Friday, April 19, 2024

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ मौत-4: जनरल जिया की मौत दुर्घटना थी या साजिश?

पाकिस्तान के सेना प्रमुख और राष्ट्रपति रहे जनरल जिया की मृत्यु के 33 साल हो चुके हैं, जब विमान पाक -1 आसमान से गिर गया था। क्या दुर्घटना तकनीकी खराबी या हत्या का परिणाम थी? अगर यह तोड़फोड़ थी, तो इसमें कौन शामिल था? घटना की जांच के लिए गठित शफीकुर रहमान आयोग के निष्कर्ष कभी जारी क्यों नहीं किए गए? क्या कोई कवर-अप था? जिया-उल-हक की मौत दुर्घटना थी या साजिश, यह 33 साल बाद भी रहस्य के घेरे में है। आज भी पाकिस्तान और पूरी दुनिया में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो मानते हैं कि जियाउल हक द्वारा परमाणु क्षमता सम्पन्न देश बनाने की कोशिशों के चलते सीआईए ने उन्हें रास्ते से हटा दिया था।

1945 में प्रथम बार परमाणु बम के प्रयोग करने तथा बाद में कई वैज्ञानिक अनुसंधानों ने अमेरिका की स्थिति को अन्य देशों की तुलना में बहुत आगे कर दिया था। इसके बाद अमेरिका का लगातार प्रयास रहा कि अन्य कोई देश परमाणु क्षमता सम्पन्न देश न बने। अपने देश को परमाणु क्षमता सम्पन्न देश बनाने का प्रयास करने वाले अन्य देशों के वैज्ञानिकों और सत्ता में बैठे राजनेताओं को अमेरिका अपने रस्ते से हटाता रहा है। दुनिया में जहाँ भी ऐसे घटनाएँ होती रही हैं वहां सबसे पहले सीआईए पर आरोप लगता रहा है। 

अपनी पहली सरकार के दौरान, नवाज शरीफ ने दुर्घटना की जांच के लिए शफीकुर रहमान आयोग की स्थापना की। न तो अख्तर और न ही एजाजुल हक के पास इसकी कॉपी है। कुछ वर्षों के बाद, आयोग ने एक ‘गुप्त रिपोर्ट’ जारी की जिसमें उसने सेना में तत्वों पर जानबूझकर जांच में बाधा डालने का आरोप लगाया। 33 साल बाद भी जनरल जिया की मौत रहस्य में डूबी हुई है। अपराधियों का पर्दाफाश करने के लिए कोई प्रयास क्यों नहीं किया गया? इसके विपरीत, आपत्तिजनक साक्ष्यों को दबाने पर इतना प्रयास क्यों किया गया?

अगस्त 17, 1988, समय 3.51 बजे: विमान पाक-1, पाकिस्तान के राष्ट्रपति और सेना प्रमुख रहे जनरल जियाउल हक के साथ, बहावलपुर से कुछ मील की दूरी पर सतलुज नदी के पास विमान जमीन पर गिर पड़ा। विशाल लॉकहीड सी-130 हरक्यूलिस पर पायलटों के अलावा, विंग कमांडर मशहूद हसन और फ्लाइट लेफ्टिनेंट साजिद सहित 29 लोग थे। इनमें अन्य लोगों के अलावा, अध्यक्ष संयुक्त चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी जनरल अख्तर अब्दुर रहमान, चीफ ऑफ जनरल स्टाफ मोहम्मद अफजाल, पाकिस्तान में अमेरिकी राजदूत अर्नोल्ड राफेल और वरिष्ठ अमेरिकी सैन्य अताशे ब्रिगेडियर जनरल हर्बर्ट एम. वासोम शामिल थे। इस दुर्घटना के कारणों का कभी पता नहीं चल सका और जाँच कमेटी की रिपोर्ट को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। बहुत से लोग अब भी मानते हैं कि जनरल ज़िया की मौत एक साधारण विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी बल्कि साजिश का नतीजा थी।

