चीन के एक स्टार्टअप द्वारा विकसित कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई, यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) ‘‘डीपसीक आर-1’ के लांच होते ही अमरीका से टोकियो तक तकनीकी कंपनियों के शेयरों में इतनी तेज गिरावट आने लगी, जैसे कि भूचाल आ गया हो।
24 घंटे के भीतर अमेरिकी शेयर मार्केट के शेयरों में 1 ट्रिलियन डॉलर (1 हजार अरब डॉलर, यानि 865 खरब रुपये) का नुकसान दर्ज हुआ। वहीं अमेरिका की सबसे बड़ी जीपीयू (ग्राफिक प्रॉसेसिंग यूनिट्स) चिप निर्माता कंपनी ‘एनवीडिया’ के शेयरों में भी 17 प्रतिशत की गिरावट आ गयी है, और इससे उसे 27 जनवरी को ही 600 अरब डॉलर का नुकसान हो गया था।
देखते ही देखते एप्पल और गूगल के प्लेस्टोरों से इसे इतना डाउनलोड किया जाने लगा कि पहले से स्थापित अन्य सभी एआई मॉडलों को पीछे छोड़कर यह पहले स्थान पर विराजमान हो गया।
यह काबिले ग़ौर है कि ‘डीपसीक’ ने यह उपलब्धि अमरीका द्वारा चीन पर लगाये गये उन्नत चिप के निर्यात पर प्रतिबंधों के बावजूद हासिल की है। इस परिघटना ने उन्नत क़िस्म के जीपीयू (ग्राफिक प्रॉसेसिंग यूनिट्स) चिपों पर एकाधिकार रखने वाले अमेरिका की व्यावसायिक ब्लैकमेलिंग और धौंस-पट्टी को बेअसर साबित कर दिया है।
आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। ‘डीपसीक’ के शोधकर्ताओं ने इस कमी की भरपाई करने के लिए अन्य तरीक़े तलाशने में अपनी ऊर्जा लगायी, जिससे इसकी क्षमता और गुणवत्ता काफी उन्नत हो गयी।
‘ओपेन एआई’ के ‘चैट जीपीटी’ के विकास में 50 करोड़ डॉलर खर्च हुए थे, और वह ‘एनवीडिया’ के आधुनिकतम जीपीयू चिपों से तैयार किया गया था, जबकि ‘डीपसीक’ पर उसका लगभग दसवां हिस्सा, मात्र 60 लाख डॉलर (51 करोड़ रुपये) का खर्च आया है और यह अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण दूसरे दर्जे की पुरानी जीपीयू चिपों से तैयार किया गया है, और वह भी मात्र 2 महीने में। फिर भी यह ‘चैट जीपीटी’ की तुलना में ज्यादा बेहतर और स्मार्ट है।
इस परिघटना ने तकनीक जगत में व्याप्त इस मिथ को ध्वस्त कर दिया है कि “महाकाय कॉरपोरेशन ही बड़े आविष्कार कर सकते हैं।” खास करके एआई के क्षेत्र में अरबों के निवेश, भारी ढांचा, भारी-भरकम हार्डवेयर, बड़े डेटासेट और संगणन क्षमता का होना किसी भी विकास की पूर्वशर्त होती रही है।
यही वजह है कि शेयर मार्केट में एआई कंपनियों के शेयरों की क़ीमतें पिछले वर्षों में आसमान छूने लगी हैं। ‘डीपसीक’ परिघटना ने इस मिथ को भी धूल-धूसरित कर दिया है। इसने बता दिया है कि अब एक नये युग का सूत्रपात हो गया है, जिसमें सफलता संसाधनों के बूते नहीं, बल्कि नवाचारों (इनोवेशन्स) के बूते लिखी जाएगी।
हालत यह है कि ‘डीपसीक’ के इस एआई रीजनिंग मॉडल आर-1 के रिलीज होने के बाद से इसकी लोकप्रियता में आयी उछाल को देखते हुए खुद माइक्रोसॉफ्ट, एनवीडिया और अमेज़न वेब सर्विसेज (एडब्ल्यूएस) जैसी कई तकनीकी दिग्गज कंपनियों ने भी इस ओपन-सोर्स एआई मॉडल को अपनी क्लाउड सेवाओं के दायरे में लाना शुरू कर दिया है।
आइए समझते हैं कि ‘डीपसीक’ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है क्या?
