Saturday, April 27, 2024

गुप्त पाक केबल दस्तावेज में खुलासा-2: इमरान खान को हटाने के षडयंत्र पर अमेरिका का इनकार

पाकिस्तान में राजनीतिक उठा-पटक और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को कुर्सी से हटाने के षडयंत्र के आरोपों का अमेरिकी विदेश विभाग पहले भी इनकार कर चुका है। और आज भी बार-बार आरोपों से इनकार कर रहा है कि डोनाल्ड लू ने पाकिस्तानी सरकार से प्रधानमंत्री को हटाने का आग्रह किया था या फिर पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में अमेरिका का कोई हस्तक्षेप है। 8 अप्रैल, 2022 को, जब इमरान खान ने अमेरिकी हस्तक्षेप का आरोप लगाया और कहा कि उनके दावे को साबित करने वाला एक मात्र केबल है। इसके बाद विदेश विभाग की प्रवक्ता जालिना पोर्टर से इस आरोपों को लेकर सत्यता के बारे में पूछा गया। पोर्टर ने कहा, “मैं बहुत स्पष्ट रूप से कहना चाहती हूं कि इन आरोपों में बिल्कुल भी सच्चाई नहीं है।”

अमेरिका के द्वारा आरोपों को किया गया खारिज

जून 2023 की शुरुआत में, इमरान खान ने द इंटरसेप्ट को दिए गए इंटरव्यू में एक बार फिर से ‘अमेरिकी हस्तक्षेप’ के आरोप दोहराया। उस वक्त भी अमेरिकी विदेश विभाग ने इस मामले पर टिप्पणी के अनुरोध के जवाब में पिछले इनकार को ही फिर से दुहरा दिया।

हालांकि, इमरान खान अपने दावों से पीछे नहीं हटे हैं, और विदेश विभाग ने जून और जुलाई के दौरान भी इन आरोपों से इनकार किया। कम से कम तीन बार प्रेस कॉन्फ्रेंस में इमरान खान अपने दावों पर कुछ ज्यादा ही जोर दिया, तो पाकिस्तान के उप सहायक सचिव ने बयान दिया और इमरान के दावों को “चुनाव के लिए प्रचार, गलत सूचना और गलत जानकारी” की संज्ञा दी।

एक बार फिर नये मौके पर, विदेश विभाग के प्रवक्ता मिलर ने इस सवाल को मजाक बनाते हुए कहा कि “मुझे लगता है कि मुझे बस एक संकेत लाने की ज़रूरत है जिसे मैं इस सवाल के जवाब के तौर पर रख सकूं और कह सकूं कि अमेरिका पर लगाए गए आरोप गलत हैं,” मिलर ने हंसते हुए और प्रेस की आलोचना करते हुए कहा, “मैं नहीं जानता कि मुझे इसे कितनी बार कहना होगा…. संयुक्त राज्य अमेरिका का पाकिस्तान या किसी अन्य देश को लेकर या फिर वहां के राजनीतिक उम्मीदवार या पार्टी बनाम पार्टी के बीच में पड़ने की कोई जरुरत नहीं है।”

जबकि केबल को लेकर सार्वजनिक रूप से और प्रेस में खुलेआम ड्रामा चल रहा था, जिसके बाद पाकिस्तानी सेना ने देश में पहले से इमरान खान को हटाए जाने को लेकर असहमति और अभिव्यक्ति को दबाने के लिए पाकिस्तानी नागरिक समाज पर बेताहाशा हमले किए।

हाल के महीनों में, सैन्य नेतृत्व वाली सरकार ने न केवल असंतुष्टों पर बल्कि अपने स्वयं के संस्थानों के अंदर संदिग्ध लीक करने वालों पर भी कार्रवाई की है। पाकिस्तान में पिछले हफ्ते एक कानून पारित किया गया है, इस कानून के तहत मुखबिर को बिना वारंट तलाशी लेने का अधिकार और लंबी जेल की सजा देने को अधिकृत करता है।

