Saturday, September 30, 2023

यह भगदड़ ही भाजपा की हार की गारंटी नहीं हो सकती!

जिस तरह पिछले साल पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के वक्त तृणमूल कांग्रेस में भगदड़ मची हुई थी, कुछ वैसा ही नजारा इस समय उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद दिखाई दे रहा है। योगी आदित्यनाथ की सरकार से मंत्री इस्तीफा दे रहे हैं और विधायक भी पार्टी छोड़ रहे हैं। पिछले तीन दिन में तीन मंत्रियों और करीब आधा दर्जन विधायकों ने भाजपा से इस्तीफा दे दिया है। खूब शोर मचा हुआ है कि ये इस्तीफे सत्ता में वापसी के भाजपा के सारे समीकरण बिगाड़ सकते हैं। कहा जा रहा है कि अभी कुछ अन्य मंत्री और विधायक भी पार्टी छोड़ सकते हैं।

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी के सुप्रीमो शरद पवार ने कहा कि भाजपा के 13 और विधायक समाजवादी पार्टी (सपा) में शामिल होने वाले हैं। सपा के एक नेता ने कहा कि अगर अखिलेश यादव पार्टी का दरवाजा खोल दें तो भाजपा के दो सौ विधायक सपा में शामिल हो जाएंगे। सवाल है कि भाजपा के मंत्रियों और विधायकों के पार्टी छोड़ने का क्या अनिवार्य निष्कर्ष यह निकाला जाना चाहिए कि समाजवादी पार्टी का गठबंधन जीत जाएगा और भाजपा सत्ता से बाहर हो जाएगी?

दरअसल पिछले साल मार्च-अप्रैल में चुनाव से पहले जैसी भगदड़ तृणमूल कांग्रेस में मची थी, उसके मुकाबले उत्तर प्रदेश में मची भगदड़ कुछ भी नहीं है। यह सही है कि स्वामी प्रसाद मौर्य बहुत मजबूत नेता हैं लेकिन उत्तर प्रदेश में उनकी वैसी राजनीतिक हैसियत नहीं है, जैसी हैसियत के नेता पश्चिम बंगाल में सुवेंदु अधिकारी हैं। सुवेंदु अधिकारी का जलवा दुनिया ने देखा कि उन्होंने नंदीग्राम सीट पर ममता बनर्जी को हरा दिया था। हालांकि ममता बनर्जी की पार्टी इस चुनाव में पहले से ज्यादा सीटें जीती लेकिन वे खुद सुवेंदु अधिकारी को नहीं हरा सकी थीं। दूसरी ओर स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी और अपने बेटे की सीट की चिंता करते दिख रहे हैं।

ममता बनर्जी का साथ छोड़ने वाले सुवेंदु अधिकारी अकेले नेता नहीं थे। तृणमूल कांग्रेस के करीब एक दर्जन से ज्यादा विधायकों ने पाला बदला था। इसके अलावा कुछ सांसदों ने भी खुल कर पार्टी का विरोध किया और भाजपा का साथ दिया। इसके बावजूद नतीजा सबको पता है। हालांकि इसका यह मतलब नहीं निकाला जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में भी पश्चिम बंगाल जैसा ही नतीजा आ सकता है। यह तथ्य भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि पश्चिम बंगाल में भाजपा ने बहुत शानदार प्रदर्शन किया। वह तीन विधायकों की पार्टी थी लेकिन पिछले साल के चुनाव में उसके 77 विधायक हो गए और उसको 38 फीसदी वोट मिले। हालांकि ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं हुआ कि तृणमूल कांग्रेस के बहुत सारे नेता भाजपा में चले गए थे, बल्कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वहां की जनसंख्या संरचना के कारण ध्रुवीकरण का भाजपा को फायदा हुआ था।

अभी भाजपा में जो भगदड़ मची है, उससे पार्टी नेतृत्व चिंतित तो है लेकिन उसे अपने चिर-परिचित ध्रुवीकरण वाले दांव पर भरोसा है। अगर पश्चिम बंगाल जैसा ही सांप्रदायिक ध्रुवीकरण उत्तर प्रदेश में होता है, तो निश्चित तौर पर फायदा भाजपा को होगा। चूंकि उत्तर प्रदेश की सामाजिक और जातीय संरचना पश्चिम बंगाल से कुछ भिन्न है, इसलिए अगर भाजपा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने में कामयाब नहीं होती है और समाजवादी पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग काम करती है, जिसमें अन्य पिछड़ी जातियों की एकजुटता मुस्लिम-यादव समीकरण के साथ बनती है, तब फायदा समाजवादी पार्टी और उसके गठबंधन को होगा।

इस लिहाज से स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, धर्मसिंह सैनी और इनके साथ भाजपा छोड़ने वाले नेताओं की सामाजिक और जातीय पृष्ठभूमि अहम है। इन नेताओं की वजह से भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग ध्वस्त हो सकती है। गौरतलब है कि भाजपा 2014 के लोकसभा चुनाव के समय से ही अपने सवर्ण वोट बैंक के साथ गैर यादव पिछड़ों और गैर जाटव दलितों को जोड़ कर सफल राजनीति कर रही है। लेकिन इस बार यह समीकरण टूट सकता है। इस समीकरण का टूटना और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण न होना ही भाजपा की हार की गांरटी हो सकता है।

(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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