2023 में एक चीनी प्राइवेट हेज फंड ‘हाई फ्लायर’ की एआई (कृत्रिम बुद्धिमत्ता) टीम ही आगे चल कर एक एआई टीम के रूप में विकसित हो गयी। इसे हेज फंड के प्रबंधक लियांग फेनवेंग ने स्थापित किया। ‘डीपसीक’ को समझने के लिए एआई, यानि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और उसकी कार्य प्रणाली पर एक नजर मारना ठीक रहेगा।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक ऐसी प्रणाली है जो बड़ी मात्रा में डेटा से महत्वपूर्ण जानकारी निकालने, पैटर्न पहचानने, और आगे क्या संभव है, इसकी भविष्यवाणियां करने में सक्षम है। यह तकनीक मुख्य रूप से मशीन लर्निंग, डीप लर्निंग, और डेटा एनालिटिक्स के क्षेत्र में कार्य करती है। एआई तकनीक डेटा के अंदर छुपे पैटर्न और प्रवृत्तियों का विश्लेषण करने के लिए मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग एल्गोरिदम का उपयोग करती है।
यह डेटा के माध्यम से बेहतर निर्णय लेने में मदद करती है। एआई सबसे पहले डेटा को एकत्र करता है। यह डेटा विभिन्न स्रोतों से आ सकता है, जैसे कि सोशल मीडिया, वेब, बिजनेस डाटाबेस, और अन्य डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म। एक बार डेटा एकत्रित हो जाने के बाद, उसे प्रोसेस किया जाता है।
प्रोसेसिंग का उद्देश्य डेटा को साफ करना और उसे विश्लेषण के लिए तैयार करना है। इसमें न केवल डेटा की सफाई की जाती है, बल्कि उसे एक उपयुक्त फॉर्मेट में भी बदला जाता है, ताकि वह सिस्टम द्वारा आसानी से समझा जा सके।
एआई का अगला क़दम है मशीन लर्निंग मॉडल को ट्रेन, यानि प्रशिक्षित करना। इसमें विभिन्न प्रकार के एल्गोरिदम जैसे कि न्यूरल नेटवर्क, रिग्रेशन मॉडल, और क्लस्टरिंग तकनीक का उपयोग किया जाता है। मॉडल ट्रेनिंग के दौरान, सिस्टम इन एल्गोरिदम का उपयोग करके डेटा से पैटर्न और रिलेशनशिप की पहचान करता है।
यह प्रक्रिया बहुत ही जटिल और समय लेने वाली हो सकती है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस प्रक्रिया के द्वारा ही एआई सिस्टम भविष्यवाणियां और निर्णय लेने की क्षमता प्राप्त करता है।
जब मॉडल प्रशिक्षित हो जाता है, तो वह भविष्य के डेटा पर विश्लेषण करने के लिए तैयार होता है। यह एआई सिस्टम विभिन्न संभावनाओं का मूल्यांकन करता है और निर्णय लेने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करता है। इसके द्वारा निकाले गए परिणामों का उपयोग व्यवसायों द्वारा रणनीतिक निर्णय लेने के लिए किया जाता है।
एआई फीडबैक प्रणाली के द्वारा लगातार अपने प्रदर्शन में सुधार करती है। इसमें प्राप्त परिणामों का विश्लेषण किया जाता है और अगर किसी प्रकार की गलती होती है, तो उसे सुधारने के लिए फीडबैक लूप का उपयोग किया जाता है। यह प्रणाली स्वयं को निरंतर अद्यतन और सुधार करती रहती है, जिससे यह समय के साथ अधिक प्रभावी बनती जाती है।
क्या यह चीन का स्पुतनिक मोमेंट है?