पाकिस्तान इमरान खान के समर्थन के सार्वजनिक प्रदर्शन से हिल गया है, खासकर मई महीने से इमरान खान के समर्थकों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन आयोजित करने की एक श्रृंखला सी चल पड़ी थी। सेना ने अपने लिए देश में अधिनायकवादी शक्तियां को स्थापित कर लिया हैं, जिसके बाद से नागरिक स्वतंत्रता को भारी रूप से क्षति पहुंची है, और सेना की आलोचना को आपराधिक कृत्य घोषित करती है। देश की अर्थव्यवस्था को लेकर सेना की पहले से ही व्यापक भूमिका है, और सैन्य नेताओं को राजनीतिक और नागरिक मामलों पर स्थायी वीटो का अधिकार है।

पाकिस्तान के लोकतंत्र पर हुए इन व्यापक हमलों को अमेरिका ने पूरी तरह से नजरअंदाज किया। जुलाई के अंत में, अमेरिकी सेंट्रल कमांड के प्रमुख जनरल माइकल कुरिल्ला ने पाकिस्तान का दौरा किया था, और फिर उसके बाद एक बयान जारी कर कहा कि उनकी यह यात्रा “सैन्य-से-सैन्य संबंधों को मजबूत करने” को लेकर था, जबकि पाकिस्तान में चल रही राजनीतिक स्थिति का उन्होंने कोई उल्लेख नहीं किया था।

इस गर्मी में, प्रतिनिधि ग्रेग कैसर, डी-टेक्सास, ने राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण अधिनियम में एक तर्क को जोड़ने के बारे में कहा था, जिसके तहत विदेश विभाग को पाकिस्तान में लोकतंत्र को खत्म करने और वहां पर स्थिति को बदतर करने को लेकर जांच करने का निर्देश दिया जाता। लेकिन अमेरिकी सदन में इस प्रस्ताव को पर्याप्त वोट ना मिलने या फिर सांसदों द्वारा वोट देने से इनकार कर देने के बाद ये प्रस्ताव निलंबित हो गया।

सोमवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में, विदेश विभाग के प्रवक्ता मिलर से पूछा गया कि क्या इमरान खान को निष्पक्ष सुनवाई मिली? के जवाब में मिलर ने कहा कि “हम मानते हैं कि यह पाकिस्तान का आंतरिक मामला है।”

राजनीतिक अराजकता

पाकिस्तानी सेना के साथ अनबन के बाद इमरान खान को सत्ता से हटाने वाला, यह वही संस्था है जिसके बारे में कहा जाता है कि उसने अपने राजनीतिक उत्थान को इस तरह से डिजाइन किया था, जिसने 230 मिलियन की आबादी वाले इस देश में राजनीतिक और आर्थिक तौर पर उथल-पुथल मचाकर रख दिया है। इमरान खान की बर्खास्तगी और उनकी पार्टी के दमन के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है और इनकी संस्थाओं को पंगु बना दिया है, जबकि पाकिस्तान के वर्तमान नेता वैश्विक ऊर्जा कीमतों पर ‘यूक्रेन पर रूसी आक्रमण’ से पड़े प्रभाव से उत्पन्न हुई आर्थिक संकट का सामना करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। पाकिस्तान में फैले वर्तमान अराजकता का परिणाम ये हुआ की देश में विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है और अंतर्राष्ट्रीय बाजार में देश की मुद्रा में भारी गिरावट देखने को मिल रहा है।

आम जनता के लिए बदतर स्थिति के अलावा, पाकिस्तानी सेना के निर्देश पर सेंसरशिप भी लागू कर दिया गया है, समाचार और संवाद एजेंसियों को प्रभावी रूप से कहा गया है कि इमरान खान के नाम का उल्लेख भी नहीं करना है। नागरिक समाज के हजारों लोगों को, जिनमें से ज्यादातर इमरान खान के समर्थक थे, को सेना ने हिरासत में ले लिया है। इस साल की शुरुआत में इमरान खान को गिरफ्तार किए जाने और चार दिनों तक हिरासत में रखे जाने के बाद, नागरिक समाज के लोगों गिरफ्तार करने की कार्रवाई तेज हो गई, जिसके बाद से देशभर में हुए इस तरह की गिरफ्तारी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था। सेना के द्वारा हिरासत में लिए गए नागरिक समाज के कई लोगों के मौतों की रिपोर्ट के साथ, सुरक्षा बलों द्वारा इन पर किए जाने वाली यातनाओं की विश्वसनीय रिपोर्टें भी सामने आई हैं।

