Thursday, April 18, 2024

तानाशाह के आगे झुके समूह में इंकार की ज़िद के लिए क्या चाहिए?

(अमेरिकन लेखिका इजाबेल विल्करसन ने अपनी नयी किताब `कास्ट: द लाइज दैट डिवाइड अस` (Caste: The Lies That Divide Us) में अमेरिकी समाज की तुलना भारत के जातिवाद और जर्मनी के नाज़ीवाद से की है। यह किताब अमेरिका में काफी नाम कमा रही है। अमेजोन पर रिव्यू देखे तो भारत के सवर्ण लेखिका को जमकर कोसते नजर आए। इसी लिए किताब खरीदने से खुद को रोक न सका। अभी किताब का पहला पेज ही पढ़ा है उसका अनुवाद किया है। – अमोल सरोज ) 

जर्मनी में नाज़ी हुक़ूमत के दौर की एक बहुत ही मशहूर ब्लैक एंड वाइट तस्वीर है। यह तस्वीर 1936 में हम्बर्ग में ली गई थी। तस्वीर में शिपयार्ड के सैकड़ों मजदूर चिर-परिचित मुद्रा में सूरज की रोशनी की तरफ अपना एक हाथ आगे किए नाज़ी सुप्रीमो हिटलर को सलाम ठोक रहे थे। उस फोटो को ध्यान से देखते हैं तो एक आदमी बाकियों से अलग दिखाई देता है। उसका चेहरे पर एक सही फ़ैसले पर पहुँचकर अर्जित होने वाला शांत भाव है और एक प्रतिरोध की ज़िद भी। फोटोग्राफी की आधुनिक तकनीकी की वजह से आज हम सैकड़ों चेहरों के बीच से उस एक चेहरे को ज़ूम करके देख सकते हैं।

उस पर लाल गोला बना कर उसे हाईलाइट कर सकते हैं। उसने अपने दोनों हाथ मोड़कर छाती के सटा रखे थे जबकि उसके जिस्म के कुछ इंच पर ही हिटलर के अभिवादन में आस-पास के लोगों की हथेलियाँ मंडरा रही थीं। वो अकेला इंसान था जिसने हिटलर को उस वक्त सलाम करने से मना कर दिया था। आज जब उस तस्वीर को देखते हैं, कोई भी नि:संकोच यह कह सकता है कि उस तस्वीर में वही इकलौता इंसान है जो इतिहास में सही तरफ़ खड़ा है। बदक़िस्मती से उस के आस-पास सब लोग ग़लत पक्ष में सरेंडर्ड थे। 

1936 में जब वह तस्वीर खींची जा रही थी तो केवल एक वही आदमी सही पक्ष के लिए ख़तरा उठाने की ज़रूरत को समझ पा रहा था। उसका नाम ऑगस्ट लैंड्मेसर था। उस वक्त उसे भी इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि अपने आस-पास जो पागलपन वह देख रहा है, आगे चलकर क्या कहर बरपाने वाला है पर उस पागलपन में शामिल न होने की वजहों को वह ज़रूर देख पा रहा था । सालों पहले वह ख़ुद नाज़ी पार्टी में शामिल हो चुका था। तब तक उसे यहूदियों के ख़िलाफ़ उस नफ़रत और झूठ भरे ज़हर का अनुभव हो चुका था जिसकी घुट्टी नाज़ी जर्मनी के बच्चे-बच्चे को पिला रहे थे।

नाज़ी राज़ के उस शुरुआती दौर में भी नाज़ी अलगाव, नफ़रत और आतंक फैलाने में क़ामयाब हो चुके थे। ऑगस्ट के पास इस बात पर यक़ीन न करने की कोई वजह नहीं थी कि यहूदी भी उसकी तरह जर्मनी के नागरिक हैं और उसकी ही तरह इंसान हैं। वो `आर्यन` था और एक यहूदी लड़की से प्यार करता था पर नाज़ी राज़ में आए नए क़ानून के अनुसार उनका यह रिश्ता गैरक़ानूनी था। न तो वे दोनों आपस में शादी कर सकते थे, न ही ज़िस्मानी रिश्ता बना सकते थे। ऐसा करने से तथाकथित महान नाज़ी नस्ल पर दाग़ लग जाता।

ऑगस्ट अपने ख़ुद के अनुभव और `बलि का बकरा` बनाई गई यहूदी जाति के लोगों से नज़दीकी रिश्ते होने के कारण उन झूठी और स्टीरियोटाइप बातों से आगे देखने में क़ामयाब रहा जिन पर उस वक़्त बहुसंख्यक ताकतवर जाति के लोगों ने बड़ी आसानी से न केवल विश्वास किया बल्कि उन बातों को जोश के साथ आगे भी फैलाया। `आर्यन` होने के बावजूद इंसानियत के लिये उसका उदार नज़रिया ही था जिसकी वजह से ऑगस्ट वह सब देख रहा था जो उस वक़्त बाकी लोग नहीं देख पा रहे थे या न देखने का मन बना चुके थे। 

हिटलर के निरकुंश तानाशाही शासन के वक़्त पूरे समंदर के ख़िलाफ़ एक इंसान का अकेले इस तरह खड़ा होना बहुत बहादुरी और हौसले का काम था। हम सब भी शायद आज यह चाहते होंगे कि काश हम भी कभी उतना साहस और हौसला दिखा पाएं जितना ऑगस्ट ने दिखाया था। हमें इस बात का भी यक़ीन होगा कि अगर हम नाज़ी राज़ के दौरान जर्मनी के `आर्यन` नागरिक होते तो हमें भी सही-गलत का अहसास होता जो कि ऑगस्ट को उस वक़्त था और हम भी उस पागलपन में शामिल होने से इंकार कर देते।

हम यह भी विश्वास करना चाहेंगे कि अगर हम उस वक़्त होते तो हम भी उस अन्याय के ख़िलाफ़ होते, हम भी यहूदी जाति, जिससे इंसान होने का दर्ज़ा भी छीना जा चुका था, के हक़ों के लिये मुश्किल से मुश्किल रास्ता चुनने से पीछे नहीं हटते। लेकिन क्या सच में हम ऐसा कर पाते? जब तक कि कोई अपने डर से पार न पा ले, अपनी सुविधाएं छोड़ने का मन न बना ले बल्कि खुद को उपहास और असुविधाओं का,  अपने आस-पास रहने वाले सब लोगों की नापसंदगी को सहने का, अकेले चलने का आदी न बना ले,  ऑगस्ट बनना सम्भव नहीं है। किसी भी युग में ऑगस्ट होने के लिये क्या चीज सबसे ज्यादा ज़रूरी है? आज के वक़्त ऑगस्ट होने के लिये क्या चीज़ चाहिए होगी?

अमोल सरोज।

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