आज मानव विकास के हर क्षेत्र में शोध के काम में एआई की जरूरत अपरिहार्य बन चुकी है। शोध के क्षेत्र में जो काम दशकों में पूरे हो सकते थे, एआई ने उसे दिनों के खेल में बदल दिया है।
एआई स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांति ला सकता है। इसके द्वारा मेडिकल डेटा, जैसे कि मरीजों के इतिहास, लैब रिपोर्ट्स, और मेडिकल इमेजिंग का विश्लेषण किया जा सकता है। लैब और एमआरआई और सीटी स्कैन जैसी रेडियोलॉजिकल रिपोर्टों में एआई ऐसे छिपे हुए पैटर्नों की पहचान करके बहुत पहले ही संभावित रोगों की पहचान कर सकता है, जो आम तौर पर डॉक्टरों की नजर से ओझल रहते हैं।
यह रोगों का जल्द पता लगाने, उपचार योजना तैयार करने और दवाइयों के प्रभाव का अनुमान लगाने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त, एआई सटीक और त्वरित निदान देने में डॉक्टरों को मदद करने में भी सक्षम होता है, जो इलाज की गुणवत्ता को बढ़ाता है।
व्यापार और वित्तीय क्षेत्र में एआई का प्रभाव बेहद महत्वपूर्ण है। इसका उपयोग मार्केट ट्रेंड्स की भविष्यवाणी करने, ग्राहकों की खरीदारी आदतों का विश्लेषण करने, और जोखिम प्रबंधन में किया जाता है। इससे व्यापारों को बेहतर निर्णय लेने में मदद मिलती है, जो उनकी उत्पादकता और लाभ में वृद्धि करती है।
एआई का उपयोग कस्टमर सर्विस के क्षेत्र में भी किया जा रहा है। यह चैटबॉट्स और वॉयस असिस्टेंट्स के रूप में ग्राहकों के सवालों का उत्तर देने में मदद करता है। इसके द्वारा, ग्राहकों को त्वरित और सटीक समाधान मिलते हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में भी एआई का महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है। यह शिक्षकों और छात्रों के लिए पर्सनलाइज्ड (खास उसी व्यक्ति के रुझान और क्षमता पर आधारित) लर्निंग एक्सपीरियंस प्रदान करता है। इसके द्वारा छात्रों की प्रगति को ट्रैक किया जा सकता है, और उनपर आधारित पाठ्यक्रम तैयार किए जा सकते हैं, जो उनकी जरूरतों के अनुरूप होते हैं।
सुरक्षा क्षेत्र में एआई का उपयोग साइबर हमलों का पता लगाने, डेटा उल्लंघनों की पहचान करने और सुरक्षा जोखिमों का मूल्यांकन करने में किया जाता है। इसके द्वारा, सिस्टम समय रहते खतरे का पता लगाने में सक्षम होते हैं, जिससे डेटा सुरक्षा और उपयोगकर्ता की गोपनीयता बनी रहती है।
जीनोम अध्ययन, जेनेटिक इंजीनियरिंग, अंतरिक्ष अनुसंधान, भूगर्भ अध्ययन, परमाणविक और नाभिकीय बलों के अध्ययन जैसे असंख्य ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें एआई एक क्रांति ला सकता है।
ऐसे में, इन सभी क्षेत्रों लिए क्रांतिकारी साबित होने वाली और पश्चिमी देशों की एआई से ज्यादा सस्ती, ज्यादा कारगर और ज्यादा उन्नत एआई ‘डीपसीक’ के लॉन्च को चीन का ‘स्पुतनिक मोमेंट’ कहा जा रहा है। 4 अक्तूबर 1957 को, जब तत्कालीन सोवियत संघ ने पश्चिमी एकाधिपत्य को चुनौती देते हुए, दुनिया के प्रथम कृत्रिम उपग्रह स्पुतनिक-1 को सफलता पूर्वक लॉन्च कर दिया था, यह उनके लिए अप्रत्याशित था। इस घटना ने उस समय अमेरिका-नीत पश्चिमी दुनिया में भय और सनसनी फैला दिया था। इसी तर्ज पर ‘डीपसीक’ के लॉन्च को भी ‘स्पुतनिक मोमेंट’ कहा जा रहा है।