पाकिस्तान की प्रेस पर सेना द्वारा की गई उग्र कार्रवाई ने गहरा मोड़ ले लिया है। देश छोड़कर चले गए प्रमुख पाकिस्तानी पत्रकार अरशद शरीफ़ को पिछले साल अक्टूबर में नैरोबी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी जो आज भी विवादित बनी हुई हैं। एक अन्य प्रसिद्ध पत्रकार, इमरान रियाज़ खान को इस मई में हवाई अड्डे पर से सुरक्षा बलों ने हिरासत में लिया था और उसके बाद उन्हें नहीं देखा गया है। दोनों पत्रकार ‘गुप्त रुप से केबल’ पर रिपोर्टिंग कर रहे थे। प्रेस पर हुए इन हमलों ने देश में डर का माहौल पैदा कर दिया है जिसके बाद से पाकिस्तान के अंदर पत्रकारों और संस्थानों द्वारा विक दस्तावेज़ को लेकर रिपोर्टिंग करना प्रभावी रूप से असंभव हो गया है।

पिछले साल नवंबर में, इमरान खान को मारने का प्रयास किया गया था। वज़ीराबाद में एक राजनीतिक रैली के दौरान उन पर गोली चलाई गई थी, इस हमले में वह घायल हो गए थे और उनके एक समर्थक की भी मौत हो गई थी, जबकि 9 लोग घायल हो गए थे। उनके कारावास की खबर को पूरे पाकिस्तान में व्यापक रूप से देखा गया है, इसमें उनकी सरकार के कई आलोचक भी शामिल हैं, जो सेना द्वारा उनकी पार्टी को आगामी चुनाव लड़ने से रोकने का प्रयासरत थे। सर्वेक्षणों से ये साफ पता चल रहा था कि इमरान खान को मतदान में भाग लेने की अनुमति दी गई, तो उनका जीतना तय लग रहा था।

मध्य पूर्व संस्थान के विद्वान रफीक बताते हैं कि “इमरान खान को एक मुकदमे के बाद मामूली आरोपों में दोषी करार दिया गया, इस ट्रायल में उनके वकील को गवाह पेश करने की भी अनुमति नहीं मिली थी। इमरान खान हत्या के प्रयास से बच गए थे, उनके साथ जुड़े एक पत्रकार की हत्या कर दी गई और उन्होंने अपने हजारों समर्थकों को कैद होते देखा है। जबकि वाइडेन सरकार ने कहा है कि मानवाधिकार उनकी विदेश नीति में सबसे पहला आएगा, लेकिन अब वो पाकिस्तान में मानवाधिकार का हनन होते हुए देख रहे हैं, और अब देश एक पूर्ण सैन्य तानाशाही बनने की ओर बढ़ रहा है।” “यह अंततः पाकिस्तानी सेना द्वारा देश पर अपना आधिपत्य जमाए रखने के लिए बाहरी ताकतों का उपयोग करने के बारे में है। हर बार जब कोई बड़ी भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा होती है, चाहे वह शीत युद्ध हो, या आतंक के खिलाफ युद्ध हो, सेना जानती है कि अमेरिका को अपने पक्ष में कैसे करना है।”

केबल पर इमरान खान बार-बार चर्चा करके कानूनी परेशानियों को न्योता दिया है, अभियोजकों ने इस बात को लेकर एक अलग जांच शुरू की है कि क्या उन्होंने इस पर चर्चा करके राज्य के रहस्य कानूनों का उल्लंघन किया है?