जिया-उल-हक की हत्या के प्रयास पहले भी किए जा चुके थे। 1983 में, यह पता चला था कि जुल्फिकार ने रावलपिंडी में एक सुपरसोनिक मिसाइल के साथ अपने विमान को लक्षित करने की साजिश को कथित रूप से विफल कर दिया था। उनके अपने संगठन के कनिष्ठ अधिकारियों पर 1980 में और फिर 1984 में सरकार के खिलाफ साजिश, जिया की हत्या और सरकार को उखाड़ फेंकने की कथित साजिश के आरोप में मुकदमा चलाया गया। जनवरी 1984 में उनके खिलाफ एक दूसरी साजिश का पर्दाफाश हुआ, जब सेना के कुछ कनिष्ठ अधिकारियों के एक समूह को सरकार के खिलाफ आरोप में गिरफ्तार किया गया था। वह इस अवधि के दौरान लंदन में निर्वासित राजनीतिक नेता गुलाम मुस्तफा खार से भी जुड़े थे। पहले की तरह इस बार जिया-उल-हक के दो साथियों जनरल इकबाल और जनरल सावर सेवानिवृत्त हो गए और उन्हें घर भेज दिया गया।

17 अगस्त वर्ष 1988। बहावलपुर एयरबेस। समय दोपहर तीन बजकर 46 मिनट। अमरीका में बने हरकुलीज़ सी-130 विमान ने टेक ऑफ़ के लिए रनवे पर दौड़ना शुरू किया। विमान में जनरल ज़िया उल हक़ के साथ पाकिस्तानी ज्वाइंट चीफ़ ऑफ़ स्टॉफ़ के प्रमुख जनरल अख़्तर अब्दुल रहमान, पाकिस्तान में अमरीका के राजदूत अरनॉल्ड राफ़ेल, पाकिस्तान में अमरीकी सैन्य सहायता मिशन के प्रमुख जनरल हरबर्ट वासम और पाकिस्तानी सेना के दूसरे वरिष्ठ अधिकारी भी थे। जनरल ज़िया अमरीकी टैंक एमआई अब्राहम का परीक्षण देखने बहावलपुर गए थे। शुरू में जिया वहाँ नहीं जाना चाहते थे, लेकिन उनकी फ़ौज़ के ही कई वरिष्ठ अधिकारियों ने उन पर ज़ोर डाला कि वो वहाँ ज़रूर जाएँ। टेक ऑफ़ के कुछ मिनटों के अंदर पाकिस्तान का सबसे महत्वपूर्ण विमान पाक-1 लापता था। इस बीच हवाई अड्डे से करीब 18 किलोमीटर दूर कुछ ग्रामीणों ने आकाश में देखा कि पाक-1 विमान हवा में कभी ऊपर तो कभी नीचे आ रहा था। तीसरे लूप के बाद विमान सीधे नाक के बल रेगिस्तान में गिरा और चारों तरफ़ आग का एक गोला फैल गया। समय था तीन बजकर 51 मिनट।

एक कहानी है कि ज़िया के विमान में आम की पेटियों के साथ गैस रख दी गई थी जिससे पायलट बेहोश हो गया और विमान से उसका नियंत्रण जाता रहा। जनरल असलम बेग़ कहते हैं कि आम की पेटियाँ तो उनके अपने निजी सचिव ने रखवाईं थी। जिस दिन मैं इस्लामाबाद पहुँचा तो मेरे सुनने में आया कि हादसे के लिए जनरल असलम बेग़ ज़िम्मेदार हैं। उस समय सीआईए का दुनिया में सबसे बड़ा नेटवर्क पाकिस्तान में ही था।

