति देती है। अधिकारियों ने कहा कि कोविड के प्रकोप के बाद इसे पिछले साल मार्च में निलंबित कर दिया गया था और बहाल नहीं किया गया।

म्यांमार के सैकड़ों शरणार्थी, ज्यादातर पुलिसकर्मी और उनके परिवार, मिजोरम में शरण लिए हुए हैं।

तख्तापलट में म्यांमार की सेना ने 01 फरवरी को लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को उखाड़ फेंका था।

मुख्यमंत्री ने इसे बड़े पैमाने पर नरसंहार करार देते हुए लिखा, “पूरा देश उथल-पुथल में है और निर्दोष असहाय नागरिकों को सैन्य शासन द्वारा सताया और मारा जा रहा है।”

मुख्यमंत्री ने कहा कि मिजोरम म्यांमार के साथ 510 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है, और हर दिन भयभीत म्यांमार के नागरिक आश्रय और सुरक्षा की तलाश में मिजोरम को पार करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

म्यांमार से आने वाले चिन जातीय समूह से संबंधित हैं जिनके विभिन्न मिजो जनजातियों से घनिष्ठ संबंध हैं।

उन्होंने कहा, “यह उल्लेख किया जा सकता है कि मिज़ोरम की सीमा से लगे म्यांमार में चिन समुदायों का निवास है जो जातीय रूप से हमारे मिज़ो भाई हैं जिनके साथ भारत के स्वतंत्र होने से पहले भी अतीत काल से हमारे निकट संपर्क रहे हैं।”

भारत और म्यांमार की 1,643 किलोमीटर सीमा साझा है और दोनों ओर के लोगों की जातीय संबद्धता के कारण पारिवारिक संबंध हैं। मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और नगालैंड भारतीय राज्य हैं जो म्यांमार के साथ सीमा साझा करते हैं लेकिन तख्तापलट के बाद शरणार्थी मिज़ोरम ही पहुंच रहे हैं।

मिजोरम सरकार ने 26 फरवरी को म्यांमार की वर्तमान स्थिति के मद्देनजर सीमा पार से आश्रय लेने के इच्छुक लोगों की सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (MOP) जारी की। केंद्र से मिले निर्देशों के बाद एसओपीएस जल्द ही निरस्त कर दिया गया।

म्यांमार के शरणार्थियों की सुविधा के लिए राज्य सरकार की तरफ से राज्य के सभी उपायुक्तों को निर्देश दिया गया। इसमें कहा गया है कि म्यांमार में राजनीतिक घटनाक्रम के चलते मिजोरम में प्रवेश करने वाले सभी म्यांमार के नागरिकों की सही पहचान की जाए और पूरा विवरण एकत्र किया जाए।

प्रशासन ने कहा कि उन व्यक्तियों और उनके परिवार के सदस्यों, जिनका जीवन राजनीतिक और संगठनात्मक संबद्धता के कारण तत्काल और आसन्न खतरे में है, को शरणार्थियों के रूप में सुविधा दी जाएगी।

इसमें कहा गया है कि उपायुक्त संबंधित ग्राम परिषद के साथ समन्वय करेंगे। विदेशी नागरिकों को शरणार्थियों के रूप में स्वीकार करने और स्वीकार करने के बाद संबंधित उपायुक्तों द्वारा पहचान पत्र जारी किए जाएंगे।

शरणार्थियों को चिकित्सा देखभाल, राहत और पुनर्वास और सुरक्षा दी जाएगी। इसमें कहा गया है कि मिजोरम के राहत और पुनर्वास (शरणार्थी / आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति) योजना, 2018 के अनुसार राजनीतिक उत्पीड़न के कारण शरणार्थियों के रूप में पहचाने जाने वाले व्यक्तियों को सहायता और अन्य बुनियादी मानवीय आवश्यकताएं प्रदान की जाएंगी।

इस निर्देश के बारे में जानने के बाद केंद्र सरकार ने राज्य को अपनी नाराजगी से अवगत कराया। 06 मार्च को राज्य के गृह विभाग ने एसओपी (MOP) को निरस्त कर दिया। इसने कहा, “26 फरवरी, 2021 को जारी किए गए म्यांमार से आए शरणार्थी की सुविधा के लिए स्थायी संचालन प्रक्रिया इसके द्वारा निरस्त कर दी गई है।”

10 मार्च को गृह मंत्रालय के नॉर्थ ईस्ट डिवीजन ने म्यांमार के शरणार्थियों की अवैध घुसपैठ पर मिज़ोरम, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और असम राइफल्स के महानिदेशक को एक पत्र जारी किया। मंत्रालय ने म्यांमार के शरणार्थियों को आने की अनुमति नहीं देने और कानून के अनुसार उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया।

एमएचए (MHA) ने कहा कि राज्य सरकारों के पास “किसी भी विदेशी को शरणार्थी का दर्जा” देने की कोई शक्तियां नहीं हैं और भारत 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और उसके 1967 के प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है।

पत्र में कहा गया है कि म्यांमार में मौजूदा आंतरिक स्थिति के कारण भारत-म्यांमार सीमा के माध्यम से भारतीय क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अवैध घुसपैठ की संभावना है।

इस संबंध में एमएचए (MHA) ने पहले ही 25 फरवरी, 2021 को मिजोरम, नगालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के मुख्य सचिवों और भारत-म्यांमार सीमा (असम राइफल्स) के साथ सीमा सुरक्षा बल के प्रमुख सचिवों को अलर्ट जारी करने और उचित कार्रवाई करने के लिए एक परामर्श जारी किया है।

सूत्रों ने कहा, किसी भी संघर्ष से बचने के लिए, सीमा की रक्षा करने वाले बल शरणार्थियों के सीधे संपर्क में नहीं आ रहे हैं, लेकिन सतर्कता बढ़ा दी है ताकि कोई अंदर न आए।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने पत्र में कहा है कि “अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए त्वरित कदम उठाने और निर्वासन प्रक्रियाओं को तेजी से और बिना देरी के शुरू करने के लिए सभी कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों को संवेदनशील बनाने के निर्देश जारी किए गए हैं।”

मंत्रालय ने कहा कि विदेशी प्रभाग ने भी 28 फरवरी, 2021 को एक पत्र के माध्यम से मुख्य सचिवों को निर्देश जारी किए थे, जिससे उन्हें कानून के प्रवर्तन और खुफिया एजेंसियों को अवैध प्रवासियों की पहचान के लिए उचित शीघ्र कदम उठाने के लिए सलाह दी गई थी।

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