Tuesday, March 19, 2024

एससी और एसटी की पदोन्नति में आरक्षण वाले निर्णयों पर सुप्रीमकोर्ट नहीं करेगा पुनर्विचार

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने मंगलवार को कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने की नीतियों में उन सभी शर्तों को पूरा करना होगा, जो उच्चतम न्यायालय की अलग-अलग संविधान पीठ ने पिछले दो फैसलों में तय की हैं। उच्चतम न्यायालय  ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वह एम. नागराज (2006) और जरनैल सिंह (2018) मामलों में दिए गए निर्णयों पर पुनर्विचार नहीं करेगी। इन दोनों फैसलों में ही पदोन्नति में आरक्षण संबंधी नीतियों के लिए शर्तें निर्धारित की गई थीं।

इन दोनों मामलों में दिए निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और राज्यों को पदोन्नति में आरक्षण देने से पहले एससी-एसटी वर्ग का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व दिखाने वाले मात्रात्मक डेटा जुटाने, प्रशासनिक दक्षता और सार्वजनिक रोजगार पर आरक्षण के प्रभाव का आकलन करने को अनिवार्य बनाया था।

केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों ने उच्चतम न्यायालय से पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित मुद्दों पर तत्काल सुनवाई करने का आग्रह किया है क्योंकि पदोन्नति में आरक्षण लागू करने के मानदंडों में अस्पष्टता के कारण कई नियुक्तियां रुकी हुई हैं। मंगलवार को, विभिन्न राज्यों से उत्पन्न होने वाली कुल 133 याचिकाओं को जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था।

भारत के अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल और विभिन्न राज्यों के वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने अदालत को बताया कि सरकारी पदों पर कई नियुक्तियां पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित अनसुलझे मुद्दों के कारण रुकी हुई हैं। पीठ 11 विभिन्न हाईकोर्ट के फैसलों के आधार पर दाखिल 130 से ज्यादा याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। विभिन्न हाईकोर्ट ने पिछले दस सालों में विभिन्न आरक्षण नीतियों पर अपने फैसले दिए हैं। ये फैसले महाराष्ट्र, बिहार, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब आदि राज्यों से जुड़े हैं।

सुनवाई में पीठ ने कहा कि हम यह स्पष्ट करते हैं कि नागराज या जरनैल सिंह मामले को फिर से खोलने नहीं जा रहे हैं। इन मामलों में हमारे पास सीमित गुंजाइश है। हम केवल यह परखेंगे कि क्या हाईकोर्ट के फैसलों में शीर्ष अदालत के इन दो निर्णयों में तय सिद्धांतों का पालन हुआ है या नहीं?

पीठ जरनैल सिंह बनाम लक्षमी नारायण गुप्ता और इससे जुड़े मामलों की सुनवाई कर रही है। इस मामले में कुछ मुद्दों को पहले 5 जजों की बेंच को भेजा गया था। 2018 में, 5-न्यायाधीशों की बेंच ने एम नागराज बनाम भारत संघ के मामले में 2006 के फैसले को गलत बताते हुए उस संदर्भ का जवाब दिया, जिसमें कहा गया था कि एससी/एसटी के पिछड़ेपन को दर्शाने वाला मात्रात्मक डेटा उन्हें पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए आवश्यक है। इस स्पष्टीकरण के साथ, 5-न्यायाधीशों की पीठ ने नागराज के फैसले को 7-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजने की याचिका को ठुकरा दिया।

तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की 5 जजों की बेंच ने यह भी कहा था कि क्रीमी लेयर की अवधारणा एससी / एसटी पर भी लागू होगी।

आरक्षित श्रेणी के कुछ उम्मीदवारों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने भी पीठ से कहा कि दोनों निर्णय यह परिभाषित नहीं करते हैं कि पर्याप्त प्रतिनिधित्व या कुशल कामकाज का क्या मतलब है। उन्होंने कहा कि इस वजह से पदोन्नति में आरक्षण को लेकर भ्रम की स्थिति है। उन्होंने आग्रह किया कि पीठ पिछले फैसलों को स्पष्ट करने के लिए कुछ दिशानिर्देश दे सकती है। लेकिन पीठ ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया।