लोकतंत्र और सेना

वर्षों से, पाकिस्तानी सेना पर अमेरिकी सरकार के साथ सरपरस्ती का संबंध रहा है, जिसने लंबे समय तक देश की राजनीति में सत्ता के दलाल के रूप में काम किया है, जिससे कई पाकिस्तानियों का यह मानना है कि इस तरह के सरपरस्ती संबंध से देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने, स्थानिक भ्रष्टाचार से निपटने और रचनात्मक विदेश नीति को आगे बढ़ाने की क्षमता में एक अभेद्य बाधा है। देश की जनता में यह भावना है कि इस रिश्ते के कारण पाकिस्तान में प्रबल स्वतंत्रता का अभाव है, जिससे देश में लोकतंत्र के होने के बावजूद, ना चाहते हुए भी सेना को घरेलू राजनीति में एक अछूत शक्ति बना दिया है, एक लोकप्रिय प्रधानमंत्री को हटाने में अमेरिका की संलिप्तता के आरोप और भी अधिक भड़काने वाले हैं।

इंटरसेप्ट का स्रोत, सेना के सदस्य हैं और उनकी दस्तावेज़ों तक पहुंच थी, इमरान खान के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई में शामिल होने के बाद सेना के मनोबल पर प्रभाव पड़ा था, ये साफ तौर पर देखा जा सकता था क्योंकि हाल के समय में राजनीतिक उद्देश्यों के लिए जो लोग मरे हैं उनकी यादों को मिटाना, और जनता पर सशस्त्र बलों का उपयोग कर कार्रवाई करना किसी भी तरह से जायज नहीं था लेकिन सेना को ये पता था कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो पाकिस्तान में लोग सैन्य विरोधी हो जाएंगे। उनका मानना है कि सेना पाकिस्तान को 1971 जैसे संकट की ओर धकेल रही है, जिसके कारण बांग्लादेश अलग हो गया था।

सूत्र ने आगे कहा कि उसे उम्मीद है कि लीक हुआ दस्तावेज़ आख़िरकार आम लोगों, साथ ही सशस्त्र बलों के रैंक और फाइल की पुष्टि करेगा, क्योंकि सूत्र को लंबे समय से पाकिस्तानी सेना को लेकर संदेह था और संस्था के भीतर जबरदस्ती हिसाब-किताब करने को कहा गया था।

इसी साल जून में, इमरान खान की राजनीतिक पार्टी पर सेना की कार्रवाई के बीच, इमरान के पूर्व शीर्ष अधिकारी और प्रधान सचिव आजम खान को गिरफ्तार कर लिया गया और करीब एक महीने के लिए हिरासत में रखा गया था। हिरासत में रहते हुए, आज़म खान ने कथित तौर पर न्यायपालिका के एक सदस्य के सामने दिए रिकॉर्डेड बयान में कहा कि केबल वास्तव में सच था, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री ने राजनीतिक लाभ के लिए इसकी सामग्री को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया था।

केबल में उल्लिखित बैठक के एक महीने बाद, और इमरान खान को पद से हटाए जाने के कुछ ही दिन पहले, तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख क़मर बाजवा ने सार्वजनिक रूप से इमरान खान की निष्पक्षता दरकिनार करते हुए, एक भाषण दिया जिसमें सेना प्रमुख ने रूसी आक्रमण को “बड़ी त्रासदी” कहा और रूस की आलोचना किया। टिप्पणियों के सार्वजनिक तस्वीर को केबल में दर्ज डोनाल्ड लू के निजी विचार के साथ जोड़ दिया, अमेरिका के रुस के खिलाफ प्रस्ताव को लेकर पाकिस्तान की निष्पक्षता इमरान खान की नीति थी, सेना की नहीं।