बताया जाता है कि जियाउल हक की हत्या इस प्रकार से की गई थी कि किसी को उस पर शक न हो। जियाउल हक को विश्वास दिलाने के लिए अमेरिका खुफिया एजेंसी ने अपने दो वरिष्ठ लोगों को भी उस विमान में बैठा दिया, ताकि जिया को यकीन हो जाए कि उनके रहते वहां उन पर कोई हमला नहीं हो सकता है। विमान में जनरल जिया उल हक के साथ पाकिस्तानी ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टॉफ के प्रमुख जनरल अख्तर अब्दुल रहमान, पाकिस्तान में अमरीका के राजदूत अरनॉल्ड राफेल, पाकिस्तान में अमरीकी सैन्य सहायता मिशन के प्रमुख जनरल हरबर्ट वासम और पाकिस्तानी सेना के दूसरे वरिष्ठ अधिकारी भी थे, जो इस दुर्घटना में मारे गए थे।

अमरीका ने इस दुर्घटना की जाँच के लिए वायुसेना के अधिकारियों का दल पाकिस्तान भेजा। अमरीकी जाँचकर्ताओं ने बताया कि दुर्घटना का कारण तकनीकी गड़बड़ी थी। दूसरी तरफ, पाकिस्तानी जाँच में पाया गया कि ये दुर्घटना षड्यंत्र की वजह से हुई और विमान के ऐलीवेटर बूस्टर पैकेज से छेड़खानी के सबूत पाए गए। पाकिस्तान में आज भी बहुत से लोग मानते हैं कि जनरल जिया की मौत एक साधारण विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी बल्कि साजिश का नतीजा थी। जियाउल हक की हत्या हुई थी।

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इस्लामाबाद में पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर साइंस एंड टेक्नोलॉजी में किए गए मलबे के एक रासायनिक विश्लेषण में असामान्य मात्रा में विदेशी तत्व पाए गए। उदाहरण के लिए, पेंटाएरिथ्रिटोल टेट्रानाइट्रेट (पीईटीएन) के निशान थे, एक विस्फोटक जिसका उपयोग कई आतंकवादी हमलों में किया गया है, जिसमें कम से कम दो शामिल हैं जिनका उद्देश्य एक हवाई जहाज को गिराना था। सुरमा और फास्फोरस के अवशेष, जो आमतौर पर विमान संरचनाओं, ईंधन आदि में नहीं पाए जाते थे, भी मौजूद थे। रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि तकनीकी कारण के अभाव में, दुर्घटना का एकमात्र अन्य संभावित कारण एक आपराधिक कृत्य या तोड़फोड़ की घटना है। इसने सिफारिश की कि अपराधियों की पहचान निर्धारित करने के लिए एक जांच का आदेश दिया जाए।

जनरल जिया की परमाणु महत्वाकांक्षाएं जितनी महत्वपूर्ण थीं, वो उतनी ही अब असुविधाजनक हो गई थीं क्योंकि अफगान जिहाद का अंत हो रहा था। अपनी पुस्तक में इसे “अफगान युद्ध का गंदा छोटा रहस्य” बताते हुए, जॉर्ज क्रिले लिखते हैं कि जनरल जिया ने राष्ट्रपति रीगन से जल्द ही एक रियायत ली थी कि अफगानिस्तान में सोवियत संघ के खिलाफ सीआईए के साथ काम करने के बदले अमेरिका उसे बम के मामले में सहयोग करेगा। लेकिन फिर 1987 में, एक पाकिस्तानी मूल के कनाडाई व्यवसायी अरशद परवेज, जिसे जनरल जिया का एजेंट माना जाता था, को फिलाडेल्फिया में परमाणु बम बनाने के लिए महत्वपूर्ण 25 टन स्टील मिश्र धातु खरीदने की कोशिश करते हुए पकड़ा गया था। पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता में कटौती करने के लिए कांग्रेस में उग्र मांगें थीं। इन सभी घटनाक्रमों को देखते हुए, क्या सीआईए के भीतर के तत्व जनरल जिया की परमाणु और क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को हमेशा के लिए कम करने का फैसला कर सकते थे?

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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