अन्य एआई की तुलना में ‘डीपसीक’ की खासियत
‘डीपसीक’ की कुछ अपनी खासियतें इसे अन्य एआई से बेहतर साबित करती हैं। इसे ट्रांसफॉर्मर आर्किटेक्चर पर विकसित किया गया है, जो वर्तमान समय के सबसे उन्नत प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (NLP) मॉडल्स का आधार है। यह मॉडल गहन शिक्षण (डीप लर्निंग) के माध्यम से लाखों-करोड़ों डेटा प्वाइंट्स से सीखता है और उपयोगकर्ताओं को सटीक उत्तर प्रदान करता है।
इसके प्रशिक्षण में सुपरकंप्यूटर क्लस्टर्स का उपयोग किया गया है, जिससे यह जटिल समस्याओं का समाधान तेजी से कर सकता है। इसे विविध स्रोतों से प्रशिक्षित किया गया है, जिससे यह विभिन्न प्रकार के प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम है। यह मॉडल अंग्रेजी, चीनी, हिंदी और अन्य भाषाओं को सपोर्ट करता है, जिससे यह वैश्विक स्तर पर उपयोगी साबित होता है। इसका डेटा सेट लाइव वेब डेटा, शोध पत्रों, किताबों, और ओपन-सोर्स कोड पर आधारित है।
यह विशेष रूप से कोडिंग और प्रोग्रामिंग कार्यों में दक्ष है। यह विभिन्न प्रोग्रामिंग भाषाओं जैसे पॉइथन, जावास्क्रिप्ट, सी++, जावा, और रस्ट को समझता है और उनमें काम कर सकता है। डेवलपर्स इसके उपयोग से कोड जनरेशन, बग फिक्सिंग, और कोड ऑप्टिमाइजेशन कर सकते हैं।
सबसे बड़ी बात, कि ‘डीपसीक’ में 671 अरब पैरामीटर्स इस्तेमाल किये गये हैं, जो कि इसके कई अन्य प्रतिद्वंद्वियों से 10 गुना ज्यादा है। यही कारण है कि इसकी विश्लेषण क्षमता अन्य एआई मॉडलों से काफी आगे है।
क्या दुनिया के वर्तमान भू-राजनीतिक संतुलन में इससे कुछ बदलने वाला है?
चीनी राष्ट्र प्रमुख शी जिनपिंग ने पहले ही एआई के मामले में 2030 तक अपने देश के दुनिया का नेतृत्व करने के लक्ष्य पर काम शुरू कर दिया था। उन्होंने कहा था कि “एआई को केवल धनी देशों और दुनिया के गिने-चुने धनाढ्यों का खेल नहीं बनने देना है।” ‘डीपसीक’ ने वह कर दिखाया है।
चीन ने ढिंढोरा पीटे बिना ही आज की इस उन्नततम तकनीक में पश्चिमी देशों और कॉरपोरेट जगत के एकाधिकार की चूलें हिला दी हैं। इसने साबित कर दिया है कि एआई को सस्ता और सर्वसुलभ भी बनाया जा सकता है। इसने इसमें कॉरपोरेट जगत द्वारा घोषित बड़े और बेहद महंगे हार्डवेयर वगैरह के दावे की पोल खोल कर इसके द्वारा अगले दशकों तक भारी कमाई करने की उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। उनके निवेशकों को भी यह बात समझ में आ गयी है। ऐसी ही हवा भर कर फुलाये गये उनके शेयरों के गुब्बारे के फूटने का यही कारण है।
तकनीकी उपनिवेशवाद से बचने के लिए आत्मनिर्भरता जरूरी
जिस तरह से अमरीका ने अपने कॉरपोरेशनों के साथ मिलकर चीन को उन्नत जीपीयू चिपों की आपूर्ति पर प्रतिबंध लगा दिया था, उसने अपनी तरफ से तो विज्ञान और तकनीक के मामले में चीन को निस्सहाय और निरुपाय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
