नोएडा स्थित सुपरटेक के ट्विन टावर को रविवार को गिरा दिया गया। भ्रष्टाचार का पेट जैसे-जैसे भरा जा रहा था, नोएडा के ट्विन टावर निर्माण में टावर की ऊंचाई उसी हिसाब से बढ़ती जा रही थी। नोएडा के ट्विन टावर निर्माण में व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ था। नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों ने रियल इस्टेट कारोबारी के साथ मिलकर भ्रष्टाचार किया। भ्रष्टाचार की इस गाथा की शुरुआत आज से करीब 18 साल पहले वर्ष 2004 में शुरू हुई थी। नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर 93ए में ग्रुप हाउसिंग के प्लॉट नंबर 4 का आवंटन 23 नवंबर, 2004 को एमराल्ड कोर्ट को कर दिया।
ग्रुप हाउसिंग सोसायटी को नोएडा अथॉरिटी की ओर से 14 टावर निर्माण के नक्शे का आवंटन किया गया। ग्रुप हाउसिंग सोसायटी में सभी 14 टावरों के लिए जी+9 यानी ग्राउंड फ्लोर के साथ 9 मंजिला पास किया गया। इसके बाद शुरू हुआ बिल्डर और अथॉरिटी के बीच का खेल। करीब 2 साल बाद 26 नवंबर 2006 को अथॉरिटी ने ग्रुप हाउसिंग सोसायटी के नक्शे में पहला संशोधन किया। बिल्डर को दो मंजिल और निर्माण की मंजूरी दे दी गई। अर्थात सभी 14 टावर में अब 9 की जगह 11 मंजिल का निर्माण करने की अनुमति दे दी गई। फिर दो और टावर निर्माण की मंजूरी दी गई।
टावर 15 और टावर 16 को भी 11 मंजिल इमारत के निर्माण का नक्शा दिया गया। टावर की ऊंचाई 37 मीटर निर्धारित की गई थी।टावरों के निर्माण योजना में लगातार बदलाव हो रहे थे। इसी क्रम में 26 नवंबर, 2009 को ग्रुप हाउसिंग सोसायटी के टावर नंबर- 17 का नक्शा पास किया गया।
टावर नंबर 16 के नक्शे में संशोधन किया गया। नए नक्शे के मुताबिक, टावर नंबर 16 और 17 के 24 मंजिला निर्माण की मंजूरी दी गई। अब इसकी ऊंचाई 73 मीटर निर्धारित की गई। मामला यहीं नहीं थमा। टावर के नक्शे में तीसरा संशोधन 2 मार्च 2012 को किया गया। नए संशोधन के तहत टावर नंबर 16 और 17 के लिए फ्लोर एरिया रेशियो बढ़ा दिया गया। नए एफएआर के तहत दोनों टावरों की ऊंचाई 40 मंजिला करने की इजाजत दे दी गई। नए संशोधन के बाद बिल्डिंग की ऊंचाई 121 मीटर तय की गई।
अवैध रूप से निर्मित इस ढांचे को ध्वस्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त, 2021 को आदेश दिया था। नोएडा में भ्रष्टाचार का ट्विन टावर रविवार को गिरा दिया गया। विस्फोट के बाद चंद सेकंड में 800 करोड़ रुपये की यह विशाल इमारत ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर गिर गई।
18 साल पहले लोगों के आशियाने के लिए कवायद शुरू होती है। बिल्डर जमीन खरीदता है, नोएडा अथॉरिटी इसकी अनुमति देती है। फिर शुरु होता है बिल्डर, प्रशासन की मिलीभगत का खेल। इसके बाद भ्रष्टाचार की नींव पर गगनचुंबी इमारत खड़ी हो जाती है। ऐसे में जब गलतियां उजागर होती हैं तो मामला कोर्ट में चला जाता है। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सिर पर छत की उम्मीद लगाए लोगों को क्या मिलता है, बारूद और धूल का गुबार, मलबे का ढेर।
