Tuesday, March 19, 2024

साहिबजादों की शहादत को केंद्र द्वारा ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाने का पंजाब में तीखा विरोध

केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार नवम् गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी के अमर शहीद साहिबजादों की ऐतिहासिक तथा अमर शहादत को ‘वीर बाल दिवस’ के तौर पर मना रही है। इस संबंध में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में केंद्र सरकार द्वारा अपने तईं मनाए जा रहे मुख्य श्रद्धांजलि आयोजन में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी शिरकत कर रहे हैं। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी इसमें विशेष सहयोग दे रही है। जबकि पंजाब में वीर बाल दिवस का तीखा विरोध सामने आया है। विभिन्न सिख जत्थेबंदियों का एक सुर में कहना है कि ‘वीर बाल दिवस’ की बजाए ‘साहिबज़ादे शहादत दिवस’ मनाया जाए।

गौरतलब है कि वीर बाल दिवस की बाबत केंद्र सरकार ने तमाम राज्यों को बाकायदा नोटिफिकेशन जारी किया है कि साहिबजादों की ऐतिहासिक अमर कुर्बानी को राष्ट्रीय स्तर पर, अनिवार्य तौर पर ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाए। वैसे, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) तथा भाजपा का यह पुराना एजेंडा है, जिसे अब विधिवत तौर पर केंद्र सरकार की ओर से पुख्ता किया गया है। पंजाब और सिख समुदाय को लेकर इन दिनों भाजपा अतिरिक्त सक्रिय है। बाल दिवस का नाम प्रथम प्रधानमंत्री और सदैव भाजपा तथा संघ के निशाने पर रहे पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिवस से सीधा जुड़ा हुआ है। भाजपा ने बाल दिवस में ‘वीर’ नया शब्द जोड़ा है।

सर्वोच्च सिख संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) सहित बेशुमार प्रमुख सिख जत्थेबंदियों ने केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन का विरोध करते हुए वीर बाल दिवस मनाने से इनकार कर दिया है और कहा है कि पंजाब तथा देश–विदेश के सिख व पंजाबी वीर बाल दिवस की बजाए ‘साहिबजादे शहादत दिवस’ के नाम से गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों की कुर्बानी को याद करें और श्रद्धांजलि समारोह आयोजित करें।   

जिक्रेखास है कि शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने सिख संस्थाओं से  सर्वसम्मति के साथ कई गैस बैठकें करने के बाद भारत सरकार द्वारा मनाए जा रहे वीर बाल दिवस को रद्द कर दिया है और साथ ही इसे शहादत दिवस के रूप में मनाने की अपील की है। श्री अकाल तख्त साहिब का सिख पंथ में अहम और आला दर्जा है।

श्री अकाल तख्त साहिब की ओर से इस पूरे प्रकरण को लेकर बनाई गई सिख विद्वानों और इतिहासकारों की कमेटी ने भी एकमत से राय जाहिर की है कि साहिबाजादों बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह की शहादत को ‘शहादत दिवस’ की परंपरा के तहत ही मनाया जाए। सिख रिवायत में अब तक ऐसा ही होता रहा है। इसमें सियासी एवं शासकीय इशारे पर फेरबदल करना पंथक इतिहास में सरासर दखलअंदाजी है और इसे सहन नहीं किया जा सकता। सिख अवाम में भी इसे लेकर भारी रोष पाया जा रहा है।                                       

इस पत्रकार से फोन-वार्ता में एसजीपीसी के प्रधान एडवोकेट हरजिंदर सिंह धामी ने कहा कि भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार राजनीतिक वजहों से सिख इतिहास में अनाधिकार दखलअंदाजी कर रही है। यह दुनिया भर में शुरू से ही शहादत दिवस के तौर पर मनाई जाती परंपरा से खिलवाड़ है। जबकि नरेंद्र मोदी सरकार इसे अपने तौर पर बाल दिवस का नाम दे रही है। ऐसा करने से पहले केंद्र ने श्री अकाल तख्त साहिब व शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से बात तक नहीं की। ये दोनों पंथ की सर्वोच्च संस्थाएं हैं, जहां के हुकुमनामों को हर श्रद्धालु सिख मानता है। धामी ने कहा कि एक साजिश के तहत भी ऐसा किया जा रहा है।

दिल्ली शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी को पर्दे के पीछे से भाजपा ने अपना जेबी संगठन बना लिया है। ऐसी कवायद पंजाब में भी की जा रही है और इसे नाकामयाब कर दिया जाएगा। धामी ने दो-टूक पूछा कि ‘साहिबजादे शहादत दिवस’  नाम पर केंद्र सरकार को क्या आपत्ति है? जबकि यह सिख परंपरा और इतिहास का बेहद अहम हिस्सा है। सिख इतिहास से संबंधित किताबों में भी साहिबजादों की कुर्बानी का अध्याय और विवरण इसी नाम के तहत दर्ज है। भाजपा की बाल दिवस की कवायद पंथक इतिहास को भी गड्डमड्ड कर देगी और दुनियाभर में फैले सिखों को यह नामंजूर होगा। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी इस बाबत भाजपा का साथ दे रही है और यह श्री अकाल तख्त साहिब से जारी हुकमनामे की खुली अवहेलना है।

उधर, एक प्रमुख सिख संस्था दल खालसा ने कहा है कि ‘साहिबजादे शहादत दिवस’ की बजाए ‘वीर बाल दिवस’ मनाए जाने वालों को श्री अकाल तख्त साहिब पर तलब किया जाए अथवा पंथ से बहिष्कृत किया जाए। दल खालसा के प्रमुख नेताओं कंवरपाल सिंह और परमजीत सिंह मंड ने जोर देकर कहा कि कुछ सिख संस्थाएं, केंद्रीय हुकूमत के प्रभाव व दबाव में आकर शहादत दिवस को ‘वीर बाल दिवस’ के नए नाम से मना रही हैं। श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार को इसका फौरी नोटिस लेना चाहिए। यह सिख परंपराओं में खुला हस्तक्षेप है।  कतिपय पंथक इतिहासकारों और विद्वानों का कहना है कि इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट का रुख भी किया जाए गा केंद्र सरकार को धार्मिक मामलों में इस तरह के हस्तक्षेप करने का कोई संवैधानिक अधिकार है।

(पंजाब से अमरीक की रिपोर्ट।)

                                                   

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