हिंदू मंदिरों पर कथित कब्जे को लेकर उच्चतम न्यायालय के दो पूर्व जज आमने सामने आ गये हैं।उच्चतम न्यायालय के पूर्व जज जस्टिस केटी थॉमस ने सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस इंदु मल्होत्रा की इस इस टिप्पणी की आलोचना की है कि कम्युनिस्ट सरकारें हिंदू मंदिरों पर कब्जा कर रही हैं। मलयालम डेली मातृभूमि को दिए एक साक्षात्कार में जस्टिस थॉमस ने कहा कि जस्टिस मल्होत्रा को किसी ने गलत जानकारी दी है और सार्वजनिक टिप्पणी करने से पहले उन्हें तथ्यों की पुष्टि करनी चाहिए थी।
इस बीच केरल राज्य के मंदिर मामलों के मंत्री के. राधाकृष्णन ने विधानसभा को बताया कि सरकार ने त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड, कोच्चि देवस्वाम बोर्ड, मालाबार देवस्वाम बोर्ड और कूडलमणिक्यम देवस्वाम बोर्ड को कोरोना वायरस महामारी और 2018 की बाढ़ से पैदा हुए संकट से उबरने के लिए 165 करोड़ रुपये की सहायता दी है।
जस्टिस थॉमस ने कहा कि मैं यह नहीं कहूंगा कि वह इस मामले में पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं। लेकिन किसी ने उन्हें गलत जानकारी दी है। सार्वजनिक टिप्पणी करने से पहले उन्हें तथ्यों की पुष्टि करनी चाहिए।
इस हफ्ते की शुरुआत में जस्टिस मल्होत्रा ने अपनी टिप्पणियों का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद विवाद खड़ा कर दिया था। वीडियो में, जो तिरुवनंतपुरम में श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के बाहर ले जाया गया प्रतीत होता है, पूर्व न्यायाधीश को कुछ लोगों को यह कहते हुए देखा गया कि कम्युनिस्ट सरकारें राजस्व के लिए हिंदू मंदिरों पर कब्जा कर रही हैं। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इसकी इजाजत नहीं दी। पूर्व जस्टिस ने कहा है कि इन वामपंथी सरकारों के साथ ऐसा ही है। ये लोग सिर्फ राजस्व को हड़पना चाहते हैं। वे सिर्फ राजस्व के कारण कब्जा करना चाहते हैं। उनकी समस्या राजस्व है। सभी पर उन्होंने कब्जा कर लिया है। सब कुछ पर। लेकिन केवल हिंदू मंदिर पर। इसलिए जस्टिस ललित और मैंने ऐसा होने से रोक दिया था।
यह टिप्पणी स्पष्ट रूप से श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर मामले में जुलाई 2020 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संदर्भ में थी। फैसले में, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने कहा था कि त्रावणकोर साम्राज्य के अंतिम शासक के उत्तराधिकारी के पास मंदिर में शेबैत के अधिकार होंगे। कोर्ट ने मंदिर के प्रशासन को तिरुवनंतपुरम के जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक प्रशासनिक समिति को भी सौंप दिया, जिसमें केरल सरकार के सचिव स्तर के आईएएस अधिकारी, राज्य सरकार और केंद्र सरकार के आधिकारिक नामित, शाही परिवार पूर्व के नामित व्यक्ति और मंदिर के प्रमुख तंत्री शामिल थे।
पीठ ने मंदिर प्रशासनिक समिति को 2012-2019 के दौरान मंदिर के रखरखाव के लिए राज्य द्वारा किए गए खर्च के लिए राज्य सरकार को 11.70 करोड़ रुपये का भुगतान करने के लिए कदम उठाने का निर्देश दिया। इसके अलावा पीठ ने शाही परिवार द्वारा गठित श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर ट्रस्ट के पिछले 25 वर्षों के विशेष ऑडिट का आदेश दिया। पिछले साल, कोर्ट ने ट्रस्ट द्वारा विशेष ऑडिट से छूट की मांग करने वाली एक प्रार्थना को खारिज कर दिया था।