ट्विन टावर को ढहाने का आदेश और फिर उस पर पालन ने देश की न्यायपालिका में लोगों का भरोसा बढ़ा है। उच्चतम न्यायालय ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि अनधिकृत निर्माण में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। पर्यावरण की सुरक्षा और निवासियों की सुरक्षा पर भी विचार करना होगा। यह निर्माण सुरक्षा मानकों को कमजोर करता है। इस पूरे मामले में उच्चतम न्यायालय ने जिस तरह से स्टैंड लिया है, उससे लगता है कि इस तरह के नियमों के खिलाफ होने वाले निर्माण पर रोक लगेगी।
अब बिल्डर पैसे के दम पर बार-बार अपने हाउसिंग प्रोजेक्ट में मनमर्जी के बदलाव करने से पहले सौ बार सोचेंगे। इतना ही नहीं इस फैसले ने एक नजीर तो ज़रूर रखी है कि ‘सब चलता है’ वाला एटिट्यूड काम नहीं आएगा। इससे बिल्डर में यह संदेश गया है कि गलती या धांधली की तो फंसना पड़ जाएगा। प्रोजेक्ट बंद होगा सो अलग लोगों को उनके पैसे भी ब्याज के साथ चुकाने पड़ेंगे। मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि नोएडा प्राधिकरण द्वारा दी गई मंजूरी भवन नियमों का उल्लंघन है। अब जिस तरह से सरकार ने भी सख्त रवैया अपनाया है, उससे भी बिल्डर को संदेश मिला है कि अब लोगों और फ्लैट बायर्स के साथ वादाखिलाफी नहीं चलेगी। इस फैसले के बाद से लोगों में जागरुकता बढ़ेगी।
नोएडा समेत दिल्ली-एनसीआर में बिल्डर करोड़ों फ्लैट का निर्माण कर रहे हैं। लेकिन इक्का-दुक्का प्रोजेक्ट को छोड़ दें तो शायद ही किसी प्रोजेक्ट में पर्यावरण से जुड़े नियमों का पूरी तरह से पालन हो रहा होगा। बात चाहे सुरक्षा मानकों के पालन का हो। ग्रीन बेल्ट एरिया का हो या फिर बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के बेसिक कोड की हो। सभी जगहों पर इसकी अवहेलना हो रही है। नोएडा के ट्विन टावर वाले मामले में भी कोर्ट ने कहा था कि टावरों के निर्माण के लिए ग्रीन एरिया का उल्लंघन किया गया था। अब ट्विन टावर के ढहाए जाने के बाद अधिकारी और बिल्डर साठगांठ कर पर्यावरण मानकों का उल्लंघन करने से पहले सोचेंगे।
इस पूरी कवायद में यदि कोई सबसे अधिक जो प्रभावित हुआ है वो है फ्लैट खरीदने वाले। वो लोग जिन्होंने इस इमारत में फ्लैट बुक किए थे। कोर्ट ने भले ही लोगों का पैसा ब्याज के साथ वापस करने का आदेश दिया हो लेकिन क्या ये पैसा अब इतना पर्याप्त होगा कि लोग उससे अपना आशियाना खरीद सकें। इन दोनों टावरों में 711 घर खरीदारों ने फ्लैट बुक कराए थे। इनमें से 650 से ज्यादा खरीदारों के क्लेम निपटाए गए हैं। कई लोगों को अब तक क्लेम का रिफंड नहीं मिला है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के साल 2014 में ट्विन टावर गिराए जाने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा था। उच्चतम न्यायालय के 31 अगस्त 2021 को फैसले के बाद ही भ्रष्टाचार के ट्विन टावर का गिरना तय हो गया था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच का यह ऐतिहासिक फैसला था। इस फैसले पर पूरी तरह से अमल भी हो गया। नोएडा के सेक्टर 93 ए में सुपरटेक के दो टॉवर का ढहाया जाना भ्रष्ट बिल्डरों के लिए सबक के साथ सुप्रीम कोर्ट का फैसला नजीर भी बन गया है।