इमरान खान को प्रधानमंत्री पद से हटाए जाने के बाद से पाकिस्तान की विदेश नीति में बदलाव साफ तौर पर देखा जा सकता है, अब के समय में यूक्रेन युद्ध को लेकर पाकिस्तान का झुकाव अमेरिका और यूरोपीय पक्ष की ओर अधिक स्पष्ट रूप से हो गया है। अपनी निष्पक्षता के चेहरे को त्यागकर, पाकिस्तान अब यूक्रेनी सेना को हथियारों के आपूर्तिकर्ता के रूप में बनकर उभरा है, पाकिस्तान निर्मित गोला-बारूद की तस्वीरें नियमित रूप से युद्ध के मैदान के फुटेज में दिखाई देती हैं। इस साल की शुरुआत में एक इंटरव्यू में, यूरोपीय संघ के एक अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की थी यूक्रेन को पाकिस्तानी सेना का समर्थन मिल रहा है। इस बीच, यूक्रेन के विदेश मंत्री ने इस जुलाई में पाकिस्तान का दौरा किया, जिसे व्यापक रूप से सैन्य सहयोग के लिए की गई यात्रा माना गया है, लेकिन सार्वजनिक रूप से इसे व्यापार, शिक्षा और पर्यावरण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने के रूप में दुनिया के सामने रखा गया।

ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिका के साथ पाकिस्तानी सेना का संबंध फायदे का सौदा साबित हो रहा है। 3 अगस्त को, एक पाकिस्तानी अखबार ने बताया कि संसद ने अमेरिका के साथ “संयुक्त अभ्यास, संचालन, प्रशिक्षण, बेसिंग और उपकरण” को कवर करते हुए एक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर करने को मंजूरी दे दी है। इस समझौते का उद्देश्य दोनों देशों के बीच पिछले 15-वर्षीय सौदे को प्रतिस्थापित करना था जो 2020 में समाप्त हो गया था।

पाकिस्तानी “आकलन”

पाकिस्तान की आंतरिक राजनीति पर डोनाल्ड लू की तीखी टिप्पणियों ने पाकिस्तानी पक्ष को चिंता में डाल दिया। दस्तावेज़ के अंतिम भाग में एक संक्षिप्त “आकलन” अनुभाग में, इसके अनुसार “डोनाल्ड व्हाइट हाउस की स्पष्ट मंजूरी के बिना इतना मजबूत कदम नहीं उठा सकता था, जिसका उसने बार-बार उल्लेख किया है। स्पष्ट रूप से, डोनाल्ड ने पाकिस्तान की आंतरिक राजनीतिक प्रक्रिया पर बिना सोचे-समझे बात की। बाद में इमरान खान की सरकार द्वारा एक राजनयिक विरोध जारी किया गया।

27 मार्च, 2022 को ठीक उसी महीने डोनाल्ड लू ने बैठक की थी, इमरान खान ने सार्वजनिक रूप से केबल के बारे में बात की, और एक रैली में इसकी एक मुड़ी हुई प्रति हवा में लहराई थी। उन्होंने कथित तौर पर पाकिस्तान की विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों के साथ एक राष्ट्रीय सुरक्षा बैठक में केबल में उपस्थित सामग्री की जानकारी दी थी।

यह स्पष्ट नहीं है कि पाकिस्तान-अमेरिका के बैठक में क्या हुआ था? बैठक के कुछ सप्ताहों के बाद बातचीत को केबल में रिपोर्ट किया गया। हालांकि, अगले महीने तक राजनीतिक हवाएं बदल चुकी थीं। 10 अप्रैल को, इमरान खान को अविश्वास मत से बाहर कर दिया गया था।

नए प्रधानमंत्री, शहबाज़ शरीफ़ ने अंततः केबल के अस्तित्व की पुष्टि की और स्वीकार किया कि डोनाल्ड लू के द्वारा कही गई कुछ बातें अनुचित थीं। उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान ने औपचारिक रूप से शिकायत की थी, और आगाह किया कि केबल इमरान खान के व्यापक दावों की पूर्णरूप से पुष्टि नहीं करता है।