चीन के पास आत्मनिर्भरता के अलावा कोई रास्ता नहीं था। ट्रंप के नेतृत्व में अमरीका ने अभी मेक्सिको, कनाडा और चीन पर भारी टैरिफ लगाकर एक नये व्यापार युद्ध की शुरुआत कर दी है। ऐसे में कोई भी देश अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए एआई जैसी महत्वपूर्ण तकनीक के अनुसंधान और विकास का रास्ता अपनाने को मजबूर होगा। चीन ने यही किया है। इस डिजिटल दौर में संप्रभुता की यही शर्त है।
सोवियत संघ के विखंडन के बाद से दुनिया लगातार एकध्रुवीय होने की दिशा में अग्रसर होती जा रही थी। सैन्य मामले में रूस इस प्रभुत्व को चुनौती देता रहा है, लेकिन चीन किसी बड़े युद्ध में पड़े बिना लगातार अपनी औद्योगिक, तकनीकी, सैन्य और व्यापारिक ताक़त में इजाफा करता जा रहा है, और इस तरह से वह अमरीकी प्रभुत्व, एकाधिकार और एकध्रुवीय मंशा की राह का सबसे बड़ा रोड़ा बना हुआ है।
क्या गोलियथ जैसे महाभीमकाय तकनीकी कॉरपोरेशनों के खिलाफ ‘डीपसीक’ डेविड की ढेलवांस साबित होगा?
कोई भी तकनीक मनुष्यता के लिए कितनी उपयोगी साबित होगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि तकनीक का मालिकाना किसके हाथ में है। पूंजीपतियों, साम्राज्यवादी देशों और कॉरपोरेट कुलीन तंत्रों के हाथ में वह तकनीक आम लोगों की सुख-सुविधाओं में निर्मम कटौती करने और उनके हाड़-मांस और रक्त-मज्जा को निचोड़ कर मुनाफा कमाने का जरिया बनती है।
वही तकनीक जब जनता या जनपक्षधर व्यवस्थाओं के हाथ में आती है तो लोगों के हाथों में सुख-समृद्धि आती है, उनका जीवन खूबसूरत होता है। यह एक अनवरत संघर्ष है जो पूंजी और श्रम के बीच चलता रहता है।
जब-जब दुनिया में कहीं भी श्रमिकों के संघर्ष ताक़तवर होते हैं, उस समय पूरी दुनिया में पूंजी कुछ रियायतें देने को मजबूर होती है और अपने नख-दंत छिपा कर राजनीति के क्षेत्र में उदारवादी लोकतंत्र का चोला पहन लेती है।
इसके उलट जब-जब श्रमिकों के संघर्ष कमजोर पड़ते हैं, उस समय पूंजी अपने वास्तविक, हृदयहीन और विकराल रूप में मनुष्यता की सारी श्लाघ्य उपलब्धियों को हड़प लेने के लिए मुंह से फेन फेंकते हुए फुफकारने लगती है।
अभी विश्व पूंजीवाद वही विकराल रूप धारण किये हुए अपने नवउदारवादी चरण में है जिसकी राजनीतिक अंतर्वस्तु नवफासीवाद है। इसकी धमक हमें उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक हर जगह दिखाई दे रही है।
ऐसे में ‘डीपसीक’ नवउदारवादी एकाधिकार पूंजीवाद के भीतर अधिक से अधिक एक तकनीकी लोकतंत्र का रोशनदान खोल देगा, इससे ज्यादा कुछ नहीं कर पाएगा। यह पश्चिमी टेक कॉरपोरेशनों के लिए तात्कालिक तौर पर भले थोड़ी परेशानी पैदा करे, अंततः यह उनके दायरे के भीतर ही वर्चस्व और हिस्सेदारी के संघर्ष में शामिल होकर रह जाएगा।
इसलिए इससे ज्यादा उम्मीद पालना ठीक नहीं होगा। इससे ज्यादा उम्मीद पालने के लिए दुनिया भर में श्रम संघर्षों का इंतजार करना होगा, या अपनी–अपनी जगह पर उन्हें संजोना, सहेजना और आगे बढ़ाना होगा।
(शैलेश लेखक और टिप्पणीकार हैं)
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