पिछले साल अपने फैसले में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने यह साफ कर दिया था कि इन टावरों का निर्माण नोएडा प्राधिकरण और सुपरटेक के अधिकारियों के बीच मिलीभगत का परिणाम था। पीठ ने स्पष्ट कर दिया था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के 11 अप्रैल 2014 के फैसले में किसी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।
जस्टिस चंद्रचूड ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि ये मामला नोएडा अथॉरिटी और डेवलपर के बीच मिलीभगत का एक उदाहरण है। इस मामले में सीधे-सीधे बिल्डिंग प्लान का उल्लंघन किया गया। नोएडा अथॉरिटी ने लोगों से प्लान शेयर भी नहीं किया। ऐसे में इलाहाबाद हाईकोर्ट का टावरों को गिराने का फैसला बिल्कुल सही था। अनाधिकृत निर्माण में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। पर्यावरण की सुरक्षा और निवासियों की सुरक्षा पर भी विचार करना होगा। यह निर्माण सुरक्षा मानकों को कमजोर करता है। अवैधता से सख्ती से निपटना होगा। बिल्डरों और योजनाकारों के बीच अपवित्र गठजोड़ निवासियों को उस जानकारी से वंचित किया जाता है जिसके वे हकदार हैं।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2014 में हाउसिंग सोसायटी में नियमों के उल्लंघन पर दोनों टावर गिराने के आदेश दिए थे। हाईकोर्ट ने प्राधिकरण के अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई के निर्देश जारी किए थे। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुपरटेक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। सुनवाई के दौरान बिल्डर का पक्ष लेने पर सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा प्राधिकरण को जमकर फटकार लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप बिल्डर की भाषा बोल रहे हैं। कोर्ट ने कहा था कि आपके अंग-अंग से भ्रष्टाचार टपकता है। कोर्ट की यह टिप्पणी नोएडा प्राधिकरण द्वारा अपने अधिकारियों का बचाव करने और फ्लैट बायर्स की कमियां बताने पर थी।
मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि नोएडा प्राधिकरण द्वारा दी गई मंजूरी भवन नियमों का उल्लंघन है। टावरों के बीच न्यूनतम दूरी की आवश्यकताओं के खिलाफ है। भवन निर्माण के नियमों का पालन नहीं करने से अग्नि सुरक्षा मानकों का भी उल्लंघन हुआ है। टावरों के निर्माण के लिए हरित क्षेत्र का उल्लंघन किया गया था।
इस बीच यूपी के मुख्यमंत्री कार्यालय ने ट्विन टावर बनने के जिम्मेदार दोषी 26 अफसरों की लिस्ट जारी कर दी है। नोएडा में भ्रष्टाचार के ट्विन टावर रविवार को गिरा दिए गए। इसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने 26 सरकारी अफसरों पर कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। टावर बनते समय ये अफसर किसी न किसी पद पर नोएडा डेवलपमेंट अथॉरिटी में तैनात थे। इनके संरक्षण में ही इमारत को 15 से 32 मंजिल बनाने की मंजूरी दी गई थी। तत्कालीन अफसरों के अलावा सुपरटेक लिमिटेड के चार निदेशक और आर्किटेक्ट भी आरोपियों की लिस्ट में शामिल हैं।