इमरान खान ने सार्वजनिक रूप से बार-बार सुझाव दिया है कि परम-गुप्त केबल से पता चलता है कि अमेरिका ने उन्हें सत्ता से हटाने का निर्देश दिया था, लेकिन बाद में उन्होंने अपने दावों को सही किया क्योंकि उन्होंने अमेरिका से अपने समर्थकों के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा करने का आग्रह किया था। जून में एक इंटरव्यू में उन्होंने द इंटरसेप्ट को बताया कि अमेरिका ने शायद उन्हें हटाने की बात की होगी, लेकिन ऐसा सिर्फ इसलिए किया गया होगा क्योंकि इसमें सेना द्वारा छलकपट किया गया था।

इमरान खान को पद से हटाने और उनकी गिरफ्तारी के एक साल से अधिक समय बाद, केबल ने पूरे हिस्से का खुलासा अंततः प्रतिस्पर्धी दावों का मूल्यांकन करने की अनुमति देता है। कुल मिलाकर, साइफर में लिखे बातों से ये पता चलता है कि अमेरिका ने इमरान खान को हटाने के लिए दवाब बनाया था। केबल के अनुसार, जबकि डोनाल्ड लू ने सीधे तौर पर इमरान खान को पद से हटाने का आदेश नहीं दिया, लेकिन उन्होंने कहा कि अगर इमरान खान प्रधानमंत्री बने रहे तो पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय अलगाव सहित गंभीर परिणाम भुगतने होंगे, साथ ही उन्होंने इमरान खान को हटाने के लिए पुरस्कृत करने का भी इशारा किया। इन चीजों को सुनने और देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि पाकिस्तानी सेना के लिए ये बातें एक्शन दिखाने की तरफ संकेत देता है।

अपनी अन्य कानूनी समस्याओं के अलावा, नई सरकार द्वारा गुप्त केबल चलाने को लेकर इमरान खान को लगातार निशाना बनाया जाता रहा है। पिछले महीने के अंत में, आंतरिक मंत्री राणा सनाउल्लाह ने कहा था कि केबल के संबंध में इमरान खान पर आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जाएगा। सनाउल्लाह ने कहा कि, “इमरान खान ने राज्य के हितों के खिलाफ साजिश रची है और एक राजनयिक मिशन से गोपनीय साइफर संचार को उजागर करके आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के उल्लंघन के लिए राज्य की ओर से उनके खिलाफ मुकदमा शुरू किया जाएगा।”

इमरान खान अब उन पाकिस्तानी राजनेताओं की लंबी सूची में शामिल हो गए हैं जो सेना से भिड़ने के बाद प्रधानमंत्री कार्यालय में अपना कार्यकाल पूरा करने में विफल रहे। जैसा कि साइफर में उद्धृत किया गया है, डोनाल्ड लू के अनुसार, यूक्रेन संघर्ष के दौरान पाकिस्तान की गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाने के लिए खान को व्यक्तिगत रूप से अमेरिका द्वारा दोषी ठहराया जा रहा था। पूरी बातचीत के दौरान अविश्वास प्रस्ताव और अमेरिका-पाकिस्तान संबंधों के भविष्य पर इसके प्रभाव का मुद्दा छाया रहा।

दस्तावेज़ में इमरान खान के पद पर बने रहने की संभावना का जिक्र करते हुए डोनाल्ड लू को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि, “मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री का यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका से अलगाव होना जरुरी है।”

(यह रिपोर्ट ‘दि इंटरसेप्ट’ पोर्टल से ली गयी है और उसका अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद राहुल कुमार ने किया है।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

एक बार फिर सांप्रदायिक-विघटनकारी एजेंडा के सहारे भाजपा?

बहुसंख्यकवादी राष्ट्रवाद हमेशा से चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सांप्रदायिक विघटनकारी...

Related Articles

एक बार फिर सांप्रदायिक-विघटनकारी एजेंडा के सहारे भाजपा?

बहुसंख्यकवादी राष्ट्रवाद हमेशा से चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सांप्रदायिक विघटनकारी...