गौरतलब है कि पूर्व जस्टिस केरल के जिस श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के बारे में बात कर रही हैं, उसके प्रशासन और उसकी संपत्तियों के अधिकार को लेकर जुलाई 13, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया था। कोर्ट ने श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रशासन में त्रावणकोर राजपरिवार के अधिकार को बरकरार रखा था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मंदिर के मामलों के प्रबंधन वाली प्रशासनिक समिति की अध्यक्षता तिरुवनंतपुरम के जिला न्यायाधीश करेंगे और मुख्य कमिटी के गठन तक यही व्यवस्था रहेगी। कोर्ट ने आदेश में यह स्पष्ट कहा था कि मुख्य कमिटी में राजपरिवार की अहम भूमिका रहेगी।
रिटायर जस्टिस इंदु मल्होत्रा पहली एक ऐसी महिला अधिवक्ता रहीं, जो वकील से सुप्रीम कोर्ट की जज बनाई गईं थीं। वह सबरीमाला मामले में फैसले के समय पीठ की अकेली ऐसी जज थीं जिन्होंने मंदिर के भीतर महिलाओं के प्रवेश को अनुमति देने से ज्यादा धार्मिक हितों की सुरक्षा का समर्थन किया था। इसके अलावा वह समलैंगिक यौन संबंध मामले में फैसला सुनाने वाली पीठ का भी हिस्सा थीं। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था।
पूर्व जस्टिस इंदु मल्होत्रा 31 अक्टूबर 2021 को अपने पद से सेवानिवृत्त हुई थीं और इस वर्ष पंजाब में चुनाव से पहले जो नरेंद्र मोदी की सुरक्षा में चूक का मामला आया था उसकी जाँच भी इंदु मल्होत्रा को दी गई थी।
दरअसल जस्टिस मल्होत्रा रविवार को हुए तिरुवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज अस्पताल के प्लैटिनम जुबली समारोह के संबंध में आयोजित सम्मेलन सहित विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए केरल के दौरे पर थीं।
जस्टिस मल्होत्रा की टिप्पणियों की विभिन्न हलकों से आलोचना हुई। केरल के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. थॉमस इसाक ने एक ट्वीट में कहा कि जस्टिस इंदु मल्होत्रा केरल सरकार के सार्वजनिक वित्त से अनभिज्ञ हैं। मंदिर के राजस्व का एक पैसा भी बजट प्राप्तियों में प्रवेश नहीं करता है, बल्कि भक्तों के लिए सुविधाओं और मंदिर प्रशासन का समर्थन करने के लिए करोड़ खर्च किए जाते हैं।थॉमस इसाक ने पूर्व न्यायाधीश पर कम्युनिस्टों के खिलाफ गहरा पूर्वाग्रह’ रखने का आरोप लगाया।
इस बीच जस्टिस मल्होत्रा के इस वीडियो के सामने आने के बाद केरल सरकार ने सोमवार को विधानसभा को सूचित किया कि उसने संकट के हालिया वर्षों के दौरान राज्य में विभिन्न मंदिर बोर्डों को 229 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की है।
सीपीआई(एम) के चार विधायकों के लिखित सवाल के जवाब में राज्य के मंदिर मामलों के मंत्री के. राधाकृष्णन ने विधानसभा को बताया कि सरकार ने त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड, कोच्चि देवस्वाम बोर्ड, मालाबार देवस्वाम बोर्ड और कूडलमणिक्यम देवस्वाम बोर्ड को कोरोना वायरस महामारी और 2018 की बाढ़ से पैदा हुए संकट से उबरने के लिए 165 करोड़ रुपये की सहायता दी है।
राधाकृष्णन ने कहा कि इस आवंटन में से त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड को 120 करोड़ रुपये की सहायता मिली थी।इसके अलावा, मंत्री ने कहा कि मई 2021 में वर्तमान एलडीएफ सरकार के आने के बाद त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड को 20 करोड़ रुपये और मालाबार देवस्वाम बोर्ड को 44 करोड़ रुपये का सहायता-अनुदान दिया गया था।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)