“अहमदाबाद विस्फोट में साईकिल का इस्तेमाल हुआ था।” 20 फरवरी को एक चुनावी सभा में नरेन्द्र मोदी ने यह बात कही, जो बिल्कुल सफ़ेद झूठ है। हकीकत यह है कि अहमदाबाद बम धमाकों में साईकिल का इस्तेमाल हुआ ही नहीं था। इस मामले के तहकीकात कर रहे अधिकारी डीसीपी अभय चूदस्मा ने इसे स्पष्ट किया था। पुलिस जांच रिपोर्ट के अनुसार, “लाल और सफ़ेद कारों में विस्फोटक फिट किया गया था।” जाँच रिपोर्ट में कहीं भी साईकिल का ज़िक्र तक नहीं है।
अब एक पुरानी घटना का विवरण पढ़ें। एक चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि, “दिल्ली में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ कुछ भारतीय व्यक्तियों की एक बैठक हुई थी, जिसमें भारत सरकार के तख्तापलट की साज़िश रची गयी थी। उस बैठक में, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मौजूद थे।” यह संदर्भ इस चुनाव का नहीं है, बल्कि पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव का है। याद कीजिए, उसी समय उन्होंने मणिशंकर अय्यर के, नीच वाले बयान का बार-बार उल्लेख किया था।
प्रधानमंत्री, दिल्ली में जिस मीटिंग की बात कर रहे थे, वह रिसर्च एंड एनालिसिस विंग, रॉ के प्रमुख रह चुके एएस दुलत और पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस आईएसआई के पूर्व प्रमुख असद दुर्रानी तथा कुछ अन्य लोगों द्वारा लिखी गयी किताब, ‘द स्पाई क्रोनिकल, रॉ आईएसआई एडं इलुजन ऑफ पीस’ (The Spy Cornicle, RAW ISI and illusion Of Peace) के विमोचन के अवसर पर आयोजित एक गोष्ठी थी। इस अवसर पर दोनों देशों के राजनयिक, और कुछ नेता शामिल हुये थे। यह एक सामान्य शिष्टाचार गोष्ठी थी।
प्रधानमंत्री को यह बात भलीभांति पता है कि, ऐसे आयोजन होते रहते हैं और कूटनीतिक और अंतरराष्ट्रीय खुफियागिरी के बारे में ऐसी किताबें लिखी जाती रहती हैं। डॉ. मनमोहन सिंह भी इस आयोजन में आमंत्रित थे, पर वे रात्रिभोज में शामिल नहीं हुए थे। फिर भी प्रधानमंत्री ने इस घटना को देशद्रोह से जोड़कर अपने चुनाव प्रचार में इस्तेमाल किया। उन्होंने यह तक कहा था कि, ये सभी महानुभाव, मोदी सरकार का तख्ता पलट करना चाहते हैं। इस पर आयोजन में शामिल होने वाले लोगों ने तुरंत, प्रधानमंत्री के आरोपों का खंडन भी कर दिया कि उस आयोजन में केवल उसी किताब पर चर्चा हुयी थी और सरकार के बारे में किसी ने भी कुछ भी नहीं कहा और उस बारे में चर्चा तक नहीं हुई।
इसके बाद जब संसद सत्र आहूत हुआ तो, तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा में कहा कि वे डॉ. मनमोहन सिंह का सम्मान करते हैं और उन्हें देशद्रोही कहे जाने की बात सपने में भी सोची नहीं जा सकती है। उन्होंने इस प्रकरण पर खेद भी जताया। विपक्ष ने इस पर संसद में चर्चा की मांग की थी, पर राज्यसभा में सदन के नेता के रूप में अरुण जेटली ने सरकार की तरफ से खेद जताकर इस मामले पर चर्चा का पटाक्षेप कर दिया। आज जब भाजपा के लोग समाजवादी पार्टी को आतंकवादी कह कर लांछित कर रहे हैं, साइकिल पर बम की एक झूठी थियरी, अहमदाबाद बम ब्लास्ट के संदर्भ में प्रधानमंत्री खुले मंच से स्थापित कर रहे हैं, तो मुझे यह घटना याद आ गई। यह इनकी पुरानी रणनीति है। लोग अब इसे समझने लगे हैं।
इनकी मूर्खता और गैर-जिम्मेदाराना गवर्नेंस का यह एक उदाहरण है कि इन्हें यह तक पता होने के बाद कि समाजवादी पार्टी, “आतंकवाद फैलाती है”, उसके नेताओं के खिलाफ इन्होंने कोई कार्यवाही नहीं की । 20 सैनिकों की शहादत के 4 दिन बाद ही, चीनी घुसपैठ को नकार देने वाला पीएम का यह बयान कि “न तो कोई घुसा था, न घुसा है”, क्या आज भी आप को असहज नहीं कर देता है ?
इनका सारा चुनाव धर्मान्ध-राष्ट्रवाद पर केंद्रित रहता है। क्योंकि इस काम के लिये गवर्नेंस की ज़रूरत ही नहीं रहती। इनके कार्यकाल में 80 करोड़ आबादी फ्री राशन पर जीने के लिए अभिशप्त है। 2016 के बाद से सरकार ने बेरोजगारी के आंकड़े देने बंद कर दिए, यूपी के विभिन्न विभागों में नियमित भर्तियां तक नहीं हो पा रही हैं। जीडीपी, नोटबन्दी के बाद से अर्थव्यवस्था लगातार गिर रही है, आर्थिक सूचकांक साल दर साल अधोगामी होता जा रहा है, रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ्य पर सरकार की कोई स्पष्ट नीति नहीं रही। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को एक-एक कर निजी क्षेत्र में ठेला जा रहा है, और बार बार कहा जा रहा है कि सरकार व्यापार करने के लिये नहीं होती है। तब कम से कम यही बात सरकार स्पष्ट कर दे कि वह आखिर किस काम के लिये चुनी गयी है ?
लगभग आधा चुनाव बीत चुका है और अभी यूपी चुनाव के चार चरण शेष हैं। साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें अब भी होंगी और झूठ के अनेक कीर्तिमान भी स्थापित किये जाएंगे। पर जनता को अपने बच्चों के लिये रोजगार, सस्ती और उपयोगी शिक्षा और सुलभ स्वास्थ्य के मुद्दों पर अड़ा रहना चाहिए। भाजपा की सबसे बड़ी कमी ही यह है कि यह जनजीवन से जुड़े मुद्दों पर कभी नहीं बोलती है, क्योंकि इन विषयों पर इसने कभी सोचा ही नहीं है। यह केवल समाज को काल्पनिक भय में रख कर, सत्ता में आना चाहती है, लेकिन बेरोजगारी और भुखमरी की इंतेहा के चलते अब यह दांव विफल होता नजर आ रहा है।
(विजय शंकर सिंह रिटायर्ड आईपीएस अफसर हैं और आजकल कानपुर में रहते हैं। )
+ There are no comments
Add yours