ट्विन टावर बनने के दौरान भ्रष्टाचार में शामिल अफसरों की सूची में मोहिंदर सिंह /सीइओ, नोएडा (रिटायर्ड),एस.के.द्विवेदी / सीइओ, नोएडा (रिटायर्ड),
आर.पी.अरोड़ा/अपर सीइओ, नोएडा (रिटायर्ड),यशपाल सिंह/विशेष कार्याधिकारी (रिटायर्ड),स्व. मैराजुद्दीन/प्लानिंग असिस्टेंट (रिटायर्ड),ऋतुराज व्यास/ सहयुक्त नगर नियोजक(वर्तमान में यमुना प्राधिकरण में प्रभारी महाप्रबंधक),एस.के.मिश्रा /नगर नियोजक (रिटायर्ड),राजपाल कौशिक/वरिष्ठ नगर नियोजक (रिटायर्ड),त्रिभुवन सिंह/मुख्य वास्तुविद नियोजक (रिटायर्ड),शैलेंद्र कैरे/उपमहाप्रबन्धक, ग्रुप हाउसिंग (रिटायर्ड),बाबूराम/परियोजना अभियंता (रिटायर्ड),टी.एन.पटेल/प्लानिंग असिस्टेंट (सेवानिवृत्त),वी.ए.देवपुजारी/मुख्य वास्तुविद नियोजक (सेवानिवृत्त),श्रीमती अनीता/प्लानिंग असिस्टेंट (वर्तमान में उ.प्र.राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण),एन.के. कपूर /एसोसिएट आर्किटेक्ट (सेवानिवृत्त),मुकेश गोयल/नियोजन सहायक (वर्तमान में प्रबंधक नियोजक के पद पर गीडा में कार्यरत),प्रवीण श्रीवास्तव/सहायक वास्तुविद (सेवानिवृत्त),ज्ञानचंद/विधि अधिकारी (सेवानिवृत्त),राजेश कुमार /विधि सलाहकार (सेवानिवृत्त),स्व. डी.पी. भारद्वाज/प्लानिंग असिस्टेंट,श्रीमती विमला सिंह/ सहयुक्त नगर नियोजक,विपिन गौड़/महाप्रबंधक (सेवानिवृत्त),एम.सी.त्यागी/परियोजना अभियंता (सेवानिवृत्त),के.के.पांडेय/ मुख्य परियोजना अभियंता,पी.एन.बाथम/ अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी,तथा ए.सी सिंह/वित्त नियंत्रक (सेवानिवृत्त) का नाम शामिल है ।
सुपरटेक लिमिटेड के निदेशक और आर्किटेक्ट की सूची;आर.के.अरोड़ा-निदेशक,संगीता अरोड़ा-निदेशक,अनिल शर्मा-निदेशक,विकास कंसल-निदेशक,दीपक मेहता (एसोसिएट्स आर्किटेक्ट) तथा नवदीप ( इंटीरियर डिजाइनर) ।
नोएडा के सेक्टर 93ए में ट्विन टावर को बनाने की शुरुआत 2006 में हुई थी। उस समय मोहिंदर सिंह नोएडा अथॉरिटी में बतौर सीइओ तैनात थे। लिस्ट में सिंह और उनके बाद नियुक्त हुए पांच सीइओ के नाम शामिल हैं। इन सभी के कार्यकाल में टावर को बनाने या उसकी ऊंचाई बढ़ाए जाने को मंजूरी दी गई थी।
अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने कहा कि भ्रष्टाचार पर एक्शन जारी रहेगा। पहली बार इतना बड़ा निर्माण ध्वस्त कराया गया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया है। दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। नोएडा में भ्रष्टाचार की इमारत जमींदोज कर दी गई है। इस मामले में शामिल सभी अधिकारियों की सूची तैयार कर दी गई है।
सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट में एक 3 बीएचके अपार्टमेंट की लागत लगभग 1.13 करोड़ रुपए बताई गई थी। दोनों इमारतों में करीब 915 फ्लैट थे, जिससे कंपनी को करीब 1,200 करोड़ रुपए की कमाई होती। कुल 915 फ्लैटों में से लगभग 633 बुक किए गए थे और कंपनी ने होमबॉयर्स (जो लोग इन्हें खरीद रहे थे) से लगभग 180 करोड़ रुपए एकत्र किए। अब कंपनी को इन लोगों के पैसे 12 फीसदी ब्याज के साथ लौटाने को कहा गया है।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)