आजकल मोदी जी पहली नज़र में संघ और ट्रम्प के बीच मुश्किलात में फंसे सार्वजनिक तौर पर नज़र आते हैं। किंतु यह रिश्ता बनाए रखना जितना संघ-भाजपा को बनाए रखना ज़रूरी है उतना ही डोनाल्ड ट्रम्प के लिए भी परम आवश्यक है। दोनों अपने मुल्क को गोल्डन बनाने के इच्छुक हैं। पर विश्वगुरु मोदी का रंग फीका पड़ गया है जब से ट्रंप दूसरी बार राष्ट्रपति बने हैं।
इसीलिए मोदी जी ने अपना ज़मीर अमेरिका को समर्पित कर दिया है और अमेरिकी किसी काम में बाधा बनने से साफ़ मना कर दिया है। अब क्या है, मोदी जी को सत्ता से हटाने की क्या ज़रूरत है। उनके रहने से जब लूट के तमाम रास्ते खुल गए हों। इतने बड़े देश के पीएम का यह समर्पण ऐतिहासिक इस मामले में होगा कि अमेरिका हमारा दोस्त बना रहे। ऐसा ही कुछ समर्पण हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान का भी रहा है इसलिए आज पाकिस्तान बर्बाद हो चुका है।
दूसरा खूंटा राष्ट्रीय स्वयं सेवक ने गाड़ रखा है। भाजपा अध्यक्ष पद को लेकर संघ अपने इशारों पर पूरी तरह चलने वाला अध्यक्ष चाहता है। उसे जेपी नड्डा इसलिए कभी पसंद नहीं रहे। उधर मोदी-शाह भली-भांति जानते हैं कि संघ की उपेक्षा भारी पड़ सकती है इसलिए 30 मार्च को नागपुर प्रवास की सूचना सामने आई है। यहां यह समझ में नहीं आ रहा है कि संघ मोदी से क्यों नाराज़ है। उसने तो मोहन भागवत की इच्छानुसार ही अब तक सभी गैर संवैधानिक कार्यों को किया है।
नागपुर जैसे शांत क्षेत्र में औरंगजेब की कब्र के बहाने क्षेत्र में दंगा फैलाकर ये भी बताया गया कि हम कहीं भी कुछ भी करा सकते हैं। जब आग बहुत तेज हो गई तो आदतानुसार संघ ने पटापेक्ष किया और हिंसा के खिलाफ मुखारबिंद खोल दिया। जबकि सच यह है कि संघ बहुमुखी है उसके ऐसे बयान कभी विश्वसनीय नहीं रहे हैं। यह दोनों की मिली जुली हरकत है क्योंकि इस गड़े मुर्दे उखाड़ नीति के सिवा अब हिंसा फैलाने का कोई चारा इनके पास बचता ही नहीं है।
आपको जानकर आश्चर्य होगा नाथूराम गोडसे जिसने बापू की हत्या की उसने अपने हाथ में उर्दू भाषा में मुस्लिम नाम लिखा था ताकि उसे मुस्लिम समझ लिया जाए। पर लोग उसे पहचान गए तथा उसे पकड़ लिया गया। बुरके पहनाकर जाने कितने हिंदू अपराध करते पकड़े गए। आज भी बहुसंख्यक घटनाओं में पहले मुस्लिम नाम आता है।बाद में पता चलता है ये सब हिंदू संघी हैं। इस चौर्य कौशल में ये अव्वल हैं। गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर हैं। इनके कथन गहरे कूटनीति से भरे होते हैं।
दूसरी बात ये है मोदी सरकार ने ही इस संस्था को मज़बूत आर्थिक आधार दिया। जिसकी बदौलत दिल्ली में संघ का विशाल कार्यालय बना। मोदी शाह से पंगा लेकर भला संघ अपने हित क्यों दांव पर लगाएगा? इसलिए लगता है मोदी को शायद ही ये टच करें। संघ के भाजपा अध्यक्ष पद पर भी नत हो सकता है। क्योंकि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और इसे गिराने से दोनों का अस्तित्व बिखर जाएगा जिससे विपक्ष को मौका मिल जाएगा। वहीं डोनाल्ड ट्रम्प इस सुनहरे अध्याय को समाप्त नहीं कर सकता है। दुख इस बात का है कि भारत अमेरिकी जाल में फंस चुका है जिसके परिणामस्वरूप भारत फिर एक गरीब मुल्क बन सकता है। क़र्ज़ से यूं ही देश लद चुका है। भारत
देश की बर्बादी के लिए जितना संघ और मोदी सरकार जिम्मेदार होगी उतने ही डोनाल्ड ट्रम्प भी। विपक्ष की चुनौतियां बढ़ जाएंगी उन्हें अंदरूनी और बाहरी दोनों मोर्चों से लड़ने की तैयारी रखनी होगी।
(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)
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