दिल्ली चुनाव में जनता ने जनमुद्दों के आधार पर mandate दिया। आम आदमी पार्टी की सफलता यह रही कि उन्होंने संघ-भाजपा नेतृत्व के विभाजनकारी मुद्दों को अपनी रणनीति से, उसमें राजनीतिक pragmatism/अवसरवाद चाहे जितना हो, प्रभावी नहीं होने दिया।
अब यह विमर्श निर्मित किया जा रहा है कि पहले झारखंड और अब उससे भी बढ़कर दिल्ली में BJP की हार का संदेश मूलतः इतना ही है कि प्रदेश के चुनावों में जनता स्थानीय मुद्दों और स्थानीय नेतृत्व के आधार पर फैसला करती है, कथित राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर नहीं।
निष्कर्ष यह है कि मोदी का करिश्मा मूलतः बरकरार है, और इन चुनावों के नतीजे भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति और रणनीति पर कोई असर नहीं डालने वाले हैं। वैसे तो मूर्खों के स्वर्ग में रहने के लिए कोई भी स्वतंत्र है, पर भविष्य के लिए इस चुनाव के गंभीर निहितार्थ हैं।
सच्चाई यह है कि मामला स्थानीय बनाम राष्ट्रीय मुद्दा नहीं वरन् यह है कि क्या आप चुनाव में जनमुद्दों को केंद्र में ले आ सकते हैं, जनता के जीवन की बेहतरी और उसके लिए वैकल्पिक नीतियों और उनके बेहतर क्रियान्वयन को प्रमुख विमर्श बना सकते हैं, इसे ही सच्ची देशभक्ति और राष्ट्रवाद के narrative के बतौर समाज में स्थापित कर सकते हैं, इसके साथ ही बिना विभाजनकारी, अंधराष्ट्रवादी उन्माद में बहे राष्ट्रीय सुरक्षा के genuine concerns को addresss कर सकते हैं।
इस तरह आप ध्रुवीकरण करने वाले संघ-भाजपा के कथित विचारधारात्मक-राजनीतिक अभियान की धार भोंथरी कर सकते हैं, उधर जनता के जीवन की बेहतरी के पैमाने पर अब मोदी सरकार के पास देने/दिखाने के लिए कुछ बचा नहीं है।
लगातार रसातल में जाती अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, मंहगाई, Stagflation से होने वाली तबाही की विभीषिका आने वाले दिनों में और भयावह होती जाएगी और उतना ही इसके खिलाफ मुखर होता जाएगा जनप्रतिरोध का स्वर-किसानों, मेहनतकशों का जनांदोलन।
सर्वोपरि 21वीं सदी की देश की युवा पीढ़ी विशेषकर उसका नेतृत्व करने वाले छात्र-नौजवान, आधुनिकता-निजी स्वन्त्रता-उदारवादी मूल्यबोध-परस्पर प्यार मुहब्बत दोस्ती के जिस नए भाव के साथ जीना चाहते हैं, जो नया समाज रचना चाहते हैं, अपने हिंसक दकियानूसी नफरती विचार और राजनीति के कारण संघ-भाजपा उनके लिए दूसरे ग्रह से आए हुए Aliens जैसी होती जाएगी और उसे वे पहला अवसर मिलते ही उखाड़ फेंकना चाहेंगे।
मोदी-शाह जोड़ी के गढ़े गए करिश्मे का शीराज़ा बिखरता जाएगा।
लाल बहादुर सिंह
(लेखक इलाहाबाद यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)