वहीं, सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के प्रतिनिधि वरिष्ठ वकील राजीव धवन, गोपाल शंकरनारायणन और कुमार परिमल ने पिछले निर्णयों को फिर से खोलने की दलीलों पर कड़ी आपत्ति जताई।

अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने केंद्र सरकार की तरफ से एक बार फिर पूरे देश में 1.3 लाख से अधिक रिक्त पदों को भरने के लिए तदर्थ पदोन्नति करने की इजाजत मांगी। उन्होंने कहा कि ये पदोन्नति विशुद्ध रूप से वरिष्ठता के आधार पर की जाएगी। ऐसे उम्मीदवारों की पदोन्नति के खिलाफ निर्णय आने पर निचले पद पर वापस भेजा जा सकता है।

वेणुगोपाल ने बताया कि अप्रैल 2019 में अदालत के यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देने से कई विभागों में कामकाज बहुत मुश्किल हो गया है। लेकिन पीठ ने एक बार फिर से इसकी अनुमति देने से इनकार कर दिया। इससे पहले जुलाई 2020 और जनवरी 2021 में भी सुप्रीम कोर्ट ने तदर्थ पदोन्नति की अनुमति देने से इनकार कर दिया था।

अटॉर्नी जनरल की तरफ से कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के सचिव को जारी अवमानना नोटिस वापस लेने के लिए किया गया अनुरोध भी पीठ ने ठुकरा दिया। यह नोटिस केंद्र सरकार के कर्मचारियों की पदोन्नति पर यथास्थिति के आदेश का कथित उल्लंघन करने के लिए दिया गया था।

एम. नागराज और जरनैल सिंह मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि राज्य पदोन्नति में आरक्षण की अनुमति देने का फैसला करते हैं तो उसे समग्र प्रशासनिक दक्षता बनाए रखने के साथ-साथ सार्वजनिक रोजगार में एक वर्ग का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व दिखाने वाला मात्रात्मक डाटा भी जुटाना होगा।

उच्चतम न्यायालय ने एससी/एसटी के पदोन्नति में आरक्षण के लिए क्रीमी लेयर टेस्ट को भी लागू कर दिया था। राज्यों के लिए इन मानदंडों को पूरा करना बहुत मुश्किल हो रहा है। इसके चलते राज्य यह स्पष्टीकरण चाहते हैं कि अपर्याप्त प्रतिनिधित्व कैडर स्तर पर है या विभागीय या पूरे राज्य के स्तर पर। क्रीमी लेयर को बाहर करने और पदोन्नति देने के समय प्रशासनिक दक्षता का आकलन करने की अतिरिक्त शर्तों ने भी राज्यों के लिए समस्याएँ खड़ी कर दी हैं।

पीठ ने कहा कि वह सुनवाई की अगली तारीख 5 अक्टूबर को सभी पक्षों की विस्तृत दलीलें सुनेगी। पीठ ने कहा कि राज्य पदोन्नति नीति में आरक्षण से संबंधित मामलों पर तत्काल सुनवाई चाहते हैं क्योंकि उच्च न्यायालयों के परस्पर विरोधी आदेशों के कारण कई पद खाली पड़े हैं। जस्टिस नागेश्वर राव ने मौखिक रूप से कहा कि हमने पहले ही आदेश पारित कर दिया है कि पिछड़ेपन पर कैसे विचार किया जाए, हम आगे नीति निर्धारित नहीं कर सकते। यह राज्यों को नीति लागू करने के लिए है न कि हमारे निर्धारित करने के लिए। हम अनुच्छेद 16 (4) और 16(4 ए) के मुद्दे पर निर्णय नहीं करने जा रहे हैं ।

पीठ ने कहा कि राज्यों द्वारा उठाए गए मुद्दों को 11 श्रेणियों में रखा जा सकता है। पीठ ने सभी पक्षों को 2 सप्ताह के भीतर अपनी 5 पृष्ठों तक लिखित प्रस्तुतियां दाखिल करने का निर्देश दिया। यह भी स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि किसी भी परिस्थिति में सुनवाई की अगली तारीख को कोई स्थगन नहीं दिया जाएगा।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार होने के साथ कानूनी मामलों के जानकार हैं।) 

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